अग्निहोत्र से रोगकृमियों का नाश तथा स्वस्थ जीवन की प्राप्ति होती है

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मनमोहन कुमार आर्य

               मनुष्य भोजन कर न केवल अपनी भूख को दूर करता है अपितु इससे उसे बल व शक्ति की प्राप्ति भी होती है। बच्चे दुग्ध, फलाहार व भोजन करते हैं जिससे उनको बल व शक्ति सहित शारीरिक वृद्धि की प्राप्ति होती है। जिनको अच्छा भोजन, गोदुग्ध, फल तथा बादाम, काजू, छुआरे आदि शुष्क मेवे व फलों की प्राप्ति नहीं होती वह कुछ कमजोर व यदा-कदा सामान्य ज्वर, खांसी तथा उदर रोगों आदि से ग्रस्त देखे जाते हैं। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि हम भोजन में जो पदार्थ लेते हैं उसका सम्बन्ध हमारे आरोग्य और शारीरिक रक्षा सहित बल व शक्ति से होता है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिये भोजन, व्यायाम व प्राणायाम सहित ईश्वर के ध्यान-चिन्तन पर भी हमें अपना ध्यान एकाग्र करना चाहिये। इससे मनुष्य का स्वास्थ्य अन्यों की तुलना में अधिक अच्छा हो सकता है। आजकल समाज में पहले से अधिक जाग्रति है। पूरा विश्व योग एवं शाकाहार जीवन पद्धति को अपना रहा है तथा स्वस्थ जीवन सहित सुख व शान्ति भी प्राप्त कर रहा है जो मांस भक्षियों, मदिरा पान करने वालों, तला हुआ तथा तामसिक भोजन करने वालों को कदापि प्राप्त नहीं हो सकती। हमें यह देखकर भी आश्चर्य होता है कि धनिक लोग अनेक रोगों से ग्रस्त देखे जाते हैं जबकि आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होने के कारण वह निर्धनों से अधिक स्वास्थ्यप्रद भोजन कर सकते हैं। इसका कारण उनका अनियमित जीवन, तामसिक भोजन व चटोरापन प्रतीत होता है। स्वास्थ्य के लिये हमें आहार व विहार में सन्तुलन रखना आवश्यक है। प्राकृतिक नियम किसी की आर्थिक सम्पन्नता या बड़े पद को देखकर पक्षपात नहीं करते। ईश्वर के नियम निर्धन व धनवान, विद्वान व अपढ़ तथा समर्थ व असमर्थ सबके लिये समान हैं। ईश्वर व प्रकृति के इन नियमों में किसी से पक्षपात नहीं होता। जो लोग ईश्वर को नहीं मानते वह भी अनेकानेक रोगों व कष्टों से त्रस्त होते हैं और अल्पायु का शिकार होते हैं। उनके पास इसका कोई उपाय नहीं होता तथापि वह अपनी अविद्या, हठ व दुराग्रह को छोड़ने के लिये तत्पर नहीं होते।

               अग्नि का काम पदार्थों को जलाना वा सूक्ष्म कर उसे वायुमण्डल आकाश में फैलाना होता है। जो पदार्थ जितना अधिक सूक्ष्म होता है वह उतना अधिक प्रभावशाली होता है। हम देखते हैं एक मिर्च जिसको आसानी से खाया जा सकता है, उसे यदि अग्नि में डाल दिया जाये तो उसका प्रभाव बढ़ जाता है। एक मिर्च के जलने से उस स्थान पर सैकड़ों लोगों का उपस्थित रहना कठिन हो जाता है। सब खांसने लगते हैं। उसकी गन्ध सबको अप्रिय लगती है। वह किसी से सहन नहीं होती। यह अग्नि में मिर्च डालने पर प्रत्यक्ष अनुभव किया जाता है। इसी प्रकार से अग्नि में जो भी पदार्थ डाला जाता है उसका प्रभाव मिर्च की ही भांति वृद्धि प्रसार को प्राप्त होता है। मनुष्य को स्वस्थ रहना है। वह शुद्ध पौष्टिक भोजन सहित ओषधियों, गोदुग्ध एवं गोघृत आदि के सेवन से स्वस्थ रहता है। अतः वेद और हमारे ऋषियों ने इस विषय का विवेचन कर अग्निहोत्र यज्ञ का आविष्कार किया जो सृष्टि के आदि काल से निरन्तर चला रहा है। महाभारत के बाद अग्निहोत्र यज्ञ में कुछ शिथिलता तथा विकृतियां आईं परन्तु ऋषि दयानन्द ने सभी विकृतियों का देश की प्रजा को परिचय कराया व उन्हें दूर करके अग्निहोत्र यज्ञ के लाभों से हमें परिचित कराया। उन्होंने बताया कि प्रतिदिन प्रातः व सायं अग्निहोत्र देव यज्ञ करना प्रत्येक गृहस्थी का कर्तव्य व धर्म है। देवयज्ञ को उन्होंने व उनके पूर्व ऋषियों ने महायज्ञ की उपाधि दी है और इसका क्रम ईश्वरोपासना के बाद तथा पितृयज्ञ, अतिथियज्ञ एवं बलिवैश्वदेवयज्ञ से पहले रखा गया है। उन्होंने यह भी बताया कि जब तक भारत के सभी घरों व परिवारों में यज्ञ होता था तब तक सभी लोग स्वस्थ व निरोग रहने के साथ सुख-समृद्धि से युक्त रहते थे। यदि अब भी सभी यज्ञ करें तो पुनः स्वस्थ, निरोग एवं सुखों से युक्त हो सकते हैं।

               यज्ञ करते हुए अग्नि में स्वास्थ्य रक्षा और वायुमण्डल की शुद्धि को ध्यान में रखते हुए चार प्रकार के द्रव्यों की आहुतियां दी जाती हैं। इनमें यज्ञ की मुख्य सामग्री अर्थात् हव्य द्रव्य देशी गाय का घृत होता है। घृत में रोगी मनुष्य को स्वस्थ करने, वाुय प्रदुषण दूर करने, रोग कृमियों, बैक्टिरिया, वायरस तथा जम्र्स सहित सभी प्रकार के विष वा विषाणुओं को को नष्ट करने का भी गुण होता है। घृत को अग्नि में आहूत करने से दुर्गन्ध का नाश होता है तथा सुगन्ध का प्रसार होता है। ऐसे अनेकानेक अगणित लाभ गोघृत से यज्ञ करने से होते हैं। यह सभी लाभ अग्निहोत्र यज्ञ करने वालों को प्राप्त होते हैं। घृत के अतिरिक्त केसर व कस्तूरी आदि पदार्थों को भी यज्ञद्रव्यों में सम्मिलित किया गया है। इनका भी अपना प्रभाव होता है। यज्ञ में दूसरा मुख्य पदार्थ देशी शक्कर होता है। इसमें स्वास्थ्य रक्षा एवं रोगनाश सहित कृमियों का नाश करने का गुण होता है। यज्ञ का तीसरा पदार्थ वा सामग्री वनों से प्राप्त होने वाली ओषधियां व किसानों द्वारा उगाई जाने वाली वनस्पतियां होती हैं जिनसे प्रत्यक्ष रूप से हम स्वस्थ रहने सहित रोग निवृत्त भी होते हैं। यज्ञ सामग्री में गुग्गल, गिलोय, अगर, तगर तथा अनेक रोगों में लाभदायक ओषधियां को मिलाया जाता है। अग्नि में आहुति डालने से यह अत्यन्त सूक्ष्म, हल्की व भाररहित होकर पूरे आवास एवं वायुमण्डल में फैल जाती हैं। वायु के द्वारा यह दूर दूर तक पहुंच कर अशुद्धि व रोगों का नाश करती हैं। यज्ञ के प्रसंग में यहां तक कहा जाता है कि यज्ञ की सूक्ष्म आहुति सूर्य की किरणों के सम्पर्क से सूर्य तक पहुंच जाती है। इस प्रकार यज्ञ करने से अनेकानेक लाभ होते हैं और यज्ञकर्ता को पुण्य मिलता है जिसका परिणाम उसका जन्म-जन्मान्तर में कल्याण व धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति होता है।

               यज्ञ करने से रोगों से रक्षा होती है। वेदभाष्यकार आचार्य डा. रामनाथ वेदालंकार जी ने यज्ञ-मीमांसा नामक एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा है। यह ग्रन्थ सभी ऋषिभक्तों एवं आर्यसमाजियों को अवश्य पढ़ना चाहिये। इस ग्रन्थ में वह लिखते हैं कि बाह्य लाभों की दृष्टि से यह (अग्निहोत्र यज्ञ) वायुमण्डल को शुद्ध करता है और रोगों तथा महामारियों को दूर करता है।’ आचार्य जी ने यज्ञ से रोगोत्पादक कृमियों के विनाश पर भी विस्तार से प्रकाश डाला है। उन्होंने बताया है अथर्ववेद 1/2/31-32, 4/37 तथा 5/23, 5/29 में अनेक प्रकार के रोगोत्पादक कृमियों का वर्णन आता है। यहां इन्हें यातुधान, क्रव्याद्, पिशाच, रक्षः आदि नामों से स्मरण किया गया है। ये श्वासवायु, भोजन, जल आदि द्वारा मनुष्य के शरीर में प्रविष्ट होकर या मनुष्य को काटकर उसके शरीर में रोग उत्पन्न करके उसे यातना पहुंचाते हैं। अतः ये ‘यातुधान’ हैं। शरीर के मांस को खा जाने के कारण यह ‘क्रव्याद्’ या ‘पिशाच’ कहलाते हैं। इनसे मनुष्य को अपनी रक्षा करना आवश्यक हो जाता है। इसलिये ये ‘रक्षः’ या ‘राक्षस’ हैं। यज्ञ द्वारा अग्नि में कृमि-विनाशक ओषधियों की आहुति देकर इन रोग कृमियों को विनष्ट कर रोगों से बचाया जा सकता है।’

               आजकल न केवल हमारा देश वरन् पूरा विश्व कोरोना रोग व महामारी से त्रस्त है। इस महामारी पर विजय का कोई उपाय नहीं मिल रहा है। सृष्टि के ज्ञात इतिहास में यह सबसे बड़ा वैश्विक संकट है। दुःख है कि भारत के कुछ राजनीतिक दल इस अवस्था में भी देश के प्रधानमंत्री व सरकार को सहयोग देने के स्थान पर राजनीति व षडयन्त्र कर रहे हैं। उनका व्यवहार देश के लिये हितकारी न होकर शत्रुओं की भांति है। प्रधानमंत्री जी के कुशल नेतृत्व में रोगों को समाप्त करने के सभी आवश्यक उपाय किये गये हैं। कुछ लोग संगठित रूप से नानाविध असहयोग भी कर रहे हैं। इस स्थिति में भी भारत ने विश्व के अनेक देशों की तुलना में कोरोना के व्यापक प्रभाव को रोकने में अपनी महनीय भूमिका निभाई है। इसके लिये प्रधानमंत्री मोदी, सभी कोरोना योद्धा एवं आवश्यक सेवाओं के कर्मी बधाई के पात्र हैं। सामजिक संस्थायें जो भोजन वितरण का कार्य कर रहीं हैं, वह भी बधाई की पात्र हैं।

               कोरोना को भगाने के लिए अमृतसर की शक्तिनगर आर्यसमाज ने पहल करके अमृतसर में सभी आर्य परिवारों के द्वारा दिनांक 26-4-2020 को सायं 5.00 बजे पारिवारिक यज्ञ अयोजित कराये थे। इन यज्ञों के चित्र व वीडियो आर्यसमाज शक्तिनगर-अमृतसर के व्हटसप गु्रप में डाली गईं थी। देहरादून में भी हमने इस आयोजन को सफल बनाने के लिये अपने सभी मित्रों को प्रेरित किया था। गुरुकुल पौंधा-देहरादून में इस दिन व समय पर 130 लोगों ने मिलकर कोरोना से बचाव के नियमों का पालन करते हुए अग्निहोत्र किया था। पंजाब केसरी की एक संस्था की ओर से इसकी एक सारगर्भित एवं प्रभावशाली वीडीयो बनाकर भी प्रसारित की गई है। इसकी सफलता का असर पूरे देश की समाजों व संस्थाओं पर पड़ा। इससे प्रेरित होकर सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, दिल्ली ने भी ऐसा ही एक कार्यक्रम रविवार दिनांक 3-5-2020 को प्रातः 9.30 बजे से करने की देश विदेश के सभी आर्यों को प्रेरणा की है। इस प्रेरणा के लिये सभा प्रधान श्री सुरेशचन्द्र आर्य जी विश्व की सभी आर्यसमाजों के धन्यवाद एवं सम्मान पात्र हैं।

               यशस्वी श्री सुरेशचन्द्र आर्य जी श्री वंशीधर अग्रवाल आर्य जी के सुपुत्र हैं। श्री वंशीधर जी देहरादून के वैदिक साधन आश्रम तपोवन के वर्षों तक प्रधान रहे। वह सत्यप्रकाशन तथा वेदमन्दिर, मथुरा से जुड़ी संस्थाओं के भी प्रधान थे। हमने उनकी उदारता व ऋषि भक्ति की बातें वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के संस्थापक न्यासी कीर्तिशेष श्री भोलानाथ आर्य जी के श्रीमुख से अनेकों बार सुनी हैं। हम श्री सुरेश आर्य जी का हृदय से सम्मान करते हैं। महाशय धर्मपाल आर्य जी भी आर्यसमाज की एक दिव्य विभूति हैं। उनकी ऋषिभक्ति समर्पण एवं सेवा प्रशंसनीय तथा अनुकरणीय है। सभाओं व संस्थाओं में अनेक प्रकार के लोग होते हैं। वैदिक धर्म के प्रचार व विस्तार का शुभ व अच्छा काम कोई भी करे, सभी आर्यसमाजियों को उसको सहयोग एवं समर्थन देना चाहिये। हम आशा करते हैं कि दिनांक 3 मई, 2020 का यह यज्ञ एक नये इतिहास की रचना करेगा। विपक्षी सभायें भी इसमें अनेक कारणों से सहयोगी बनी हैं। अन्य कोई विकल्प भी किसी के पास नहीं है। अतः यह पहला आयोजन है जो घर में बैठकर हो रहा है और जिसके प्रति सभी आर्यों में अत्यन्त उत्साह है। हम इस आयोजन की सफलता की हृदय से कामना करते हैं।

               यज्ञ से निश्चय ही वायरसों व बैक्टिरियाओं का नाश होता है। कोरोना पर भी इसका पूर्ण या कुछ कम असर अवश्य ही पड़ेगा। इससे हमारे संगठन में भी प्राण शक्ति का संचार होगा। ईश्वर से की गई प्रार्थनायें भी फलदायक होती हैं। इन दोनों के मिलने से हम समाज व देश में एक चमत्कार की आशा रखते हैं। हमें ऋषियों के पंचमहायज्ञों के अन्र्तगत प्रातः व सायं प्रतिदिन देवयज्ञ करने के आदेश को अपने जीवन में चरितार्थ करना चाहिये। इससे निश्चय ही देश व विश्व को लाभ होगा। ओ३म् शम्।

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