अहिंसा का प्रतीक ‘चांटा’

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एल.आर.गाँधी

अहिंसा के प्रतीक चांटे की गूँज …आज चारों दिशाओं में फैली हुई है. जब से हरविंदर सिंह ने ‘महंगाई के टेढ़े गाल’ पर सपाट चांटा जड़ा है …सारा देश प्रतिक्रियाऑ के दो खेमों में बाँट गया है. एक तो वो हैं जो अपने आप को गांधीजी के आदर्शों का ठेकेदार मानते हैं और उनके अहिंसा परमो-धर्म के परचम को थामे हुए ….चांटे को ‘ राष्ट्र के खिलाफ हिंसा ही नहीं बल्कि विश्व की सारी की सारी मानवता के खिलाफ हिंसा से अलंकृत कर रहे हैं. . ये वही लोग हैं जो आम जनता को ‘रोटी’ मांगने पर न्याय व्यवस्था ‘लाठी’ से पीटते हैं. भ्रस्टाचार और काले धन के खिलाफ रामलीला मैदान में बैठे ‘आम आदमी’ को आधी रात को उठा कर पीट पीट कर दौड़ते हैं और दौड़ा दौड़ा कर पीटते हैं. क्या वह ‘हिंसा ‘ नहीं थी . सारी संसद आज शरद- चांटे से विचलित है और अन्ना को नया गाँधी वाद ‘ बस एक ही चांटा’ घड़ने पर कोस रही है. कुछ तो इसे देश में अराजकता फ़ैलाने का षड्यंत्र भी मान रहे हैं.

हम भी जन्म से गाँधी हैं … बचपन से बापू के ‘महान’ उपदेशों को पढने और समझने- समझाने की कोशिश में लगे है ? यदि आज बापू जिन्दा होते तो अपने इन सफ़ेद पोश ‘कांग्रेसियों’ से पूछते जरूर …क्या यही शिक्षा दी थी मैंने की चांटा पड़ा और भाग खड़े हुए … शेर पुत्र से पूछना तो था …भई ये लो दूसरा गाल , एक और मारो .. मगर यह बतला दो की क्यों मारा ? चांटा मारने वाला सिंह पुत्र जोर जोर से महंगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध सिंघनाद कर रहा था और हमारे ‘आटा मंत्री’ फिर भी कह रहे थे की मैंने ऐसा कुछ नहीं सुना ! ये कैसे गाँधीवादी हैं जो गाँधी जी के आदर्शों को इतनी जल्दी बिसरा बैठे. आज सारा देश भूख, बेकारी, बीमारी, बेईमानी ,भ्रष्टाचार,कालाबाजारी और कालेधन से बेज़ार है. और इन हालात के लिए जिम्मेवार नेता-अफसर त्रस्त जनता को ‘हिंसा-अहिंसा ‘ का कायदा पढ़ा रहे हैं.

बात गाँधी जी की अहिंसा की चल रही है… तो एक किस्सा याद आया. साबरमती आश्रम में गांधीजी की गाए का बछड़ा ‘भीरु’ गंभीर बीमारी से त्रस्त.. तड़प रहा था , बापू से ‘भीरु’ ‘ का दर्द देखा न गया. फ़ौरन ढोर -डाक्टर को बुला भेजा . डाक्टर से बोले या तो इस का दर्द हर लो या फिर इसे मुक्ति दे दो. बापू ने अपनी आँखों के सामने ‘भीरु’ को मुक्ति का इजेक्शन दिलवाया . आज देश का ७०% दीन हीन मानुष भूख-बीमारी से त्रस्त है. उनकी यह हालत अहिंसा के उस पुजारी के ‘वारिसों’ ने की है, जो उसके नाम पर लोगों को बरगला कर पिछले साढे छह दशकों से ‘राज सिंघासन ‘ पर आरूढ़ हैं.

चांटे की गूँज… नेट पर लोगों के विचार देखे , अधिकाश का विचार है की ‘चांटा’ महंगाई और भ्रष्टाचार के गाल पर था न की किसी व्यक्ति विशेष के. अब भी वक्त है .. जनता के आक्रोश को समझने , आंकने और समय रहते निदान का. वर्ना बहुत देर हो जाएगी ….. और अहिंसा की परिभाषा बदले देर नहीं लगेगी ..महज ‘अ’ शब्द का फेर है. अ से अराजकता भी होती है

न क्षुधासम : शत्रु :… भूखा व्यक्ति कोई भी पाप कर सकता है. अत : सरकार का कर्तव्य है की देश में कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे…. चाणक्य

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एल. आर गान्धी
अर्से से पत्रकारिता से स्वतंत्र पत्रकार के रूप में जुड़ा रहा हूँ … हिंदी व् पत्रकारिता में स्नातकोत्तर किया है । सरकारी सेवा से अवकाश के बाद अनेक वेबसाईट्स के लिए विभिन्न विषयों पर ब्लॉग लेखन … मुख्यत व्यंग ,राजनीतिक ,समाजिक , धार्मिक व् पौराणिक . बेबाक ! … जो है सो है … सत्य -तथ्य से इतर कुछ भी नहीं .... अंतर्मन की आवाज़ को निर्भीक अभिव्यक्ति सत्य पर निजी विचारों और पारम्परिक सामाजिक कुंठाओं के लिए कोई स्थान नहीं .... उस सुदूर आकाश में उड़ रहे … बाज़ … की मानिंद जो एक निश्चित ऊंचाई पर बिना पंख हिलाए … उस बुलंदी पर है …स्थितप्रज्ञ … उतिष्ठकौन्तेय

6 COMMENTS

  1. इस चांटे की गूंज बहुत दूर तक जाएगी. हाँ यहाँ यह देखने बाली बात है की देर लगेगी क्योंकि ट्यूबलाइट देर से जलती है. कभी कभी स्टार्टर बदलना पड़ता है.

    वैसे समझदार लोग हवा से मौसम का अनुमान लगा लेते है. किन्तु कुछ लोग मलाई की चिकनाई से सने होने के कारण महसूस नहीं कर पते है या यह सोचते है की “जिसकी लाठी उसकी भैंस” कोई उनका क्या बिगाड़ लेगा.

    सवा अरब में कुछ लोग ही जागरूक हो पाए है पॉवर आफ ट्रान्सफर अग्रीमेंट के जरिये हमारे अन्दर अंग्रेजो के छोड़े हुए वायरस अब कमजोर होने लगे है. शुरुआत हरविंदर ने कर दी है.

  2. हजार दमन के बावजूद,
    हजार घपलो के बावजूद,
    हजारो भंवरियो के बावजूद
    हजारो रावण लीलाओं के बावजूद
    सत्ता और उसके दलाल
    जनता से उम्मीद करते हैं कि..
    शांत रहो..
    बापू की राह पे चलो
    वाह रे हुक्मुरान..
    वाह रे तेरे राग-दरबारी पत्रकार.
    ——————–
    एक उम्दा लेख के लिए श्री एलआर गांधी को साधुवाद.

  3. तेजवानी जी ,जब हालात बद से बदतर होता जाता है और सुधार के कोई लक्षण नहीं दिखता तो कुछ भी हो सकता है.लेखक श्री गाँधी ने ठीक ही कहा है कि अगर श्री पंवार ने अपना दूसरा गाल भी चांटा मारने वाले की तरफ बढ़ाया होता तब माना जाता कि पवार जैसे नेता इतना गिरने के बावजूद भी कम से कम बापू को पूरी तरह नहीं भूले हैं. साठ से अधिक वर्ष बीत गए हैं देश को अंग्रेजों के शासन से निजात पाए हुए,पर आजादी ने भारत की जनता को क्या दिया?
    यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर ढूंढना ही होगा.गांधी ने कहा था कि जब तक देशका एक भी आदमी रोटी का मुहताज है और भूखा सोता है तब तक यह आजादी अधूरी है.महाकवि दिनकर ने बहुत पहले लिखा था,
    भूख लगी है रोटी दो.
    मन में नही प्रदीप हमारे ,तन में दाहक आग.
    हम न जानते हिंसाऔर अहिंसा का ये खटराग .
    जिनका उदार पूर्ण हो वे सोचे यह बात.
    हम भूखों को चाहिए एक वसन दो भात.

  4. तेजवानी साहब आपकी बात सही है लेकिन इसके लिए जिम्मेदार कौन है? पवार, कलमाडी, राजा, कनिमोई, मायावती, लालू जैसे चोर नेता या बिकाऊ मीडिया जो जनता की आवाज मुखर नहीं करती या फिर आम जनता जो इसका शिकार है…??
    पुणे के पास मावल में किसानो द्वारा अपने हक़ का पानी मांगने पर महाराष्ट्र की कोंग्रेस-एनसीपी सरकार ने गोलिया चलाकर भून दिया.
    रामलीला मैदान में शांतिपूर्ण सत्याग्रह कर रहे बाबा रामदेव के समर्थको पर कपिल, चिदंबरा-सोनिया की पुलिस किस तरह टूट पडी आपको मालूम है.
    ऐसे क्या आम आदमी इन निकम्मों, चोर मंत्रियों को एक चांटा मारकर चेतावनी दे रहा है, की अब भी वक्त है जाग जाओ…सुनो हमारी आवाज.

  5. केंद्रीय मंत्री शरद पवार पर हमला होने के बाद आज सारे नेता एक सुर में चिल्ला रहे हैं कि लोकतंत्र में हिंसा की कोई जगह नहीं है। बेशक! लेकिन यह बात केवल जनता पर लागू होती है, नेताओं पर नहीं?
    आपको याद होगा पिछले दिनों इलाहबाद के फूलपुर में जब राहुल गांधी जनसभा के लिये पहुंचे तो वहां हेलीपैड पर कुछ युवक उनको मांगपत्र देने के लिये आगे आये। कांग्रसी नेताओं का आरोप है कि वे युवराज को काले झंडे दिखा रहे थे। माना वे काले झंडे ही दिखा रहे थे तो उनके खिलाफ अगर हो सके तो कानूनी कार्यवाही करानी चाहिये थी लेकिन वहां तो उन युवकों को केंदीय मंत्री और कांग्रेस नेता सरेआम इस गल्ती के लिये बुरी तरह पीट रहे थे। मीडिया में यह सब लोगों ने अपनी आंखों से देखा। उनका यह भी दावा था कि पुलिस चूंकि तमाशाई बनी हुयी थी लिहाज़ा उन्होंने ऐसा किया।
    मांगपत्र देने या काले झंडे दिखाने से राहुल गांधी की जान को क्या ख़तरा था? यह भी कहा गया कि ऐसा करने वाले सपा के थे। इसका मतलब कंेद्रीय मंत्री बेनीप्रसाद वर्मा को खुद कांग्रेसियों ने काले झंडे दिखाये तो कोई अपराध नहीं लेकिन सपाई ऐसा करेंगे तो जुर्म? कांग्रसियों सहित सभी नेताओं को चाहिये कि अपने गिरेबान झांके और सोचें कि अब जनता और नेेेेेेताओं के लिये दो दो पैमाने और कानून नहीं चलेेंगे।
    0 हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम,
    वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता।।
    -इक़बाल हिंदुस्तानी, संपादक, पब्लिक ऑब्ज़र्वर, नजीबाबाद।

  6. कुछ लोग शरद पवार को थप्पड मारने वाले को शाबाशी दे रहे हैं, खुल कर पर नाज जाहिर कर रहे हैं, माना कि जो कुछ हो रहा है वह जाहिर तौर पर जन आक्रोश ही हे, वह सब वक्त की नजाकत है, उसके लिए पूरा सिस्टम जिम्मेदार है, मगर ऐसी हरकतों का समर्थन करके आज भले ही गौरवान्वित हो लें, मगर कल हम अराजकता के लिए तैयार रहें, अचरज तो तब होता है जब अपने आपको गांधीवादी कहने वाले अन्ना हजारे भी यह कह कर अराजकता का समर्थन कर रहे हैं कि बस एक ही थप्पड, यदि यह सही है तो हमको पाकिस्तान जैसी सैनिक क्रांति या मिस्र जैसी क्रांति के लिए तैयार रहना चाहिए

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