ऐसा लगता लाल किला मर्दानी भाषा बोल गया।।

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डॉ. सारस्वत मोहन मनीषी जी निष्ठावान आर्यसमाजी एवं ऋषिभक्त होने के साथ राष्ट्रकवि भी हैं। 

वर्षों बन्द कुबेर खजाने का दरवाजा खोल गया।
गोरा बादल शत्रु कंठ को तलवारों से तोल गया।
सात दशक का पाप जाप की अग्नि शिखा से डोल गया।
ऐसा लगता लाल किला मर्दानी भाषा बोल गया।।

    अब लोहा लोहा लेने की तैयारी में व्यस्त हुआ।
    सदा त्रास देने वाला भी अब हमसे संत्रस्त हुआ।
    संकट के बादल रचने वाला संकट से ग्रस्त हुआ। 
    नील गगन में अमर तिरंगा लहर लहर कर मस्त हुआ।

अद्भुत चतुर खिलाड़ी आया दाग गोल पर गोल गया।
ऐसा लगता लाल किला मर्दानी भाषा बोल गया।।

    हम पर बार-बार उठने वाले हाथों को तोड़ दिया।
    सबसे आगे रहने वालों को भी पीछे छोड़ दिया।
    सदा झूठ के झंडे़ गाड़े ऐसा बांस मरोड़ दिया।
    विष-कन्याओं का नाता भी संजीवन से जोड़ दिया।

सैनिक की सस्ती जानों को कर सबसे अनमोल गया।
ऐसा लगता लाल किला मर्दानी भाषा बोल गया।।

    दो शीशों के बदले दस सिर लेने का आदेश दिया। 
    पहले छेड़ों नहीं बाद में मत छोड़ो संदेश दिया।
    वृहन्नलाओं को फटकारा-दुत्कारा नववेश दिया।
    यह धरती है वसुन्धरा इसने ही तो दशमेश दिया।      

घूम-घूम सम्पूर्ण विश्व में खोल ढोल की पोल गया।
ऐसा लगता लाल किला मर्दानी भाषा बोल गया।।

    सर्जिकल इस्ट्राइक से आतंकी तम्बू उखड़ गये।
    बब्बर शेरों को देखा बकरों के चेहरे बिगड़ गये।
    इन्द्र धनुष को दंड बन गया पांचजन्य फिर जाग गया।
    सिंह गर्जना सुनी भीम की कीचक डरकर भाग गया।

एक सूर्य ऐसा फिर निकला बदल पूर्ण माहौल गया।
ऐसा लगता लाल किला मर्दानी भाषा बोल गया।।

    कृष्ण प्रतिज्ञा मुक्त हुए फिर चक्र सुदर्शन धारा है। 
    पहली बार सुना हमने पूरा कश्मीर हमारा है।
    विश्व बैंक का इक झटके में सारा कर्ज उतारा है। 
    भारत आज सुरक्षित हाथों में है विश्व पुकारा है। 

झूठा कौन कौन है सच्चा बजा विश्व में ढोल गया।
ऐसा लगता लाल किला मर्दानी भाषा बोल गया।।

    बंधे हाथ लड़ने की मजबूरी अब कब की हिरन हुई। 
    पूरी बगिया हुई सुगन्धित मस्त-मस्त हर किरन हुई।
    गद्दारों में खुद्दारों में अब निर्णायक जंग हुई।
    भारत मां को गाली देने वाली जीभ अपंग हुई। 

सभी मुखौटे उतर गये नकली मुखड़ों को छोल गया।
ऐसा लगता लाल किला मर्दानी भाषा बोल गया।।

    वीर शिवा की नीति जगी है फिर प्रताप की आन जगी।
    विष्णु गुप्त चाणक्य जगे हैं चन्द्रगुप्त की शान जगी।
    काक-उलूकों के स्वर बैठे फिर कोयल की तान जगी।
    मां का दूध सफल करने को पुनः आर्य संतान जगी।

सारस्वत मनमोहन के दिल में शुद्ध वीरता घोल गया।
ऐसा लगता लाल किला मर्दानी भाषा बोल गया।।

    ना खाऊंगा ना खाने दूंगा यह करके लिखा दिया।
    सेनापति के साथ साधु है इतिहासों में लिखा दिया।
    कालिय फण पर नृत्य रचाया अजगर को भी टिका दिया। 
    छप्पन इंची सीना क्या होता दुनिया को सिखा दिया।

कौन ‘मनीषी’ कुशल वैद्य बन सबकी नब्ज टटोल गया।
ऐसा लगता लाल किला मर्दानी भाषा बोल गया।।

 

रचनाकार डॉ0 सारस्वत मोहन ‘मनीषी’

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