-विनोद कुमार सर्वोदय-
आज देश में लोकसभा चुनाव का वातावरण है और हमारा देश विभिन्न प्रकार के संकटों से घिरा हुआ है, जिनसे आप भलीभांति परिचित ही होंगे। परन्तु कुछ निम्न बिन्दुओं पर भी आप विचार करेंः:-
1. राष्ट्र की सुरक्षा पर राजनीति भारी हो रही है, पाकिस्तान एवं आतंकवादियों द्वारा छेडा गया छद्मयुद्ध वोट बैंक की धरोहर बनता जा रहा है।
2. लोकतंत्र के नाम पर देश के दुश्मनों को खुलकर खेलने का लाइसेंस मिला हुआ है जिससे हमारे राष्ट्र की पहचान विश्व में एक भ्रष्ट व असहाय देश के रूप में बनती जा रही है।
3. चीन, पाकिस्तान, बंगलादेश आदि देश भी हमें कमजोर समझकर आंखें दिखा रहे है।
4. मुस्लिम तुष्टिकरण जिस गति से बढ़ा है उससे क्या लोकतंत्र व धर्मनिरपेक्षता की रक्षा हो पायेगी? किसी भी प्रकार का मुस्लिम तुष्टिकरण हमारे संविधान की मूल भावनाओं के बिल्कुल विपरीत है।
5. ‘साम्प्रदायिकता’ अपने आप में अशुद्ध नहीं है परन्तु इसके लिए राजनीतिक स्वार्थो की पूर्ति हेतु किये जाने वाले कार्य बुरे हो गये है। जिसे यह एक सामाजिक बुराई बन गई है।
6. धर्मनिरपेक्षता के नाम पर करदातों से संचित राजकोष का राजनीतिक दुरुपयोग केवल समुदाय विशेष के लिए किया जा रहा है।
7. एक वर्ग विशेष के तुष्टिकरण से दूसरे वर्ग का धु्रवीकरण होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।
8. हिन्दू राष्ट्रवाद के सभी विरोधी बनते है परन्तु इस्लामिक कट्टरता पर कोई क्यों नहीं बोलता?
9. क्या हमारे देश में जघन्य हत्याओं के जिम्मेदार आतंकवादियों के ही मानवाधिकारों की रक्षा की जायेगी, उनकी नहीं जिनके परिजन नृशंसता का शिकार बने और जो न्याय के लिये प्रतिक्षारत हैं।
10. एक ओर तो हमारी सरकार का आतंकवाद के प्रति ढुलमुल रवैया है ओर दूसरी ओर आतंकवाद के पोषक पाकिस्तान से मैत्री करने को लालायित रहती है, इस मानसिकता के साथ सीमापार से आने वाले आतंकवादियों, जाली नोट, नशीले पदार्थ एवं अवैध हथियारों को कैसे रोका जा सकेगा।
अतः लोकतंत्र की रक्षा व देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरुप को बचाने के लिये केन्द्र में एक सशक्त एवं स्थिर सरकार की आवश्यकता है। इसके लिये आप आम चुनावों से भागे नहीं-भाग लें।
‘राष्ट्र एक मंदिर है, लोकतंत्र में चुनाव एक पर्व है।’
अतः देश को एक मंदिर एवं चुनावों को त्यौहार मानकर नोट नहीं वोट देकर अपना राष्ट्र धर्म निभायें।