जैसा कि मैंने कल लिखा था, अपने टीवी चैनल और अखबार लखनऊ के मामले में जरुरत से ज्यादा आशावादी दिखाई पड़ रहे थे। मैंने मुंबई में बैठे हुए लिखा था कि लखनऊ में होने वाले समाजवादी पार्टी के अधिवेशन में धमाका हो सकता है। मैंने समाजवादी पार्टी के टूटने की भी आशंका व्यक्त की थी। आज वही हुआ। अखिलेश के अधिवेशन में मुलायमसिंह, शिवपालसिंह और अमरसिंह को अपदस्थ कर दिया गया है। मुलायमसिंह को मार्गदर्शक के पद पर विभूषित कर दिया गया है, जैसे कि नरेंद्र मोदी ने लालकृष्ण आडवाणी और मुरलीमनोहर जोशी को कर दिया था। इन मार्गदर्शकों का काम है, मार्ग का दर्शन करते रहना या राह टापते रहना! खैर, मुलायमसिंह ने अखिलेश के अधिवेशन को ही गैर-कानूनी घोषित कर दिया है। जाहिर है कि वे अब चुनाव-आयोग के दरवाजे खटखटाएंगे। उन्होंने जनेश्वर मिश्र पार्क में अब पांच जनवरी को पार्टी अधिवेशन बुलाया है।
इस समाजवादी मुठभेड़ का उप्र के चुनावों पर क्या असर पड़ेगा, इस पर हम बाद में बात करेंगे लेकिन अभी एक बात साफ हो गई है कि इस समय समाजवादी पार्टी ही देश की सबसे बड़ी खबर बन गई है। इस दंगल का फायदा आखिरकार समाजवादी पार्टी को ही मिलेगा। अखिलेश को अब देश का बच्चा-बच्चा जान गया है। कोई आश्चर्य नहीं कि इस दंगल को एक प्रायोजित नौटंकी बताने वाली अन्य पार्टियां चुनाव में दुर्दशा को प्राप्त हो जाएं।
लेकिन यह इस पर निर्भर होगा कि बाप-बेटा पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ ही खांडा न खड़काने लगें। वे दोनों एक-दूसरे से भिड़ गईं तो वे अन्य पार्टियों का ही रास्ता साफ करेंगी लेकिन मुझे अभी भी उम्मीद है कि सारा मामला सुलझ सकता है। इसका सबसे बड़ा एक आधार यह है कि अखिलेश अब भी अपने पिता के प्रति बेहद सम्मानपूर्ण रवैया अपनाए हुए हैं। यह नौजवान सिर्फ एक बात से खफा है कि कुछ लोग उसके पिता को गुमराह करते रहते हैं। खुद मुलायम सिंह ने यह कभी नहीं कहा कि चुनाव के बाद अखिलेश मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे। अखिलेश ने खुले-आम कहा है कि मैं यह कभी नहीं भूल सकता हूं कि मैं मुलायमसिंहजी का बेटा हूं। यह दंगल अखिलेश और मुलायम के बीच नहीं है। ऐसी स्थिति में मेरा मानना है कि अभी भी समाजवादी पार्टी को टूटने से बचाया जा सकता है।