अखिलेश की यात्राः बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से आये?

इक़बाल हिंदुस्तानी

यूपी के सीएम अखिलेश यादव दिवाली के बाद प्रदेश की यात्रा पर निकलने वाले हैं। अखिलेश यूपी की अपने बल पर पहली बहुमत प्राप्त सपा सरकार के सबसे युवा मुख्यमंत्री हैं। वे यूपी को पिछड़ेपन से निकालकर प्रगति और विकास के रास्ते पर ले जाना चाहते हैं लेकिन सरकार बने छह माह से अधिक हो चुके हैं मगर भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था के मोर्चे पर वे असफल होते नज़र आने लगे हैं। उनके जनता दरबार में फरियादियों की जो भीड़ उमड़ रही है उससे साफ हो जाता है कि स्थानीय थाना और तहसीलों में कुछ भी नहीं बदला है। उन्होंने अधिकारियों को कई बार यह जताया भी कि अगर स्थानीय स्तर पर लोगों की सुनवाई हो रही होती तो वे अपना दुखड़ा लेकर राजधनी नहीं आते लेकिन अधिकारियों और पुलिस के कान पर जूं रंेगती दिखाई नहीं दे रही है।

अखिलेश ने यह भी कहा था कि अभी वे कुछ महीने का समय भ्रष्ट और नाकारा प्रशासन को सुधरने के लिये दे रहे हैं उसके बाद वे स्वयं मौके पर जायेंगे और दोषी पुलिस प्रशासन के खिलाफ सख़्त कार्यवाही करेंगे लेकिन उनकी इस चेतावनी का कोई असर सरकारी मशीनरी पर हुआ हो ऐसा नहीं लगता। हालत इतनी ख़राब है कि सपा सरकार का एक साल भी पूरा नहीं हुआ और प्रदेश में मथुरा के कोसीकलां, प्रतापगढ़ के अस्थान, गाज़ियाबाद के मसूरी सहित मुज़फ्फरनगर, मेरठ, बरेली, लखनऊ और इलाहाबाद के विभिन्न स्थानों पर आठ दंगे हो चुके हैं।

अखिलेश यादव की सरकार दंगों का कारण कुछ तत्वों द्वारा राजनीतिक कारणों से छोटी छोटी घटनाओं को तूल देना बता रही है लेकिन यह स्वीकार नहीं कर रही कि ऐसा उनकी प्रशासनिक असफलता का प्रतीक है। उनकी खुफिया एजंसी क्या कर रही है। स्थानीय पुलिस और प्रशासन कई जगह साम्प्रदायिक और संवेदनशील घटनाएं होने के बाद जब घंटों तक भी मौका ए वारदात पर नहीं पहुंचा तो भीड़ नियंत्रण से बाहर हो गयी और उसने निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा भड़काने से कानून हाथ में ले लिया। इसके बाद सभी जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को यह चेतावनी जारी करनी पड़ी कि वे अगर ऐसी घटनाओं के बाद तत्काल घटनास्थल पर नहीं पहुंचे तो उनको बख़्शा नहीं जायेगा। इसका नतीजा यह हुआ कि जहां जहां दंगा हुआ वहां के वरिष्ठ अधिकारियों को हटाया गया जिससे अब जाकर अफसर कुछ जागे हैं और इस तरह की घटनायें तूल कम पकड़ रही हैं।

यह भी आरोप लगाया गया कि माहौल ख़राब करने की नापाक हरकतें विरोधी दलों द्वारा की जा रही हैं। हद तो यह हो गयी कि खुद मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि कुछ अधिकारी जानबूझकर फिज़ा ख़राब होने दे रहे हैं और उनकी जांच कराकर सज़ा दी जायेगी। कमाल है जिस सरकार में अधिकारी इतने ढीट और दुस्साहसी हों कि उनको इस बात की भी चिंता ना हो कि अगर उनकी काली करतूत शासन को पता लग गयी तो उनका क्या हश्र होगा? उस सरकार का भगवान ही मालिक है।

अखिलेश यादव की प्रदेश यात्रा का जहां तक मामला है, उसका क्या सकारात्मक संदेश जायेगा यह इस से पता चलता है कि इससे पहले सपा सरकार के ही स्वास्थ्य मंत्री अहमद हसन सरकारी अस्पतालों की दशा सुधारने के लिये कई ज़िलों में छापे मार चुके हैं। डाक्टरों और स्टाफ ने इसका हल यह निकाल लिया कि जब मंत्री महोदय का दौरा हुआ सब कुछ ठीक ठाक कर दिया। दौरे के बाद फिर वही जंगलराज चालू हो गया। उसके बाद बिना प्रोग्राम दिये औचक निरीक्षण किया गया उसमें भी मंत्री महोदय के साथ चलने वाले भारी लाव लश्कर की वजह से सब एलर्ट हो जाते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि अब मंत्री महोदय ने सरकारी अस्पतालों में स्वयं दौरा ना करके डमी मरीज़ भेजकर वास्तविकता का पता लगाने का फैसला किया है।

अखिलेश यादव को भी प्रदेश की औपचारिक यात्रा करने की बजाये ऐसा कुछ करना चाहिये जिससे व्यवस्था में सुधार आये। मिसाल के तौर पर वे बिना प्रोग्राम दिये अगर अचानक दौरे पर आते हैं तो उनको हकीकत का पता कुछ हद तक लग सकता है लेकिन बेहतर होता कि वह पूर्व मुख्यमंत्री और किसान नेता चौ0 चरण सिंह की तरह भेस बदलकर थाने और तहसील में जाकर आम आदमी के साथ होने वाले अभद्र और भ्रष्ट व्यवहार के बारे में सीधे जानने का प्रयास करते और मौके पर ही कार्यवाही करके पूरी सरकारी मशीनरी को यह संदेश देते कि महाभारत के एक प्रसंग की तरह एक को मारे दो मर जाये तीसरा दहशत से मर जाये। अखिलेश जानते हैं कि यदि यूपी को आगे ले जाना है तो औद्योगीकरण ही एक रास्ता है।

इसके लिये ना केवल वे विदेशी निवेश को अधिक से अधिक यहां लाने के प्रयास कर रहे हैं बल्कि उन्होंने देसी उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये भी उद्योग बंधु की एकल खिड़की व्यवस्था को सख़्ती से लागू करने का इरादा ज़ाहिर किया है। इसके लिये उन्होंने पेंडिंग पड़ी बिजली परियोजनाओं को भी जल्दी से जल्दी अंजाम तक पहुंचाने को काम को तेज़ किया है। यमुना एक्सप्रैसवे चालू होने के बाद अब उनका मिशन आगरा-लखनउू के बीच 6 लेन का एक्सप्रैसवे निर्माण करना है। सभी ज़िला मुख्यालयों को चार लेन मार्गों से जोड़ने की उनकी महत्वाकांक्षी योजना एक दूरदर्शी नेता की पहचान बना सकती है। हाईकोर्ट की लखनउू बैंच ने एक वकील अशोक पांडे की जनहित याचिका पर यूपी की सरकार से इस बारे में जवाब तलब किया कि वह बताये किस आधार पर मैनपुरी, इटावा, कन्नौज, रामपुर, रायबरेली और अमैठी को 24 घंटे बिजली दे रही है?

सपा सरकार ने इन ज़िलों में वीआईपी नेताओं के अकसर आने जाने का लचर तर्क दिया जो किसी के गले नहीं उतर पाया। ज़ाहिर बात है कि सपा सरकार के पास इस पक्षपात और खुली बेईमानी का कोई वाजिब और माकूल जवाब नहीं हो सकता कि वह मुलायम सिंह, अखिलेष, डिम्पल, आज़म खां, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के चुनाव क्षेत्रों को इसके बावजूद क्यों 24 घंटे बिजली सप्लाई कर रही है जबकि पहले से ही कम बिजली उत्पादन की वजह से अन्य ज़िलों में को कम बिजली मिल रही है। सवाल यह है कि क्या संविधान में समानता का सिध्दांत यूपी में लागू करने के लिये नहीं है? समाजवादी कहलाने वाले नेता ऐसे समाजवाद ला रहे हैं? और ये नेता आज लोकतंत्र में भी खुद को राजा महाराजा समझ रहे हैं कि जो चाहेें करें?

यह ठीक है कि अखिलेश यादव प्रदेश यात्रा करके मौके पर सीधे जनता से रूबरू होकर यह जानना चाहते हों कि उनके स्वच्छ और सुलभ प्रशासन का कुछ लाभ जनता को मिल रहा है या नहीं लेकिन यह भी सच है कि जिस तरह से उन्होंने आय प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र और निवास प्रमाण पत्र सरीखी 26 जनोपयोगी सेवाओं को एकल खिड़की पर नेट के माध्यम से देने की नई आध्ुानिक व्यवस्था चालू की थी उसको निर्धारित समय में ना करके सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों ने तकनीकी कमज़ोरियों में उलझा दिया है। इसका उल्टा असर यह हुआ कि जो प्रमाण पत्र पहले दो से तीन दिन में जारी हो जाते थे वे निर्धारित समय में देने के नाम पर जनता का और भी दोहन किया गया और उसके बाद भी उन प्रमाण पत्रों को नेट पर नहीं दर्ज किया गया जिससे वे अपना औचित्य ही खो बैठे।

अखिलेश यादव को यह समझना होगा कि अगर थाने में एफआईआर ईमेल से जाने की व्यवस्था शुरू हो जायेगी तो पुलिस की रपट दर्ज ना करने की शिकायत अपनेेेे आप ही ख़त्म हो सकती है। इसी तरह सरकारी सेवाओं का तेज़ी से कम्प्यूटरीकरण और नेट पर लाने से भ्रष्ट और लापरवाह अधिकारी कर्मचारी तकनीक के कारण काम बिना रिश्वत लिये काम करने को मजबूर हो सकते हैं। अंत में इतना ही कहा जा सकता है जिस तरह से अखिलेश सपा सरकार के सीएम बन गये उनको वहां तक पहुंचने में जिन जातिवादी, पूंजीवादी और साम्प्रदायिक तौर तरीकों का सहारा लिया गया वे एक तरह से बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से आये वाली उसी कहावत को चरितार्थ करता है। आज उनकी ‘अंकल कैबिनेट’ में जहां मनमानी करने को आज़म खां और शिवपाल यादव आज़ाद हैं वहीं खुद उनके पिता आय से अधिक मामले में सीबीआई से बचने को जिस तरह से अब तक की सबसे भ्रष्ट और विवादों में घिरी यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन देकर बचा रहे हैं उसके छींटे यूपी में अखिलेश के दामन पर आये बिना रह नहीं सकते और विश्वास ना आये तो वह भले ही यूपी की यात्रा सहित कुछ भी करलें अपने घोषणापत्र के एक के बाद एक तमाम वायदे पूरे करते जाने के बावजूद लोकसभा चुनाव में कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार के मामले में जनता उनको आईना दिखाकर ही दम लेगी।।

जिन पत्थरों को हमने अता की थी धड़कनें,

जब बोलने लगे तो हम ही पर बरस पड़े।।

 

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

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