चिंताजनक नफरत भरे बयान

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-रमेश पाण्डेय- voting
लोकसभा के इन चुनावों में असहिष्णुता और नफरत भरे बयानों के जिस तरह के उदाहरण नजर आ रहे हैं, वह चिंताजनक स्थिति है। मतदान केंद्रों में बूथ पर कब्जा कर फर्जी मतदान के सिलसिले में तो नई तकनीक के प्रयोग और चुनाव आयोग की सक्रियता के कारण काफी हद तक रोक लगी है लेकिन नेताओं के बयानों में नफरत की अभिव्यक्ति कम होनी चाहिए। मुद्दों पर आधारित बहस को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, तभी लोकतंत्र मजबूत होगा। आलोचनाएं तीखी हों और तिलमिला देने वाली हों तो भी जायज हैं यदि वे रचनात्मक हों। इसके लिए जरूरी हैं कि वे उद्देश्य परक और नीतियों या सिद्धांतों पर आधारित हों। व्यक्तिगत भड़ास निकालने और कीचड़ उछालने का दृष्टिकोण सकारात्मक नहीं कहा जा सकता। चुनाव से इतर, राजनीति में शिखर नेताओं पर जानलेवा हमले और हत्याओं के भी उदाहरण हमारे देश में हैं। अमेरिका में अब्राहम लिंकन, जॉन एफ कैनेडी, पाकिस्तान में और बेनजीर भुट्टो की तरह भारत में इंदिरा गांधी की हत्या को इस संदर्भ में बतौर उदाहरण प्रस्तुत किया जा सकता है। भारत को आजादी मिले छह महीने भी नहीं हुए थे कि महात्मा गांधी की हत्या ने दुनिया को हिला दिया। 1953 में कश्मीर की शेष भारत के साथ एकता का आंदोलन करने वाले डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की श्रीनगर की जेल में रहस्यमय मृत्यु हो गई थी। उसे अटल बिहारी वाजपेयी ने शेख अब्दुला और नेहरू की दुरभि संधि से की गई राजनीतिक हत्या बताया था। उसकी तो जांच तक नहीं की गई, जबकि श्यामाप्रसाद मुखर्जी नेहरू सरकार में पहले उद्योग मंत्री और भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष थे। डॉ. भीमराव अंबेडकर और डॉ. राममनोहर लोहिया की मौत पर भी सवाल उठते रहे हैं। जनसंघ के दूसरे अध्यक्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय 1968 में मुगलसराय स्टेशन पर मृत पाए गए थे। उनकी रहस्यमय हत्या की साधारण जिला स्तरीय जांच हुई। पंजाब के ताकतवर मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरो की 1965 में रोहतक में हत्या कर दी गई और इसका कारण व्यक्तिगत दुश्मनी बताया गया। तब यह मुद्दा भी उठा था कि अधिनायकवादी तौर पर काम करने वाले कैरो के राजनीतिक शत्रुओं की क्या कमी हो सकती है। फिर नागरवाला हत्याकांड हुआ। नागरवाला ने कथित तौर पर इंदिरा गांधी की आवाज बदलकर स्टेट बैंक से 60 लाख रुपए निकलवाए थे। नागरवाला पकड़े गए और हिरासत में ही संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाए गए, बाद में इस मामले में जांच कर रहे अधिकारी की भी रहस्यमय मृत्यु हो गई। 1975 में इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल के शक्तिशाली सदस्य ललितनारायण मिश्र की समस्तीपुर में रहस्यमय ढंग से हत्या कर दी गई। 1984 और 1991 में देश के शीर्षस्थ नेताओं क्रमश: इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की घृणित हत्याओं से देश और दुनिया हिल गई थी। श्रीमती गांधी को उन्हीं के अंगरक्षकों ने ऑपरेशन ब्लू स्टार के प्रतिशोध के नाम पर शहीद किया, तो उनके पुत्र राजीव गांधी को तमिल उग्रवादियों ने श्रीपेरुम्बुदूर में साजिश का शिकार बनाया। इसी क्रम में पिछले साल कांग्रेसी नेताओं पं. विद्याचरण शुक्ल और महेंद्र कर्मा की माओवादियों द्वारा हत्या कर दी गई। पिछले ही साल पटना में नरेंद्र मोदी की रैली से ठीक पहले आठ विस्फोट हुए, जिनमें छह लोगों की जान गई। राजनीतिक हिंसा की साजिशों में इस चुनावी दौर की यह सबसे बड़ी घटना थी। कांग्रेस नेता इमरान मसूद, फिर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार जैसे प्रमुख नेताओं के बयान ने देश में एक नई बहस की आवश्यकता पर बल दे दिया है। क्या नेताओं के ऐसे बयान से भारत का लोकतंत्र दुनिया में गरिमामय स्थान प्राप्त कर सकेगा।

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