सप्रसिद्ध साहित्यकार अलका सिन्हा को परम्परा संस्था द्वारा वर्ष 2011 के परम्परा ऋतुराज सम्मान से दिनांक 25 अगस्त को इंडिया हैबिटेट सेंटर के स्टेन सभागार में सम्मानित किया जा रहा है। यह पुरस्कार उन्हें उनके काव्य संग्रह ’तेरी रोशनाई होना चाहती हूं ‘ काव्य संग्रह के लिए दिया जा रहा है।
’स्त्रियां नहीं जाती युद्ध में ‘ से लेकर ‘लोरी’ कविता में अलका सिन्हा की कविताएं साधारणता में असाधारणता को अभिव्यक्त करने की कविताए हैं। यह किसी आंदोलन के तहत नारी विमर्श की बात करने वाली कविताएं नहीं है। यह प्रामाणिक जीवन संघर्ष से उपजी संवेदना से भीगी कविताएं हैं। पर यह संवेदना भावुकता में लिपटी नहीं, ठोस जीवन स्थितियों से दो – चार होती हैं। इनमें लोरी सुनाने की मांग को पूरी करती मां है जो लोरी के निहितार्थ को बदल देती है और बच्ची को पुरूष प्रधान समाज में संघर्ष के लिए तैयार करने वाली लोरी सुनाती है। वह उन सब स्त्रियों की पीड़ा और संघर्ष को अभिव्यक्त करती है जो हर समय युद्ध में संलग्न हैं, अपने-अपने मोर्चों पर। अल्का सिन्हा की कविताओं की एक प्रमुख विशेषता इस मशीनी युग में सहज संवेदना और मानवीयता बचाने की जिद है। उन्होंने कचनार नहीं देखा पर कचनार के वृक्ष को वे संदिग्ध स्थितियों में भी जानने, बचाने और विकसित करने का संकल्प लिए हुए हैं।
कार्यक्रम विवरण
दिनांक : 25 अगस्त 2011 (आज)
स्थान : स्टेन सभागार, इंडिया हैबिटेट सेंटर
समय : 6.15 सायं