कोयले में सब काले

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आवेश तिवारी

कैग का कोयले के आवंटन को लेकर किया गया ताजा खुलासा भ्रष्टाचार की सिर्फ एक परत खोलता है ,इस परत के पीछे भी कई परतें छुपी हुई है |इस खुलासे के भीतर बिजली के अभूतपूर्व संकट से जूझ रहे देश में निजी कंपनियों की बाढ़ ,उर्जा निगमों का आश्चर्यजनक विघटन और ताप बिजलीघरों पर अति-निर्भरता की वजहों का भी पता चलता है |क्या आप यकीं करेंगे कि इस एक वक्त देश के लगभग 23 बिजलीघरों में महज 3 से ४ दिन का कोयला शेष हैं ,ज्यादातर कोयलरियों में पानी भरा हुआ है उधर सरकार अफ्रीका से कोल आयत की संभावनाओं पर भी विचार कर रही है |केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ने भी मान लिया है कि देश के 50 फीसदी से ज्यादा बिजलीघर कोयले के संकट से जूझ रहे हैं ,ये सब तब है जब अलग-अलग राज्यों में बिजली की नयी परियोजनाओं के लिए निजी कंपनियों से अनुबंध का ताबडतोड सिलसिला जारी है |दरअसल विद्युत अधिनियम में निजी कंपनियों को बिजली परियोजना स्थापित किये जाने की मंजूरी तो है लेकिन उन्हें कोल ब्लाक के आवंटन को लेकर किसी प्रकार की सहूलियत दिए जाने का प्रावधान नहीं है |आश्चर्यजनक ढंग से पिछले एक दशक के दौरान निजी कंपनियों से नए बिजलीघरों के लिए लगभग 400 अनुबंध किये गए हैं ,इन अनुबंधों में से ज्यादातर टाटा ,रिलायंस एस्सार,जेपी पावर और बिरला के साथ हुए हैं |निश्चित तौर पर इन बिजलीघरों को स्थापित करने के लिए कोयले की जरुरत है चूँकि कोल इंडिया के प्रतिष्ठानों पर केंद्र सरकार का स्वामित्व है ऐसे में निजी कम्पनियाँ जैसे –तैसे कोल ब्लाक प्राप्त करने के लिए जुगत लगाती रहती है ,नतीजा सामने हैं |दरअसल उर्जा निगमों के विभाजन और बिजलीघरो के निर्माण में निजी क्षेत्र के निर्माण से पहले कोल ब्लाक का आवंटन केंद्र और राज्य अ के अंतर्संबंधों पर निर्भर करता था ,लेकिन आज परिस्थितियां ये हैं कि कोल ब्लाकों की निविदा प्रक्रिया में से राज्य पूरी तरह अलग-थलग कर दिए गए |

आज देश कोयले के लिए मुख्या रूप से तीन राज्यों छत्तीसगढ़ ,उड़ीसा और झारखण्ड पर निर्भर है ,जिनसे लगभग 267 करोड टन कोयला पैदा होता है1993 से जबसे खुले तौर पर निजी कंपनियों का उर्जा उत्पादन में प्रवेश हुआ तभी से कोल सेक्टर्स के दरवाजे निजी कंपनियों के लिए खोल दिए गए |दो दशकों में हालात ये हो गए कि एक तरफ जहाँ सार्वजनिक क्षेत्र के बिजलीघर एक एक रैक कोयले के लिए तरसते रहे ,वहीँ निजी कंपनियों पर कभी भी किसी किस्म का संकट पैदा नहीं हुआ |निश्चित तौर पर परदे के पीछे बहुत कुछ ऐसा चल रहा था जिसे हमेशा के लिए बेपर्दा रखने की कोशिश की जा रही थी |

11 वीं योजना में जहाँ देश में 50 हजार मेगावाट अतिरिक्त उर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा गया था वहीँ 12 वीं योजना में ये लक्ष्य बढ़कर 1.5 लाख मेगावाट हो गया |वहीँ आश्चर्यजनक ढंग से पिछले साल के मध्य तक लगभग 2 लाख 10 हजार मेगावाट की परियोजनाओं के प्रस्तावों को परी वरण मंत्रालय द्वारा मंजूरी दे दी गयी |सीधे शब्दों में कहा जाये तो 2017 तक जो लक्ष्य प्राप्त करना था उससे 60,000 मेगावाट अतिरिक्त उर्जा के प्रस्ताव स्वीकार कर लिए गए |ये सब तब है जब कोल इंडिया लिमिटेड का देश की 90 फीसदी कोयलारियों पर अधिकार है ,कंपनी की माइनिंग लीज का क्षेत्रफल लगभग 2 लाख हेक्टेयर है जहाँ से वो प्रतिवर्ष लगभग 500 मिलियन टन कोयले का उत्पादन करती है |निजी कम्पनिओं ने जिस रफ़्तार से उर्जा क्षेत्र मे प्रवेश किया उसी रफ़्तार से उन्हें कोल ब्लाक के आवंटन भी किये जाने लगे |अजीबोगरीब ये भी तह कि इन कंपनियों को देश के सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्रों में शुमार सिंगरौली ,कोरबा ,हजरिबाघ और राजगढ़ में कोयले के खनन के ठेके दे दिए गए ,ऐसा इसलिए था क्योंकि उनकी बिजली परियोजनाएं उन्ही इलाकों में स्थापित की जानी थी |सच्चाई ये है कि बढ़ी हुई उर्जा आवश्यकता को पूरा करने के लिए कोल इंडिया लिमिटेड की क्षमताओं का उपयोग किया जा सकता था ,परन्तु केंद्र सरकार ने जानबूझ कर ऐसा नहीं किया |

ये बात काबिलेगौर है कि छत्तीसगढ़ ,पश्चिम बंगाल और राजस्थान ने शुरू से ही कोयले के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धात्मक बोली का विरोध किया था ,इन राज्यों का मानना था कि इससे कोयले के दाम में वृद्धि होगी और इससे कोयले पर निर्भर परियोजनाओं को दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा ,यहाँ तक कि उर्जा मंत्रालय ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया था |लेकिन इन विरोधों को अनुसना करते हुए निजी कंपनियों को सीधे –सीधे कोयले के खनन के क्षेत्र में प्रवेश दे दिया गया |

इस एक वक्त जबकि सारी दुनिया उर्जा उत्पादन के लिए कोयले पर आधारित बिजलीघरों को छोड़कर अन्य उपायों पर विचार कर रही है |हिन्दुस्तान में कोल बिजलीघरों की तादात् बढती जा रही है ,देश में कोयले का भण्डार सीमित है और इससे तमाम तरह की पर्यावरणीय समस्याएं भी पैदा हो रही है |कोयले की लूट सिर्फ उतनी नहीं है जितना कैग ने दिखाया है ,देश के विभिन्न हिस्सों में लगभग एक हजार कोल माफिया अपने –अपने तरीके से कोयले की कमाई से लाल हो रहे हैं ,इसकी कीमत अंततः उन राज यों को चुकाना पड़ रहा है जहाँ ये कोल खदाने मौजूद हैं या फिर उनको जिनके घरों में हमेशा से अँधेरा है |

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आवेश तिवारी
पिछले एक दशक से उत्तर भारत के सोन-बिहार -झारखण्ड क्षेत्र में आदिवासी किसानों की बुनियादी समस्याओं, नक्सलवाद, विस्थापन,प्रदूषण और असंतुलित औद्योगीकरण की रिपोर्टिंग में सक्रिय आवेश का जन्म 29 दिसम्बर 1972 को वाराणसी में हुआ। कला में स्नातक तथा पूर्वांचल विश्वविद्यालय व तकनीकी शिक्षा बोर्ड उत्तर प्रदेश से विद्युत अभियांत्रिकी उपाधि ग्रहण कर चुके आवेश तिवारी क़रीब डेढ़ दशक से हिन्दी पत्रकारिता और लेखन में सक्रिय हैं। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद से आदिवासी बच्चों के बेचे जाने, विश्व के सर्वाधिक प्राचीन जीवाश्मों की तस्करी, प्रदेश की मायावती सरकार के मंत्रियों के भ्रष्टाचार के खुलासों के अलावा, देश के बड़े बांधों की जर्जरता पर लिखी गयी रिपोर्ट चर्चित रहीं| कई ख़बरों पर आईबीएन-७,एनडीटीवी द्वारा ख़बरों की प्रस्तुति| वर्तमान में नेटवर्क ६ के सम्पादक हैं।

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