नामकरण – आल इंडिया रेडियो/ आकाशवाणी

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feildenबी एन गोयल

8 मई 1976 को आकाशवाणी रोहतक का उद्घाटन करते समय तत्कालीन रक्षा मंत्री चौधरी बंसी लाल ने अपनी ठेठ हरियाणवी भाषा में रेडियो की उपयोगिता, आवश्यकता और लोकप्रियता की बात करते हुए एक उदाहरण दिया था. उनके कहने का भाव था कि आज जब मैं खेत में किसान को हल चलाते देखता हूँ साथ में देखता हूँ कि उस के हल के जुए में ट्रांजिस्टर टंगा हुआ है और वह रेडियो से बड़े चाव से रागनियाँ भी सुन रहा है. यह रेडियो क्रांति का सब से अच्छा उदाहरण कहा जा सकता है. साठ-साठोत्तर का समय वास्तव में रेडियो- ट्रांजिस्टर की क्रांति का युग था. बड़े बड़े भारी रेडियो सेट का स्थान छोटे छोटे जेबी ट्रांजिस्टरों ने ले लिया था. अब वही छोटा सा जेबी ट्रांजिस्टर अपने सूक्ष्म रूप में मोबाइल और पेन में आ गया है.

इंग्लेंड में मार्कोनी कंपनी ने 23 फ़रवरी 1920 को पहला रेडियो ट्रायल-प्रसारण सफलता पूर्वक किया. नवम्बर 1922 से बीबीसी का यह प्रसारण नियमित रूप से शुरू हो गया. कुछ समय बाद 23 जुलाई 1927 के दिन मुंबई से भारत के पहले रेडियो स्टेशन का प्रारम्भ हुआ जो बाद में आल इंडिया रेडियो/ आकाशवाणी के नाम से प्रसिद्ध हुआ. 90 वर्ष की अपनी इस यात्रा में इस ने अनेक सोपान पुरे किये हैं. 1927 से ले कर अब तक इसे किन किन नदी, नालों, जंगलों, बियाबानों, गड्ढों, पगडंडियों, पहाड़ों अथवा सपाट सड़कों से गुज़रना पड़ा यह एक दिलचस्प कहानी हो सकती है. अब तो अलादीन के चिराग की भान्ति आप को बस एक नंबर दबाना है और चिराग के जिन की तरह आपके सामने समाधान हाजिर है. आप को जो चाहिए वही मिलेगा. आप को ट्राफिक समस्याओं का समाधान तुरंत चाहिए, आप को गंतव्य की जानकारी चाहिए? उस से कितनी दूर हैं, ट्राफिक जाम से निकलने का रास्ता खोज रहे हैं, आप को सब कुछ न्यूज़-ओन-फोन, रेडियो-ओन-डिमांड, फ़ोन-इन-प्रोग्राम आदि से मिलेगा. मैंने कहा इस की यह 90 वर्षीय यात्रा बहुत ही दिलचस्प है लेकिन इस के बारे में फिर कभी. आज हम बात करेंगे इस के नामकरण यानी ‘आल इंडिया रेडियों’ और आकाशवाणी के नामों की.

बीबीसी का नियमित कार्यक्रम नवम्बर 1922 से जे सी डब्लू रीथ के नेतृत्व में शुरू हुआ. और उन्होंने बीबीसी का आगे का मार्ग निश्चित कर दिया. 1 जनवरी 1927 को रीथ बीबीसी के पहले मुख्य कर्ताधर्ता/ डायरेक्टर जनरल बने. भारत में प्रसारण का प्रारम्भ 1926 से माना जा सकता है जब इंडियन ब्राडकास्टिंग कंपनी लिमिटेड के नाम की एक प्राइवेट कंपनी ने भारत सरकार से समझौता किया जिस के अनुसार कंपनी ने मुंबई और कोलकाता में दो रेडियो स्टेशन बनाना मान लिया. तदनुसार मुंबई और कोलकाता में क्रमशः 23 जुलाई 1927 और 26 अगस्त 1927 से 1.5 किलोवाट के मीडियम वेव ट्रांसमीटर से प्रसारण शुरू हो गया. जी सी अवस्थी ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि रीथ बीबीसी और भारत के प्रसारण सम्बन्ध मज़बूत करना चाहते थे और इस बात की चर्चा उन्होंने मार्कोनी कंपनी के कर्नल सिम्पसन से बहुत पहले नवम्बर 1923 में की थी. जनवरी 1935 तक आते आते भारत के रेडियो प्रसारण में थोडा स्थायीत्व आ गया. यही महत्व पूर्ण समय था जब भारत सरकार ने ब्रिटिश सरकार से एक रेडियो प्रसारण विशेषज्ञ की सेवाएं मांगी. वायसराय लार्ड विलिंगडन ने तत्काल बीबीसी प्रमुख सर जॉन रीथ को पत्र लिखा –“पांच साल के लिए एक सुपरमैन दे दो” और 30 अगस्त 1935 को एक सुपरमैन आगये उन का नाम था लायनल फ़ील्डन. 39 वर्षीय फिल्डन दुबले पतले, 6 फुट 2 इंच लम्बे, पानी के जहाज़ एस एस पूना से भारत पहुंचे. भारत के लिए रवाना होने से पहले उन्हें सर जॉन रीथ का एक पत्र मिला. “निश्चित रूप से तुम अपने इस गहन उत्तर दायित्व को समझते हो और अपनी कार्य क्षमता को भी जानते हो. मैं नहीं जानता कि वायसराय सहित अन्य कोई और भारत के लिए तुम से अच्छा कोई और कुछ कर सकता है….. कृपया मेरी बात का बुरा नहीं मानना यदि मैं कहूँ कि अपने रास्ता संभल कर और समझ कर तय करना है……” (लूथरा, पृष्ठ-70).
आकाशवाणी लायनल फ़ील्डन की सदैव ऋणी रहेगी क्योंकि आज आकाशवाणी का जो भी रूप है – प्रसारण का तरीका हो अथवा संकेत धुन, कलाकारों के अनुबंध पत्र हों अथवा उन की भर्ती का तरीका. प्रसारण की आज की बहुत सी परम्पराओं का मूल फील्डन की कार्य शैली से मिलता है. आते ही उन के सामने जो समस्याएं मुंह बाये कड़ी थी उन में प्रमुख थी – रेडियो के लिए एक उचित स्थान देखना. उस समय अस्थायी रूप से काम नार्थ ब्लोक से चलाया जा रहा था. इस के लिए उन ने अथक परिश्रम किया. लेकिन इस से भी महत्व पूर्ण काम था अपनी यानी रेडियो की एक पहचान बनाना. उस समय रेडियो को इंडियन स्टेट ब्राडकास्टिंग सर्विस कहते थे. फ़ील्डन साब ने अपनी आत्मकथा में लिखा है “ मैंने इंडियन स्टेट ब्राडकास्टिंग सर्विस नाम कभी पसंद नहीं किया क्योंकि इस में अफसरशाही की गंध आती थी. मैंने निर्णय लिया कि ‘आल इंडिया रेडियो’ का नाम न केवल 1935 के रक्षा क़ानून की उन धाराओं से मेरी रक्षा करेगा जिन से मैं बहुत डरता था, बल्कि इस का संक्षिप्त रूप AIR भी उपयुक्त होगा. मैंने भारत के मानचित्र वाला एक मोनोग्राम बनाया जिस के ऊपर –AIR- ये तीन अक्षर अंकित थे. आज भारत में मात्र यही मेरी निशानी रह गयी है. जब मैंने इस नए नाम का प्रस्ताव किया तो सचिवालय में इस का घोर विरोध हुआ.

कोई और विकल्प न देख मैंने एक राजकीय भोज में तत्कालीन वायसराय लार्ड लिनलिथगो को एक तरफ ले जाकर उन के सामने अपनी परेशानी रखी.

मैंने कहा – ‘मैं एक अजीब परेशानी में हूँ और इस बारे में आप की राय जानना चाहता हूँ.’
उन का दृष्टि कोण अपने अनुकूल देख कर मैंने कहा –‘यह इंडियन स्टेट ब्राडकास्टिंग सर्विस नाम बड़ा लंबा और कुछ अजीब सा लगता है’.
वे बोले, ‘हाँ, बोलने में मेरा पूरा मुंह भर जाता है’.
‘कृपया आप इस के लिए कोई नया नाम सुझाने में मेरी सहायता करें’…….जैसे आल इंडिया ….. या इस तरह का कोई नाम कैसा रहेगा’
वायसराय –‘ब्राडकास्टिंग’
यह शब्द हिन्दुस्तानियों के लिए ज़रा मुश्किल पड़ेगा. – ब्राडकास्टिंग का उच्चारण ब्रोड या ऐसा ही कुछ करने लगेंगे.
वे बोले, ‘रेडियो ….’
मैंने उछल पड़ने की मुद्रा बनाई. ‘आल इंडिया रेडियो’, ठीक रहेगा और इस तरह AIR का जन्म हुआ. इस प्रकार 8 जून 1936 को इंडियन स्टेट ब्राडकास्टिंग सर्विस का नाम बदल कर विधिवत आल इंडिया रेडियो’ कर दिया गया. वायसराय इसी भ्रम में रहे कि यह नाम उन्हीं का दिया हुआ है .(अवस्थी – पृष्ठ 10).

प्रसारण के उद्देश्यों की चर्चा करते हुए फ़ील्डन ने एक बार कहा था “मुझे गर्व है कि इस महान कार्य के प्रारम्भ के समय मैंने एक छोटी सी भूमिका निभायी. भविष्य के लिए मैं दो संकल्पों का सुझाव देना चाहूँगा. एक तो यह कि आल इंडिया रेडियों को सदैव शांति स्थापना की बात करनी चाहिए. दुसरे भारतीय रेडियो और टेलीविज़न को कभी व्यवसायिक (कमर्शियल) नहीं होना चाहिए.” ये शब्द फ़ील्डन ने 1952 में कहे थे जब वे सेवा निवर्त्त हो कर इटली में रह रहे थे.

अब बात करते हैं आकाशवाणी नाम की. इस नाम को स्वीकार करने में कोइ कठिनाई नहीं हुई. यहं यह समझ लेना आवश्यक है कि विभाजन से पूर्व भारत के पास 9 रेडियो स्टेशन थे – इन में से तीन – लाहौर,पेशावर और ढाका, उन के क्षेत्र में होने के कारण, पाकिस्तान में चले गए. छह स्टेशन – मुंबई (तत्कालीन बोम्बे) कोलकाता (कलकत्ता), दिल्ली, चेन्नई (मद्रास), लखनऊ, और त्रिचुरपल्ली भारत सरकार के पास रह गए. जैसा कि सब जानते हैं कि विभाजन के समय भारत के पास लगभग 562 देसी रियासतें थीं.
इन में पांच रियासतों – मैसूर, बड़ोदा, हैदराबाद, औरंगाबाद और थिरुअनन्तपुरम (पूर्व नाम त्रिवेंद्रम) के पास अपने रेडियो केंद्र थे. इन रियासतों के भारत में मिल जाने के कारण इन के केन्द्र भी 1 अप्रैल 1950 से भारत सरकार के हो गए.

इन में मैसूर केंद्र के स्थिति अलग थी. रेडियो प्रसारण के साथ जनहित की दिशा में आज जो प्रयोग हम कर रहें है वे इन रियासतों के राजा महाराजाओं ने आज से सत्तर वर्ष पूर्व अपने केन्द्रों के माध्यम से किया था. मैसूर विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के विभागाध्यक्ष थे डॉ. एम् वी गोपालास्वामी. उन ने अपने घर पर ही एक छोटा सा 30 वाट का ट्रांसमीटर प्रयोग के तौर पर लगाया. विवि के कुलपति डॉ. मेत्काफे ने 10 सितम्बर 1935 को इस का औपचारिक उद्घाटन किया. इस से संगीत और वार्ता के कार्य क्रम शुरू किये गए. प्रसारण का माध्यम सामान्य रूप से भारतीय भाषायें ही रखी गई. मैसूर के महाराजा स्वयं कन्नड़, संस्कृत और हिंदी के विद्वान थे. उन ने अपने रेडियो केंद्र का नाम ‘आकाशवाणी’ रख दिया था. अतः अप्रैल 1950 को इस के भारत सरकार की प्रसारण धारा में घुल मिल जाने के कारण आल इंडिया रेडियो का हिंदी नाम आकाशवाणी ही उपयुक्त माना गया.इस के लिए कोई विशेष प्रयत्न नहीं करने पड़े ०००००
(यह लेख मुख्यतः महान प्रसारक स्व० श्री जी सी अवस्थी के साथ हुई बातचीत पर आधारित है. ये सभी तथ्य उन की पुस्तक Broadcasting In India में हैं जो भारतीय रेडियो प्रसारण पर पहली पुस्तक है. श्री अवस्थी जी ने इस पुस्तक सहित अपनी अन्य पुस्तकें भी स्नेहसिक्त भाषा में मुझे भेंट की थी जो अब मैंने प्रवासी भवन लाइब्रेरी को भेंट कर दी हैं.)
सन्दर्भ ग्रन्थ-
1. Broadcasting In India – G C Awasthy, Allied Publishers Limited, 1965
2. Indian Broadcasting – H R Luthra, Publication Division, New Delhi, 1986
3. Two Voices – P C Chatterji, Hem Publishers (P) Ltd. New Delhi

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बी एन गोयल
लगभग 40 वर्ष भारत सरकार के विभिन्न पदों पर रक्षा मंत्रालय, सूचना प्रसारण मंत्रालय तथा विदेश मंत्रालय में कार्य कर चुके हैं। सन् 2001 में आकाशवाणी महानिदेशालय के कार्यक्रम निदेशक पद से सेवा निवृत्त हुए। भारत में और विदेश में विस्तृत यात्राएं की हैं। भारतीय दूतावास में शिक्षा और सांस्कृतिक सचिव के पद पर कार्य कर चुके हैं। शैक्षणिक तौर पर विभिन्न विश्व विद्यालयों से पांच विभिन्न विषयों में स्नातकोत्तर किए। प्राइवेट प्रकाशनों के अतिरिक्त भारत सरकार के प्रकाशन संस्थान, नेशनल बुक ट्रस्ट के लिए पुस्तकें लिखीं। पढ़ने की बहुत अधिक रूचि है और हर विषय पर पढ़ते हैं। अपने निजी पुस्तकालय में विभिन्न विषयों की पुस्तकें मिलेंगी। कला और संस्कृति पर स्वतंत्र लेख लिखने के साथ राजनीतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक विषयों पर नियमित रूप से भारत और कनाडा के समाचार पत्रों में विश्लेषणात्मक टिप्पणियां लिखते रहे हैं।

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