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अखिलता की विकल उड़ानों में ! - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
रचयिता: गोपाल बघेल ‘मधु’ अखिलता की विकल उड़ानों में, तटस्थित होने की तरन्नुम में; उपस्थित सृष्टा सामने होता, दृष्टि आ जाता कभी ना आता ! किसी आयाम वह रहा होता, झिलमिला द्रश्य को कभी देता; ख़ुमारी में कभी वो मन रखता, चेतना चित्त दे कभी चलता ! कभी चितवन में…