… अल्लाह की लाठी में आवाज नहीें होती

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-नरेंद्र भारती-
life

आधुनिक समाज का मानव आज दानवों से भी घिनौने कर्म कर रहा है। ऐसे कर्म करते कई बार वह न तो दुनिया से डरता है और न ही भगवान से डरता है। मगर कहते हैं- जब अल्लाह की लाठी पड़ती है तो उसमें आवाज नहीं होती। मानव को उसके बुरे कर्मों की सजा जरूर मिलती है। भगवान के घर देर जरूर है, मगर अंधेर नहीं है। ईश्वर की चक्की जब चलती है तो वह पाप और पापी को पिस कर रख देती है। यह एक शाश्वत सत्य है कि मानव आज दानवों की श्रेणी में आता जा रहा है। मंदिरों में कुकृत्य हो रहा है। ऐसे कर्मों से वसुंधरा कांप रही है। मानवता आज मर चुकी है। चारों तरफ अंधेर मचा है। एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ मची है। चंद कागज के टुकड़ों व सोने के सिक्कों के कारण आज मानव इतना अभिमान करता है कि दूसरे आदमी का अनादर करने में गर्व महसूस करता है। मगर पैसा तो एक वैश्या के पास भी होता है। वक्त का पहिया जब घूमता है तो कंगाल होने में देर नहीं लगती। मानव झूठ-फरेब कर अमीरी का लिबास पहन रहा है, मगर झूठ के पांव नहीं होते। कभी न कभी झूठ लड़खड़ा सकता है, मगर जो सच्चाई के पथ पर चलता है, उसका बाल बांका नहीं होता। तभी तो कहते हैं कि सांच को आंच नहीं आती। राजा को रंक बनने में एक पल भी नहीं लगता। आज ईमानदार लोगों की कद्र नहीं है। जबकि बेइमानों की पूजा हो रही है। मगर यह सर्वमान्य है कि हमेशा ईमानदारी की जीत हुई है। बेइमानी औंधे मुंह गिरी है। सदा हार हुई है। मानव आज मानव से नफरत कर रहा है। दूसरों का बुरा कर रहा है, उनके जीवन में अंधकार कर रहा है, पर अगर खुदा को रौशनी हो मंजूर तो आंधियों में भी चिराग जलते हैं।

आज हालात ऐसे हैं कि लोग अपने निजी स्वार्थों के लिए दूसरों को नुकसान पहुंचाने से भी नहीं चूकते। जब अल्लाह की आंधी जुल्मों के खिलाफ चलती है तो पापियों का सर्वनाश होता है। चिथड़े उड़ जाते हैं, उस फितरती मानव के जो नराधम बनकर लोगों का दमन करता है। मानव को हमेशा अतीत का आइना देखते रहना चाहिए, ताकि अहसास होता रहे कि ऐसे भी दिन थे जब एक जून की रोटी नसीब नहीं होती थी। आज जब समय बदला तो अपना गुजरा हुआ वक्त भूल रहा है। आदमी भले ही कितना बड़ा बन जाए, अतीत की परछाइयां उसका दामन नहीं छोड़तीं। मरते दम तक साथ रहती हैं। कहते हैं कि हाथ से छिना जा सकता है, मगर भाग्य को नहीं छिना जा सकता। जो भाग्य में है वह जरूर मिलेगा। देर जरूर है, मगर सच ही पुरस्कृत होता है। आज कुछेक लोग तिगड़म करके ऐसे पदों पर विराजमान है जिसके वे काबिल नहीं है। लेकिन सिफारिश के बलबूते स्थान हासिल करने वालों को एक वक्त जरूर धूल चटाता है, जब वह प्रतिभा के आगे नहीं टिकता। एक कहावत है कि ‘घर का जोगड़ा बाहर का जोगी सिद्ध’ आज पूरी तरह चरितार्थ है। मगर मानव को एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि मुसीबत में अपने ही काम आते हैं, बाहर के तमाशा देखते हैं। आज अपनों को नीचे गिराया जाता है और बाहर के लोगों को ऊपर उठाया जाता है। भेदभाव किया जाता है। प्रतिभा को दबाया जाता है और चंद स्वार्थों के लिए बाहर के लोगों को फायदा पहुंचाया जाता है। आज कितने ही प्रतिभावान लोग हैं, जिन्हें दरकिनार करके अयोग्य लोगों को मौका दिया जाता है।अनुभवहीन आज इतने बड़े बन जाते हैं कि दूसरों को पाठ पढ़ाने लगते हैं कि कौन काम सही है और कौन गलत। मगर सच्चाई सौ परदे फाड़ कर बाहर आती है, तब ऐसे लोग खाक में मिल जाते हैं। यह वक्त का कैसा तकाजा है कि आज सच्चे व इरादों के पक्के लोगों को मुख्यधारा से बाहर किया जा रहा है, मगर वक्त एक ऐसा तराजू है जिसके एक पलड़े में जिन्दगी और दूसरे पलड़े में मौत होती है।

जीवन और मृत्यु में सिर्फ सांसों का फासला है। जब इंसान जिन्दा होता है तो कोई उसका हाल तक नहीं पूछता, लेकिन जब संसार से रुखसत हो जाता है तो हर आदमी मातम में शामिल होने में अपनी शान समझते हैं। जीवित रहते कोई किसी की मदद को आगे नहीं आता। जब जीता है तो एक जोड़ी कपड़ा तक नसीब नहीं होता। मगर जब उसके किसी काम का नहीं होता, उसके मृत शरीर पर सैंकड़ों चादरें डाली जाती हैं। जीते जी जिसे घी नहीं मिलता, पर अंतिम यात्रा में मुंह में शुद्ध देशी घी की आहूती दी जाती है जो व्यर्थ है।

कहने का तात्पर्य यह है कि मानव की जीते जी सहायता की जाए तो वही सच्ची मानवता कहलाएगी। आज लोगों के पास समय नहीं है। इतना व्यस्त है कि रोटी खाने के लिये समय नहीं है। हर समय पैसा ही पैसा कमाने में व्यस्त रहता है। अनैतिक तरीकों से धन कमाया जा रहा है। मगर मानव को यह पता है कि दुनिया में नंगा आया था, नंगा ही जाएगा तो यह धन-दौलत का लालच क्यों कर रहा है? गलत काम कर पैसा अर्जित करके आलिशान महल बना रहा है, मगर पल की खबर नहीं है। मानव को एकदूसरे के सुख-दुख में शामिल होना चाहिए। आज कुछ तथाकथित अमीर बने लोग कारों में बैठकर ऐसे बन जाते हैं कि धरती पर चल रहे मानव को कीडे़-मकोड़े समझते हैं। आज कार रखना तो मानो आम सी बात हो गई है, लेकिन कार में बैठकर कोई बड़ा नहीं बन सकता। समाज के लिए निःस्वार्थ भाव से काम करने वाले के आगे कारों की चमक फीकी पड़ जाती है। यह लोग कार, कोठी और पैसे को ही जीवन का ध्येय मान बैठे हैं। महंगे कपड़े पहनकर कोई आदमी बड़ा नहीं है, बल्कि उसके गुणों के कारण ही पहचान होती है। कुछ लोग आत्मकेन्द्रित होते हैं। बस अपना काम हो जाए दुनिया भाड़ में जाए। समाज में ऐसे लोग घातक होते हैं। आज भूखी जुएं अपनी औकात भूलकर ऐसे इतराती हैं कि जैसे खानदानी रईस हों। पर वक्त के पास हर आदमी का लेखा-जोखा है कि कौन रईस था और कौन दाने-दाने को मोहताज था। किसी को छोटा नहीं समझना चाहिए। हर आदमी से समानता का व्यवहार करना चाहिए, भेदभाव नहीं करना चाहिए।

वक्त बदलते देर नहीं लगती। भाग्य किसी को भी अर्श पर ले जाता है और किसी को फर्श पर ले जाता है, इसलिए मानव को मर्यादा में रहकर ही हर काम करना चाहिए। आदमी को किसी के साथ भी धोखा नहीं करना चाहिए। किसी के साथ विश्वासघात नहीं करना चाहिए, क्योंकि एक बार विश्वास टूट जाता तो फिर से कायम कर पाना मुश्किल हो जाता है। ऐसे मानव का जीवन व्यर्थ है जो दूसरों को दुख देता है। गरीब आदमी को कभी नहीं सताना चाहिए, अगर गरीब की बद दुआ लग जाए तो बड़े से बड़ा धराशायी हो जाता है। इसलिए हर मानव को हमेशा मानव के लिए अच्छे कार्य करने चाहिए। मानव को ऐसे काम करने चाहिए कि मरने के बाद भी उसे सदियों तक एक अच्छे इन्सान के रूप में हमेशा याद किया जा सके। भूखे को रोटी और प्यासे को पानी पिलाना चाहिए। आज का मानव पैसों से बैंक के खातों को तो भर रहा है, मगर ऊपर का खाता खाली है। इसलिए प्रत्येक साधन-संपन्न मानव को लाचार व गरीब लोागों को दान-पुण्य करना चाहिए। मानव को एकजुट होकर हर मानव का काम करना चाहिए। कहते हैं कि एकता में बड़ा बल होता है। प्रत्येक मानव को पता है कि एक दिन सबको मौत आनी है तो फिर मानव क्यों नहीं समझ रहा है? मानव जब कोई चीज बनाता है तो वह उसकी गांरटी तय करता है, मगर उसकी अपनी कोई गांरटी नहीं है कि कब प्राण निकल जाएं। रात दिन अवैध तरीकों से जायदाद जोड़ रहा है, मगर किसके लिए आज तक कोई उठाकर नहीं लेकर गया तो फिर यह मोह माया क्यों है? मानव को नीच कर्मों को छोड़ देना चाहिए, अच्छे कर्म करने चाहिए। मानव जीवन एक बार ही मिलता है बार-बार नहीं मिलता।

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  1. It’s a badly written article with numerous grammatical mistakes. If people in Hindi media or Hindi literary field can’t write Hindi properly, what more can you expect from ordinary people. This is apart from the content, which fails to maintain the flow.
    While publishing such reports, make sure that at least grammatical errors are rectified. It leaves a negative impression about the Pravakta’s editorial team.

    Regards
    G Manjusainath
    Bangalore

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