अब अमर सिंह चले पूर्वांचल बनाने …

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-तनवीर जाफ़री

मीडिया की सुर्खियों में छाए रहने की जबरदस्त चाहत रखने वाले अमर सिंह हालांकि समाजवादी पार्टी से बेआबरू होकर हुई अपनी रूखसती के बाद मीडिया के मुख्‍य प्रवाह से दूर जा गिरे थे। परंतु सुर्खियों में पुन: बने रहने के लिए अब एक बार फिर उन्होंने नया शगूंफा छोड़ दिया है और वह शगूफा है उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों को उत्तर प्रदेश से अलग कर पृथक पूर्वांचल राज्‍य बनाए जाने का। मुलायम सिंह यादव द्वारा समाजवादी पार्टी में बरते जा रहे परिवार वाद के विरुद्ध आवाज उठाते हुए सपा छोड़ने के बाद से लेकर अब तक अमर सिंह को यह बखूबी पता चल गया होगा कि किसी नेता का कद या उसकी कारगुजारियों आदि की कीमत वास्तव में पार्टी के भीतर रहकर ही होती है पार्टी से अलग होकर नहीं। खासतौर पर अमरसिंह जैसे उन नेताओं की जिन्हें राजनीति में रहकर भी अपना व्यक्तिगत जनाधार बनाने के बजाए जनसंपर्क अधिकारी की ड्यूटी करनी पड़े। कई वर्षों तक अमर सिंह इसी गलतफहमी का शिकार रहे तथा समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव को भी काफी हद तक यह एहसास करा पाने में वे सफल रहे कि वे ही सपा की रीढ़ की हडडी हैं। परंतु सपा से नाता तोड़ने के बाद उन्हें अपनी राजनीतिक हैसियत का अब अंदाज़ा हो चुका है। सपा में रहते हुए उनकी राजनैतिक शैली को देखकर अब कांग्रेस सहित लगभग सभी पार्टियां अपने आप को अमर सिंह से दूर रखने में ही पार्टी की भलाई महसूस कर रही हैं। लिहाजा यदि अपनी पड़ चुकी ख़राब आदतों के अनुसार स्वयं को मीडिया की सुंखिर्यों में उन्हें पुन: वापस लाना है तो कूछ न कुछ राजनैतिक ‘खेल तमाशा’ तो दिखाना ही पड़ेगा।

कभी कभी अमर सिंह राजपूत बिरादरी की राजनीति करने का हौसला लिए दिखाई दे जाते हैं। परंतु संभवत: जब वे राजपूत बिरादरी के राष्ट्रीयस्तर के अन्य तमाम दिग्गज नेताओं की ओर नारे उठाते होंगे तो उन्हें देश में क्षत्रिय राजनीति करना एक टेढ़ी खीर महसूस होती होगी। दूसरी बात यह भी है कि कल तक धर्म निरपेक्षता व सेक्यूलरिज्‍म की राजनीति कर चुके अमर सिंह को किसी एक बिरादरी विशेष की राजनीति करने से मीडिया द्वारा भी उस प्रकार का कवरेज दिया जाना संभव नहीं है जिस प्रकार के कवरेज के अमर सिंह आदि हो चुके हैं। लिहाज़ा अब उन्होंने उत्तर प्रदेश के पूर्वी ज़िलों से उठने वाली दशकों पुरानी आवाज़ को अपनाने की रणनीति पर काम करना शरू कर दिया है। पुर्वांचल के नाम से पहचाने जाने वाले इस क्षेत्र के सबसे क़द्दावर नेताओं में जहां इंदिरा-नेहरु घराने के नेताओं के नाम लिए जा सकते हैं वहीं पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, विश्वनाथ प्रताप सिंह, कमलापति त्रिपाठी, राजनारायण आदि और भी कई नेताओं के नाम प्रमुख हैं। जिन्होंने अपनी राजनीति को किसी विशेष क्षेत्र या प्रदेश तक सीमित रखने के बजाए अपनी राष्ट्रीय सोच का परिचय देते हुए राष्ट्रीय राजनीति में अपना प्रमुख स्थान बनाया। ज़ाहिर है राजनीति के उस पायदान तक पहुंचने के लिए मीडिया की सुर्खियों में छाए रहना मात्र ही काफी नहीं होता है बल्कि नेता के अपने विचार,उसका चिंतन तथा उसकी राजनैतिक सोच उसे स्वयं समाज व देश की राजनीति के मध्य स्थापित कर देती है।

अमर सिंह ने समाजवादी पार्टी में रहकर जिस ढंग की राजनीति की उसका अंदाजा इसी बात से लगा लेना चाहिए कि सपा छोड़ने के बाद उनकी स्थिति अब कुछ ऐसी ही हो गई कि वे धोबी के कुत्ते की ही तरह न घर के रहे हैं न घाट के। ऐसे में उन्हें यह उम्‍मीद है कि पूर्वांचल राज्‍य की स्थापना का मुद्दा शायद उन्हें राजनैतिक संजीवनी प्रदान कर दे। और अपने इसी अति सीमित राजनैतिक लक्ष्य पर काम करने के लिए अमर सिंह स्वयं को तैयार कर चुके हैं। उन्हें यह भी एहसास है कि पूर्वांचल का कोई क़द्दावर नेता इस मुद्दे को चूकि पूरे जोर-शोर के साथ नहीं उठा रहा है इसलिए यदि उनके नतृत्व में इस आंदोलन ने जोर पकड़ा और भविष्य में उन्हें सफलता मिल भी गई तो नए राज्‍य का सेहरा उनके सिर पर भी बंध सकता है। पूर्वांचल के गठन के शंखनाद के लिए गत् 1 दिसंबर 2010 को इलाहाबाद के एंग्लो बंगाली इंटर कॉलेज के मैदान में एक रैली का आयोजन किया गया। जिसमें फिल्मी सितारे संजय दत्त तथा जया प्रदा ने अमर सिंह से अपनी दोस्ती निभाते हुए कार्यक्रम में शिरकत की तथा युवकों की भीड़ इकट्ठी कर पाने में सफल रहे। इस रैली के बाद अमर सिंह ने पूर्वांचल स्वाभिमान यात्रा के नाम से एक पदयात्रा भी शुरू कर दी है। इस यात्रा में संजय दत्त तथा जया प्रदा भी प्रार भ में अमर सिंह के साथ-साथ चल रहे हैं। यह पदयात्रा पूर्वांचल के लगभग सभी जिलों से होती हुई 30 दिसंबर को गोरखपुर में समाप्त होगी। अमर सिंह का पूर्वांचल राज्‍य के गठन के बहाने जनता के बीच जाने तथा सीधा जन संपर्क स्थापित करने का यह पहला प्रयास होगा। अब देखना यह होगा कि पूर्वांचल राज्‍य के गठन की दशकों पुरानी आवाज को अपनी आवाज देने के बाद अमर सिंह मीडिया में भी अपना खोया हुआ पुराना स्थान वापस पाते हैं या नहीं।

जहां तक प्रस्तावित पूर्वांचल राज्‍य में चिन्हित किए जाने वाले जिलों का प्रश्न है तो इसमें जहां भारत-नेपाल सीमा से लगे बहराईच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोरखपुर, पडरौना व महाराजगंज जिलों को पूर्वांचल में शामिल जिले बताया जा रहा है वहीं अवध क्षेत्र के गोंडा, फैजाबाद, सुलतानपुर, बस्ती, सिद्धार्थनगर व अंबेदकर नगर जिले भी इसमें शामिल हैं। इसके अतिरिक्त मध्य उत्तर प्रदेश के कोशांबी, इलाबाद, प्रतापगढ़, जौनपुर मिर्जापुर जिलों को भी पूर्वांचल में शामिल किया गया है। पूर्वांचल में बनारस, गाजीपुर, मऊ, आजमगढ़, बलिया तथा देवरिया जैसे पूर्वी जिले भी शामिल हैं। कुल मिलाकर पूर्वांचल का प्रस्तावित क्षेत्र उत्तर प्रदेश का काफी बड़ा भाग है। यह क्षेत्र सवर्णों विशेषकर राजपूतों के वर्चस्व वाला क्षेत्र है। संभवत: इसलिए भी अमर सिंह ने पूर्वांचल आंदोलन को हवा देने में अपनी दिलचस्पी दिखाई है। इत्तेफाक़ से उनका गृहनगर भी पूर्वांचल के आजमगढ़ जिले में ही पड़ता है।

पूर्वांचल आंदोलन की शुरुआती रैली इलाहाबाद में किए जाने के पीछे अमरसिंह का अपना राजनैतिक मंकसद भी है। सर्वविदित है कि इलाहाबाद अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम छेड़ने का जहां एक बड़ा केंद्र था वहीं स्वतंत्रता के बाद भी इलाहाबाद सत्ता के एक बड़े केंद्र के रूप में लगभग 5 दशकों तक छाया रहा। न केवल इंदिरा-नेहरु घराने के शासन काल के रूप में बल्कि इस घराने को सत्ता से हटाने तथा मंडल आयोग के रहनुमा समझे जाने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह को लेकर भी इलाहाबाद चर्चा में रहा। अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के स्वबलिदान की गाथा भी इसी शहर के एल्फर्ड पार्क से जुड़ी है। इसके अतिरिक्त पीडी टंडन, मदनमोहन मालवीय, हेमवती नंदन बहुगुणा, अमिताभ बच्चन, जनेश्वर मिश्र, आदि की राजनैतिक कर्मस्थली तो रही ही है। प्रयाग की पावन संगम नगरी का धार्मिक महत्व तो दुनिया में किसी से छुपा नहीं है। जाहिर है अमर सिंह भी इस शहर की ऐतिहासिक,धार्मिक व राजनैतिक पृष्ठभूमि से पूर्वांचल के गठन के आंदोलन को जोड़कर यह संदेश देना चाह रहे हैं कि इलाहाबाद से धधकी यह चिंगारी अब शोले का रूप धारण करके ही दम लेगी।

इस रैली व पूर्वांचल स्वाभिमान पदयात्रा के आयोजक मंडल में जहां उनके द्वारा नवगठित युवा लोकमंच, महिला लोकमंच तथा अल्पसंख्‍यक लोकमंच के नाम सामने प्रमुख रहे वहीं अमर सिंह यूथ ब्रिगेड नामक एक नाममात्र संगठन भी इस आयोजन के अगुवाकारों में दिखाई दिया। प्राप्त समाचारों के अनुसार अमरसिंह यूथ ब्रिगेड के कुछ कार्यकर्ताओं ने कई स्कूलों को जबरन बंद करवाने तथा छात्रों को संजय दत्त को देखने हेतु सभा स्थल पर भेजे जाने का बलात प्रयास किया। पूर्वांचल के गठन संबंधी इस आयोजन में जिन महापुरुषों के नाम व चित्र प्रयोग में लाए जा रहे हैं उनमें महात्मा गांधी,भगत सिंह, डा0 राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद, वीर लेरिक, विश्वनाथ सिंह गहमरी आदि शामिल हैं। हां, इस कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार में जिस पोस्टर का प्रयोग किया गया था उसमें एक वाक्य अवश्य ऐसा लिखा गया था जिसपर उंगली उठाई जा सकती है। यह वाक्य था ‘बादलपुर और सैफई मौज करें और हमारा पूर्वांचल संघर्ष करे’, यहां सीधा इशारा अपने पूर्व नेता मुख्‍यमंत्री मुलायम सिंह की ओर है। परंतु सुधी लोग यह बात भी भली भांति जानते होंगे कि सैफई क्षेत्र की मार्केटिंग करने में तथा अमिताभ बच्चन जैसे सुपर स्टार को वहां ले जाने में अमर सिंह की ही अहम भूमिका रही है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि सैंफई के लोगों को मौज कराने में अर्थात् मुलायम सिंह यादव के मुख्‍यमंत्रित्व काल में सैफई में विकास कार्य कराए जाने को मौज करने का ताना देना तथा पूर्वांचल वासियों को संघर्षरत बताना अमर सिंह की अवसरवादी राजनीति की ही एक बानगी कही जा सकती है। मुलायम पर परिवार वाद को बढ़ावा देने को आरोप लगाने वाले अमरसिंह भी इलाहाबाद में मंच पर अपने भाई अरविंद सिंह के मोहपाश में जकड़े दिखाई दिए।अब तो यह आने वाला समय ही बताएगा कि अमरसिंह का पूर्वांचल बनाओ अभियान सफल होता है या नहीं। और यह भी कि पूर्वांचल के बहाने अमरसिंह मीडिया में अपना खोया हुआ रुतबा बहाल कर पाते हैं या नहीं?

3 COMMENTS

  1. बढ़िया लेख, २००९ तक राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले अमर सिंह जी वास्तव में सीमित होते जा रहे हैं.

  2. अमर सिंह जैसे लोग कुछ सभ्रांत व्यक्तित्वो के साथ दोस्ती गांठ कर और मिडिया का भरपुर उपयोग कर अपनी उपस्थिती का एहसास कराते हुए चर्चा मे रहने का हुनर जानते है। वह जनता को कुछ भी डेलीभर नही कर सकने वाले लोग है। इनका कोई राजनितिक मायने नही हो सकता।

    अंग्रेजो ने भारत को भाषिक संघियता दिया। उसका दुष्प्रभाव यदाकदा देखने को मिलता है। अच्छा होगा की देश के राज्यो का पुनर्गठन हो । सरल रेखाओ मे वर्गाकर एवम आयाताकार प्रदेश बनाए जाए। ताकी क्षेत्रवाद के खोखले नारे दे कर रोटियां न सेकी जा सके। हां क्षेत्रिय विकास संतुलन बना रहे इसकी पुरी कोशीश राजनेताओ को करनी चाहिए।

  3. अमर सिंह भारतीय राजनीति का दलाली स्वरूप है. कभी वह मनमोहन को बचाने दलाली करते है तो कभी मुलायम को उठाने-गिराने की. कभी वह मायावती को जलील करते है तो कभी शहीद मोहनचंद्र शर्मा की शहादत को.
    अब वह पूर्वांचल का खेल खेल रहे है. और हाँ आजकल उनका सेकुलर नकाब उतर गया है और अचानक अपना क्षात्र धर्म याद आ गया है!! सो सर पे पगड़ी बांधकर राजनीति में क्षत्रियवाद को उभारकर अपनी रोटिया सेंकने में लगे है. दुर्भाग्य से मुलायम से लेकर मनमोहन तक ने इस भांड का उपयोग किया है.

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