वन्यप्रदेश के लोकगीत सुनाते अमरकंटक के जलप्रपात

– लोकेन्द्र सिंह

अमरकंटक, मध्यप्रदेश के प्राकृतिक सौंदर्य से समृद्ध पर्यटन स्थलों में प्रमुख है। यदि सरकार और पर्यटन विभाग थोड़ा ध्यान दे, तो ‘हिल स्टेशन’ पचमढ़ी के बाद अमरकंटक मध्यप्रदेश का प्रमुख पर्यटन स्थल बन सकता है। यहाँ का तापमान भी अपेक्षाकृत कम ही रहता है। बारिश के दिनों में यहाँ बादलों को पहाड़ों की चोटियों और ऊंचे पेड़ों से टकराते देखा जा सकता है। यहाँ के घने वन, ऊंचे पहाड़, शांत, शीतल और सौम्य वातावरण सबका मन मोह लेता है। जो एक बार यहाँ आ जाता है, वह बार-बार यहाँ आना चाहता है। मध्यप्रदेश के अन्य हिस्सों से के अलावा छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल से यहाँ अधिक संख्या में पर्यटक आते हैं। देशभर से आने वाले ऐसे पर्यटकों की संख्या भी कम नहीं है, जो प्रकृति के सान्निध्य का सुख और पुण्यदायिनी माँ नर्मदा के घर में आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति चाहते हैं। अमरकंटक, सदानीरा माँ नर्मदा के उद्गम स्थल के लिए प्रसिद्ध है। शोण (सोन) और जोहिला नदियों के उद्गम स्थल भी अमरकंटक के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। ये नदियां मैदानी इलाकों में बहने से पहले अमरकंटक के पहाड़ों से उतरती हैं, तब वे यहाँ अनेक स्थानों पर आकर्षक जलप्रपात बनाती हैं। कपिल धारा और दूध धारा तो अपने सौंदर्य के लिए खूब प्रसिद्ध हैं। सोनमूड़ा में लगभग 300-350 फीट की ऊंचाई से गिरता जलप्रपात भी कम आकर्षक नहीं है। दुर्गा धारा, शंभू धारा, लक्ष्मण धारा जैसे कुछ झरने ऐसे भी हैं, जो पहाड़ों से बहकर आने वाली जलधार से बनते हैं। ये भी बहुत मनोहारी हैं। प्रकृति से प्रेम करने वाले पर्यटकों को ये बहुत भाते हैं। फुरसत से आकर इनके समीप बैठ जाओ और ध्यान से सुनो, तब ऐसा लगता है मानो ये जलप्रपात वन्यप्रदेश के लोकगीत सुना रहे हैं।

            अमरकंटक के प्रमुख जलप्रपातों में सबसे पहला स्थान है, कपिल धारा और दूध धारा का। नर्मदा उद्गम स्थल से लगभग 6 किमी दूर स्थित है कपिल धारा। यह ऋषि कपिल मुनि की तपस्थली है। सांसारिक दु:खों से निवृत्ति और तात्विक ज्ञान प्रदान करने वाले ‘सांख्य दर्शन’ की रचना कपिल मुनि ने इसी स्थान पर की थी। यहाँ लगभग 100 फीट की ऊंचाई से नर्मदा के जल की दो धाराएं नीचे गिरती हैं। शेष दिनों में यह धाराएं बहुत पतली होती हैं। जबकि बारिश के दिनों में इस झरने का वेग तीव्र होता है और जलराशि भी अधिक होती है। जब यहाँ से पानी नीचे गिरता है, तब बड़ा ही मनोहारी दृश्य बनता है। 100 फीट से नीचे गिरने के बाद नर्मदा का जल बौझार और फुआर बनकर यहाँ आने वाले पर्यटकों और श्रद्धालुओं को भिगोता है, मानो नर्मदा मैया अपने तट पर आए प्रकृति प्रेमियों पर ‘गंगाजल’ छिड़क रही हों।

            मध्यप्रदेश के पर्यटन विभाग ने कपिल धारा का विहंगम दृश्य देखने के लिए ‘वॉच टॉवर’ भी बनाया है। यहाँ से जब हम देखते हैं तो नर्मदा किसी नटखट बालिका की तरह दिखाई देती हैं, जो पहाड़ों से कूदती-फांदती अपनी मौज में चली जा रही हैं। नर्मदा की अटखेलियाँ देखकर घने वन और पशु-पक्षी प्रसन्नता जाहिर कर रहे हैं। कपिल धारा से उतरकर तकरीबन 200 मीटर की दूरी पर नर्मदा का एक और जल प्रपात है, जिसे दूध धारा कहते हैं। दरअसल, इस जल प्रपात में पानी इतनी तेजी से गिरता है कि उसका रंग दूध की तरह धवल दिखाई देता है। इस नाम के पीछे एक जनश्रुति भी है। अपने क्रोधित स्वभाव के लिए विख्यात ऋषि दुर्वासा ने यहाँ तपस्या की थी। उनके ही नाम पर यहाँ नर्मदा की धारा का नाम ‘दुर्वासा धारा’ पड़ा, जो बाद में अपभ्रंस होकर ‘दूध धारा’ हो गया। यह भी माना जाता है कि ऋषि दुर्वासा की तपस्या से प्रसन्न होकर माँ नर्मदा ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए और उन्हें दुग्ध पान कराया था, तभी से यहाँ नर्मदा की धारा का नाम दूध धारा पड़ गया। ऋषि दुर्वासा दूध के समान धवल नर्मदा जल से प्रतिदिन शिव का अभिषेक करते थे। इस स्थान पर ऋषि दुर्वासा की गुफा भी हैं, जहाँ उन्होंने ध्यान-तपस्या की होगी। इस गुफा में एक शिवलिंग भी है, जिस पर निरंतर पानी गिरता रहता है। 

            शोण (सोन) के उद्गम स्थल पर बना जलप्रपात ‘सोनमूड़ा’ भी पर्यटकों को प्रिय है। सोनमूड़ा नैसर्गिक प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थान है। बारिश के समय में यह झरना भरपूर चलता है। शेष समय में एक पतली जलधारा के रूप में रहता है। यह काफी ऊंचा स्थान है। इसलिए यहाँ से अमरकंटक की घाटियां, घने हरे-भरे जंगल, गाँव-टोलों के सुंदर दृश्य मन मोह लेते हैं। यहाँ प्रात: काल उगते हुए सूर्य का दर्शन भी सुखकर है।

            बरसात या फिर उसके बाद जब हम अमरकंटक पहुँचते हैं तब हमें शम्भू धारा और लक्ष्मण धारा जैसे जलप्रपात देखने का आनंद भी प्राप्त होता है। इस मौसम में ये जल प्रपात अपने पूर्ण सौंदर्य के साथ पर्यटकों के सामने उपस्थित होते हैं। शम्भू धारा और लक्ष्मण धारा, नर्मदा उद्गम स्थल से तकरीबन ५ किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ तक पहुँचने के लिए घने जंगल से होकर गुजरना पड़ता है। यहाँ जंगल इतना घना है कि धूप धरती को नहीं छू पाती है। घने जंगल से होकर, कच्चे रस्ते से शम्भूधारा तक पहुँचना किसी रोमांच से कम नहीं है। अमरकंटक के अन्य पर्यटन स्थलों की अपेक्षा यहाँ कम ही लोग आते हैं। दरअसल, लोगों को इसकी जानकारी नहीं रहती। किसी मार्गदर्शक के बिना यहाँ तक आना किसी नये व्यक्ति के लिए संभव नहीं है। यह स्थान बेहद खूबसूरत है। प्राकृतिक रूप से समृद्ध है। यहाँ पशु-पक्षियों की आवाज किसी मधुर संगीत की तरह सुनाई देती हैं। निर्जन वन होने के कारण यहाँ साधु-संन्यासी धूनी भी रमाते हैं।

            दुर्गा धारा एक बहुत छोटा जल प्रपात है, लेकिन बहुत रमणीय है। पहाड़ों में ऊपर स्थित अमरनाला या अमरताल से होकर निकली धारा तकरीबन दो-तीन किमी की दूरी सघन वन में तय करके यहाँ जल प्रपात के रूप में गिरती है। पूर्व में इसका नाम कुछ और रहा होगा। लेकिन, कालांतर में इस स्थान पर मृत्युंजय आश्रम, अमरकंटक से जुड़े स्वामी आत्मानंद सरस्वती ने दुर्गा मंदिर का निर्माण करा दिया, तब से इस जल प्रपात का नामकरण ‘दुर्गा धारा’ हो गया। जब हम माई के मण्डप के लिए जाते हैं, तब यह स्थान हमें बीच में मिलता है। इनके अलावा चिलम-पानी और धरम-पानी नामक रमणीक स्थान पर भी मनोहारी जलप्रपात हैं। ये सब जलप्रपात अमरकंटक के सौंदर्य में गुणोत्तर वृद्धि करते हैं। यहाँ आने वाले पर्यटकों के आनंद को बढ़ाते हैं।  

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