किसी मुस्लिम गड़रिये ने नहीं खोजी  अमरनाथ गुफा 

प्रवीण गुगनानी

आजकल जबकि प्रतिवर्ष अमरनाथ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं पर मुस्लिम आतंकवादियों का ख़तरा मंडराता रहता है व यात्रियों पर घातक हमले भी होते रहते हैं तब ऐसे जहरीले वातावरण में एक झूठी मान्यता यह भी प्रायोजित कर दी गई है कि वर्ष 1850 में एक कश्मीरी मुस्लिम बूटा मलिक अपनी भेड़ें चराने के दौरान घुमते घुमते यहां पहुंचा और उसी ने श्री अमरनाथ जी के प्रथम दर्शन किये व इस गुफा की जानकारी तत्कालीन कश्मीरी राजा को दी व लोगों ने इस गुफा में जाना प्रारम्भ किया. वस्तुतः यह एक व मिथ्या फैलाई गई प्रायोजित कथा है जिसके आधार पर एक मुस्लिम परिवार स्वयं को बूटा मलिक का वंशज बताते हुए इस पवित्र गुफा की देखरेख करने वाली समिति का सदस्य बना रहा. वस्तुतः बूटा मलिक की यह कथा देश में शनैः शनैः फैलते गए सेकुलरो के झूठ का परिणाम है. अमरनाथ यात्रा पर मुस्लिम आंतकवादियों के हमले व यात्रियों को यातनाएं व पीड़ा देनें की घटनाओं की दीर्घ श्रंखला के बाद समय समय पर इस झूठ को मीडिया द्वारा देश में स्थापित करनें का प्रयास किया जाता रहा है. नागरिकों को एक व्यर्थ के वर्ष 1850 के एक मुस्लिम व्यक्ति के कारण ही इस देश के हिन्दू अमरनाथ शिवलिंग के दर्शन कर पा रहे हैं इस सर्वथा मिथ्या बात को समय समय पर इस देश के मीडियासेकुलर राजनीतिज्ञों व मुस्लिम नेताओं द्वारा फैलाया जाता रहा है. किन्तु वस्तुस्थिति इससे सर्वथा भिन्न है, जो कि इस देश के बहुसंख्य हिंदू बंधुओं के ध्यान में आना चाहिए. अतीव दुर्गम, अतीव मनमोहक व स्वर्गिक पर्वतों के मध्य स्थित इस आस्था केंद्र पर जानें के दौरान व इसके संदर्भ में बोलते सुनते समय सभी के मन में यह विचार अवश्य आता है कि अंततः कौन होगा जो इस निर्जन, एकांत व सुदूर स्थित दिव्य स्थान के दर्शन कर पाया होगा, इसके प्रथम दर्शन कब हुए होंगे, प्रथम दर्शन करनें वाला व्यक्ति यहां किस संदर्भ में आया होगा?इस प्रश्न के उत्तर में यहां कई प्रकार की किवदंतियां, लोककथाएँ व मान्यताएं सुनने में आती हैं, किंतु सत्य यह है कि हमारें देश में मुस्लिम आक्रान्ताओं के वर्षों पूर्व से ही हम अमरनाथ शिवलिंग के महातम्य को जानते समझते रहें हैं. 

                          इस पवित्र गुफा व दिव्य शिवलिंग के प्रथम मानव दर्शन कब हुए यह तथ्य तो सहस्त्रों वैदिक मान्यताओं की तरह सदैव रहस्य   के गर्भ में ही रहेगा किंतु इसके संदर्भ में इतिहास में प्रथम प्रामाणिक लेखन 12 शताब्दी का मिलता है. इस लेख के अनुसार कश्मीर के महाराजा अनंगपाल व महारानी सुमन देवी के साथ सपत्नीक अमरनाथ जी के दर्शन किये थे. 16 वीं शताब्दी के एक ग्रन्थ “वंश चरितावली”” में भी अमरनाथ गुफा का महात्म्य वर्णित किया गया है. वर्ष 1150 में जन्में महान इतिहासकार व विलक्षण कवि कल्हण को कौन नहीं जानता?! मान्यता है कि भारतीय इतिहास को प्रथमतः यदि किसी ने वैज्ञानिक व तथ्यपरक दृष्टिकोण से लिपिबद्ध करने का कार्य किया है तो वे कल्हण ही हैं. कश्मीर के तो चप्पे चप्पे पर  कल्हण की छाप है. कल्हण के ग्रन्थ “राजतरंगिनी तरंग द्वितीय” में उल्लेख मिलता है कि कश्मीर के राजा सामदीमत शिवभक्त थे और वे पहलगाम के वनों में स्थित बर्फ के दिव्य शिवलिंग की पूजा करने जाते थे! 
प्राचीन ग्रंथ “ब्रंगेश संहिता”” में भी अमरनाथ यात्रा का उल्लेख है व और भी कई स्पष्ट व स्वुदघोषित तथ्य हैं जिनसे सुस्पष्ट प्रमाणित होता है कि बूटा मलिक की 1850 की मिथ्या कथा से हजारों वर्ष पूर्व से इस देश का हिंदू भारत के कोने कोने से जाकर अमरनाथ में दिव्य शिवलिंग के दर्शन करता रहा है. “बृंगेश संहिता” में तो इस यात्रा के वर्तमान पड़ावों 
अनंतनया(अनंतनाग),माचभवन(मट्टन),गणेशबल(गणेशपुर),ममलेश्वर(मामल), चंदनवाड़ी, सुशरामनगर (शेषनाग),पंचतरंगिनी(पंचतरणी), और अमरावती आदि का स्पष्ट उल्लेख है ग्रंथों में अंकित ये तथ्य बूटा मालिक की मिथ्या कथा को तार तार कर देनें में सक्षम हैं और यह सिद्ध करते  हैं कि अमरनाथ जी के दर्शन हमारें पुरखे हजारों वर्षों से करते आ रहें हैं किंतु इसके प्रथम मानव दर्शन किस व्यक्ति ने कब किये इस तथ्य का रहस्योद्घाटन अभी होना बाकी है.    हिमालय की दुर्गम व उत्तुंग पर्वत श्रंखलाओं के मध्य स्थित अमरनाथ गुफा एक पवित्रतम  हिंदू तीर्थ स्थल के रूप सर्वमान्य होकर सम्पूर्ण भारत वर्ष में सर्वपूज्य है. कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के उत्तर पूर्व में लगभग चार सौ किमी दूर समुद्र तल से 13600 फीट की दुर्गम ऊंचाई पर स्थित यह पवित्र गुफा 19 फीट गहरी, 16 मीटर चौड़ी व 11 मीटर ऊंची है. इस तीर्थ स्थान के “अमरनाथ”” नाम की पृष्ठभूमि में वह कथा है जिसमें उल्लेख है कि यहीं पर त्रिनेत्रधारी शिवशंकर ने जगतजननी माँ पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था. इस अमरत्व की कथा को सुनकर ही गुफा में बैठे एक शुक शिशू को शुकदेव ऋषि का रूप व अमरत्व प्राप्त हो गया था. यहां की प्रमुख विशेषता बर्फ से प्रतिवर्ष बनने वाला अद्भुत शिवलिंग है.
आषाढ़ से लेकर श्रावण के रक्षाबंधन पर्व तक यहां हिन्दू धर्मावलम्बी इस बाबा बर्फानी के नाम से प्रसिद्द शिवलिंग के दर्शनों हेतु आते हैं. गुफा की छत से टपकने वाली बूंदों से शनैः शनैः यह शिवलिंग बनता चलता है एवं दस बारह फीट की ऊंचाई तक पहुँच जाता है. श्रावण मास के चंद्रमा  के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस बर्फ का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है. श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है. आश्चर्य की बात यही है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि कश्मीर के इस क्षेत्र में चारो ओर केवल कच्ची भूरभूरी बर्फ ही पाई जाति है. यहां मूल अमरनाथ शिवलिंग से कुछ फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग अलग हिमखंड हैं. गुफा में आज भी यदाकदा श्रद्धालुओं को अमरत्व प्राप्त कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई दे जाता है. मैंने स्वयं श्री अमरनाथ जी के दिव्य दर्शन के दौरान सपरिवार इस कबूतर व कबूतरी के साक्षात दर्शन प्राप्त किये हैं. प्रचलित किवदंती है व ग्रंथों में उल्लेखित भी है कि जब भगवान भोले भंडारी माँ पार्वती  को अमरत्व की कथा सुनानें इस निर्जन स्थान की ओर बढ़ रहे थे तब उन्होंने अपने शरीर पर विराजमान सभी छोटे छोटे सांपो व नागों को एक स्थान पर छोड़ दिया था वही स्थान आज अनंतनाग के नाम से प्रसिद्द है, इसके पश्चात जहां उन्होंने अपने माथे के चंदन को उतारा वह स्थान आज चंदनबाड़ी कहलाता है, इसके पश्चात शिवजी ने अपने तन पर लगे पिस्सुओं को जहां उतारा वह स्थान आज पिस्सूटाप कहलाता है. सदैव गले में रहनें वाले शेषनाग को जहां उतारा वह स्थान आज शेषनाग कहलाता है. ये सभी स्थान आज भी इसी नाम से अमरनाथ यात्रा के पड़ाव हैं.  स्वामी विवेकानंद ने भी 1898 में 8 अगस्त को अमरनाथ गुफा की यात्रा की थी और बाद में उन्होंने उल्लेख किया कि दर्शन करते समय मेरे मन में विचार आया कि बर्फ का लिंग स्वयं भगवान शिव हैं. मैंने इतना सुंदर, इतना प्रेरणादायक कोई अन्य धर्म स्थल कहीं नहीं देखा और न ही किसी धार्मिक स्थल का इतना आनंद लिया है.

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