अमावस्या तिथि 2020 – रहस्य और महत्व

कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से लेकर कॄष्ण पक्ष की पंद्रहवी तिथि को अमावस्या के नाम से जाना जाता है। हिन्दू पंचाग में प्रत्येक माह 30 दिन का होता है। जिसमें 15 तिथियां शुक्ल पक्ष की ओर 15 तिथियां कॄष्ण पक्ष की होती है। कॄष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या और शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि पूर्णिमा के नाम से जानी जाती है। अमावस्या तिथि का देवता पितृ देव को माना गया है। अमावस्या तिथि को सूर्य और चंद्र एक समान अंशों पर और एक ही राशि में होते है। यह माना जाता है कि कृष्ण पक्ष में दैत्य आत्माएं और शुक्ल पक्ष में देव आत्माएं अधिक सक्रिय रहती है। यही वजह है कि अमावस्या तिथि में पितरों को प्रसन्न करने के बाद ही शुक्ल पक्ष में देवताओं को प्रसन्न किया जाता है।
माह के 30 दिनों में से अमावस्या और पूर्णिमा की तिथियां मानव जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करने की क्षमता रखती है। एक वर्षावधि में प्रत्येक माह के अनुसार 12 अमावस्या और 12 पूर्णिमाएं होती है। सभी अमावस्याओं का अपना अलग अलग महत्व होता है। अमावस्या तिथि को पितर देवों की शांति के कार्य-अनुष्ठान किए जाते है। इसके लिए श्राद्ध कर्म या पूजापाठ किया जाता है।आज हम आपको वर्ष 2020 में आने वाली विभिन्न अमावस्याओं के बारे में बताने जा रहे हैं-

माह नाम वार तिथि

फाल्गुन रविवार 23 फरवरी 2020
चैत्र मंगलवार 24 मार्च 2020
वैशाख बुधवार 22 अप्रैल 2020
ज्येष्ठ शुक्रवार 22 मई 2020
आषाढ़ रविवार 21 जून 2020
श्रावण सोमवार 20 जुलाई 2020
भाद्रपद बुधवार 19 अगस्त 2020
आश्विन गुरुवार 17 सितम्बर 2020
कार्तिक शुक्रवार 16 अक्तूबर 2020
कार्तिक रविवार 15 नवम्बर 2020
मार्गशीर्ष सोमवार 14 दिसम्बर 2020
पौष बुधवार 13 जनवरी 2021
माघ गुरुवार 11 फरवरी 2021

अब हम इन अमावस्याओं को संक्षेप में जानने का प्रयास करते हैं-
फाल्गुन अमावस्या – चंद्र माह के अनुसार फाल्गुन मास में कॄष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि फाल्गुन अमावस्या कही जाती है। इस अमावस्या के दिन व्रत, स्नान और पितर तर्पण कार्य करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं। इस दिन पीपल के पेड़ का दर्शन-पूजन करना भी अति शुभफलदायी माना गया है।

चैत्र अमावस्या – चैत्र अमावस्या मोक्षदायनी अमावस्या है। अन्य अमावस्याओं की तरह इस अमावस्या में भी पवित्र नदियों, सरोवरों और धर्मस्थलों पर स्नान, दान और पितर शांति के कार्य किये जाते हैं। अमावस्या के दिन भगवान शिव, पीपल देव का दर्शन-पूजन करने के साथ साथ शनि देव की शांति के कार्य भी किए जाते हैं। अमावस्या और मंगलवार के शुभ संयोग में पितरों को प्रसन्न करने के कार्य करने के साथ साथ हनुमान जी को प्रसन्न करने, मंगल ग्रह के दोषों की शांति और अशुभता दूर करने के कार्य किए जा सकेंगे।

वैशाख अमावस्या -वैशाख अमावस्या को दक्षिण भारत में शनि जयंती के नाम से भी मनाया जाता है। कुछ शास्त्रों के अनुसार इस दिन कुश को जड़ सहित उखाड़ कर एकत्रित करने का विधान है। इस दिन एकत्रित कुशा का पुण्य आने वाले 12 वर्षों तक मिलता है। वैशाख अमावस्या के दिन पिण्डदान, पितर,तर्पण और स्नान आदि कार्य किए जाते है। पितर दोष की शांति के कार्य करने के लिए भी इस दिन का प्रयोग किया जाता है। वैशाख मास की अमावस्या के दिन ही त्रेतायुग का प्रारम्भ हुआ था।

ज्येष्ठ अमावस्या – धर्म शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या के दिन ही शनि देव का जन्म हुआ था। इस दिन मंदिरों में विशेष रुप से शनि शांति के कर्म,अनुष्ठान,पूजा-पाठ और दान आदि कार्य करने से पितृ दोषों की शांति होती है। अमावस्या में किए जाने वाले अन्य कार्यों के साथ इस दिन सुहागिनी वट सावित्री के व्रत का पालन करती है।

आषाढ़ अमावस्या -आषाढ़ माह में पूजा-पाठ के कार्य विशेष रुप से किए जाते हैं। पितृकर्म के अतिरिक्त इस दिन देव भगवान शिव और चंद्र देव को प्रसन्न करने हेतु कार्य करने भी पुण्य फल देंगे।

श्रावण अमावस्या – इस वर्ष सोमवार के दिन पड़ने के कारण इस अमावस्या को सोमवती अमावस्या के नाम से भी जाना जाएगा। इस दिन खासकर पूर्वजों को तर्पण किया जाता है। इस दिन उपवास करते हुए पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर शनि मंत्र का जाप करना चाहिए और पीपल के पेड़ के चारों ओर 108 बार परिक्रमा करते हुए भगवान विष्णु तथा पीपल वृक्ष की पूजा करनी चाहिए। अन्य सभी अमावस्याओं की तरह यह अमावस्या भी पितरों के तर्पण के लिए जानी जाती है।

भाद्रपद अमावस्या -भाद्रपद अमावस्या को भादौ अमावस्या भी कहते है। इस अमावस्या के बारे में मान्यता है कि इस दिन जो भी घास उपलब्ध हों उसे एकत्रित किया जाता है। एकत्रित करते समय यह ध्यान रखा जाता है कि घास को जड़ सहित प्राप्त किया जाएं,और घास के पत्तों को हानि ना पहुंचे। ऐसा करना पुण्यकारी माना जाता हैं साथ ही इस अमावस्या को कुछ क्षेत्रों में पिथौरा अमावस्या भी कहा जाता है। अमावस्या में किए जाने वाले सभी कर्म करने के साथ साथ इस दिन देवी दुर्गा का पूजन करना भी कल्याणकारी माना जाता है।

आश्विन अमावस्या – वैसे तो कॄष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या कहलाती है। उसमें भी आश्विन मास में आने वाली अमावस्या को सर्वाधिक महत्व दिया गया है। इसे सर्वपितृ श्राद्ध अमावस्या भी कहा जाता है। धर्म और ज्योतिष शास्त्रों में इसे महासंयोग भी कहा गया है। इस दिन पितरों की शांति, दान-पुण्य, पिण्ड दान और अन्य सभी कार्य किए जायेंगे। ऐसा करने से पितर दोष दूर होते हैं। साथ ही मानसिक और शारीरिक सुख-शांति मिलती है।

कार्तिक अमावस्या -कार्तिक अमावस्या के दिन सभी पितर कार्य किए जा सकते हैं। इसके साथ ही इस दिन भगवान श्रीराम चौदह वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या वापस आये थे, इसी अवसर पर इस दिन दीवाली का पर्व मनाया जाता है। इस दिन महालक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है।

मार्गशीर्ष अमावस्या
मार्गशीर्ष अमावस्या, अगहन अमावस्या और श्राद्धादि अमावस्या कहते हैं। सोमवार के दिन होने के कारण यह सोमवती मार्गशीर्ष अमावस्या भी कहलाएगी। अत: सोमवती अमावस्या में किए जाने वाले सभी कार्य इस दिन किए जा सकते है। इस अमावस्या पर भी सर्वपितर अमावस्या पर किए जाने वाले सभी शांति कार्य किए जा सकते है। यह दिन पितृ दोष शांति के लिए विशेष रुप से प्रयोग किया जाता है। यह माना जाता है कि इस अवसर पर पवित्र नदियों में स्नान, दोष शांति और तर्पण करना कल्याणकारी और पुण्यकारी होता है।

पौष अमावस्या
धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन पितर कार्य कर किसी नदी या सरोवर में स्नान करने से अमोघ पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। पौष माह में इन कार्यों के अतिरिक्त विशेष रुप से सूर्य देव का दर्शन-पूजन किया जाता है। सूर्य देव को अर्घ्य देना भी अतिशुभ माना गया है।

माघ अमावस्या
माघ अमावस्या को मौनी अमावस्या का नाम भी दिया गया है। सभी अमावस्याओं में मौनी अमावस्या का अपना विशेष महत्व है। इस अमावस्या के दिन मौन व्रत का पालन किया जाता है। जो मौन व्रत का पालन न कर सकें, उन्हें इस दिन अधिक से अधिक मौन रहने का प्रयास करना चाहिए। यह माना जाता है कि जो व्यक्ति विधिवत रुप से इस दिन मौन व्रत कर, किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करता हैं उसे जीवन में मुनि पद की प्राप्ति होती है। माघ मास अपने पुण्य स्नान के लिए माना जाता रहा है, इस मास में अमावस्या तिथि का स्नान सबसे अधिक पुण्य देने वाला कहा गया है।

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