अमेरिका ने तरेरीं पाकिस्तान पर आंखें

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प्रमोद भार्गव

       तू डाल-डाल, हम पात-पात, कहावत एक बार फिर अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों के संदर्भ में सामने आई है। इसलिए यह आशंका बरकरार है कि पाक को दी जाने वाली आर्थिक मदद पर प्रतिबंध का निर्णय बनाम चेतावनी कब तक स्थिर रह पाएंगे ? क्योंकि अन्य अमेरिकी राष्ट्रपतियों की बात तो छोड़िए, स्वयं डोनाल्ड ट्रंप इस तरह की भवकियां पहले भी कई मर्तबा दे चुके हैं। लेकिन ट्रंप ने यह जो सख्ती दिखाई है, वह थोड़ी विचित्र है और उसके कूटनीतिक मायने हैं। पाक द्वारा आतंकियों को शरण देने और उन्हें भारत समेत अन्य दुश्मन देशों के परिप्रेक्ष्य में उकसाए रखने के बाबत ट्रंप ने ट्वीट के जरिए कहा है कि ‘इस दक्षिण एशियाई देश ने आतंकियों को मजबूती से सरंक्षण दिया और लंबे समय तक इस झूठ और छल के जरिए सैन्य मदद भी लेता रहा। ऐसे कपटी देश को और आर्थिक मदद देना मूर्खता होगी।‘ पाक की धूर्त जताने की भत्र्सना इससे पहले अमेरिका ने कभी नहीं की। इसलिए यह फटकार कहीं ज्यादा कठोर और लज्जाजनक है। लेकिन जिस देश की आंखों में शर्म न हो, उसे लज्जा कैसी ? चीन ने यह कहकर इस लज्जा पर पर्दा डालने की कोशिश की है कि ‘अमेरिका समेत विश्व समुदायों को आतंकियों के खिलाफ उसके सर्वोत्तम योगदान को स्वीकार करना चाहिए।‘ भारत सरकार अमेरिका की इस पहल पर इतराती दिख रही है। लेकिन उसे आतंक के परिप्रेक्ष्य में अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी। उसकी समस्याओं का समाधान पाक को दी जाने वाली आर्थिक सहायताओं पर प्रतिबंध से रुकने वाला नहीं है।

इस ट्वीट के बाद ट्रंप प्रशासन ने कथनी और करनी में भेद न बरतते हुए 1624 करोड़ रुपए की मदद रोक दी। नए साल के पहले दिन हुई यह कार्यवाही पाकिस्तान की खुशहाली के लिए बड़ा झटका है। अमेरिका 15 साल के भीतर पाक को 33 अरब डाॅलर की मदद दे चुका है। इस प्रतिबंध के चलते ही पाक के हाथ-पैर फूल गए। कुछ ही घंटों में उसने प्रशासनिक सक्रियता बरतते हुए लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक व मुंबई हमलों के सरगना हाफिज सईद और उसके संगठनों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया। जानकारी तो यहां तक है कि पाक की वित्तीय नियामक संस्था प्रतिभूति एवं विनियम आयोग ने जमात-उद-दावा और फलह-ए-इंसानियत फाउंडेशन समेत हाफिज के सभी संगठनों को चंदा लेने से वंचित कर दिया है। हालांकि यह अलग बात है कि यह फैसला कितने समय तक टिकाऊ रह पाता है ?

पाक के लिए एक बुरी खबर यह भी है कि इसी माह के अंत में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिशद का एक समूह आतंकी दलों के खिलाफ पाकिस्तान द्वारा वास्तव में कितनी कार्यवाहियां अमल में लाई गई हैं, इसका जमीनी-मुआयना करने पाक पहुंच रहा है। संभव है, इस दल को दिखाने की दृष्टि से ही पाक ने उपरोक्त फौरी कार्यवाहियां की हों ? लेकिन संयुक्त राष्ट्र के इस दल का दायित्व बनता है कि वह तात्कालिक कार्यवाहियों की बजाय, कम से कम तीन साल की गतिविधियों की पड़ताल करे ? दरअसल पाकिस्तान खुद को आतंक से पीड़ित देश जताकर इस तरह की पड़तालों के प्रति सहानुभूति बटोरने की कोशिश में रहता है। लेकिन इन दलीलों के परिप्रेक्ष्ेय दो जुदा पहलू हैं। यह अपनी जगह सच है कि आतंकियों की प्रताड़ना पाक को भी झेलनी पड़ रही है, लेकिन इससे यह हकीकत नहीं छिप जाती कि वह आतंकियों को खुला सरंक्षण और सर्मथन दे ? मुबंई आतंकी हमलों का सरगना हाफिज सईद इसका पुख्ता सबूत है। अब तो वह पाकिस्तान की सरजमीं पर राजनीतिक दल बनाकर चुनाव आयोग से मान्यता लेने की फिराक में लगा है। पूरी दुनिया जानती है कि लादेन को इसी पाक ने पनाह दी हुई थी। अमेरिकी हवाई फौज ने सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए ऐबटाबाद स्थित लादेन के घर में घुसकर उसे मार गिराने का साहसिक काम किया था। ये दो ऐसे सबूत हैं, जो पाक के झूठ को बेपर्दा करते हैं। शायद इसलिए ट्रंप ने पाक को झूठा और छलिया कहा है।

आर्थिक मदद पर रोक के बाद पाक का जो बर्ताव पेश आया है, उससे साफ होता है कि रस्सी तो जल गई, लेकिन उसकी ऐंठन नहीं गई। इसीलिए प्रतिबंध के बाद जो प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं, वे कमोवेश अमेरिका को चिढ़ाने वाली हैं। पाक विदेश मंत्री एवाज आसिफ ने कहा है कि ‘अमेरिका अफगानिस्तान में लड़ाई के लिए पाकिस्तान के संसधानों का इस्तेमाल करता रहा है। नतीजतन वह पाक को खैरात में नहीं, इसी सहयोग की कीमत चुकाता रहा है। लिहाजा अमेरिका द्वारा दी जाने वाली मदद के संदर्भ में यह कहना व्यर्थ है कि अब और मदद नहीं दी जाएगी।‘ विदेश मंत्री के इस दो टूक बयान में यह अंहकार अंतर्निहित है की अब पाक अमेरिकी मदद का मोहताज नहीं रह गया है। क्योंकि चीन उसका अंतरंग मित्र और आर्थिक मददगार के रूप में अमेरिका से कहीं ज्यादा बढ़-चढ़कर पेश आ रहा है। चीन जो पाकिस्तान से होकर आर्थिक गलियारा बना रहा है, उसे अफगानिस्तान की भूमि पर ले जाना चाहता है। इस लिहाज से चीन जहां पाक की जायज-नाजायज हरकतों का खुला सर्मथन कर रहा है, वहीं बेहिसाब पूंजी निवेश भी करने में लगा है। इस लिहाज से अमेरिका नहीं चाहेगा कि पाक को नाराज करके एकाएक उससे पल्ला झाड़ लिया जाए।

अमेरिका जब पाक के विरुद्ध निशाना साध रहा था, तभी उसने ईरान को भी आड़े हाथ लिया हुआ था। ईरान में इन दिनों सरकार विरोधी प्रदर्षनों के पीछे अमेरिकी मंशा जताई जा रही है। हकीकत जो भी हो, लेकिन यह तय है कि अमेरिका दक्षिण एशिया के दो देशों को एक साथ नाराज करने की मूर्खता नहीं कर सकता ? गोया, देर-सबेर अमेरिका लगाई रोक हटा सकता है। वैसे भी एक तो अफगानिस्तान की षांति और स्थिरता के लिए अमेरिका को पाक की जरूरत है, दूसरे पाक जिस तरह के बोल प्रतिबंध के बाद बोल रहा है, उससे तय है कि अमेरिका ने पाक पर ज्यादा दबाव बनाया तो वह चीन पर अपनी अघिकतम निर्भरता बढ़ाने में कोई संकोच नहीं करेगा ? पाकिस्तान को लाइन पर बनाए रखने के लिए अमेरिका चीन से टकराने की हिम्मत जुटा ले, यह मौजूदा परिस्थितियों में संभव हीं नहीं है। अमेरिका चीनी हितों में हस्तक्षेप न करे, शायद इसीलिए चीन उत्तर कोरिया को अमेरिका के विरुद्ध उकसाए रखने में मदद कर रहा है। इसका ताजा उदाहरण तेल के वे टेंकर हैं, जो अमेरिकी रोक के बावजूद चीन ने उत्तर कोरिया पहुंचने के लिए रवाना किए थे। वैसे भी चीन और अमेरिका एक दूसरे के प्रतियोगी है, प्रतिद्वंद्वी नहीं।

इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व फलक पर आतंकवाद और उसके पालन-पोषण में पाकिस्तान की भूमिका को प्रखरता से उजागार किया है। अमेरिका से भारत के रिश्ते घनिष्ठ हुए हैं। लेकिन इसका खमियाजा भी भारत को भविष्य में भुगतना पड़ सकता है, क्योंकि भारत के इसी बर्ताव के चलते रूस जैसा विश्वसनीय सहयोगी भी पाकिस्तान में पूंजी निवेश कर उससे पुराने खराब संबंधों को सुधारने में लगा है। इस सबके बावजूद पाकिस्तान को लेकर हमारी नीति स्पष्ट नहीं है। मौखिक रूप से तो हम पाक को आतंकी देश कहते हैं, लेकिन भारत ने स्वयं अभी तक अपने किसी भी राष्ट्रिय या अंतरराष्ट्रिय दस्तावेज में पाक को आतंकी देश संबोधित करने का जोखिम नहीं उठाया है। यही नहीं वह भारत ही है, जिसने पाकिस्तान को ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन‘ का दर्जा दिया हुआ है। पाक के साथ मजबूत व्यापारिक रिश्तो में अब तक कोई अवरोध नहीं है। पाक के लाइलाज रोगियों को भारत हाथों-हाथ लेता है। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जहां भारत और पाक के बीच यातायात सुविधाओं में बढ़ोत्तरी हुई हैं, वहीं यात्री नियमों में भी शिथिलता बढ़ी है। ये ऐसी बानगियां हैं, जो पाकिस्तान के संदर्भ में हमारी विदेश नीति का अस्पष्ट स्वरूप दर्षाती हैं। गोया, कूटनीति के स्तर पर भारत को कालांतर में बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। यदि भविष्य में भारत से रूस की दूरी इसी तरह बढती रही तो कालांतर में जिस बीजिंग, इस्लामाबाद और मास्को का त्रिकोण बनने की संभावना जताई जा रही है, उसका निर्माण हुआ तो वह भारत के लिए घातक साबित हो सकता है। लिहाजा भारत को अमेरिका द्वारा पाक पर लगाए प्रतिबंध को लेकर इठलाने की नहीं, बल्कि अपनी लड़ाई खुद लड़ने का संकल्प लेकर निष्कंटक  रास्ते तलाशने की जरूरत है।

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