अम्मू भाई

दादी हार गईं हैं लगा लगा कर टेरा|

अम्मू भाई उठो हुई शाला की बेरा|

 

मम्मी ने तो आलू डोसे पका दिये हैं|

मन पसंद हैं तुम्हें ,समोसे बना दिये हैं|

पापा खड़े हुये हैं लेकर बस्ता तेरा|

अम्मू भाई उठो हुई शाला की बेरा|

 

देखो उठकर भोर सुहानी धूप सुनहली|

बैठी है आंगन में चिड़िया रंग रंगीली|

पूरब में आकर सूरज ने स्वर्ण बिखेरा

अम्मू भाई उठो हुई शाला की बेरा|

 

वेन तुम्हारी तनिक देर में आ जायेगी|

हार्न बजाकर अम्मू अम्मू चिल्लायेगी|

नहीं लगेगा वाहन का अब फिर से फेरा|

अम्मू भाई उठो हुई शाला की बेरा|

 

सुबह सुबह से तुमको रोज़ उठाना पड़ता|

दादा दादी मम्मी को चिल्लाना पड़ता|

इस कारण से समय व्यर्थ होता बहुतेरा|

अम्मू भाई उठो हुई शाला की बेरा|

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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