अमृतसर, एक ऐसा शहर जो पंजाब का सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र शहर माना जाता है। पवित्र इसलिए क्योंकि सिक्खों का सबसे बड़ा गुरूद्वारा स्वर्ण मंदिर अमृतसर में ही है। और ये भी सच है कि ताजमहल के बाद सबसे ज्यादा पर्यटक अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को ही देखने आते हैं। स्वर्ण मंदिर अमृतसर का दिल माना जाता है। यहां का इतिहास भी गौरवमयी है। लेकिन आज अमृतसर नशे की जद में आ चुका है। क्या जवान, क्या बूढ़े… कब, कौन, किस तरह इसके चंगुल में फंस जाए, कहा नहीं जा सकता। चुनाव का माहौल है। ऐसे में अमृतसर की ये समस्या राष्ट्रीय स्तर पर उठाने की जरूरत है और इस राजनीतिक भेड़चाल में ऐसा नेता चाहिए जो पूरे पंजाब में समाज सुधार की दिशा में काम करे। क्योंकि यह कोई साधारण मामला नहीं है। आप चौंक जाएंगे सुनकर कि ये नशीला पदार्थ आता कहां से है- असल में इसे पंजाब में पहुंचाने के पीछे भी गहरी साजिश है पाकिस्तान का। पड़ोसी मुल्क हमें नशे की लत में डालना चाहता है। इसलिए नशीले पदार्थों को अफगानिस्तान के रास्ते पाकिस्तान से गुपचुप तरीके से हिन्दुस्तान की सीमा में पहुंचाया जा रहा है और हम तो ये कहेंगे कि पाकिस्तान ने इसमें सफलता भी हासिल कर ली है। क्योंकि पिछले दो दशक से जिस हिसाब से नशेड़ियों की बढ़ोत्तरी हुई है, वो ये बताने के लिए काफी है कि अगर अब इसे राष्ट्रीय स्तर पर नहीं उठाया गया तो पूरे पंजाब की आने वाली पीढ़ी ही बर्बाद हो जाएगी और यह धीरे-धीरे दूसरे राज्यों में भी पांव पसारना शुरू कर देगा। अब इस मुद्दे को प्रभावी तरीके से संसद में उठाने की जरूरत है। राष्ट्रीय स्तर की पहल चाहिए। अमृतसर समेत पूरे पंजाब को नशे से मुक्त कराना होगा। प्रवक्ता डॉट कॉम ने एक सर्वे किया जिसमें अधिकांश लोगों ने नरेंद्र मोदी की लहर को तो माना ही, साथ ही कहा कि नशा-मुक्त अमृतसर बनाने के लिए हम राष्ट्रीय स्तर के साफ छवि के भाजपा नेता अरुण जेटली को अपना सांसद बनाएंगे। अब हमें इस समस्या से वही उबार सकते हैं।
हरित क्रांति से लहलहाते पंजाब में नशा आम बात हो चुकी है। हालात यहां तक है कि राज्य के युवा अफीम, हेरोइन और कोकीन जैसे नशे का शिकार हो रहे हैं। लोगों को यह नहीं पता है कि मुनाफा कमाने का यह आसान रास्ता उनकी और उनकी आने वाली पीढ़ी की जान का दुश्मन बन रहा है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पिछले दो दशक से ज्यादा केवल अमृतसर ही नहीं, पूरा पंजाब नशे की लत में डूब चुका है।
स्थिति को समझ सकते हैं कि पंजाब नशीले पदार्थों के मामले में देश में पहले नंबर पर है। 2009 में राज्य हाईकोर्ट को दी गई जानकारी के मुताबिक पंजाब के गांवों में 67 फीसदी लोग कभी न कभी ड्रग एडिक्ट रहे थे। यानी पूरा पंजाब गैरकानूनी नशीले पदार्थों का ठिकाना बनता रहा है।
1970 में पंजाब देश का ब्रेड बास्केट कहा जाता था, क्योंकि यहां की मिट्टी फसलों के लिए शानदार थी। हरित क्रांति का सबसे ज्यादा फायदा भी इस इलाके ने उठाया। डॉक्टर जीपीएस भाटिया का एक इंटरव्यू मैंने एक अखबार में पढ़ा था, जिसमें वो बता रहे थे कि उन्होंने पंजाब में नशे की समस्या को काफी करीब से देखा है। 1991 में जब उन्होंने मनोरोग चिकित्सालय बनाया, तब वह हर सप्ताह एक या दो नशे के मामले देखते थे। लेकिन आज हर दिन 130 मरीजों में से 70-80 मरीज नशे की लतसे जूझ रहे हैं। बढ़ती हुई नशे की लत के कारण डॉ. भाटिया ने 2003 में इन लोगों के लिए पुनर्वास केंद्र बनाया। वो बताते हैं कि ऐसे मामले देखे हैं जहां बेटा नशा करता है वहीं पिता भी नशे का शिकार है। पूरा परिवार बीमार है। जो लोग हेरोइन और कोकीन का नशा नहीं कर सकते, वे अफीम का देसी नशा भुक्की करते हैं। यह अफीम के छिलके से बना ड्रिंक होता है।
जाहिर है, चुनाव का माहौल है, ज्वलंत मुद्दे और ऐसे ऐतिहासिक धरोहरों का मामला उठना चाहिए। अमृतसर को आप कैसे नज़रअंदाज कर सकते हैं। अपनी संस्कृति और लड़ाइयों के लिए बहुत प्रसिद्ध रहा है। अनेक त्रासदियों और दर्दनाक घटनाओं का यह गवाह रहा है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सबसे बड़ा नरसंहार अमृतसर के जलियांवाला बाग में ही हुआ था। भारत पाकिस्तान के बीच जो बंटवारा हुआ, उस समय भी अमृतसर में बड़ा हत्याकांड हुआ। यहीं नहीं, अफगान और मुगल शासकों ने इसके ऊपर अनेक आक्रमण किए और इसको बर्बाद कर दिया। इसके बावजूद सिक्खों ने अपने दृढ़संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति से दोबारा इसको बसाया। हालांकि अमृतसर में समय के साथ काफी बदलाव आए हैं लेकिन आज भी अमृसतर की गरिमा बरकरार है। लेकिन इसमें कोई दो मत नहीं कि स्वर्ण मंदिर की इस धरती को अभी नशे के खिलाफ एक लड़ाई और लड़नी है। चुनाव का मौका है, सोच-समझकर सांसद को चुनें। जो इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठा सके। उसी राष्ट्रीय नेता को चुनिए जिसकी पार्टी की सरकार केंद्र में हो, तभी केंद्र और संबंधित लोकसभा क्षेत्र का सांसद मिलकर पूरे पंजाब को इस गर्त से बाहर खींच सकता है।
अमृतसर के पास मकबूलपुरा में नशे के ओवरडोज के कारण कई युवा लोगों की मौत हो चुकी है। इस गांव को विधवाओं के गांव के नाम से जाना जाता है।