“कश्मीर” न भूलने वाला एक प्रसंग…

मैने  (16.6.1972  से  6.7.1972)  21 दिन का पहलगाम (कश्मीर) में एनसीसी  के अंतर्गत एक कैम्प “एडवांस लीडरशिप कोर्स” (Advance Leadership Course) किया था। उस समय पहलगाम की पहाड़ियों के बाहर सड़क के साथ समतल क्षेत्र पर हमारे टेंट लगे हुए थे।  सड़क के दूसरी ओर ऊंची पहाड़ियों से आने वाली पानी के तेज प्रवाह से  बहती हुई एक नदी थी जिसमें पत्थर की चट्टानें भी थी। वास्तव में उस समय वहाँ की वादियों का मनोरम दृश्य व वातावरण आज भी सुखद अनुभूति देता है।
हमारे उस समय कैम्प कमांडेंट लेफ्टिनेंट कर्नल  (प्रमाण पत्र पर शुभनाम धूमिल हो गया हैं) थे। एक अनुशासित व सख्त अधिकारी होने के कारण लेफ्टिनेंट कर्नल सरदार… हम सभी कैडेट्स के साथ पितातुल्य व मित्रवत भी रहें।
उनका एक सख्त आदेश था कि सायं 6 बजे बाद जब अंधेरा होने लगता है तो कोई भी दरिया (नदी) के साथ जाने वाली सड़क पर न जाये.. मुझसे पूछें बिना न रहा गया… 
उन्होंने बताया कि “अंधेरे का अनुचित लाभ उठा कर वहां के अराजक तत्व/धर्मान्ध हम लोगों पर आक्रमण करके लूट कर मार कर दरिया में बहा देते हैं।”उस विद्यार्थी काल में भी मुझे यह सुन कर अत्यंत दुख हुआ कि मानव मानव का ही शत्रु क्यों है ? यह कैसा धर्म है जो अन्य धर्मावलंबियों पर इतना अधिक क्रूर है?  जब तक मैने इतिहास केवल जूनियर हाई स्कूल में ही पढ़ा था, इसलिए अधिक ज्ञान नहीं था। जबकि एन.सी.सी. का एक अनुशासित व समर्पित कैडेट (अंडर ऑफिसर) होने के कारण देश की एकता व अखण्डता के लिये सब कुछ न्यौछावर करने का जज्बा मेरे युवा मन-मस्तिष्क को कुछ कर जाने के लिए निरतंर प्रेरित करता रहता था। आज भी मेरा वहीं देश प्रेम परंतु “सांस्कृतिक राष्ट्रवाद” की ऱक्षार्थ सतत् सक्रिय रहता है।
लगभग 33 वर्ष बाद इसी को आधार मान कर मैंने अपने साथियों सहित गाज़ियाबाद के हिंडन नदी के साथ बन रहे हज हाऊस का आरम्भ (2005) में ही भरसक विरोध करवाया था। परंतु सफल न हो सका।
आज भी जब कभी ऐसी स्थिति कहीं बनती है तो मुझे यह प्रसंग सतर्क कर देता है।

विनोद कुमार सर्वोदय
(राष्ट्र्वादी चिंतक व लेखक)
गाज़ियाबाद

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