फरिश्ता है डा.अवस्थी: यह फर्टिलाइजर मैन

श्याम सुंदर भाटिया

वह मुस्कराते हैं तो मानो देश के करोड़ों धरती-पुत्रों के चेहरे चमक रहे हैं। रातों को उनके ख्वाबों में हरियाली-हरियाली ही नजर आती है। अल सुबह वह उठते हैं तो आँखों में खेतों की ओर कूच करते किसान नजर आते हैं। साँसों में खेतों की माटी और फसलों की खुशबू आती है तो बात-बात में खेत-खलिहान, हल, बैल, ट्रैक्टर, फसल, खाद, पैदावार, कैसे हों और उन्नत देश के काश्तकार, कैसे हो कर्ज मुक्त इनकी आय दुगुनी सरीखे सवाल और जवाब का मिश्रण होता है। देश का कोई ऐसा सूबा नहीं बचा, जहाँ उनके कदम न पड़े हों। हिंदुस्तान के करोड़ो-करोड़ धरती-पुत्रों ने फरिश्ते के तौर पर जानते और मानते हैं किसानों को मालूम है, उनके हर दर्द की दवा वही ही हैं। जी हाँ, हम इण्डियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआॅपरेटिव यानि इफ्को के प्रमुख डा. उदय शंकर अवस्थी की ही बात कर रहे हैं। उन्नत किसान-सुदृढ़ भारत के लक्ष्य को समर्पित डा. अवस्ती 27 वर्षों से इफ्को के मुखिया हैं। इन्होनें अपने जोश, जुनून और संकल्प के बूते इफ्को को दुनिया की सबसे बड़ी फर्टिलाइजर कोआॅपरेटिव बनाकर काॅरपोरेट सेक्टर की बड़ी-बड़ी कम्पनियों के समकक्ष लाकर खड़ा कर दिया। इफ्को फर्श से अर्श तक पहुँचा दिया। इफ्को से 40 हजार से अधिक कोआॅपरेटिव सोसाइटी और देश के साढ़े पाँच करोड़ काश्तकार जुड़े हैं। इफ्को दुनिया की ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की सर्वश्रेष्ठ कोआॅपरेटिव सोसाइटीज में शामिल होती हैं।
यूपी के छोटे से गाँव में 12 जुलाई, 1945 को स्वतंत्रता सेनानी के परिवार में जन्में दूरदर्शी इस टेक्नोक्रेट को 2006 में धाऱवाड़ कृषि विश्वविद्यालय ने पीएचडी से सम्मानित किया। ग्रीनटेक सेफ्टी अवाॅर्ड, बेस्ट सीईओ अवाॅर्ड, डेविडसन फ्रेम अवाॅर्ड जैसे दर्जनों विश्व प्रसिद्ध पुरस्कारों और सम्मानों से उन्हें अब तक नवाजा जा चुका है। कृषि जगत में विशिष्ट पहचान रखने वाले फर्टिलाइजर मैन के नाम से मशहूर डा.यूएस अवस्थी फेम इण्डिया पत्रिका-एशिया पोस्ट सर्वे के 50 प्रभावशाली व्यक्ति-2020 की सूची में 40वें स्थान पर हैं। सुयोग्य इस नौकरशाह का पदम्श्री पर हक बनता है। यदि इस नागरिक सम्मान में कोई रूकावट है तो सरकार को उसे दूर करना चाहिए। सच यह है, इस फर्टिलाइजर मैन को पदम्श्री बहुत पहले ही मिल जाना चाहिए था, लेकिन देर आयद-दुरूस्त आयद… सरकार को उन्हें अब पदम्श्री से विभूषित कर देना चाहिए।
फर्टिलाइजर मैन वैसे तो शुरूआत से ही भावनात्मक होने के साथ-साथ मेधावी भी थे परन्तु बीएचयू के परिवेश ने उन्हें एक दूरदर्शी टेक्नोक्रेट बनने में मदद की। इफ्को प्रमुख ने 1966 में बीएचयू से इंजीनियरिंग की पढ़ाई मुकम्मल की। इस दौरान देश चीन के साथ युद्ध भीषण आकाल के दौर से गुजर रहा था। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री ने देश की जनता से जय जवान-जय किसान नारा बुलंद करने की अपील की। हिंदुस्तान के हालात अच्छे नहीं थे। देश हर मोर्चे पर संघर्ष कर रहा था। इस माहौल का श्री उदय शंकर अवस्थी की सोच पर गहरा प्रभाव पड़ा। श्री अवस्थी ने बतौर छात्र यह शिद्दत से महसूस किया, उन्नत काश्तकार ही सशक्त देश की नींव बन सकता है। उन्होनें देश के लिए एक बड़े बदलाव के वाहक बनने का सपना देखा।
कैमिकल इंजीनियरिंग के बाद वह फर्टिलाइजर इण्डस्ट्री में आ गए। यहीं से उनके सपनों को पंख मिले। श्रीराम फर्टिलाइजर ने पांच वर्ष की सेवाओं के दौरान उन्होंने मैनेजमेंट और टैक्नोलाॅजी के समन्वय की बारीकियों को सीखा। 1971-76 तक पांच साल बिड़ला गु्रप में रहे। गोवा में पोस्टिंग के दौरान विश्वविद्यालय में छात्रों को पढ़ाने भी लगे। डा. अवस्थी की पहचान प्रोफेसर के तौर पर भी हो गयी। 1976 में इफ्को के फाउंडर मैनेजिंग डायरेक्टर पाॅल पाटन के साथ काम करने का मौका मिला। वह 10 वर्षों तक इफ्को के विभिन्न प्रोजेक्ट्स से जुड़े रहे। इस लम्बी अवधी में उन्होनें कोआॅपरेटिव की ताकत और भविष्य की संभावनाओं को परखा और समझा। इस बीच डा. अवस्थी की पहचान यूथ एक्टिव टेक्नोक्रेट के साथ-साथ सुलझे हुए इंटरप्रेन्योर की भी हो गई। नतीजन मात्र 41 वर्ष की आयु ने 1986 में पीपीसीएल के सीईओ बन गए। भारत के किसी भी कोरपोरेट हाउस ने इससे पहले किसी को अपना सीईओ नहीं बनाया था। 1993 में डा. अवस्थी को इफ्को से बुलावा आया तो मानो मुँह मांगी मुराद पूरी हो गई है। हालाॅकि इफ्को का आॅफर मौजूदा पगार से कम था। बावजूद इसके उन्होनें हां कर दी और इफ्को के सीईओ और मैनेजिंग डायरेक्टर बना दिए गए। इफ्को के मुखिया के तौर पर ढ़ेर सारी चुनौतियाँ सामने रहीं। एक ओर मैनेजमेंट और कोआॅपरेटिव सोसाइटी के बीच की दूरी मिटानी थी तो दूसरी ओर कर्ज देने वाले बैंकों की दखल अंदाजी भी खत्म करनी थी। नई टेक्नोलाॅजी लाने और प्लांट की कैपेसिटी बढ़ाने की अलग चुनौती थी। इन्होनें इन चुनौतियों को अवसरों में बदल दिया। एक प्रोफेशनल्स मजबूत टीम तैयार की। कोआॅपरेटिव सोसाइटी और धरती पुत्रों को साथ जोड़ने के लिए देशभर में लम्बी-लम्बी यात्राएं कीं। इफ्को के आधुनिकीकरण के साथ विजन 2000 का श्रीगणेश हुआ। इफ्को के चार प्लांटों की प्रोडक्शन क्षमता बढ़ाई गई। सभी प्लांटों में एडवांस टैक्नोलाॅजी पर जोर दिया ताकि वे एनर्जी सेविंग के साथ-साथ काॅस्ट इफेक्टिव भी बनें। हर मोर्चे पर डा.अवस्थी को सफलता मिलती चली गई और लोग जुड़ते चले गए। टर्न ओवर हो या नेटवर्थ या फिर नेशनल और इंटरनेशनल ज्वांइट वेंचर की बात-इफ्को ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
फर्टिलाइजर मैन मानते हैं, शहरों और गाँवों में रहने वाले लोगों के बीच एक खाई है, जिसे डिजिटल क्रांति के जरिए भरा जा सकता है। अगर गाँव के किसान और नौजवान स्मार्ट फोन के जरिए दुनिया से जोड़ दिए जाएं तो वे सिर्फ खेत नहीं बल्कि खेतों के बाहर भी अपने जीवन स्तर को सुधारने में बड़ी छलांग लगा सकते हैं। डा. अवस्थी का शुरू से ही मानना रहा है, इफ्को का झंडा ऊंचा रहे क्योंकि इस देश के किसानों का झंडा ऊंचा है, देश में सहकारिता का झंडा ऊंचा है। वह कहते हैं, लोग उन्हें जब बताते हैं कि इफ्को तो बहुत बड़ा ब्रांड है। देश की सबसे बड़ी सोसाइटी है, यह सुनकर सुकून मिलता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here