जंबों की नई उड़ान

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Anil_Kumbleकरीब दो दशकों तक विपक्षी बल्लेबाजों को अपनी गेदों पर नचाते वाले अनिल कुंबले को भारतीय क्रिकेट टीम का नया कोच बनाया गया है। भारत के सबसे कामयाब और टेस्ट क्रिकेट में सर्वाधिक विकेट लेने वाले तीसरे गेंदबाज अनिल कुंबले के कंधों पर भारतीय क्रिकेट को एक नई दिशा में ले जाने की जिम्मेदारी आ गई। बीसीसीआई के मुताबिक कुंबले ही वह काबिल इंसान है जो भारतीय क्रिकेट को ऊंचाईयों पर ले जा सकते है.
साल 1990 में जब अनिल कुंबले ने अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में कदम रखा तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि चश्मा लगाने वाला एक साधारण सा गेंदबाज जिम लेकर के बाद टेस्ट क्रिकेट की एक पारी में 10 विकेट लेने का विश्व रिकार्ड अपने नाम कर लेगा। शायद कुंबले भी खुद इस बात से अनजान होंगे कि वो भारत के सबसे कामयाब अंतराष्ट्रीय गेंदबाज बनेंगे। यूं तो अनिल कुंबले ने टीम में एक आल राउंडर के तौर पर शुरुआत की थी। लेकिन देखते देखते ही कुंबले ने एक गेंदबाज के तौर पर खुद को भारतीय टीम में स्थापित कर दिया।
अनिल कुंबले ने भारत के लिए 132 टेस्ट मैच खेलकर 619 विकेट हासिल किए जबकि वनडे 271 में उन्होंने 337 विकेट भी झटके । उनका वेस्टइंडीज के खिलाफ 12 रन देकर 6 विकेट लेने का भारतीय रिकार्ड करीब 21 सालों तक रहा।
क्रिकेट के प्रति उनकी प्रतिबद्धता की एक झलक दुनिया ने 14 साल पहले तब देखी थी, जब एंटिगा में टूटे हुए जबड़े के साथ वे गेंदबाज़ी करने उतरे थे. उन्होंने न केवल 14 ओवर की लगातार गेंदबाज़ी की बल्कि ब्रायन लारा को पवेलियन भी भेजा.
दरअसल, इस टेस्ट में मर्व ढिल्लन की गेंद कुंबले के जबड़े पर लगी थी और उसके बाद भी वे 20 मिनट तक बल्लेबाज़ी करते रहे. बाद में जबड़े में बैंडेज लगाकर गेंदबाज़ी की. वे चाहते तो पवेलियन में बैठ सकते थे. लेकिन उन्हें ये मंजूर नहीं था.
कुंबले के इस समर्पण की पूरे क्रिकेट जगत में प्रंशसा हुई थी। मैदान से बाहर आने के कुछ ही घंटे बाद उन्हें बंगलौर की उड़ान पकड़नी पड़ी, जबड़े की सर्जरी के लिए. लेकिन उनकी प्रतिबद्धता को देखकर विवियन रिचर्ड्स ने तब कहा था, खेल के मैदान पर इससे ज़्यादा बहादुरी की मिसाल मैंने नहीं देखी.
पाकिस्तान के खिलाफ दिल्ली टेस्ट में एक पारी में 10 विकेट लेने पर कुंबले ने हमेशा के लिए अपने आप को क्रिकेट की किताब के सुनहरों पन्नों में दर्ज करा लिया।
कुंबले एक मात्र ऐसे गेंदबाज है जिन्हें टेस्ट क्रिकेट में 500 विकेट लेने के अलावा शतक लगाने का सौभाग्य भी प्राप्त है। वैसे कुंबले का निक नेम जंबो है. एक स्पिन गेंदबाज़ के तौर पर जंबो जेट जैसी तेजी वाली गेंद फेंकने के चलते उनका नाम जंबो नहीं पड़ा था, बल्कि अपने लंबे पैरों की वजह से कुंबले अपने साथियों के बीच जंबो नाम से मशहूर हैं. अब उनपर एक जंबो जिम्मेदारी है.
ये भी एक संयोग था कि जिस कमेंटटर की कमेंट्री पर अनिल कुंबले विकेट लेते थे कोच बनने के लिए उनका मुकाबला भी उन्हीं से था। हालांकि कुंबले के बारे में कहा जाता था कि वो एक विशुद्ध रुप से एक स्पिन गेंदबाज नहीं है। क्योंकि उनकी गेंदों की गति सामान्य स्पिन गेंदबाजों के मुकाबले थोड़ी तेज होती थी। लेकिन कुंबले ने बिना आलोचना की परवाह किए अपने प्रदर्शन पर ध्यान दिया। तेजी से अंदर आती लेग ब्रेक गुगली तो कुंबले का हथियार बन चुकी थी जिसके सहारे वो बड़े से बड़े बल्लेबाज का आसानी से शिकार कर लिया कर लेते थे।
करियर के अंतिम पड़ाव में कुंबले भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी करने का मौका मिला। लेकिन साल 2008 में जैसे ही कुंबले ने आस्ट्रेलिया के खिलाफ आखिरी टेस्ट खेलकर अपने 18 साल के क्रिकेट करियर पर विराम लगाया तो हर किसी ने उठकर इस दिग्गज गेंदबाज की सराहना की।
ये उनका क्रिकेट प्रेम ही कि सन्यास लेने के बाद भी वो 2008 में क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद भी उनका जुड़ाव क्रिकेट से बना रहा. 2010 में वे कर्नाटक क्रिकेट संघ के अध्यक्ष बने. जबकि 2012 में इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल की आईसीसी क्रिकेट समिति के चेयरमैन बनाए.
अब जब कुंबले पर टीम की नई भूमिका की जिम्मेदारी है तो ऐसे में उनसे उम्मीद की जानी चाहिए की वो भारतीय क्रिकेट को एक सफलता की नई बुलंदियों पर ले जाए।

रवि कुमार छवि

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