अन्ना हजारे का अपहरण हो गया

शादाब जफर शादाब

रविवार को अन्ना हजारे ने एक बार फिर से महात्मा गांधी की समाधि राजघाट पर पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद जंतर मंतर से लोकपाल के हक मैं और काँग्रेस और सरकार के विरोध में हुंकार भरी। पर मुझे न जाने क्यो अब ऐसा लगने लगा है कि न तो अब वो पहले वाला अन्ना है और न उस की वाणी में वो तेज। मुझे ऐसा लग रहा है कि मानो असली अन्ना हजारे का अपहरण कर कुछ राजनेताओ ने राजनीतिक भाषा बोलने वाला, राजनेताओ से प्रेम करने वाला अन्ना हजारे का हम शक्ल ढूढ कर जंतर मंतर पर लाकर बैठा दिया हो। क्यो कि मैं जिस अन्ना को जानता हॅू वो अन्ना तो इन राजनेताओ और इन राजनीतिक लोगो की परछाई भी अपनी अनशन स्थली पर पड़ने तक नही देता था। जलता था इन देश को लूटने वाले, गरीब जनता का खून चूसने वाले राजनेताओ से। मेरे अन्ना को देश की एक सौ इक्कीस करोड़ जनता पर नाज था ये कौन सा अन्ना है जो देश की जनता को भूल गया, उस के प्यार को भूल गया, उस के विश्वास का कातिल बना, आखिर ये कौन सा अन्ना है। ये अन्ना अब वो अन्ना हजारे नही रहा इस के तरीके गांधीवादी नही रहे। क्यो कि इस से पूर्व जब अप्रैल मैं जंतर मंतर पर अन्ना ने अनशन किया था तब किसी भी दल के राजनेताओ को अनशन स्थल पर चढने नही दिया गया था। यहा तक की अगर कोई राजनेता मंच तक पहॅुचा भी तो जनता और अन्ना ने नारे लगा लगा कर उसे मंच से उतार दिया था। जो अन्ना कल तक आम आदमी की ज़बान बना था अचानक वो क्यो और किस लालच में राजनेताओ की भाषा बोलने लगा है।

आखिर क्यो अन्ना कि सोच मैं अचानक इतना बदलाव आ गया आज ये अन्ना बार बार कहता है कि भ्रष्टाचार से देश को मुक्ति मिलनी चाहिये। लेकिन मेरा मानना है कि देश के साथ साथ क्या अन्ना टीम को भ्रष्टाचारियो से मुक्ति नही मिलनी चाहिये। अन्ना एक बात और कहते है कि भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियो से देश कमजोर हो रहा है। तो क्या टीम अन्ना में मौजूद कुछ भ्रष्टाचार के आरोपो मैं घिरे और जिन लोगो पर भ्रष्टाचार के आरोप सिद्व हो रहे है क्या ऐसे लोगो के टीम अन्ना मैं मौजूद रहते टीम अन्ना, खुद अन्ना हजारे की छवि खराब नही हो रही बल्कि उन्ह काफी नुकसान भी हो रहा है। अन्ना आन्दोलन और अन्ना अनशनो का एक सब से बुरा पहलू जो है वो ये है कि संसद की सर्वोच्चता को किनारे कर जिस प्रकार अन्ना रामलीला मैदान या फिर जंतर मंतर मैं बैठकर जिस प्रकार भारतीय संविधान और संसद का अपमान कर रहे है वो बिल्कुल गलत है क्या देश मैं फैले भ्रष्टाचार की समस्या या लोकपाल बिल यू रामलीला मैदान, जंतरमंतर, गली मोहल्लो, चौहराहो या फिर गांव मैं पंचायत लगा कर हल हो सकता है मैं सुझतर हॅू बिल्कुल नही।

बदलते वक्त के साथ साथ आखिर अन्ना की सोच में परिवर्तन क्यो आया और देश की विभिन्न पार्टियो के राजनेताओ को एक एक कर क्यो अन्ना ने अनशन स्थल पर बुलाकर क्यो अपनी बगल में इन्हे बैठाया शायद इस राजनीति को अन्ना जाने या अब राजनीति खेल रही अन्ना टीम। पर इतना कहना चाहॅूगा कि यदि अन्ना टीम या खुद अन्ना ये सोच रहे है कि बिना राजनीतिक दलो के लोगो को साथ लिये लोकपाल बिल पास नही कराया जा सकता तो ये अन्ना और उस की टीम कि अब तक कि सब से बड़ी भूल होगी। क्यो की इस मुद्दे पर यकीनन देश के राजनेताओ और अन्ना कि सोच मैं बडा अंतर है, अन्ना वास्तव मैं देश से भ्रष्टाचार मिटाना चाहते है जबकि ये राजनेता कांग्रेस को हटाकर खुद देश की गद्दी पाना चाहते है इन का मकसद लोकपाल, भ्रष्टाचार, मंहगाई, आम आदमी का दर्द नही बल्कि इन का असली सिरदर्द, सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस है। कुछ दिन पहले केंन्द्र सरकार ने लोकपाल विधेयक पर देश के सभी राज्यो के मुख्यमंत्रियो और विपक्षी राजनीतिक पार्टियो से इन सवालो पर उन की जब राय जाननी चाही तो भाजपा और बसपा सहित कुछ दलो ने इस मुद्दे को चर्च के दौरान ये कह कर टाल दिया कि जब ये बिल संसद में रखा जायेगा वो तभी अपनी राय दे देगे। देश के तमाम राजनीतिक दल और राजनेता लोकपाल बिल पर साफ साफ राय देने से बच रहे है हिचक रहे है इस से साफ लगता है कि कांग्रेस और कुछ सांसद और देश की राजनैतिक पार्टिया देश में चल निकली भ्रष्टाचार की गंगा को रोकना नही चाहता। क्यो कि हमारे देश में आज एक आम आदमी के चुनाव जीतकर सांसद बनने के कुछ ही दिनो में उस के पास अकूत सम्पत्ती हो जाती है। और वो करोडपति अरबपति बन जाता है। उस के रिश्तेदार भाई बहन सब के सब दौलत से खेलने लगते है ये सब क्या है। आज समाज सेवा का छद्वम आवरण ओढने वाले साम, दाम, दण्ड, भेद की चाण्क्य नीति अपना कर सांसद बनने वाले पैसे के कुछ लालची सांसदो को वतनपरस्त कतई ना समझा जाये। हालाकि रविवार को जंतर मंतर पर धरना स्थल पर पहुँचकर अन्ना ने जब मजबूत लोकपाल की हुंकर भरी तो देश के विभिन्न राजनीतिक दलो ने भी उन के सुर मिलाया किन्तु लोकपाल के मुद्दे पर अनेक बिन्दुओ पर टीम अन्ना और इन राजनीतिक दलो कि सोच मैं बडा अंतर है। भाजपा के अरूण जेटली, वाम के, एबी वर्द्वन, वृंदा करात, जदयू के शरद यादव, और सपा के प्रो. रामगोपाल यादव ने सीबीआई को लोकपाल के दायरे मैं लाने की वकालत की मगर जहॉ बात उच्च न्यायालय की आई तो इन लोगो की राय अन्ना टीम के राय से अलग हो गई और लोकपाल का राग छोड़ इन लोगो ने अलग से जूडीशियल अकाउंटबिलिटी बिल बनाये जाने का नया शोशा छोड दिया। हालाकि इन सभी तेजतर्रार राजनेताओ ने माना कि आज न्यायपालिका भ्रष्टाचार से अछूती नही है न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में लाने के मुद्दे पर इन सब लोगो ने एक सुर से अहसमति जताई।

पिछले चालीस सालो से भ्रष्ट राजनेताओ और भ्रष्ट राजनीति के कारण जो लोकपाल विधेयक कानून का रूप नही ले पाया। अन्ना और उन की टीम ये सोच रही है कि उसे हम चुटकिया बजा कर पास करा लेगे तो ये इन लोगो की भूल है। मुझे वो दिन भी याद है और शायद आप भी अभी नही भूले होगे जब अन्ना ने सच्चे मन से भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन शुरू किया था तब देश के अधिकतर लोगो को ये भी नही पता कि आखिर ये जन लोकपाल बिल क्या है, अन्ना हजारे कौन है, और इन की क्या मांगे है। पर एक बात सभी लोग अच्छी प्रकार से जानते थे वो ये कि ये लडाई देश में कोढ की तरह फैल चुके भ्रष्टाचार के खिलाफ है। निःसंदेह काफी समय बाद ऐसा साफ सुथरा जन आन्दोलन देखने को मिला था। मगर अन्ना ने इस आन्दोलन मैं इन राजनेताओ को शामिल कर जो देश के एक सौ बीस करोड़ लोगो की भावनाओ के साथ खिलवाड किया है उस के बाद कहना ही पड़ेगा अन्ना को थोडी थोडी राजनीति और राजनेतारास रास आने लगे है।

2 COMMENTS

  1. भ्रष्टाचार के आरोपों को दरकिनार नहीं किया जा सकता।”सीजर्स वाइफ” वाली उक्ति को याद रखना mxilहोता है।
    दूसरी बात।अपने आपको किसीका वकील नियुक्त कर लेना भावुक प्रतिबद्धता का द्योतक तो हो सकता है, वस्तुनिष्ठ नहीं

  2. अन्ना और उनके टीम के सदस्यों के ऊपर लगे भ्रष्टाचार केआरोपों में न जाकरमैं केवल यह प्रश्न पूछना चाहता हूँ कि क्या अन्ना और उनकी टीम संसद से पास हुए बिना लोक पाल विधेयक को कानूनी रूप दे सकते हैं ?अब प्रश्न उठता है कि पहले उन्होंने राजनैतिक दलों को साथ लेने से इनकार क्यों किया था?तो इसका सरल उत्तर यह है कि यह जनता का आन्दोलन था और इससे जनता परेशान थी.किसी भी राजनैतिक दल की ऐसी छबि नहीं रह गयी थी,जो जनता के सामने लाये जाएँ ,अतः दोनों फैसले एक तरह से ठीक ही लगते है.कांग्रेस को भी वहां आना चाहिए था,पर वे लोग तो शायद अपने को अलग श्रेणी में गिनते हैं.लोक पाल विधेयक के अंतिम प्रारूप के तैयार करते समय कांग्रेसियों का रवैया स्थिति को और साफ कर देता है.

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