अन्ना हजारे बनाम संघ

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वीरेन्द्र सिंह परिहार

अब जब अन्ना हजारे ने सशक्त लोकपाल को लेकर एक बार फिर से 27 दिसम्बर से अनशन शुरू कर दिया है, और 30 दिसम्बर से उन्होने जेल भरो आन्दोलन की घोषणा की है, उससे एक बार वह फिर सीधे कांग्रेस के निशाने पर आ गए है। एक समाचार पत्र ने अन्ना हजारे की स्व. नाना जी देशमुख के साथ तस्वीर क्या दिखाई कि कांग्रेस पार्टी के लोग यह कहने लगें कि अन्ना हजारे का राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से संबंध है। इसके पूर्व भी सरसंघचालक मोहन भागवत की इस बात को आधार बनाकर कि संघ का सम्पूर्ण समर्थन अन्ना हजारे के आन्दोलन को था। इसे लेकर कांग्रेस ने कुछ ऐसा अभियान छेंड़ा था कि जैसा अन्ना हजारे संघ के इशारे पर ही जन लोकपाल को लेकर ये महा-आन्दोलन चला रहे है।एक समाचार पत्र ने लिखा है कि अन्ना संघ के प्रचारक रहे नाना जी देशमुख के करीबी रह चुके है। समाचार पत्र ने अन्ना की नाना जी देशमुख के साथ फोटो भी छापी है। प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक 28 साल पहले 1983 में ग्राम विकास के क्षेत्र में तमाम स्वैच्छिक संगठनों ने मिलकर ग्राम विश्व संस्था बनाई थी, जिसके अध्यक्ष नाना जी देशमुख और मंत्री अन्ना हजारे थे। यह भी बताया जा रहा है कि अन्ना हजारे तीन दिन इसी तारतम्य में गोड्डा में रूके भी थे।

अब सबसे पहली बात संघ के समर्थन को लेकर देखे जाने की जरूरत है। निश्चित रूप से संघ एक महान, शक्तिशाली, समृद्ध और वैभवशाली भारत का निर्माण करना चाहता है, और उसे यह भी पता है कि इस ध्येय की प्रगति में देश में ऊपर से नीचे तक फैला भ्रष्टाचार सबसे बडी बाधा है, इसलिए संघ चाहता है कि देश में भ्रष्टाचार का जड़-मूल से उन्मूलन हो। अतएव यदि संघ अन्ना हजारे की भ्रष्टाचार-विरोधी मुहिम में साथ खडा है, तो इसमें बुंराई क्या है? क्या संघ-विरोधी एवं अन्ना-विरोधी तत्व यह चाहते है कि संघ उनकी तरह प्रकारान्तर से भ्रष्टाचार का पक्षधर हो? क्या संघ के लोग इस देश के नागरिक नही जो ज्वलंत राष्ट्रीय मुद्दों पर अपना मत दे सके? अब इस देश में कुछ लोगों का कहना है कि चूकि अन्ना के आन्दोलन को संघ का समर्थन है, इसलिए अन्ना संघ के इशारे पर सब कुछ कर रहे है। उनका तो यहा तक कहना है कि अन्ना हजारे की संघ से कोई संाठ-गांठ है। अब इन तत्वों को यह पता नही कि सांठ-गांठ किसी गर्हित उद्देश्य के लिए की जाती है, और संघ तथा अन्ना हजारे दोनों का उद्देश्य एकमेव समृद्ध भारत बनाना है, और ऐसा भ्रष्टाचार-मुक्त भारत बनाकर ही होंगा। असलियत यह है कि जब ये तत्व अन्ना हजारे के विरूद्ध कुछ भी नही ढूढ़ पाए तो अब संघ के सांठ-गांठ का आरोप लगा रहे है। इस संबंध में ताजा उदाहरण नाना जी देशमुख के साथ संबंधो के लेकर बताया जा रहा है। इसी को लेकर केन्द्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने अन्ना हजारे को संघ का एजेन्ट बता दिया है। अब बेनी प्रसाद वर्मा एवं दिग्विजय जैसे लोगो को यह पता नही कि संघ की सोच एवं कार्यपद्धति में किसी को एजेन्ट बनाने की दूर-दूर तक कोई गुंजाइश नही है। वह तो किसी भी किस्म की व्यक्तिवादी सोच के ही विरूद्ध है, और उसका पूरा अधिष्ठान ही राष्ट्रवाद के आधार पर खड़ा है। इसी तरह से अन्ना हजारे जैसे लोग किसी के एजेन्ट होगें, यह राष्ट्र सोच ही नही सकता। देश के लोग पूरी तरह आश्वस्त है, कि अन्ना हजारे इस देश के अरबों लोगों के बेहतर भविष्य के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाने को तैयार है। सच्चाई यह है कि भ्रष्टाचार के दलदल में ही सिर्फ डूबी ही नही, बल्कि भ्रष्टाचार के दर्शन के साथ खड़ी कांग्रेस को कुतर्क और झूठ बोलने के सिवा और कोई रास्ता ही नही दिख रहा है, तभी तो यह साबित होने के बाबजूद कि सेना से अन्ना को कई मैडल मिले थे, इसके बाबजूद उन्हे बेनी प्रसाद वर्मा जैसे लोग फिर से सेना का भगोड़ा बता रहे है। वस्तुतः वर्तमान दौर में कांग्रेस पार्टी का रवैया कुछ ऐसा हो गया है कि वह और भ्रष्टाचार एक-दूसरे के पर्यायवाची हो गए हैं। तभी तो वह ऐसा लोकपाल ला रही है कि प्रस्तावित लोकपाल स्वतः तो संज्ञान ले नही सकता और यदि कोई किसी भ्रष्टाचारी के खिलाफ शिकायत करेगा तो उसके विरूद्ध संबंधित अधिकारी को शिकायत करने के दिन से ही न्यायालय में प्रकरण प्रस्तुत करने के लिए विधिक सहायता मिल सकेगी। मतबल स्पष्ट है कि यह बिल भ्रष्टाचार दूर करने के लिए नही, बल्कि उसके संरक्षण के लिए लाया जा रहा है।

अब रहा सवाल अन्ना हजारे के नाना जी देशमुख के साथ संबंधों का। अब यह कौन नही जानता कि नाना जी 1980 से ही सक्रिय राजनीति से सन्यास लेकर ग्राम-विकास की अवधारणा को लेकर उस कार्य में जुट गए थे। अन्ना हजारे भी अपने गॉव रालेगण सिद्धी के चहुमुखी विकास के लिए सन्नध थे। इसलिए यदि वह नाना जी के संपर्क में आकर ग्राम-विकास के लिए उनसे कुछ सीखा तो यह अपराध कैसे हो गया? वैसे यह भी सच है कि नाना जी संघ के प्रतिनिधि की हैसियत से भी यह कार्य नही कर रहे थे, हॉ उनमें संघ के चरित्र-निर्माण एवं राष्ट्र-भक्ति के संस्कार जरूर थे। इसलिए ऐसा हंगामा करने का कोई अर्थ नही कि अन्ना की संघ से कोई दुराभिसंधि थे। वैसे यदि संघ से भी अन्ना कुछ सीखते तो उसका स्वागत ही किया जाना चाहिए था। अब जब दिग्विजय सिंह का तस्वीर नाना जी के साथ आती हे, तो दिग्विजय सिंह सफाई में कहते है कि नाना जी राजनीति से अलग हो चुके थे, और ग्राम विकास के कार्य में जुटे थे।ऐसी स्थिति में अन्ना के नाना जी से 1983 के संबंधो को लेकर इसे शैतानी कार्य की तरह प्रचारित करना क्या यह फासिस्टी मनोवृत्ति नही है कि किसी झूठ को सौ बार दुहराने से लोग उसे सच मानेने लगेगें। लोगों को याद होगा कि 1974-75 में जयप्रकाश नारायण के विरूद्ध भी ऐसा प्रचारित किया गया था जिसे देश ने नकार दिया था। वर्तमान में अन्ना हजारे का संघ से संबंध को लेकर दुष्प्रचार का आशय सिर्फ इतना है कि मुस्मिलों को इस आन्दोलन से अलग-थलग किया जा सके। पिछड़ें वर्ग के कोटे से उन्हे 4.5 प्रतिशत का आरक्षण और लोकपाल में भी आरक्षण का प्रावधान इसी अभियान का हिस्सा है। फिर सबसे बडी बात यह कि किसी के संबंधों को लेकर एक सशक्त लोकपाल बनाने के मार्ग में कौन सी बांधा है। निःसन्देह यह लोकपाल को पटरी से उतारने का कांग्रेस और उसके सहयोगियों का आरंभ से लेकर अब तक का निकृष्ट प्रयास ही कहा जा सकता है। अब जहां तक इस बात का सवाल है कि अन्ना भाजपा और संघ के इशारे पर राजनीति कर कांग्रेस को निशाना बना रहे है, वहा पर कांग्रेस सशक्त लोकपाल न लाकर स्वतः इसके लिए जिम्मेदार है। फिर अन्ना कोई राजनीति भी कर रहे है, तो वह संघ की तरह सत्ता की न होकर राष्ट्र के लिए है।

5 COMMENTS

  1. संघियों के साथ फोटो खिंचवाने मात्र से कोई भी व्यक्ति अछूत हो जाये, इससे घृणित और निन्दनीय कोई बात नहीं हो सकती| हालांकि यह सत्य है कि अन्ना संघ की विचारधारा के पोषक हैं| संघ की विचारधारा को मानने या नहीं मानने का भी हर एक को उतना ही अधिकार है, जितना कि अन्ना जी को, लेकिन दुखद यह है कि अन्ना की ओर से इस बात को बार-बार झुठलाने का असफल प्रयास किया जा रहा है| मैं समझता हूँ कि इसी कारण से यह विषय विवाद या चर्चा का कारण बना है|
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
    सम्पादक-प्रेसपालिका (पाक्षिक), जयपुर
    ०१४१-२२२२२२५, ९८२८५-०२६६६

  2. गिरिधर जी
    (१)
    आरोप कोई प्रमाण नहीं माना जाता|
    (२)
    मैं यदि आरोप करूँ, कि “आप किराए के लेखक हैं”, तो क्या आप यह विधान स्वीकार कर लेंगे?
    नहीं ना?

  3. चतुराई पूर्ण भाषा से अन्ना के संघ के कथित संबंधें को छिपाया नहीं जा सकता, हालत ये है कि अन्ना कथित रूप से संघ के करीब होते हुए भी उससे अपने आपको दूर रखने की कोशिश कर रहे हैं, क्याकिं संघ पर सांप्रदायिकता का आरोप है

  4. नानाजी इस देश के अकेले राजनेता थे जो अनिच्छा से चुनाव में उतारे थे क्योंकि १९७७ में पोने दो साल की इमरजेंसी के दौरान जेल से मुक्ति पाकर समाज सेवा के लिए बाहर आना जरूरी था. जीतने के बाद प्रधान मंत्री मुरारजी देसाई ने उनसे मंत्री पद लेने का आग्रह था जिसे उन्होंने विनम्रता पूर्वक अस्वीकार कर दिया था. साठ वर्ष की आयु होते ही उन्होंने सक्रिय राजनीती से सन्यास लेकर समाज सेवा का बीड़ा उठाया. देश के सबसे पिछड़े जिलों में से एक गोंडा को उन्होंने अपनाया और वहां समग्र ग्रामीण विकास का कार्यक्रम शुरू किया. प्रयोग के तौर पर लोहे के पाईप के स्थान पर बांस के खोखले पाईप को नलकूपों में लगाया जिससे लागत में भरी कमी आई. तत्कालीन राष्ट्रपति श्री नीलम संजीव रेड्डी ने समग्र ग्रामीण विकास का कार्यक्रम शुरू किया. नानाजी ने ग्रामीण विकास को गति देने के लिए चित्रकूट में विश्वविद्यालय की स्थापना की. और मृत्यु के उपरांत शरीर का दाहकर्म न कराकर देह दान कर दिया. ये अपने आप में अकेला उदाहरण है जब सार्वजनिक छेत्र में काम कर रहे किसी व्यक्ति ने मरने के बाद अपने देह को भी विद्यार्थियों के अध्ययन हेतु दान कर दिया. कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गाँधी(एड्विगे अन्तोनिया मायिनो) फासिस्ट पिता स्टीफेन मायिनो केइ बेटी हैं और फासिस्ट होने का गुण उन्हें डी एन ऐ में मिला है.अतः उनके अनुयायियों का फासिस्ट आचरण कोई आश्चर्य की बात नहीं है. १९६३ में नेहरूजी के बुलाने पर संघ के लोगों ने २६ जनवरी को गणतंत्र दिवस की परेड में हिस्सा लिया था तो क्या नेहरु भी संघ के एजेंट माने जायेंगे?१९७८ में मोर्वी में भूकंप के बाद संघ के लोगों ने बिना भेद भाव के सभी को( हिन्दू और मुसलमानोंको) सहायता की. जिसका उल्लेख प्रशंशा के साठ इंदिरा गांधीजी ने भी किया तो क्या वो भी संघ की एजेंट बन गयी?उदाहरण अनेकों हैं. संघ ही है जिसको देखकर देश के भविष्य के प्रति आशा बलवती होती है. पूरी दुनिया में भारत को कैसे लाभ मिले इसका चिंतन दुनिया भर में फैले संघ के स्वयंसेवक सदैव करते हैं.

  5. दिग्गी , बेनी परसाद, सिंघवी, तिवारी, राहुल बाबा, उसकी मम्मी, चिदम्बरम, सिब्बल, मनमोहन ये सारे संघ में गए होते, तो आज लोकपाल विधेयक के लिए आन्दोलन करने की आवश्यकता ही ना होती|

    अन्ना और नाना, ही क्यों —सभीको संघका एजंट होना चाहिए| यह नहीं हुआ इसी लिए समस्याएँ है|

    संघमें जाने वाले एन आर आय मैं जानता हूँ| इनके कारण ही नुझे भारत के भविष्य के बारे में विश्वास है|
    जय प्रकाश जी को सुसंगठित विस्तृत जाल इन्हीं ने दिया था|
    विभाजन के समय ५०० से अधिक प्राणों की आहुति देकर सभी शरणार्थीयों को सुरक्षित यही लाए थे|
    ज़रा “आर एस एस ए विज़न इन एक्शन ” पढ़िए आप का दृष्टी कोण बदल जाएगा|
    घोर कम्युनिस्टों को बदलते देखा है|
    भाग्य है भारतका की उसकी सेवामें संघ है|

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