अन्ना बचना इन विभीषणों से

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हिमकर श्याम

भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के संघर्ष का मुद्दा अब अन्ना या अन्ना की टीम का मुद्दा नहीं रहा। यह ऐसा मुद्दा बन गया है जिससे करोड़ों लोगों की उम्मीदें जुड़ी हुई हैं। इसकी सफलता और असफलता से पूरे देश का भाग्य जुड़ गया है। यह जीत अधूरी है, मुकम्मल जीत अभी बाकी है। आगे की राह आसान नहीं है। इस राह में कई रूकावटें और अड़चनें आएंगी। अन्ना को बाहरी खतरों के साथ-साथ भीतरी खतरों से भी जूझना होगा। उन विभीषणों से भी जूझना होगा, जो जाने-अनजाने इस संघर्ष का हिस्सा हैं और जिनसे इस आंदोलन को नुकसान पहुंच सकता हैं।

अन्ना ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाकर देश की सर्वोच्च संस्था को आम नागरिकों से जुड़े मुद्दों पर बहस के लिए बाध्य किया है। देश के संसदीय इतिहास की यह पहली घटना है जब सर्वशक्तिशाली संसद, जनसंसद के आगे झुकती दिखायी दी। इसे एक बड़ी कामयाबी के रूप में देखा जा सकता है। यह हर हिन्दुस्तानी के लिए सर ऊंचा करने का समय है। पूरा देश इस कामयाबी के जश्न में डूबा हुआ है। इस जश्न के बीच आंदोलन से जुड़े कुछ स्याह पक्ष भी सामने आये हैं जो कई शंकाओं को जन्म देने लगे हैं। अन्ना के प्रमुख सहयोगी स्वामी अग्निवेश का वह चेहरा जनता के सामने आया है जो आंदोलन के भविष्य और इसकी सफलता पर सवालिया निशान लगाता है। कई मौकों पर अन्ना टीम के मतभेद सामने आते रहे हैं। इसके पूर्व टीम अन्ना की सदस्य और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की सदस्य अरूणा राय पर कांग्रेस के इशारे पर काम करने के आरोप लगे थे। अरूणा राय टीम अन्ना से अलग होकर एक नया लोकपाल बिल यह कह कर सरकार के सामने रखा था कि अन्ना का बिल अव्यावहारिक, अलोकतांत्रिक और दोषपूर्ण है। उम्मीदों के बीच यह शंका होने लगी है कि पता नहीं और कितने लोग विभीषण के रूप में अन्ना की टीम में शामिल हैं। ऐसे विभीषण आंदोलन को नुकसान पहुंचा सकते हैं। अवसरवादियों और महत्त्वाकांक्षियों की पहचान मुश्किल है। सरकार के हाथों की कठपुतली बन चुके लोगों से निपटना अन्ना के लिए एक बड़ी चुनौती है।

अन्ना की ताकत उनकी सादगी, सच्चाई और ईमानदारी है। अन्ना की विश्वसनीयता पर संदेह नहीं किया जा सकता है लेकिन उनके साथ जो लोग जुड़े हैं वह भी उनकी तरह ही होंगे इसकी अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। जब कोई क्रांति शुरू होती है तो उसे तोड़ने की साजिशें भी साथ-साथ शुरू हो जाती हैं। ऐसी साजिशें वे लोग करते हैं जिन्हें इस क्रांति से खतरे का अंदेशा होता है। अन्ना के पास जनसमूह की एकता की ताकत है तो राजसत्ता के पास उसे तोड़ने की शक्ति है। नियमों और धाराओं की दुहाई से जब बात नहीं बनेगी तो टीम अन्ना की एकता को तोड़ने का प्रयास किया जाएगा। आज जब समाज से नैतिकता विलीन होती जा रही है तब भय, प्रलोभन और स्वार्थ के जाल में किसी को फांसना बेहद आसान है। ईमानदारी औन नैतिकता का अपना महत्व है। जो लोग इस आंदोलन से जुड़े हैं वे आंदोलन को तोड़नेवाले के बहकावे में न आकर अन्ना का हाथ मजबूत करें तभी यह आंदोलन अपने कारगर मुकाम तक पहुंच पाएगा।

अन्ना ने रामलीला मैदान से ही अगले आंदोलन का ऐलान किया कि उनका लक्ष्य पूरी व्यवस्था में बदलाव लाना है, जनलोकपाल बिल इसकी शुरूआत भर है। बदलाव की इस लड़ाई में अगला कदम चुनाव सुधार का होगा। इसके तहत राइट टू रिकॉल (सांसदों और विधायकों को वापस बुलाने का अधिकार) और राइट टू रिजेक्ट (नापसंदगी का अधिकार) जैसे मुद्दे उठाये जाएंगे। इन्हें कानूनी स्वरूप दिलाया जाएगा। लोकतंत्र में जनता सर्वोपरी है। राईट टू रिकॉल के बिना भ्रष्टाचार मिटाना संभव नहीं है क्योंकि देश की जनता का यदि नेताओं पर कोई नियंत्रण नहीं हो तो नेताओं के भ्रष्ट और निरंकुश हो जाने की संभावना बनी रहती है।

लोकपाल की तरह ही चुनाव सुधार लंबे समय से लटका हुआ मुद्दा है। अन्ना ने इस मुद्दे को हवा देकर राजनीतिक पार्टियों के लिए नयी मुसीबत खड़ी कर दी है। जनता को अपने इच्छानुसार जनप्रतिनिधि चुनने का अधिकार मिला हुआ है। जनप्रतिनिधि चाहे वह विधायक हों या सांसद, जनता की ओर से शासन पर निगरानी रखते हैं। जनकल्याण और विकास के लिए जनप्रतिनिधियों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है लेकिन भारतीय लोकतंत्र की विसंगति है कि यहां जनप्रतिनिधि अपने दायित्वों के प्रति जवाबदेह नहीं हैं। राइट टू रिकाल के तहत मतदाता अपने चुने हुए पंचायत सदस्य, विधायक व सांसद को वापस बुलाने का अधिकार प्राप्त कर सकेगा। इससे विकास कार्यों में भी पारदर्शिता आएगी।

लोगों के पास आज बेहतर विकल्प का अभाव है। चुनाव प्रक्रिया में सुधार के बाद ही जनता को सांपनाथ की जगह नागनाथ को बिठाने की मजबूरी से मुक्ति मिलेगी। सांसद और विधायक अपने क्षेत्र के प्रतिनिधि होते हैं। उन्हें क्षेत्र की विशिष्ट आवश्यकताओं की जानकारी होती है। जनप्रतिनिधियों से यह अपेक्षा की जाती है कि जनता की आवाज वह सदन में उठाएं, लेकिन ऐसा नहीं होता। हमारे जनप्रतिनिधि जनहित के अपेक्षा अपने व्यक्तिगत हितों को ध्यान में रखकर नीति निर्धारण करते हैं। जनप्रतिनिधियों की सार्थकता तभी प्रमाणित होती हैं, जब वह जनसेवा को अपना लक्ष्य बनाएं। अन्ना ने देश में ऐसी क्रांति ला दी है जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी।

व्यवस्था के प्रति लोगों का यकीन लगातार कम हुआ है। राजनीतिक बिसात पर वे लगातार खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। बिना व्यवस्था परिवर्तन के इस आंदोलन का मकसद पूरा नहीं हो सकता है। हर कोई चाहता है कि अन्ना का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन देश की राजनीति और समाज में बड़े बदलाव का कारक बने। अन्ना के सामने कई चुनौतियां हैं। उन चुनौतियों की गंभीरता को समझने की जरूरत है। जहां ढील आएगी, वहीं खतरा होगा। सफलता का नशा अक्सर व्यक्ति के चाल और चरित्र को प्रभावित कर देता है, इससे बचना होगा। किसी भी लड़ाई में विभीषणों की अहम भूमिका होती है क्योंकि इन विभीषण को अंदरूनी कमजोरियों की भलीभांति जानकारी होती है। इतना तो तय है कि आगे भी ऐसे तत्व अन्ना के टीम में शामिल रहेंगे। ऐसे विभीषणों को पहचानने की जरूरत है जो इस लड़ाई को कमजोर कर सकते हैं।

 

 

2 COMMENTS

  1. सच है, जागरूक रहना ही होगा, नौजवानों को आगे होकर समयबद्ध तरीके से काम करने की जरुरत है.

  2. आपका ये आलेख अन्ना-आन्दोलन की निजी सहानुभूति ओर सरोकारों भरा-सा चिंतन.

    अन्ना ने अपने बिल के कई अहम मुद्दों में एक मुद्दा, निचले स्तर की ब्युरोक्रेसी को जनलोकपाल बिल में लाना है(जिसे हमारी सरकार ने स्वीकारा भी है), उसी ब्युरोक्रेसी की सताई, रुलाई, पैसा लेकर भी दोडाई गई प्रजा ही आज सड़कों पर उतर आई है, जो अन्ना के साथ है…ओर अन्ना के दिल में
    भी इन प्रजाजनों का दर्द, अनुकम्पा है, ओर यही वर्ग उनकी ताक़त भी है…

    intellictually observed दुख ओर स्वयं भुगते हुए दुख में बडा फ़र्क होता है.

    फ़िलहाल तो यही आशा करें, प्रार्थना करें कि अन्ना जैसे ही ईमानदार ब्लड-ग्रुप के सहयोगी उन्हें मिले, मिलते रहे.

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