हिसार में रंग लाई अन्ना की मुहिम

4
145

प्रमोद भार्गव

आखिर हिसार में अन्ना दल की मुहिम रंग ले आई। कांग्रेस उम्मीदवार जयप्रकाश की जमानत जब्त हो जाने से यह रंग और गहरा गया है। यही नहीं हिसार में संपन्न हुए लोकसभा उपचुनाव के अलावा जिन राज्यों में भी विधानसभा के उपचुनाव हुए हैं, कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा है। इन नतीजों ने जाहिर कर दिया है कि भ्रष्टाचार और मंहगार्इ के मुददे कांग्रेस व उसके सहयोगी दलों को ले डूबेगें। कांग्रेस ने इन चुनाव नतीजों की उचित समीक्षा करते हुए जनलोकपाल विधेयक पारित कराने में परमाणु विधेयक जैसी दृढ़ता नहीं दिखार्इ तो अन्ना का प्रभाव कांग्रेस को रसातल का रास्ता ही दिखाएगा। हालांकि भाजपा एवं हरियाणा जनहित कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदावार कुलदीप विश्नोर्इ ने अपनी जीत का श्रेय अन्ना दल को नहीं दिया है। उनका कहना है, उनके पिता स्वर्गीय भजनलाल की सहानुभूति लहर और उनके द्वारा कराए विकास कार्य उनकी जीत का प्रमुख आधार है। अलबत्ता वे इतना जरूर कह रहे हैं कि वे लोकसभा में अन्ना के लोकपाल का पूरी ईमानदारी से समर्थन करेंगे। जीत का अंतर महज 6362 वोट से होना यह तय करता है कि अन्ना दल की मुहिम के जादुई करिश्मे का लाभ भारतीय राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार अजय चौटाला को भी मिला है।

अन्ना एक ऐसे समझदार समाज सेवी हैं जो कांग्रेस पर दबाव बना लेने के हर अवसर को दबोच लेना चाहते हैं। इसीलिए उन्होंने हिसार उपचुनाव में खंब ठोकने का जोखिम उठाया। चुनाव परिणाम के पहले आए अनुमानों ने ही तय कर दिया था कि अन्ना दल ने करीब 30 फीसदी मतदाताओं को प्रभावित कर कांग्रेस उम्मीदवार जयप्रकाश को तीसरे नंबर पर खदेड़ दिया है। यह अनुमान मतगणना में सही साबित हुआ। कांग्रेस उम्मीदवार जमानत तक नहीं बचा पाएं। इस नतीजे को कांग्रेस व उसके सहयोगी दलों को बतौर सबक लेना चाहिए। अन्य सभी राजनीतिक दलों को भी ये नतीजे नसीहत के रूप में लेने की जरूरत है। अब इस परिप्रेक्ष्य में अन्ना की बात को कालांतर में किसी भी दल को टालना मुश्किल होगा। ये परिणाम अन्ना आंदोलन की दिशा भी तय करेंगे। हो सकता है यह रणनीति कल एक नए राजनीतिक दल के असितत्व के रूप में पेश आए। वैसे भी बदलाब के पैरोकारों को जोखिम तो उठाने ही पड़ते हैं। चूंकि यह परिणाम कांग्रेस के खिलाफ गया है इसलिए अब छह माह के भीतर जिन पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं उनमें अन्ना की भूमिेका क्या रहेगी यह सिथति आने वालों दिनों में साफ होगी। कांग्रेस यदि इसी शीतकालीन सत्र में एक मजबूत लोकपाल पारित नहीं करा पाती है तो अन्ना दल पूरे जोश व दमखम के साथ कांग्रेस विरोधी अभियान में जुट जाएगा। वैसे भी पर्याप्त दबाव बनाए बिना संप्रग सरकार लोकपाल को पास करवाना राष्ट्रीय हित व दायित्व समझने वाली नहीं है।

अन्ना दल के इस अभियान को लेकर नैतिकता के सवाल भी उठाए जा रहे थे। यह दलील भी दी जा रही थी कि एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा किसी राजनीतिक दल विशेष के खिलाफ वोट न डालने की अपील करना कहां तक उचित है ? क्योंकि अन्ना-आंदोलन का बुनियादी आधार नैतिक था, इसलिए उसे दलगत राजनीति से ऊपर माना गया। लोग अन्ना में महात्मा गांधी की छवि देख रहे हैं और गांधी ने दलगत राजनीति को अपने आंदोलन में कभी तरजीह नहीं दी, यह दलील भी दे रहे थे। दरअसल ये दलीलें बचकानी हैं। गांधी के आंदोलनों पर नैतिकता का प्रभाव तो था इसके बावजूद, उनके सभी आंदोलन राजनैतिक बदलाव के लिए राजनीति से ही प्रेरित थे। जिस अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का वे हिस्सा थे, वही आजादी की लड़ार्इ में हिस्सा लेने वाला एकमात्र अखिल भारतीय चरित्र का राजनीतिक दल था। जबलपुर में संपन्न हुए कांग्रेस अधिवेशन के दौरान कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का भी चुनाव होना था। इसमें नेताजी सुभाष चन्द्र बोष और पटटाभि सीतारमैया आमने-सामने थे। इस समय महात्मा गांधी ने सीधे चुनाव में दखल देते हुए सीतारमैया को वोट देने की अपील की थी। हालांकि रमैया हार गए थे। इसलिए गांधी के बारे में ये दलीले व्यर्थ हैं कि वे अनशन और उपवासों के जरिए केवल रचनात्मक राजनीति को महत्व देते थे। लिहाजा हिसार में हुंकार भरना अन्ना की मजबूत नैतिक इच्छाशकित का ही परिणाम थी जिसका नतीजा सकारत्मक निकला है।

यहां अन्ना दल पर ये सवाल भी उठाए गए थे कि अन्य दलों के जो उम्मीदवार मैदान में हैं वे भी पाक-साफ नहीं हैं। ऐसे में किसी एक दल के विरोध में जाने से उनकी करिश्मार्इ छवि धूमिल होगी। क्योंकि अन्ना र्इमानदार चरित्र के उम्मीदवारों को वोट देने की पैरवी करते रहे हैं। लेकिन जब सभी प्रमुख दलों ने ही भ्रष्ट व आपराधिक छवि के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा हो तो मतदाता की चुनने की मजबूरी तो उन्हीं में से किसी एक उम्मीदवार की होगी ? इसीलिए अन्ना चुनाव सुधारों के परिप्रेक्ष्य में उम्मीदवार को नकारने का संवैधानिक अधिकार देने की मांग कर रहे हैं।

अब तो उम्मीदवारों की यह विवशता भी हो गर्इ है कि उनकों निर्वाचन नामांकन के समय एक हलफनामा भी देना होता है, जिसमें यह उल्लेख करना जरूरी होता है कि आपकी चल-अचल संपत्ति कितनी है और आप पर कोर्इ पुलिस प्रकरण तो पंजीबद्ध नहीं है। यहां गौरतलब है कि जयप्रकाश के अलावा जो दो अन्य प्रमुख उम्मीदवार कुलदीप विश्नोर्इ और अजय चौटाला थे, उन दोनों ने ही हलफनामें के साथ जो दस्तावेज प्रस्तुत किए थे, उनमें अपने दामन पर लगे दागों का उल्लेख किया था। ये मामले आपराधिक दुष्कृत्यों और भ्रष्टाचार से जुड़े हैं। ये सभी उम्मीदवार ‘आयाराम-गयाराम की राजनीति में भी बड़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे हैं। यही नहीं यदि इन उम्मीदवारों द्वारा 2009 के लोकसभा चुनाव में और इस चुनाव में दिए शपथ-पत्र में घोषित संपत्तियों की ही तुलना की जाए तो इन दो सालों में इन उम्मीदवारों की संपत्ति चौहदवीं के चांद की तरह परवान चढ़ी है। 2009 में कुलदीप सिंह ने अपनी संपत्ति 17 करोड़ 30 लाख बतार्इ थी, जबकि दो साल के भीतर ही यह बढ़कर 48 करोड़ 58 लाख हो गर्इ। इसी तर्ज पर अजय चौटाला की संपत्ति 29 करोड़ 97 लाख से बढ़कर अब 40 करोड़ 16 लाख हो गर्इ। राजनीति में समय देने के बावजूद संपत्ति में यह इजाफा किन व्यापारिक समीकरणों के बूते हुआ यह अलग अनुसंधान का विषय है। हालांकि चौटाला परिवार पर तो आय से अधिक संपत्ति होने के मामले पहले से ही सीबीआर्इ ने दर्ज किए हुए हैं।

अन्ना दल पर एक बड़ा आरोप दिगिवजय सिंह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का मुखौटा होने का लगाते रहे हैं। हाल ही में उन्होंने सुरेश जोशी की एक चिटठी भी मिडिया को पेश की है, जिसमें अन्ना को समर्थन देने की बात लिखी है। यहां सवाल उठता है कि अन्ना को समर्थन देने की चिटठी कोर्इ भी लिख सकता है। अन्ना संघ का हिस्सा हैं यह साबित तो तब होता जब अन्ना संघ या अन्य किसी संगठन से समर्थन मांगते ? दिगिवजय सिंह अन्ना द्वारा संघ प्रमुख को लिखी चिटठी पेश करते ? यहां सवाल यह भी उठता है कि यदि अन्ना संघ का सहयोग व समर्थन परोक्ष रूप से ले भी रहे हैं तो भी कौनसा गुनाह कर रहे हैं ? क्या संघ कोर्इ आंतकवादी संगठन है ? या वह प्रतिबंधित कोर्इ गैर कानूनी संगठन है ? आखिर संघ को किस बिना पर कठघरे में खड़ा किया जा रहा है ?

बहरहाल इतना तय है कि हिसार में कांग्रेस की हार ने तय कर दिया है कि अब केंद्र सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ बनने जा रहे लोकपाल विधेयक को आसानी से निगल नहीं पाएगी और लोकपाल का मसौदा भी वही कानूनी रूप लेगा, जैसा अन्ना चाहते हैं। इसीलिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी अन्ना को हिसार चुनाव नतीजा सामने आने से पहले चिटठी लिखकर भरोसा जताया है कि उनकी सरकार लोकपाल से और आगे जाकर भ्रष्टाचार के संबंध में व्यापक अजेंडे पर काम कर रही है। इस अजेंडे पर ठीक काम नहीं हुआ तो पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव का अजेंडा बिगड़ जाने के खतरे को कांग्रेस को अब गंभीरता से लेना चाहिए। अन्यथा आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का अजेंड़ा बिगड़ना तय है।

4 COMMENTS

  1. भ्रष्टाचार के कारण कांग्रेस वापस शासन में आना वैसे भी असम्भव ही था। और अब अन्ना नें,तो उसे जिम्दा गाडने की ठानी है। कांग्रेस लोकपाल विधेयक ला नहीं सकती। कारण उसके नेता नेत्रियां जो भ्रष्टाचार में लिप्त है। उनको बचाना उसका धर्म है। जो लोकपाक विधेयक लाया जायगा, उसमें बहुत (लूप होल) छेद होंगे। सारे छेद उनके नेतृत्व को बचाने के लिए नियोजित होंगे।
    इसी लिए बाबा रामदेव के समर्थकों को डंडे पडे; और अन्ना के कार्य कर्ताओं में भी गुप्त भेदिए भेजे गए हैं। कुछ लोगों का मुखौटा खुल गया है। और भी नाटक अपेक्षित है। बहुत कुछ होना बाकी है।
    अन्ना को भी सचेत रहना होगा। उनके शिविर में कौन, कब, कैसे, कहां, क्यों, और क्या करेगा, कहा नहीं जा सकता।
    धीरे धीरे उन्हें छोडकर लोग जा रहे हैं।कुछ उलटा सीधा अनधिकृत वक्तव्य भी दे रहें हैं। आगे बहुत कुछ अपेक्षित है। देखे क्या क्या होता है?

  2. अन्ना ने कुछ नहीं किया सिर्फ श्रेय लेके के लिए नाटक किया था जो हों तय था वोही हुआ अन्ना का सिर्फ नाम चमका

  3. ||ॐ साईं ॐ|| सबका मालिक एक
    ***************************************************
    हे मेरे बाबा १००% भ्रष्टाचारियो का उनके परिवार सहित सत्यानाश कर दो,इस दिवाली पर इनके घर कोई दीपक लगाने वाला जीवित ना रहे और ये भ्रष्टाचारी लूटेरे दीवारों पर सर रखकर रोये
    ****************************************************
    जय श्री राम….जय श्री राम …..जय श्री राम
    ****************************************************
    हिसार में रंग लाइ अन्ना की मुहिम- अब कांग्रेस चाहे लोकपाल ले आये या फ़ौज पाल ले आये ,जब तक क पुरे देश में कांग्रेस के उम्मीदवारों की जमानत जप्त नहीं हो जाती,अन्ना को कांग्रेस के सत्यानाश की मुहीम बंद नहीं करना चाहिए…अब यदि अन्ना कांग्रेस के पक्ष में आये तो देशी हिन्दुस्तानी जुबान में यह थूक कर चाटना कहा जाएगा …और कांग्रेस अन्ना को टीम सहित जड़ मूल से निपटा देगी …यह अटल सत्य है..क्योकि….जिस कांग्रेस ने पद और पैसे के लिए लाल बहादुर शाश्त्री,संजय गाँधी,इंदिरा गाँधी,सिक्ख कौम ,राजीव गाँधी,जगदीश तैत्लर,राजेश पाइलट ,माधव राव सिंधिया ….को नहीं छोड़ा …वो आपको कैसे छोड़ देगी……अन्ना और टीम अन्ना के सामने दो हो रास्ते है…..कांग्रेस को प्रणाम करके गुमनाम हो जाए….या बाबा रामदेव के साथ प्राणायाम करके….देश को बचाए…..हम लोक पाल बनाने के लिए किसी की मिन्नतें क्यों करे ….उम्मीदवारों से स्टाम्प पेपर पर में लिखित में नहीं ले ले की यदि वह भ्रष्ट हुआ तो जनता पहले उसे चौराहे पर परिवार सहही ५०-५० जुटे मारेगी और वापस बुला लेगी…..उसकी धन सम्पति सब जप्त कर लेगी जनता की सरकार……. हम प्रधान मंत्री की कुर्सी पर कुत्ते को बैठा सकते है पर किसी कांग्रेसी या उसकी सहयोगी पार्टी को नहीं……यही एक छोटा सा निर्णय लेना है हर एक भारतीय को…………
    सरकारी व्यापार भ्रष्टाचार

  4. प्रमोद भार्गव जी का परफेक्ट विश्लेष्ण से स्पस्ट है कांग्रेस के ताबूत में अंतिम कील अन्ना & कंपनी ही ठोक सकती है .

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here