अन्ना के “थप्पर” की गुंज !

एस के चौधरी

1986 मे एक फिल्म बनी थी “कर्मा” जिसमे दिलीप कुमार नायक मुख्य भूमिका मे थे और अनुपम खेर खलनायक का मुख्य निभा रहे, उस फिल्म के एक सिन मे दिलीप कुमार अनुपम खेर को तमाचा मारते हैं जिसकी गुंज कई सालों तक अनुपम खेर नहीं भूल पाए थे और पूरे फिल्म मे वो अपने गाल पर हाथ रखकर उस एक थप्पर को याद करते रहते हैं । हमने उस फिल्म का जिक्र इसलिए किया क्योंकी यह विवाद भी एक फिल्म को लेकर दिए गए बयान से उठा हैं, कर्मा मे तो थप्पर मारनेवाले दिलीप कुमार हिरो थे लेकिन यहां ये समझ मे नहीं आता की अन्ना हजारे को क्या माने क्योंकी सभी राजनैतिक दलों ने उन्हे विलन बना दिया हैं, हालांकी उन्होने किसी को थप्पर मारा नहीं हैं सिर्फ तमाचा मारने की बात की हैं । दरअसल हाल हीं मे भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बनी फिल्म “गली गली चोर हैं” का स्क्रीनींग अन्ना हजारे के गांव रालेगन सिद्धी मे हुआ जिसको अन्ना ने गांव वालों के साथ मिलकर देखा । जो फिल्म अन्ना ने देखी उसका मेन थीम हैं भ्रष्टाचार और इसमे हिरो एक नेता को तमाचा मारता हैं इस सिन को दिखाने का मुख्य उदेश्य यह हैं कि एक आदमी कैसे भ्रष्टाचार से त्रस्त होकर ये कदम उठाता हैं इसका मतलब भी समझाया गया हैं की यह तमाचा सिस्टम के उपर हैं, जैसा कि स्लोगन हैं इस फिल्म का “To Slap the system”. फिल्म खत्म होने के बाद पत्रकारों ने अन्ना से पूछा कि फिल्म मे जो दिखाया गया हैं क्या वैसे ही भ्रष्ट आदमी के गाल पर तमाचा मारना चाहिए, जवाब मे अन्ना ने कहा की जब आम आदमी के पास कोई विकल्प नही बचेगा तो वो क्या करेगा वो कितना बर्दाश्त करेगा सब्र की एक सीमा होती हैं और जब आम आदमी का धैर्य खत्म हो जाएगा तो ऐसा ही करना पडेगा । अन्ना ने जो बयान दिया जाहिर हैं वो फिल्म देखकर और एक आम आदमी की हकिकत से रुबरु होकर जैसा उसने किया उसी भाव मे उन्होने जवाब दिया, खबर मिडीया मे आने के बाद उम्मीद के मुताबिक सारे राजनीतिक दल और नेताओं की प्रतिक्रया आने लगी जैसे कि अन्ना ने सहीं मे किसी को तमाचा मारा हो, नेताओं की दलील आने लगी अन्ना को ऐसा बयान नहीं देना चाहिए क्योंकी वो देश के इतने बड़े चेहरे बन चुके हैं इससे समाज पर बूरा असर पड़ेगा । अन्ना हजारे के इस थप्पर की गुंज पूरे राजनीतिक गलियारे मे सुनाई पड़ी और कल तक जो अन्ना की ताकत को मिडीया की देन बता रहे थे कम से कम इतना तो मानते हैं की उनकी बात का असर समाज पर पड़ता हैं और अन्ना देश का चेहरा बन चुके हैं । ये बात सही हैं कि अन्ना को ऐसा बयान नहीं देना चाहिए लेकिन क्या उनके इस बयान से हिंसा भड़क सकती हैं, जो लोग ये इल्जाम लगा रहे हैं कि उनकी असली चेहरा सामने आ गया हैं वे गांधवादी होने का ढोंग करते हैं वे शायद भूल गए की यही अन्ना हैं जिसने पूरे देश को 10 दिनों तक एक साथ एकजुट कर शांतिपूर्ण आंदोलन किया था । आंदोलन के दौरान पूरे हिन्दुस्तान मे पत्थर तो दुर की बात एक कंकर भी कहीं नहीं चला था, उस समय जो माहौल था अगर अन्ना की ऐसी कोई मंशा होती तो उनके एक इशारे पर जो कुछ होता उसका अंदाजा भी किसी को नहीं हैं । अन्ना जेल भी जा चुके हैं इसलिए उन्हे इस बात का डर भी नहीं था लेकिन अन्ना उपवास के दौरान जब भी मंच पर आते वे लोगों से शांति बनाए रखने की अपील कर जाते और आजाद भारत के इतिहास मे पहली बार कोई जन आंदोलन इतने शांतिपूर्ण तरिके से हुआ की पूरी दुनीया मे अन्ना एक मिशाल बन गए । दुनीया के कई शहर उस समय जल रहे थे काहिरा से लेकर लंदन तक लोग सड़कों पर उत्पात मचा रहे थे कितनो की जान चली गइ थी उस समय भारत मे अगर कहीं एक पत्थर तक नहीं चला तो इसके कारण भी अन्ना हजारे हीं थी । अन्ना एक साफ सुथरी छवी के बूजुर्ग आदमी हैं और जिस तरह से लगातार सरकार उनके साथ धोखा करते चली आई हैं हो सकता हैं उस बात की खिज हो अन्ना को इसलिए वे ऐसा कह जाते हों और हालांकी अन्ना ने कोई अपील नहीं की थी किसी से बल्की उन्होने ऐसी कल्पना भी नहीं की होगी की ये बात इतनी दूर तक जाएगी, फिर भी अन्ना को ऐसा कोई बयान नहीं देना चाहिए क्योंकी भले उनके ऐसे बयान से कहीं शांति भंग हो ना हो लेकिन उनके विरोधियों और राजनैतिक दलों को एक मौका जरुर मिल जाता हैं इसलिए उन्हे सोंच समझकर तभी कुछ बोलना चाहिए ।

जो लोग ये हल्ला मचा रहे हैं कि अन्ना शांति भंग करना चाहते हैं इस तरह के बयान लोकतंत्र के लिए खतरा हैं उनको सिर्फ अन्ना और भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने वालों से हीं लोकतंत्र को खतरा क्यों दिखता हैं । फूलपुर मे राहुल गांधी को काले झंडे दिखाने वाले यूवकों को सरेआम मिडीया के सामने केन्द्र सरकार के दो मंत्री और स्थानीय विधायक लात-घुंसों से मारते हैं और बाद मे पार्टी कहती हैं कि सुरक्षा घेरा तोड़ने की वजह से उनकी पिटाई हुई तो क्या लोकतंत्र मे नेताओं को अधिकार हैं कानुन हाथ मे लेने का ? क्या इस तरह सरेआम मिडीया के सामने नेताओं का उन यूवकों के पिटने से शांति भंग नहीं हो सकती हैं ? कांग्रेस दफ्तर मे एक यूवक ने चप्पल क्या दिखाया वहां भी कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव दिग्वीजय सिंह उस पर टुट पडें और कैमरे के सामने उसे लातों से मारा क्या इसे देखकर शांति भंग नहीं होगी ? टीम अन्ना जब हिसार मे कांग्रेस के खिलाफ प्रचार मे जुटी थी तभी प्रशांत भूषण पर उनके चैंबर मे ‘भगत सिंह क्रांति सेना’ के गुंडो ने सरेआम कैमरे के सामने पिटा और हिसार मे कांग्रेस प्रत्याशी ने मिडीया को यह बयान दिया की टीम अन्ना इसी तरह पिटेगी इस तरह के बयान से कभी शांति भंग नही होती इसलिए शायद किसी दल ने उनके बयान की निंदा नहीं की । अरविंद केजरीवाल पर जब लखनऊ मे एक सख्स ने जुता फेंका जब उसे पकड़ा गया तो उसने खुद को कांग्रेस समर्थक बताया बाद मे कांग्रेस पार्टी के तरफ से बयान आया की “अगर अन्ना के समर्थक हैं तो कांग्रेस के भी समर्थक हैं उनकों भी गुस्सा आ सकता हैं” मतलब खिलाफ मे प्रचार करने पर ऐसा हो सकता हैं जब सरकार की तरफ से ऐसा बयान आता हैं उस समय हमारा लोकतंत्र मजबूत होता हैं कहीं शांति भंग होने का डर नहीं होता लेकिन अन्ना ने तमाचे की बात क्या की ऐसा लगा मानों तमाम राजनीतिक दलों को थप्पर मारा हों । कर्नाटक मे श्री राम सेना खुलेआम गुंडागर्दी करने के बावजुद उनपर सिर्फ नाम के लिए कार्यवाई होती हैं, परिणाम हर वर्ष 12 फरवरी को देश के तमाम शहरों के पार्कों और रेस्टुरेंट समेत तमाम जगहों पर विशेष सुरक्षा ब्यवस्था करनी पड़ती हैं ताकी फिर ऐसी कोई घटना ना हों अगर उसी समय उनपर कठोर कारवाई हुई होती तो शायद ऐसी नौबत नहीं आती ।जो बाबा रामदेव आज लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुके हैं उनको मनाने के लिए और उनसे डिल करने के लिए सरकार के 4 मंत्री एयरपोर्ट पर रिसिव करने के लिए जाते हैं उस समय बाबा देश के लिए खतरा नहीं थे । अन्ना हजारे के तमाचे वाले बयान पर इतना बवाल मचा लेकिन लोकपाल पर संसद मे जो चेहरा राजनीतिक दलों के नुमांइदो ने पेश किया वहक्या लोकतंत्र के उपर एक तमाचा नहीं था ?भ्रष्टाचार और लोकपाल पर कांग्रेस ही नही लगभग सभी पार्टीयां बेनकाब हो चुकी हैं, कानुन बनने से पहले ही सबकों डर सताने लगा था इसलिए कानुन बनने ही नहीं दिया गया । जनलोकपाल बिल के आंदोलन का जो हस्र राजनीतिक पार्टीयों ने किया वो इस देश के उपर किसी तमाचे से कम नहीं था लेकिन फर्क सिर्फ इतना था कि उनके तमाचे सहने की आदत मुल्क ने डाल रखी हैं इसलिए उनके तमाचों मे गुज नहीं होती । अन्ना ने भले हीं तमाचा मारा ना हो लेकिन थप्पर की गुंज पूरे राजनैतिक गलियारों मे ऐसे गुंजी, जैसे हमारे राजनेता पहले से हीं ऐसे तमाचों के इंतजार मे पलके बिछाएं बैठे हैं, इसलिए टीम अन्ना को भी कुछ बोलने से पहले सोंचना चाहिए ।

 

 

 

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