उत्तर-प्रदेश की जातीय जकड़न में दम तोड़ती जन राजनीति

upउत्तर-प्रदेश में राजनैतिक दलों के प्रभाव के साथ-साथ राजनैतिक व्यक्तियों,  सामाजिक संगठनों के कर्ता धर्ताओं,  बाहुबलियों का भी प्रभाव अलग अलग इलाकों में अलग अलग भूमिका का निर्वाहन करता है । जिस प्रकार राजनैतिक दल अपनी अपनी तथाकथित विचारधारा के प्रचार-प्रसार,  अनुपालन,  क्रियान्वयन व जनहित का दावा करते हुए सत्ता-सुंदरी के रसास्वादन व भोग हेतु नाना प्रकार के प्रलोभन,  हथकंडे और सामाजिक-धार्मिक-जातीय विद्वेष का विष रस समाज में घोलते हैं । और आम जनमानस भी जातीय-धार्मिक-व्यक्तिगत भय-लोभ-मोह की बेड़ियों में जकड़कर अपने संवैधानिक अधिकारों की बलि चढ़ाता आ रहा है, यह सिर्फ और सिर्फ निराशाजनक व शर्मिंदगी पूर्ण परिस्थिति ही है । झणिक – तात्कालिक लाभ प्राप्ति के लिए राजनेताओं के आगे नतमस्तक होने की चल पड़ी दुर्भाग्यपूर्ण परंपरा का ही दुष्परिणाम है कि राजनैतिक दलों के आका और सत्ताधीश जनता की बुनियादी सुविधाओं की बहाली को अपनी प्राथमिकता में न रखकर लोकलुभावन नारों के बूते सत्ता सुख को प्राप्त कर लेते हैं और राहत व बख्शीश के बूते अपनी राजनैतिक धमक – सत्ता की हनक कायम करके जनता के हकोहकूक को,  जन आकांछाओं को,  जनभावनाओं को नौकरशाही के मकड़जाल में उलझा छोड़कर स्वयं सत्ता सुख का भोग कर अपनी व्यक्तिगत सनक व इच्छा को पूर्ण करने में जुटे रहते हैं ।

आज की राजनीति में विचारों की जगह, राजनैतिक कार्यक्रमों की जगह व्यक्ति विशेष ने व उस व्यक्ति की व्यक्तिगत इच्छा कार्यक्रमों ने  ले ली है । कांग्रेस महात्मा गाँधी के ग्राम्य स्वराज्य, खादी व गाँधी के विचारों की हत्या करते हुए एक लम्बा सफ़र पूरा करके अब राहुल गाँधी के व्यक्तिगत आभामंडल को बनाने व उसकी चकाचौंध के भरोसे सत्ता में पुनर्वापसी की योजना पर कार्यरत है । राहुल गाँधी के आभामंडल को बनाने की महती जिम्मेदारी वि जॉर्ज ,ए के एंटोनी, दिग्विजय सिंह आदि ने ले रखी है । इंदिरा गाँधी की प्रतिमूर्ति दिखने वाली प्रियंका गाँधी भी अपने भाई राहुल गाँधी का मार्गदर्शन करने में, उनके व्यक्तित्व को निखारने के हर संभव प्रयत्न करती ही रहती हैं । पुराने घाघ कांग्रेसी नेताओं के अतिरिक्त इधर कुछ वर्षों से उत्तर-प्रदेश के ९% कुर्मी मतदाताओं पर सीधी मजबूत पकड़ रखने वाले पुराने धुर समाजवादी नेता बेनी प्रसाद वर्मा -केंद्रीय इस्पात मंत्री ,भारत सरकार भी ताल ठोंक कर राहुल गाँधी के पीछे खड़े हो गये हैं । अनवरत राजनैतिक संघर्ष-यात्रा व आम जनमानस के बीच अपनी सीधी पकड़ – भावनात्मक लगाव बनाने के लिए एक सुनियोजित योजना के तहत लगे राहुल गाँधी भारतीय राजनीति की दुरुहता -जातीय जकड़न को समझते हुये शायद यह अपने मनो-मस्तिष्क में बैठा चुके हैं कि उत्तर-प्रदेश की चुनावी राजनीति में सपा-बसपा के जातीय प्रभुत्व को समाप्त करने के लिए पिछड़ी जाति के जनाधार वाले कुर्मी मतदाताओं सहित अन्य सभी वर्गों में भी अपनी पकड़-पहचान रखने वाले पुराने समाजवादी नेता बेनी प्रसाद वर्मा ही सक्षम हैं । उत्तर-प्रदेश कांग्रेस में कोई ऐसा नेता नहीं है जो अपनी जाति में भी व्यापक असर-पकड़ रखता हो । हाल फिलहाल बेनी प्रसाद वर्मा ने बयानों के जो तीर चलाये हैं उससे सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव सहित उनका पूरा कुनबा आहत हुआ है । यही वह निर्णायक राजनैतिक दांव था जिसके बलबूते बेनी प्रसाद वर्मा ने कांग्रेस नेतृत्व सहित आम जनता के सामने यह साबित कर दिया कि वो सपा  प्रमुख मुलायम सिंह यादव को विचलित करने व घेराबंदी करने में सक्षम हैं । बेनी प्रसाद वर्मा के बेबाक बयानों -तीखे आरोपों का असर मुस्लिम मतदाताओं पर प्रत्यक्षतः दिखने लगा है । गैर यादव मतदाताओं पर अपनी पैनी राजनैतिक दृष्टि जमाये बेनी प्रसाद वर्मा कब और कौन सा नया तीर मुलायम सिंह पर छोड़ेंगे ,इसकी प्रतीक्षा सबको रहती है । इधर बेनी प्रसाद वर्मा ने विभिन्न सामाजिक संगठनों , सामाजिक कार्यकर्ताओं , धार्मिक नेताओं से गुपचुप भेंट ,वार्ता का सिलसिला तेज़ कर दिया है । प्रत्यक्षतः बयानों के तीर चलाने वाले राजनैतिक शतरंज में भी माहिर बेनी प्रसाद वर्मा अपनी चालों से विपक्षी को रक्षात्मक मुद्रा में करने में सफल हो चुके हैं । सपा सरकार से नाराज हो रहे उत्तर-प्रदेश के जनमानस के अंतर्मन में धीरे-धीरे यह समाने लगा है कि सपा के मुकाबिल उत्तर-प्रदेश में बेनी प्रसाद वर्मा ही हैं ।

सिर्फ बेनी प्रसाद वर्मा ही नहीं  बल्कि पश्चिम उत्तर-प्रदेश में व्यक्तिगत प्रभाव रखने वाले चौधरी अजित सिंह -केंद्रीय मंत्री, भारत सरकार भी अपने इलाके में अपनी पकड़ व वर्चस्व कायम रखने के लिए खासा परेशान हैं । चौधरी अजित सिंह के लिए अभी बड़ी राहत सपा ने एक समय उनकी खासमखास रही अनुराधा चौधरी का सपा से बिजनौर सीट से टिकट काटकर दे दिया है । सपा के द्वारा अनुराधा चौधरी का बिजनौर से टिकट काटे जाने के पश्चात् अब जाट पूरी तरह से एक बार पुनः चौधरी अजित सिंह की ही तरफ देख रहा है । बड़ा राजनैतिक कद होने-पक्के समाजवादी होने के बावजूद सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी -मंत्री उत्तर-प्रदेश की पकड़ स्वजातीय जाटों में नगण्य है। लोध मतदाताओं पर मजबूत पकड़ रखने वाले कल्याण सिंह -पूर्व मुख्यमंत्री , पूर्वांचल के इलाके में दबदबा रखने वाले योगी आदित्यनाथ -सांसद भाजपा का  राजनैतिक उपयोग भाजपा कतई कर ही नहीं पा रही है । अनुप्रिया पटेल, डॉ अय्यूब,  ओम प्रकाश राजभर भी खेल बनाने-बिगाड़ने की ताकत रखते हैं । बाहुबली मुख़्तार अंसारी,  पवन पांडे, बृज भूषण सिंह, रिजवान ज़हीर भी कई लोकसभा सीटों पर अपने समर्थकों के बूते खासा प्रभाव रखते हैं ।

२०१२ के प्रारंभ में संपन्न हुए उत्तर-प्रदेश विधान सभा के चुनावों के हालात से इतर अब उत्तर-प्रदेश की राजनैतिक परिस्थितियां सर्वथा भिन्न है । उत्तर-प्रदेश के विधान सभा २०१२ के चुनावों में तत्कालीन बसपा सरकार के भ्रष्टाचार व नौकरशाही की निरंकुशता के खिलाफ जनाक्रोश व्याप्त था ,जिसका सीधा फायदा सपा को अपने समर्पित समाजवादी कार्यकर्ताओं के संघर्षों के बलबूते मिला था । उत्तर-प्रदेश की जनता ने सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के संगठन और उस वक़्त आशाओं के केंद्र बिंदु बनकर उभरे युवा अखिलेश यादव के व्यक्तिगत आभामंडल से प्रभावित होकर अपना आशीर्वाद रूपी मत देकर स्पष्ट बहुमत दिया था । दुर्भाग्यवश आज आज आम जनता की कौन कहे खुद सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव की भी उम्मीदों पर उत्तर-प्रदेश की सपा सरकार , मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खरे नहीं उतरे हैं । एक दार्शनिक व जनता के सच्चे प्रहरी की भाँति मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री को उनकी कमी की तरफ इंगित किया ।समझदार को इशारा ही काफी होता है और धरतीपुत्र की उपाधि से नवाजे गये मुलायम सिंह यादव ने जनता के मन को भांपते हुये ही कहा कि ,–” मैं अगर मुख्यमंत्री होता तो १५ दिन में कानून व्यवस्था संभाल लेता । ” मुलायम सिंह की चिंता स्वाभाविक है और उनकी चिंता अब अवश्य यही होगी कि कैसे अपने द्वारा गठित समाजवादी पार्टी से पुराने समर्पित-संघर्षशील समाजवादियों को जोड़े रखा जाये ? मुलायम सिंह ने डॉ लोहिया के विचारों का दामन पकड़ कर ही सपा का गठन किया था , मुलायम सिंह की चिंता सिर्फ कानून व्यवस्था कायम करने की नहीं है उनकी चिंताओं में सपा के जनाधार को कायम रखना भी शुमार है ।

सपा मुखिया मुलायम सिंह जमीनी हकीकत से वाकिफ रहने वाले राजनेता हैं , वो बेहतर समझते हैं कि बसपा प्रमुख मायावती अपने कार्यकर्ता आधारित संगठन और जातीय गठजोड़ के दम पर अपना प्रभाव तेज़ी से बढ़ाने में लगी हैं ।  राहुल गाँधी -कांग्रेस क्यों उनके पुराने समाजवादी सखा विकास पुरुष बेनी प्रसाद वर्मा को आगे करके उनपे प्रहार करा रहे हैं ,इसकी जानकारी मुलायम सिंह यादव को भली-भांति है । सपा प्रमुख मुलायम सिंह जीवन में तमाम चुनौतियों से पार पा कर राजनीति में इस मुकाम तक पहुँचे हैं परन्तु इस मर्तबा चुनौती खुद उनको अपनी सरकार की नाकामयाबी से अधिक मिल रही है । उत्तर-प्रदेश में अब वैसा ही माहौल पुनः व्याप्त हो रहा है जैसा बसपा की पिछली सरकार के खिलाफ जनमानस में व्याप्त हो गया था । यही कारण है कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव चिंतित हैं और उनके सखा रहे बेनी प्रसाद वर्मा इस व्याप्त हो रहे जनाक्रोश को अपने बयानों व जातीय जनाधार के सहारे अपने व कांग्रेस के पक्ष में करने के लिए प्रयासरत हैं ।

 

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