मोनिका पाठक
मध्यप्रदेश में अब चुनावी रंग में सराबोर है। सूबे के मुखिया पिछले सात महीने से पूरी तरह चुनावी मोड में हैं तो विपक्ष भी अपने बस तक दम लगा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की विशाल सभा के बिना अफसर जनता को नियमित सौंगातें बांटने से बच रहे हैं। अब तक के प्रादेशिक आयोजन देखें तो सीएम के धाराप्रवाह भाषणों के बिना मध्यप्रदेश का प्रशासन जनता को स्वीकृत इमदाद दफतर से ही बांटने से बचता है। लगभग हर कलेक्टर अपने जिले में हुए तमाम विकास कार्यों का लोकार्पण मुखिया से ही कराना चाहतें है अगर सूबा प्रमुख उपलब्ध न हों तो बहुत कम पर राज्य शासन के मंत्री सरकारी इमदाद वितरण मेलों के मुख्य अतिथि बनाए जाते हैं। अंत्योदय मेले शिवराज सरकार के ब्रांड बन गए हैं और खुलकर कहें तो शिवराज सिंह चौहान की छवि के ब्रांड प्रमोशन प्रोग्राम।
मप्र में लगे किसी भी अंत्योदय मेले में चले जाइए। लगभग एक जैसा पैटर्न पिछले सालों से अपनाया जा रहा है। किसी जिले में हितग्राहियों को इमदाद, विधवाओं की पेंशन, लाड़ली लक्ष्मियों के प्रमाण पत्र, आदिवासियों को पट्टा अधिकार पत्र, विकलांगों को सरकारी सहायता, हाथ ठेला चालक, रिक्शा चालक से लेकर हजारों गरीबों को एक साथ एक मंच के नीचे इमदाद बांटने का व्यापक कार्यक्रम। सवाल उठता है कि एक साथ इतने हजार लोगों को एक ही दिन काम करके शासन प्रशासन सरकारी इमदाद कैसे बांटता है।
तो जानिए इसका जवाब। जैसे गुल्लक में पैसे लगातार डाले जाते हैं और फिर गुल्लक का पैसा एक बार में निकालने अंत में गुल्लक फोड़ी जाती है उसी तरह शिवराज सरकार के कलेक्टर हितग्राहीमूलक योजनाओं से लेकर तमाम विकास कार्य के जो काम करते हैं उनको जनता को समर्पण विधिवत विशाल डोम समारोह से करते हैं। इसके लिए राज्य शासन के क्या दिशा निर्देश हैं ये खोज का दिलचस्प विषय हो सकता है मगर पूरी तरह से प्रशासन अपने काम को इवेंट मैनेजर की तरह करता है।
आदिवासी, महिलाएं, दलित, छात्र छात्राएं सभी ने आवेदन कभी भी किया हो मगर उन्हें एक साथ एक मंच के नीचे बुलाए बिना लंबे समय से मप्र में सरकारी मदद आमतौर से बहुत कम दी जाती है।
प्रशासन एक कुशल इवेंट मैनेजर के रुप में महीना भर तक प्रशासन का केन्द्रीकरण अंत्योदय मेले के भव्य डोम के नीचे करता है। यथासंभव इस मेले में मुख्यमंत्री को ही बुलाने का कलेक्टर प्रयास करते हैं। ये बुलावा भीड़ की संख्या देखकर स्वीकृत और अस्वीकृत होता है। संभाग और जिला स्तर पर हजारों की भीड़ वाला कोई अंत्योदय मेला मप्र में मुख्यमंत्री की उपस्थिति के बिना पूरा नहीं होता। लाखों के डोम मतलब सरकारी टेंट तंबू के नीचे जिले भर से भीड़ जमा करने का अपना सिस्टम मप्र में विकसित हुआ है। इसके लिए सफल कलेक्टर तारीफ और बेहतर पोस्टिंग भी पाते दिखे हैं पिछले सालों में।
अंत्योदय मेले में प्रशासन और उसका अमला जिस तरह गांव गांव और रिहायश की बस्ती बस्ती गली गली से लोगों को बस में बिठाकर मेला स्थल पर जुटाकर लाता है वो मप्र के राजनैतिक दलों के लिए भी अनुकरण और जलन का विषय हो सकता है।
अंत्योदय मेलों में मुख्यमंत्री का उड़नखटोला आने के कई घंटे पहले से भीड़ विधिवत जमा करके प्रशासन कुसियों के नीचे बिठा देता है ऐसे में उन्हें रोके रकने के तमाम जतन काबिले कौर हैं।
गांव और शहर की पब्लिक का मनोरंजन करने राजनैतिक मंच के नीचे गीत संगीत का मंच अंत्योदय मेलों का बड़ा आकर्षण है। राष्ट्रवाद से शुरु होकर तमाम अच्छे गीत सुमधुर आवाज के साथ अंत्योदय मेले की शान होते हैं। बीच में बीच में बच्चों व की सांस्कृतिक प्रस्तुतियों मेले में बाल उपस्थिति भी करा देती है। विशाल डोम के सामने हाजिर जवाब एंकर की एंकरिंग पब्लिक की लय बांधे रखने का पूरा ध्यान रखती है। इसके बाद पुलिस की सायरन गाड़ियों के साथ मुख्यमंत्री का काफिला आने पर ही सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का समापन होता है।
हाथ हिलाकर लोगों के अभिवादन पर केन्द्रित मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जनसंचार कला के विशेषज्ञ हैं और घंटों इंतजार के कारण थके लोगों को रोमांचित कर कुर्सी से उठाने का बेहतर हुनर जानते हैं।
मेरे प्यारे बेटा बेटियों, मेरा प्यारे भाइयों बहनों के सनातन संबोधन वाले मप्र के मुखिया अंत्योदय मेलों के एकमात्र नायक हैं। वे मप्र सरकार के ब्रांड बन चुके हैं और अपनी ब्रांड छवि को अंत्योदय मेलों के जरिए भुनाना जानते हैं। शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में अंत्योदय मेले उनकी गजब जनसंचार नीति के आयोजन हैं। वे पब्लिक को इमदाद बांटने के साथ बांटने वाला दिखना भी जानते हैं।