औद्योगिक नीतियों में हम केंद्र के पूरक – शिवराज सिंह चौहान

manufacturing-industriesप्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के कथन – ‘सबका साथ, सबका विकास’ में मध्यप्रदेश का गहरा विश्वास है। इस बारे में सोचें तो यदि केंद्र और राज्य साझा गोल के प्रति एक साथ काम नहीं करेंगे तो सबके लिए विकास कैसे संभव हो सकता है? विकास से मेरा तात्पर्य समग्र विकास से है, जिसमें समाज के सभी वर्गों को प्रगति का लाभ मिले। इस लेख में मैं कुछ विशेष उदाहरण साझा करूँगा कि मध्यप्रदेश सरकार किस तरह केंद्र की औद्योगिक नीतियों में पूरक का काम कर रही है। इसकी शुरुआत मैं ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री से करता हूँ।

भौगोलिक दृष्टि से मध्यप्रदेश भारत के केंद्र में स्थित है। राज्य की भौगोलिक स्थिति ऑटोमोबाइल उत्पादन के लिए आदर्श है, विशेषकर घरेलू उपभोग के लिए। मध्यप्रदेश और पड़ोसी राज्यों की कुल आबादी देश की 50 फीसदी आबादी के बराबर है। मध्यप्रदेश में उत्पादन करके कंपनियाँ एक जगह से भारत के ज़्यादातर हिस्से में आपूर्ति कर सकती हैं। यही नहीं किफ़ायती अर्थव्यवस्था का लाभ भी ले सकती हैं, लेकिन हम सिर्फ भौगोलिक लाभ पर निर्भर नहीं कर रहे हैं। यदि केंद्र ने उत्पाद शुल्क में कमी, ऑटोमेटिव मिशन योजना, NATRiP, नेशनल मिशन फॉर इलेक्ट्रिक मोबिलिटी 2020 औरFAME (Faster Adaption and Manufacturing Hybrid Land Electric Vehicle) जैसी अनुकूल नीतियाँ शुरू की हैं, तो मध्यप्रदेश सरकार भी कई प्रोत्साहन दे रही है।

इनमें वैट, सीएसटी, प्रवेश कर, विद्युत शुल्क (बिजली की दरों में रियायत) शामिल है, ताकि अन्य उपकरणों के निर्माताओं को आकर्षित किया जा सके। इसके अलावा राज्य सरकार ने निवेश सुविधा के लिए एक सिंगल विंडो सचिवालय की स्थापना की है। हमने इसे MadhyaPradesh Trade and Investment Felicitation Corporation Limited (एमपी ट्राईफैक) का नाम दिया है। एमपी टाइफेक के माध्यम से उन सभी स्वीकृतियों के लिए ऑनलाइन आवेदन करने की सुविधा प्रदान की जाती है, जो राज्य में व्यापार स्थापित करने के लिए आवश्य होती हैं।

इस स्थिति में मैं यह बात ज़ोर देकर कहना चाहता हूँ कि राज्य में ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री स्थापित करने का हमारा आमंत्रण सिर्फ वित्तीय प्रोत्साहन और ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस तक सीमित नहीं है। हमने औद्योगिक विकास के लिए पर्याप्त आधारभूत ढाँचा स्थापित किया है। ऑटोमेटिव इंडस्ट्री के लिए राज्य सरकार ने इंदौर के निकट टीकमपुर में एक विशेष क्लस्टर बनाया है। सच तो यह है कि मध्यभारत की वाणिज्यिक राजधानी इंदौर और उसके आसपास का क्षेत्र मध्यप्रदेश का ऑटोमोबाइल  और इंजीनियरिंग उद्योग का केंद्र है। 2 हज़ार हेक्टेयर में फैले पीथमपुर ऑटोक्लस्टर में 90 से ज़्यादा बड़ी और 700 छोटी और मध्यम इकाइयाँ काम कर रही हैं, जिनमें करीब 25 हज़ार से ज़्यादा लोगों को रोजगार मिला है।

 

विश्वस्तरीय आधारभूत ढाँचा प्रदान करने के लिए केंद्र और राज्य ने परस्पर सहयोग किया है। 3000 एकड़ में फैला एशिया का सबसे बड़ा टेस्टिंग ट्रैक एरिया, नेशनल ऑटोमेटिव टेस्ट ट्रैक (NATTRAX) को पीथमपुर का गहना कहा जा सकता है।  11.3 किमी अत्याधुनिक टेस्ट ट्रैक पर वाहनों की गति और क्षमता एवं आवाज़ कंपन्न तथा कठोरता का पता लगाया जा सकता है। वर्णमाला के अनुसार अब मैं अक्षर A से D की तरफ बढ़ता हूँ और रक्षा उत्पादन क्षेत्र को बढ़ावा देने के हमारे प्रयासों को साझा करता हूँ। ये सब भी हम केंद्र के सहयोग से कर रहे हैं।

इससे पहले कि मैं इस इंडस्ट्री के लिए मध्यप्रदेश सरकार के नीतिगत पहल का उल्लेख करूँ, मैं पहले निजी क्षेत्र की सहभागिता को आमंत्रित करने की आवश्यकता की व्याख्या करना चाहता हूँ।

भारतीय थल सेना दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी, वायु सेना चौथी सबसे बड़ी और नौसेना सातवीं सबसे बड़ी है। सैन्य खर्च के मामले में हम दुनिया के शीर्ष 10 देशों में शामिल हैं। अविश्वसनीय रूप से हम दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातक देश का दर्जा हासिल किये हुए हैं। यह हमारे लिए अशोभनीय है कि हमारी 60 फीसदी रक्षा जरूरतें आयात से पूरी होती हैं, जबकि हम स्वयं भी रक्षा उत्पादों का घरेलू स्तर पर निर्माण कर रहे हैं। यह अलग बात है कि रक्षा उत्पादों के निर्माण में हमें भारी मात्रा में घटकों (component) को आयात करना पड़ता है।

 

यही कारण है कि भारत सरकार रक्षा उत्पादन नीति 2011 के तहत रक्षा उपकरणों के स्वदेशी उत्पादन को प्रोत्साहन दे रही है। अब वैश्विक स्तर पर खरीद की बजाय भारतीय ख़रीदो या भारत में बनाओ को स्पष्ट रूप से प्राथमिकता दी जा रही है। इसी के अनुरूप औद्योगिक लाइसेन्सिंग के लिए रक्षा उत्पादों की सूची से बड़ी संख्या में उपकरणों, कलपुर्ज़ों, कास्टिंग, फोर्ज़िंग्स को हटा दिया गया है।

 

यह निर्णय जून 2014 में लिये गये। यही नहीं, केंद्र ने इस क्षेत्र ने औटोमेटिव रूट के अंतर्गत 49 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को अनुमति दी है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की यह सीमा छोटे शस्त्रों और साजो-सामान के उत्पादन पर भी लागू कर दी गई है। ये छोटे शस्त्र और साजो-सामान शस्त्र अधिनियम 1959 की परिधि में आते हैं। मैं केंद्र की इस सोच का समर्थन करता हूँ कि सामरिक रक्षा क्षेत्र को निजी क्षेत्र की सहभागिता के लिए खुलने से विदेशी मूल उपकरण निर्माताओं को भारतीय कंपनियों के साथ रणनीतिक साझेदारियाँ करने में मदद मिलेगी।

मेरा मानना है कि इससे हम आत्मनिर्भर होंगे और हमारा आयात खर्च भी घटेगा। आइये, अब मैं इस क्षेत्र में निजी क्षेत्र की सहभागिता को आमंत्रित करने के लिए मध्यप्रदेश सरकार द्वारा उठाये गये कदमों की बात करता हूँ।

राज्य की रक्षा उत्पादन निवेश संवर्धन नीति के अंतर्गत हम 5 मुख्य क्षेत्रों में सहायता प्रदान करते हैं। ये क्षेत्र हैं-सरकारी ज़मीन के आवंटन में रियायत,विशेष अनुदान, तकनीकी सहायता/सपोर्ट, सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रमों के साथ रक्षा क्षेत्र में संयुक्त उपक्रमों का समर्थन और इकाइयों की स्थापना के लिए विशेष प्रोत्साहन। इसके अंतर्गत हम सरकारी ज़मीन के आवंटन में भारी वित्तीय रियायत प्रदान करते हैं। उत्पादन शुरू करने के लिए हम पाँच वर्ष की परिपक्वता अवधि भी प्रदान करते हैं। आवंटित भूमि के सम्पूर्ण प्रयोग के लिए हम 10 वर्ष की अवधि भी देते हैं। तकनीक हस्तांतरण की महत्ता को देखते हुए हमने विशेष प्रावधान किये हैं। इसके अंतर्गत निर्माण इकाइयों को तकनीक हस्तांतरण के खर्चे की 50 फीसदी प्रतिपूर्ति कुछ शर्तों के साथ की जाती है। मध्यप्रदेश सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की रक्षा इकाइयों के साथ संयुक्त उपक्रमों में सक्रिय सहयोग कर रही है। इस खंड के अंतर्गत 10 अरब या उससे ज़्यादा की परियोजनाओं के लिए 100 एकड़ तक भूमि अनुदानित दरों पर दी जा रही है। इस तरह की परियोजनाओं के लिए सड़क और विद्युत आधारभूत ढाँचा प्रदान करने का दायित्व राज्य सरकार ने लिया है। राज्य सरकार स्टाम्प ड्यूटी और पंजीकरण शुल्क की भी सौ फीसदी प्रतिपूर्ति करे। यदि इन सबको जोड़ लिया जाये, तो राज्य सरकार की ओर से प्रदान की जा रही प्रोत्साहन राशि करीब 5 अरब रुपये से ज़्यादा होगी।

 

इसके अलावा राज्य सरकार का औद्योगिक भूमि बैंक का भी प्रस्ताव है। विनिर्माण के लिए भोपाल-इटारसी और जबलपुर-कटनी क्षेत्र में राज्य ने 650हेक्टेयर औद्योगिक बैंक भूमि सुनिश्चित किया है। अन्य महत्वपूर्ण खंडों (Segment)- निर्माण, मरम्मत और ओवरहॉल (Manufacture, Repair and Overhaul-MRO) – राज्य के भिंड, शिवपुरी, ग्वालियर, मुरैना, सिवनी, उज्जैन और नीमच में 3700 हेक्टेयर से ज़्यादा भूमि उपलब्ध है। इसके अलावा, हम बिजली और पानी के साथ-साथ सड़क, रेल और हवाई संपर्क की पेशकश कर रहे हैं।

 

इसके अलावा हम पानी एवं बिजली के साथ शानदार सड़क, रेल और एयर कनेक्टिविटी भी उपलब्ध करा रहे हैं। इसी वर्णमाला के क्रम में आगे बढ़ते हुए अब मैं  ESDM सिस्टम को बढ़ावा देने के राज्य के प्रयासों की जानकारी देना चाहता हूँ-

ESDM जैसा कि आप जानते हैं -Electronic System Design and Manufacturing है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद, सेमी कंडक्टर डिज़ाइन और इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन जैसे सब सेक्टर भी शामिल हैं। सीधे शब्दों में कहें तो इस सेक्टर में बाज़ार में सबसे ज़्यादा बिकने वाले उत्पाद जैसे मोबाइल फोन, फ्लैट डिस्प्ले वाले टेलीविज़न और टैबलेट्स शामिल हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि यह सेगमेंट सूचना और संचार प्रोद्योगिकी क्षेत्र का सबसे तेज़ी से बढ़ता हुआ सेगमेंट है।

इस सेक्टर में मौजूद संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार की National Policy on Electronic (NPP) में करीब 200 से ज़्यादा इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्यूफैक्चरिंग क्लस्टर्स स्थापित करने का प्रस्ताव किया गया है। 2020 तक इस सेक्टर में माँग और आपूर्ति में अंतर करीब 296 अरब डॉलर से ज़्यादा होने का अनुमान है। केंद्र ने औटोमैटिक रूट के अंतर्गत इस सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की 100 फीसदी अनुमति भी दी है।

 

इसके अलावा डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटी मिशन और नेशनल सोलर मिशन जैसे ख्यातिप्राप्त अभियान भी चल रहे हैं। केंद्र की तरह मध्यप्रदेश भी ESDM सेक्टर को तेज़ी से बढ़ावा दे रहा है। केंद्र सरकार की योजनाओं जैसे डिजिटल इंडिया, इलेक्ट्रॉनिक्स क्लस्टर्स योजना, स्मार्ट सिटी मिशन और नेशनल सोलर मिशन जैसी योजनाओं के क्रियान्वयन में न केवल राज्य सरकार अग्रणी है, बल्कि राज्य ने इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों के शून्य आयात का लक्ष्य भी निर्धारित किया है।

 

विशेष बात यह है कि मध्यप्रदेश पहला ऐसा राज्य है, जिसने Analog Semiconductor Fabrication नीति जारी की है। आज राज्य भर में Electronic Manufacturing Cluster विकसित किये जा रहे हैं, ताकि आने वाली इकाइयों को अत्याधुनिक आधारभूत ढाँचा प्रदान किया जा सके। इसके अतिरिक्त राज्य की आईटी नीति और Analog Semiconductor Fabrication नीति के तहत वित्तीय प्रोत्साहन भी प्रदान किये जा रहे हैं। इन नीतियों के तहत ढेरों रियायतें प्रदान की जाती हैं, जिनमें रियायती दर पर भूमि, कर प्रतिपूर्ति, पूँजीगत अनुदान और ब्याज अनुदान शामिल है। इस लेख का समापन मैं ESDM सेक्टर से संबंधित औद्योगिक भूमि बैंक के आँकड़ों से करूँगा। हम राज्य भर में 391 एकड़ के करीब भूमि प्रदान कर रहे हैं। हम यह सब दो उद्देश्यों के लिए कर रहे हैं। पहले हम भावी निवेशकों को राज्य में आमंत्रित करना चाहते हैं और दूसरा उद्देश्य यह है कि हजारों स्थानीय युवकों को रोजगार प्रदान करना चाहते हैं। कुल मिलाकर यदि सबका साथ, सबका विकास न हो, तो विकास का मतलब क्या है?

(लेखक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।)

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