अपने अधिकारों के लिए जागरूक होती स्त्री

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मनोज कुमार
8 मार्च कैलेण्डर की एक तारीख मात्र नहीं है बल्कि महिला सशक्तिकरण की वह तारीख है जो पितृ समाज को इस बात का एहसास दिलाती है कि महिलाएं हर सेक्टर में बराबरी के साथ काम कर सकती हैं। बल्कि कई सेक्टर ऐसे हैं जिसमें महिलाओं का दखल सबसे ऊपर है। भारतीय संविधान में महिलाओं को बराबरी का अधिकार दिया गया है। कई बार कानून की जानकारी ना होने के कारण महिलाएं अपने अधिकारों से वंचित रहती हैं। पितृ पुरुष समाज भी नहीं चाहता कि महिलाएं उनके समकक्ष खड़ी हों, इसलिए भी वह कानून से महिलाओं को परे रखता है। हालांकि समय बदल रहा है और महिलाओं में जागरूकता बढ़ रही है। अब वे ना केवल अपने अधिकारों के लिए आगे आ रही हैं बल्कि अन्याय के खिलाफ लामबंद भी हो रही हैं। पिछले दिनों मीटू इसका ताजा तरीन उदाहरण है जिसमें सभी सेक्टर से महिलाएं अन्याय के खिलाफ उठ खड़ी हुई थीं। यह एक अच्छा संकेत है कि समाज बदल रहा है। एक बार जान लेते हैं कि कानून में महिलाओं को क्या-क्या अधिकार प्राप्त है। महिला सशक्तिकरण की अवधारणा भिन्न है जैसे की औरतों को आर्थिक, सामाजिक, राजनितिक और मानशिक रूप से मजबूत बनाना. कुछ समय पूर्व विश्व आर्थिक मंच की तरफ से ग्लोबल जेंडर इंडेक्स नामक एक आयोजन किया गया था जिसमे सभी राष्ट्र्रों की लैंगिग समानता को दर्शाया गया और वहां भारत का स्थान 87वां था। जिससे ये साबित हो जाता है की अभी हम कितने पीछे हैं। और यदि हम लैंगिग समानता नहीं कर पाए तो हमारे देश का आगे बढऩा मुमकिन नहीं। इसी अवधारणा को ध्यान में रखकर महिला सशक्तिकरण पर पूरा जोर दिया गया ताकि महिलाएं सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक और मानसिक रूप से सशक्त बनकर पुरुषों के साथ कदमताल कर सकें।महिला सशक्तिकरण के लिए संयुक्त राष्ट्र के अनुसार मुख्य रूप से पांच कारण सुझाएं हैं जिसमें  1. महिलाओं में आत्म मूल्य की भावना जगाना, 2. उन्हें उनके निर्णय लेने की आजादी देना और उनके अधिकार से अवगत कराना। 3. हर जगह उन्हें पुरुष के बराबर समान अधिकार दिलाना और संबिधान में एक सही जगह बनाना 4. चाहें घर हो या बाहर उन्हें अपने मन चाहे तरीके से काम करने देने की आजादी 5. अधिक सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को आगे तक ले जाने में महिलाओं को उनके अधिकार दिलाना है। भारत में महिलाओं की स्थिति बेहतर करने के लिए कानूनन ऐसे अधिकार प्रदान किए गए हैं जिससे उनके अधिकारों का हनन ना हो सके। इनमें प्रमुख रूप से हैं-समान वेतन का अधिकार- समान पारिश्रमिक अधिनियम के अनुसार, अगर बात वेतन या मजदूरी की हो तो लिंग के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया जा सकता। वर्किंग प्लेस में उत्पीडऩ के खिलाफ कानून- यौन उत्पीडऩ अधिनियम के तहत आपको वर्किंग प्लेस पर हुए यौन उत्पीडऩ के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने का पूरा हक है। केंद्र सरकार ने भी महिला कर्मचारियों के लिए नए नियम लागू किए हैं, जिसके तहत वर्किंग प्लेस पर यौन शोषण की शिकायत दर्ज होने पर महिलाओं को जांच लंबित रहने तक 90 दिन की पेड लीव दी जाएगी। इसी तरह नाम न छापने का अधिकार- यौन उत्पीडऩ की शिकार महिलाओं को नाम न छापने देने का अधिकार है, अपनी गोपनीयता की रक्षा करने के लिए यौन उत्पीडऩ की शिकार हुई महिला अकेले अपना बयान किसी महिला पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में या फिर जिलाधिकारी के सामने दर्ज करा सकती है। मुफ्त कानूनी मदद के लिए अधिकार- बलात्कार की शिकार हुई किसी भी महिला को मुफ्त कानूनी मदद पाने का पूरा अधिकार है। रेप की शिकार हुई किसी भी महिला को मुफ्त कानूनी मदद पाने का पूरा अधिकार है। पुलिस थानाध्यक्ष के लिए ये जरूरी है कि वो विधिक सेवा प्राधिकरण को वकील की व्यवस्था करने के लिए सूचित करे।मातृत्व संबंधी लाभ के लिए अधिकार- मातृत्व लाभ कामकाजी महिलाओं के लिए सिर्फ सुविधा नहीं बल्कि ये उनका अधिकार है। मातृत्व लाभ अधिनियम,1961 के तहत मैटरनिटी बेनिफिट्स हर कामकाजी महिलाओं का अधिकार है। मैटरनिटी बेनिफिट्स एक्ट के तहत एक प्रेग्नेंट महिला 26 सप्ताह तक मैटरनिटी लीव ले सकती है. इस दौरान महिला के सैलरी में कोई कटौती नहीं की जाती है। कन्या भू्रण हत्या के खिलाफ अधिकार- भारत के हर नागरिक का ये कर्तव्य है कि वो एक महिला को उसके मूल अधिकार- ‘जीने के अधिकार’ का अनुभव करने दें। गर्भाधान और प्रसव से पूर्व पहचान करने की तकनीक (लिंग चयन पर रोक) अधिनियम कन्या भू्रण हत्या के खिलाफ अधिकार देता है। संपत्ति पर अधिकार- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत नए नियमों के आधार पर पुश्तैनी संपत्ति पर महिला और पुरुष दोनों का बराबर हक है। इसी तरह पिता की संपत्ति पर अधिकार- भारत का कानून किसी महिला को अपने पिता की पुश्तैनी संपति में पूरा अधिकार देता है। अगर पिता ने खुद जमा की संपति की कोई वसीयत नहीं की है, तब उनकी मौत के बाद संपत्ति में लडक़ी को भी उसके भाइयों और मां जितना ही हिस्सा मिलेगा यहां तक कि शादी के बाद भी यह अधिकार बरकरार रहेगा। पति की संपत्ति से जुड़े हक- शादी के बाद पति की संपत्ति में तो महिला का मालिकाना हक नहीं होता, लेकिन वैवाहिक विवादों की स्थिति में पति की हैसियत के हिसाब से महिला को गुजारा भत्ता मिलना चाहिए,पति की मौत के बाद या तो उसकी वसीयत के मुताबिक या फिर वसीयत न होने की स्थिति में भी पत्नी को संपत्ति में हिस्सा मिलता है। शर्त यह है कि पति केवल अपनी खुद की अर्जित की हुई संपत्ति की ही वसीयत कर सकता है, पुश्तैनी जायदाद की नहीं।घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार- ये अधिनियम मुख्य रूप से पति, पुरुष लिव इन पार्टनर या रिश्तेदारों द्वारा एक पत्नी, एक महिला लिव इन पार्टनर या फिर घर में रह रही किसी भी महिला जैसे मां या बहन पर की गई घरेलू हिंसा से सुरक्षा करने के लिए बनाया गया है,आप या आपकी ओर से कोई भी शिकायत दर्ज करा सकता है। पति-पत्नी में न बने तो- अगर पति-पत्नी साथ न रहना चाहें, तो पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने और बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांग सकती है, अगर नौबत तलाक तक पहुंच जाए, तब हिंदू मैरिज ऐक्ट की धारा 24 के तहत मुआवजा राशि तय होती है, जो कि पति के वेतन और उसकी अर्जित संपत्ति के आधार पर तय की जाती है। रात में गिरफ्तार न होने का अधिकार- आपराधिक प्रक्रिया संहिता, सेक्शन 46 के तहत एक महिला को सूरज डूबने के बाद और सूरज उगने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता. किसी खास मामले में एक प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के आदेश पर ही ये संभव है। बिना वारंट के गिरफ्तार की जा रही महिला को तुरंत गिरफ्तारी का कारण बताना जरूरी होता है। उसे जमानत से जुड़े उसके अधिकारों के बारे में भी जानकारी दी जानी चाहिए, साथ ही गिरफ्तार महिला के नजदीकी रिश्तेदारों को तुरंत सूचित करना पुलिस की ही जिम्मेदारी है। गरिमा और शालीनता के लिए अधिकार- किसी मामले में अगर आरोपी एक महिला है तो, उसपर की जाने वाली कोई भी चिकित्सा जांच प्रक्रिया किसी महिला द्वारा या किसी दूसरी महिला की उपस्थिति में ही की जानी चाहिए। यूं तो महिलाओं के सशक्तिकरण का अर्थ है कि महिलाओं को अपनी जिंदगी का फैसला करने की पूरी आजादी देना या उनमें ऐसी क्षमताएं पैदा करना जिससे की वे समाज में अपना सही स्थान पा सकें। भारत का संविधान दुनिया में सबसे अच्छा समानता प्रदान करने वाले दस्तावेजों में से एक है। यह विशेष रूप से लिंग समानता को सुरक्षित करने के प्रावधान प्रदान करता है। महिला सशक्तिकरण का अर्थ है कि औरतों के अंदर की क्षमता को समझते हुए उन्हें उनके फैसले खुद करने देने का अधिकार. इसे इंग्लिश में (वुमन एम्पावरमेंट) कहते है. औरतों की शक्तियों को बढ़ाने के लिए पूरीे दुनिया में महिला दिवस भी मनाया जाता है। इस महिला सशक्तिकरण का मुख्य कारण ये है की औरतों पर हो रहे अत्याचारों को रोका जाये और औरतों को उनके अधिकारों के बारें में उन्हें जागरूक किया जाये। और हमे भी ये समझना होगा की यदि हमारे देश को आगे बढऩा है तो हमे औरतों को पूरा मान सम्मान देना चाहिए और उनके अधिकारों को उनसे नहीं छीनना चाहिए।

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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