अपनी बोली, अपनी बात ‘रमन के गोठ’ के साथ

0
174

ramanसंवाद का सबसे सहज और सरल माध्यम होता है अपनी भाषा। जब सरकार अपनी भाषा में जनता से संवाद करे तो न केवल आम आदमी का सरकार के प्रति विश्वास बढ़ता है बल्कि संवाद का यह सिलसिला लोगों को आपस में जोड़ता है। संवाद के जरिये लोगों को जोड़ने का अभिनव प्रयास किया है छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह ने। छत्तीसगढ़ भौगोलिक रूप से भले ही छोटा दिखे लेकिन यह बात उन लोगों को ठीक से पता है कि अकेले बस्तर का क्षेत्रफल ही देश के केरल प्रदेश जितना है। ऐसे ही दुर्गम स्थानों तक संवाद करने का सबसे सुघड़ माध्यम है रेडियो। रेडियो क्यों सरल और सहज है, यह समझ पाना मुश्किल नहीं है क्योंकि तकनीकी रूप से यह सर्वाधिक सरल यंत्र है। यह शिक्षितों और अशिक्षितों दोनों के लिए उपयोगी है क्योंकि टेलीविजन की तरह बिजली सप्लाई की जरूरत नहीं और न ही अखबारों की तरह कागज और छपाई की लम्बी और खर्चीली विधा। रेडियो सुनने के लिए दो बैट्री की जरूरत होती है जिसे अपनी सुविधा के अनुसार काम में जाते हुए, आराम करते हुए या सब लोगों के बीच एक रेडियो सेट रखकर सुना जा सकता है।

रेडियो की इस ताकत को महात्मा गांधी ने समझा और संवाद का माध्यम बनाया था। पराधीन भारत में आम आदमी तक अंग्रेजों के खिलाफ संदेश पहुंचाने में रेडियो कारगर माध्यम था तो इसी ताकत को माध्यम बनाकर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम का आरंभ किया। इसे विस्तार देते हुए डॉ. रमनसिंह ने छत्तीसगढ़ की जनता से संवाद करने के लिए चुना। “रमन के गोठ** नाम से इस रेडियो कार्यक्रम में रमनसिंह ने अभिनव प्रयोग किया और राज्य की जनता से छत्तीसगढ़ी भाषा में संवाद करने की आरंभ किया। जब भी अपनी भाषा-बोली में बात होगी, वह दिल से गुजरेगी और ^^रमन के गोठ** अपने मकसद को पूरा करती दिखती है। मुख्यमंत्री रमनसिंह की कोशिश है कि वह अपने इस अभिनव कार्यक्रम के माध्यम से जनता से सीधे जुड़ सकें, उनसे बात कर सकें। सरकारी योजनाओं को लोगों तक पहुंचा सकें और बातचीत में तकलीफों को जानकर उसके निदान की तरफ सरकार को प्रोत्साहित कर सके।

“रमन के गोठ** ने राज्य के लोगों में उत्साह का संचार किया है। सबके मन में होता है कि उनका मुख्यमंत्री, उनसे बात करें, उनकी सुने और उन्हें दिलासा दिलाये कि सरकार उनके प्रति सोच रही है। कहना न होगा कि इस कार्यक्रम ने वह सबकुछ पाने में कामयाबी पायी है जिस सोच के साथ इसे आरंभ किया गया था। सरकार जनकल्याण की अनेक योजनाएं बनाती है और भरसक यत्न करती है कि वह आम आदमी की उम्मीदों पर खरा उतरे। लेकिन व्यवहार के तौर पर देखें तो अक्सर योजनायें या तो आम आदमी तक नहीं पहुंच पाती या फिर लोगों को इस बात का पता नहीं होता है कि आखिरकार इन योजनाओं का लाभ लेने का माध्यम क्या है। सरकार के पास भी इस बात का कोई पैमाना नहीं है कि वह जांच सके कि योजनाएं कहां तक पहुंची और लाभांवितों की संख्या कितनी है। सरकार यह भी जानना चाहती है कि लोगों की राय क्या है और आम आदमी की राय के अनुरूप वह योजनाओं में फेरबदल कर सकती है लेकिन यह सब संभव नहीं हो पाता था। ^^रमन के गोठ** ने इन सब समस्याओं का हथेली पर हल रख दिया है। आम आदमी से संवाद , संवाद से सुझाव और सुझाव से सुगम रास्ते पर सरकार चल पड़ी है।

“रमन के गोठ** ने सरकार और आम आदमी के बीच संवाद का सिलसिला आरंभ किया है। संवाद ऐसा जो दोनों को अपना सा लगता है। जो दोनों के बीच की दूरियां खत्म करता है और वह रास्ता बनाता है जिसके माध्यम से सरकार आम आदमी तक पहुंचती है। छत्तीसगढ़ में रेडियो ने यह रास्ता बनाया है जिसके माध्यम से चलकर कर आम आदमी सरकार के पास और सरकार आम आदमी से रूबरू हो रही है। एक पहल है जो लोगों को जगाती है और बताती है कि हौसला हो तो कोई राह मुश्किल नहीं।

 

Previous articleमेरा दर्द मेरा साथी
Next articleमनुष्य जन्म की पृष्ठभूमि, कारण एवं परम उद्देश्य
मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here