वास्तु से ही हो सकता है इस देश का कायाकल्प!

-राजकुमार झांझरी-

Narendra_Modi
नरेन्द्र मोदी गुजरात मॉडल का झुनझुना दिखाकर देश के प्रधानमंत्री बन गये। उन्होंने लोगों में यह उम्मीद जगाई कि गुजरात के विकास हेतु जिस मॉडल का अनुसरण किया गया है, उसी मॉडल से देश को भी विकास के रास्ते पर अग्रसर किया जा सकता है। लेकिन गुजरात मॉडल के झुनझुने से विमुग्ध होकर नरेन्द्र मोदी व उनकी पार्टी को वोट देने वालों को शायद अहमदाबाद सहित समूचे गुजरात में हाल ही में आई भयंकर बाढ़ से डूबी सड़कों और कई इलाकों के सागर में तब्दील होने की तस्वीरों को देखकर जरूर झटका लगा होगा। नरेन्द्र मोदी ने गुजरात विकास का झुनझुना दिखाकर चुनाव तो जीत लिया लेकिन चंद घंटों की बारिश ने ही गुजरात मॉडल के तिलस्म को पूरी तरह से धो दिया। प्रकृृति ने एक बार पुन: साबित कर दिया कि मनुष्य कितना भी दम भर ले, प्रकृृति को वह वश में नहीं कर सकता, प्रकृृति उसके बनाये कानून के अनुसार नहीं चलने वाली, मनुष्य को प्रकृृति के कानून के अनुसार चलना होगा।

दरअसल, हमने विकास का जो रास्ता अपनाया है, वह प्रकृृति के दोहन पर निर्भर है न कि प्रकृृति के साथ सामंजस्य पर आधारित। अगर हम प्रकृृति के साथ ताल मिलाकर चलें तो न सिर्फ हम प्रकृृति के प्रकोप से बच सकते हैं, अपितु प्रकृृति की कृृपा से देश का भी पूरी तरह कायाकल्प हो सकता है। पंच तत्वों से निॢमत प्रकृृति में उत्तर-पूर्व के कोने को पानी का स्थान बताया गया है। विगत दो दशकों में १५ हजार से ज्यादा परिवारों का नि:शुल्क वास्तु देखने व उनके घरों में वास्तु दोष संशोधन से प्राप्त अनुभव के आधार पर मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि अगर भारत सरकार गृह निर्माण के नियमों में संशोधन कर यह कानून लागू करे कि देश में जो भी मकान बनायें जायें, उनमें उत्तर-पूर्व के कोने में एक कुआं अथवा शॉकपिट बनाया जाय और मकान की छत से गिरने वाला बारिश का पानी सड़कों पर आने के बजाय उस कुएं अथवा शॉकपिट के जरिये जमीन के अंदर समा जाये। इस बीच जो मकान बनाये जा चुके हैं, उन्हें भी इस कानून के दायरे में लाया जाय और उनके मकान की छत का वर्षा का पानी उनके घर के ही कुएं अथवा शॉकपिट में समाने की व्यवस्था करने का निर्देश दिया जाय। इस नियम से सरकार को एक पैसे का खर्च नहीं होने वाला है, लेकिन इससे मिलने वाला फायदा इस देश के कायाकल्प में काफी हद तक मददगार हो सकता है। वर्षा का पानी जब सड़कों पर आने के बजाय लोगों के घरों में बने कुँओं अथवा शॉकपिटों के जरिये जमीन के अंदर जाने लगेगा तो सड़कों पर पैदा होने वाली जलभराव की समस्या काफी हद तक सुलझ जायेगी। दूसरी ओर वर्षा का काफी जल नदियों-नालों में बह जाने के बजाय जमीन के अंदर प्रविष्ट होने लगेगा तो उससे भू-जल की भयंकर होती समस्या से काफी हद तक निजात पाया जा सकेगा। प्रसिद्ध परिवेशविद विनोद जैन के हवाले से एक अखबार में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली में पिछले एक दशक में भूमिजल का स्तर इतनी तेजी से गिरा है इससे आगामी वर्षों में एक-एक बूंद पानी के लिए भीषण घमासान छिड़ने की प्रबल आशंका नजर आने लगी है। परिवेशविद की इस भविष्यवाणी के मद्देनजर केंद्र सरकार को अगर भविष्य में होने वाले जल युद्ध से देश को बचाना है तो उसे तत्काल यह कानून लागू करने की पहल करनी चाहिए।

वास्तु के नजरिये से भी यह कानून काफी महत्वपूर्ण होगा क्योंकि किसी भी घर के उत्तर-पूर्व के कोने में बना कुँआ या जलकुंड परिवार की समृद्धि में काफी मददगार होता है। उत्तर-पूर्व में बने कुंए अथवा शॉकपिट में छत का पानी गिरने के लिए यह जरूरी होगा कि मकान की छत दक्षिण-पश्चिम में ऊँची हो और उत्तर-पूर्व में उसकी ढलान हो। उत्तर-पूर्व में जल स्त्रोत होने और छत की ढलान उत्तर-पूर्व की ओर होने से परिवार में न सिर्फ समृद्धि आती है, बल्कि कामों में आने वाली बाधा भी काफी हद तक दूर हो जाती है। इस कानून का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि देश के लोगों की अथक हालत सुधारने का रास्ता खुल जायेगा। इस प्रकार इस कानून के लागू करने से जहाँ शहरों-नगरों में होने वाली जल-जमाव की समस्या से काफी हद तक निजात मिलेगी, वहीं भू-जल की विकट होती समस्या से निपटने भी देश को काफी मदद मिलेगी। नागरिकों की आॢथक उन्नति भी देश के विश्व की सबसे बड़ी अथक ताकत बनने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होगी।

देश के चहुँमुखी विकास हेतु केंद्र सरकार को वास्तु की मदद लेने में नहीं हिचकिचाना चाहिए। अगर चंद्रबाबू नायडू अपनी पार्टी को विजयी बनाने के लिए चुनावों के पूर्व अपने पार्टी कार्यालय को वास्तु सम्मत बना सकते हैं, तेलंगाना के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव दीर्घावधि तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कायम रहने के लिए सरकारी बंगले को वास्तु सम्मत कर सकते हैं, तो फिर देश को उन्नति के शिखर पर ले जाने का वादा कर सत्ता में आये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के विकास के लिए वास्तु के इस सूत्र का प्रयोग क्यों नहीं कर सकते?

1 COMMENT

  1. श्री मान , एक बंगले को वास्तुनुरूप बनाना और देश के हर माकन को वस्तुनुरूप बनाने में अंतर है , इसके व्याहारिक पक्ष पर शायद आपने गौर किया होता तो सलाह न देते , खैर आपके सुझाव देने की आजादी का हम आदर करते हुए इसे नकारने का दुःसाहस करते हैं

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