घट रहे हैं पेड़

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संदर्भः- वैश्विक वृक्ष गणना

प्रमोद भार्गव

वैश्विक-फलक पर सबसे अहम् गणना,जनगणना मानी जाती है। हालांकि पालतू-पशु,वन्य जीव और वृक्षों की गिनती भी होती रही हैं,लेकिन इन्हें जनगणना के मुकाबले अहमियत नहीं दी जाती। यही वजह रही कि विश्व स्तर पर वृक्षों की की गई गिनती के निष्कर्शों को समाचार माध्यमों ने उतना महत्व नहीं दिया,जितना दिया जाना चाहिए था,जबकि पेड़ों की अस्मिता पर ही मनुष्य व अन्य प्राणियों का जीवन टिका हुआ है। गोया,पेड़ एक ऐसी प्राकृतिक संपदा है,जिसका यदि विनाश होता है तो मनुष्य का सुखद जीवन भी संभव नहीं है।

treesजब से मानव सभ्यता के विकास का क्रम शुरू हुआ है,तब से लेकर अब तक वृक्षों की संख्या में 46 प्रतिशत की कमी आई है। पेड़ों की गिनती के अब तक के सबसे समग्र वैश्विक अभियान में दुनिया भर के वैज्ञानिक समूहों ने यह निष्कर्श निकाला है। इस अध्ययन का आकलन है कि विश्व में तीन लाख करोड़ वृक्ष हैं। यानी मोटे तौर पर प्रति व्यक्ति 422 पेड़ हैं। हालांकि यह आंकड़ा पूर्व में आकलित अनुमानों से साढ़े सात गुना ज्यादा बताया जा रहा है। दरअसल पूर्व के वैश्विक आकलनों ने तय किया था कि दुनिया भर में महज 400 अरब पेड़ लहरा रहे हैं। मसलन प्रति व्यक्ति पेड़ों की संख्या 61 है। यह आकलन व्यक्ति आधारित था,इसलिए इसकी प्रामाणिकता पर संदेह था। दरअसल दुनिया में अभी भी ऐसे दुर्गम स्थलों पर जंगलों का विस्तार है,जहां सर्वेक्षण में लगे मानव-समूहों का पहुंचना और पहुंचकर सर्वे करना आसान नहीं है। क्योंकि इन जंगलों में एक तो अभी भी रास्ते नहीं हैं,दूसरे,खतरनाक वन्य-जीवों की मौजदूगी है।

पेड़ों की यह गिनती उपग्रह द्वारा ली गई छवियों के माध्यम से की गई है। इस गणना को तकनीक की भाषा में ‘सेटेलाइट इमेजरी‘ कहते हैं। इस तकनीक से पूरा सर्वे वन-प्रांतरों में लिया गया है। इसमें जमीनी स्तर पर कोई आंकड़े नहीं जुटाए गए हैं। इस अध्ययन की विस्तृत रिपोर्ट प्रतिष्ठित जनरल ‘नेचर‘ में छपी है। रिपोर्ट के मुताबिक पेड़ों की उच्च सघनता रूस,स्कैंडीनेशिया और उत्तरी अमेरिका के उप आर्कटिक क्षेत्रों में पाई गई है। इन घने वनों में दुनिया के 24 फीसदी पेड़ हैं। पृथ्वी पर विद्यमान 43 प्रतिशत,यानी करीब 1.4 लाख करोड़ पेड़ उष्ण कटिबंधीय और उपोष्ण वनों में हैं। इन वनों का चिंताजनक पहलू यह भी है कि वनों या पेड़ों की घटती दर भी इन्हीं जंगलों में सबसे ज्यादा है। 22 फीसदी पेड़ शीतोष्ण क्षेत्रों में हैं।

इस अध्ययन की प्रामाणिकता इसलिए असंगदिग्ध है,क्योंकि इस सामूहिक अध्ययन को बेहद गंभीरता से किया गया है। इस हेतु 15 देषों के वैज्ञानिक समूह बने। इन समूहों ने उपग्रह चित्रों के माध्यम से वन क्षेत्र का आकलन प्रति वर्ग किलोमीटर में मौजूद पेड़ों की संख्या का मानचित्रीकरण में सुपर कंप्युटर तकनीक का इस्तेमाल करके किया है। इस गिनती में दुनिया के सभी सघन वनों की संख्या 4 लाख से भी अधिक है। दुनिया के ज्यादातर राष्ट्रिय वन क्षेत्रों में हुए अध्ययनों को भी तुलना के लिए जगह दी गई। उपग्रह चित्रों के इस्तेमाल से पेड़ों के आकलन के साथ स्थानीय जलवायु,भौगोलिक स्थिति,पेड़-पौधे,मिट्टी की दशाओं पर मानव के प्रभाव को भी आधार बनाया गया। इससे जो निष्कर्श निकले,उनसे तय हुआ कि मानवीय हलचल और उसके जंगलों में हस्तक्षेप से पेड़ों की संख्या में गिरावट की दर से सीधा संबंध है। जिन वन-क्षेत्रों में मनुष्य की आबादी बढ़ी है,उन क्षेत्रों में पेड़ों का घनत्व तेजी से घटा है। वनों की कटाई,भूमि के उपयोग में बदलाव वन प्रबंधन और मानवीय गतिविधियों के चलते हर साल दुनिया में 15 अरब पेड़ कम हो रहे हैं। जिस तरह से भारत समेत पूरी दुनिया में अनियंत्रित औद्योगीकरण,शहरीकरण और बड़े बांध एवं चार व छह पंक्तियों के राजमर्गों की संरचनाएं धरातल पर उतारी जा रही हैं,उससे भी जंगल खत्म हो रहे हैं।

ऐसे समय जब दुनिया भर के पर्यावरणविद् और वैज्ञानिक जलवायु संकट के दिनोंदिन और गहराते जाने की चेतावनी दे रहे हैं,पर्यावरण सरंक्षण में सबसे ज्यादा मददगार वनों का सिमटना या पेड़ों का घटना वैश्विक होती दुनिया के लिए चिंता का अहम् विषय है। विकास के नाम पर जंगलों के सफाए में तेजी भूमंडलीय आर्थिक उदारवाद के बाद आई है। पिछले 15 साल में ब्राजील में 17 हजार,म्यांमार में 8,इंडोनेषिया में 12,मेक्सिको में 7,कोलांबिया में 6.5,जैरे में 4 और भारत में 4 हजार प्रति वर्ग किलोमीटर के हिसाब से वनों का विनाश हो रहा है। यानी एक साल में 170 लाख हेक्टेयर की गति से वन लुप्त हो रहे हैं। यदि वनों के विनाश की यही रफ्तार रही तो जंगलों को 4 से 8 प्रतिशत क्षेत्र,सन् 2015 तक विलुप्त हो जाएगा। 2040 तक 17 से 35 प्रतिशत सघन वन मिट जाएंगे। इस समय तक इतनी विकराल स्थिति उत्पन्न हो जाएगी कि 20 से 75 की संख्या में दुर्लभ पेड़ों की प्रजातियां प्रति दिन नष्ट होने लग जाएंगी। नतीजतन आगामी 15 सालों में 15 प्रतिशत वृक्षों की प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी। इनकी विलुप्ति का असर फसलों पर भी पड़ेगा।

वृक्षों का सरंक्षण इसलिए जरूरी हैं,क्योंकि वृक्ष तीव-जगत के लिए जीवन-तत्वों का सृजन करते हैं। वायु-प्रदुषण,जल-प्रदुषण,भू-क्षरण न हों,पेड़ों की अधिकता से ही संभव है। वर्षा च्रक की नियमित निरंतरता पेड़ों पर ही निर्भर है। पेड़ मनुष्य जीवन के लिए कितने उपयोगी हैं,इसका वैज्ञानिक आकलन भारतीय अनुसंधान परिषद् ने किया है। इस आकलन के अनुसार,उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पर्यावरण के लिहाज से एक हेक्टेयर क्षेत्र के वन से 1.41 लाख रुपए का लाभ होता है। इसके साथ ही 50 साल में एक वृक्ष 15.70 लाख की लागत का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष लाभ देता है। पेड़ लगभग 3 लाख रुपय मूल्य की भूमि की नमी बनाए रखता है। 2.5 लाख रूपए मूल्य की आॅक्सीजन 2 लाख रुपए मूल्य के बराबर प्रोटीनों का सरंक्षण करता है। वृक्ष की अन्य उपयोगिता में 5 लाख रुपए मूल्य के समतुल्य वायु व जल प्रदूषण नियंत्रण और 2.5 लाख रुपए मूल्य के बराबर की भागीदारी पक्षियों,जीव-जंतुओं व कीट-पतंगों को आश्रय-स्थल उपलब्ध कराने के रूप में करता है। वृक्षों की इन्हीं मूल्यवान उपयोगिताओं को ध्यान में रखकार हमारे ऋषि-मुनियों ने इन्हें देव तुल्य माना और इनके महत्व को पूजा से जोड़कर सरंक्षण के अनूठे व दीर्घकालिक उपाय किए। इसलिए भारतीय जनजीवन का प्रकृति से गहरा आत्मीय संबंध है। लेकिन आधुनिक विकास और पैसा कमाने की होड़ ने सरंक्षण के इन कीमती उपायों का लगभग ठुकरा दिया है।

पेड़ों के महत्व का तुलनात्मक आकलन अब शीतलता पहुंचाने वाले विद्युत उपकरणों के साथ भी किया जा रहा है। एक स्वस्थ्य वृक्ष जो ठंडक देता है,वह 10 कमरों में लगे वातानुकूलितों के लगातार 20 घंटे चलने के बराबर होती है। घरों के आसपास पेड़ लगे हों तो वातानुकूलन की जरूरत 30 प्रतिशत घट जाती है। इससे 20 से 30 प्रतिशत तक बिजली की बचत होती है। एक एकड़ क्षेत्र में लगे वन छह टन काॅर्बन डाईआॅक्साइड रखते हैं,इसके उलट चार टन आॅक्सीजन उत्न्पन करते हैं। जो 18 व्यक्तियों की वार्षिक जरूरत के बराबर होती है। हमारी ज्ञान परंपराओं में आज भी ज्ञान की यही महिमा अक्षुण्ण है,लेकिन यंत्रों के बढ़ते उपयोग से जुड़ जाने के कारण हम प्रकृति से निरंतर दूरी बनाते जा रहे हैं। तय है,वैश्विक रिपोर्ट में पेड़ों के नष्ट होते जाने की जो भयावहता सामने आई है,यदि वह जारी रहती है तो पेड़ तो नष्ट होंगे ही,मनुष्य भी नष्ट होने से नहीं बचेगा।

 

 

 

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