राहुलजी आपने देर कर दी… चुनावी ट्रेन तो छूट गई

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-विनोद उपाध्याय-   Digvijay-Rahul
भोपाल। लोकसभा चुनाव को लेकर पार्टी द्वारा कराए गए आंतरिक सर्वे ने कांग्रेस की नींद उड़ा दी है। सर्वे में पार्टी को 70 से 75 सीटें ही मिल रही है। पिछली बार 206 सीटें मिली थी। राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़ में हालत और बिगड़ेंगे। पिछली बार मध्यप्रदेश में 12 सीटें जीतने वाली कांग्रेस को इस बार मुश्किल से 3 सीट मिलती नजर आ रहा है। यही कारण है कि राहुल गांधी ने 20 जनवरी को भोपाल पहुंचकर पदाधिकारियों को हिदायत दी है कि इस बार किसी भी हाल में अधिक-से-अधिक सीटें जीतनी हैं। लेकिन उन्हें कौन बताए की विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद सो रहे कांग्रेसियों को जगाने में उन्होंने देर कर दी है। मप्र में भाजपा अपने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ चुनावी ट्रेन पर सवार होकर तैयारियों में जुट गई है और आपकी ट्रेन छूट गई है।
चिंता…दुविधा…क्या करें
सर्वे से कांग्रेस में काफी हलचल है। नेता दबी जुबान से स्वीकारने लगे हैं कि हालत चिंताजनक हैं। यही कारण है कि पार्टी ने राहुल को आगे कर चुनाव लड़ऩे के फैसले को फिलहाल टाल दिया है। दुविधा है, फिर भी हालात नहीं सुधरे तो राहुल के सिर पर सारी बात आएगी। कांग्रेस को जहां देशभर में नरेंद्र मोदी से वहीं मप्र में शिवराज सिंह चौहान से चुनौती मिल रही थी। अब आप ने परेशानी बढ़ा दी है। आप वोट बैंक पर सेध लगा रही है।
भाजपा में टिकट दावेदारों की भीड़
भाजपा का लक्ष्य 29 सीट में से 27 पर कब्जा करना है। विधानसभा चुनाव में भाजपा को 165 सीट मिली है। इससे भाजपा बेहद गदगद है। यही वजह है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा ने करीब आधा दर्जन से अधिक लोकसभा सीटों पर कांग्रेस के सांसदों को करारी हार दी है। इस गुणा-भाग से भाजपा बेहद उत्साहित है और उसका आकलन है कि 27 सीट जीती जा सकती हैं। यूं भी कांग्रेस का मनोबल विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद गिरा हुआ। इसे पटरी पर लाने की किसी नेता की योजना नहीं है। यही वजह है कि इसका लाभ भाजपा उठाना चाहती है। भाजपा ने अपनी रणनीति के तहत चुनावी तैयारियां शुरू कर दी है ताकि कांग्रेस को एक बार फिर से मैदान में शिकस्त दी जा सके। प्रदेश में भाजपा लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई है। 26 जनवरी तक प्रत्याशियों के पैनल दिल्ली भेजने का निर्णय किया गया है। चुनिंदा सीटों पर विधायकों पर भी दांव लगाने की रणनीति बनाई जा रही है।
कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने तालकटोरा स्टेडियम में जो हुंकार भरी उसकी वाहवाही देश की जनता की बजाए वहां बैठे कांग्रेसी चारण भाटों ने ही की। भाजपा को गंजे को कंघी बेचने वाला तो आम आदमी पार्टी को हेयर कटिंग करने वाला बताने वाले राहुल गांधी को अभी तक यह ही समझ नहीं आया कि वे पक्ष में हैं अथवा विपक्ष में। बाहें चढ़ाते हुए वे जब-तब इस तरह अपनी सरकार को कठघरे में खड़ा करते हैं, मानो नेता प्रतिपक्ष हों। जनता का लाख टके का सवाल यही है कि फैसले लेने से राहुल बाबा आपको रोका किसने था, अब तो जनता खुद उस्तरा लेकर बैठी है और कांग्रेस का मुंडन लगभग तय है, क्योंकि युवराज की नींद भी देर से खुली और चुनावी ट्रेन स्टेशन छोड़ चुकी है।
अभी तक जितने भी सर्वेक्षण या जमीनी रिपोर्ट आ रही है उसके मुताबिक भाजपा के नरेंद्र मोदी मिलों आगे हैं और कांग्रेस को तो आम आदमी पार्टी से ही कड़ी चुनौती मिल रही है। क्योंकि अभी के सर्वे में बतौर प्रधानमंत्री के रूप में भी जहां नरेंद्र मोदी अव्वल रहे, तो राहुल गांधी की तुलना में जनता ने अरविंद केजरीवाल को ज्यादा मत दे दिए। यानी कि राहुल का गुस्सा जायज है। वे एंग्री यंगमैन बनते हुए अगर पुराने विपक्ष यानी भाजपा को गंजों को कंघी बेचने वाला और नए विपक्ष यानी आम आदमी पार्टी को हेयर कटिंग करने वाला बताते हैं। दरअसल सबसे बड़ी दिक्कत राहुल के इर्द-गिर्द रहने वाले घाघ कांग्रेसी नेताओं की है, जिन्होंने कभी भी आलाकमान यानी सोनिया गांधी से लेकर युवराज राहुल को सही फैसले नहीं लेने दिए। ये तेवर अगर एक साल पहले जनवरी 2013 में दिखाए होते तब भी कांग्रेस की इतनी बुरी गत नहीं होती, क्योंकि 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव भी तब सामने थे। कांग्रेस के रणनीतिकारों का ये दिमागी दिवालियापन ही कहा जाएगा कि जिन हिंदी राज्यों में भाजपा सबसे अधिक मजबूत है और लोकसभा में भाजपा का रथ इन राज्यों में ही रोका जा सकता था, उन राज्यों में कांग्रेस ने विधानसभा का चुनाव लगभग पराजित मानसिकता के साथ ही लड़ा और नतीजे में करारी हार ही मिली। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान के साथ-साथ दिल्ली में भी कांग्रेस की हार के यही कारण रहे कि सोनिया-राहुल सही वक्त पर सही निर्णय नहीं ले पाए और घाघ कांग्रेसियों के कहने पर ही न तो मुख्यमंत्री घोषित किए न ढंग के प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करवा पाए और तो और टिकट वितरण में भी सारे फॉर्मूले धराशायी हो गए। जबकि होना यह था कि इन विधानसभा चुनावों के पहले ही कांग्रेस को कड़े निर्णय लेते हुए पूरी दमदारी से चुनाव लड़ऩा था, तभी मोदी के रथ को रोक पाते। मगर कांग्रेस आलाकमान और युवराज को मुगालते में रखा गया, जिसका परिणाम यह हुआ कि अधिकांश राज्यों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया और अब अगर सोनिया-राहुल जागे भी हैं तो बहुत देर हो गई, क्योंकि लोकसभा चुनाव की ट्रेन स्टेशन से छूट चुकी है और उसे पकडऩा अब कांग्रेसियों के बूते में नहीं है और देश की जनता कांग्रेसी शासन से पूरी तरह त्रस्त हो गई है। महंगाई, भ्रष्टाचार जैसे ज्वलंत मुद्दे तो हैं हीं, वहीं अन्य मोर्चों पर भी कांग्रेस कड़े फैसले लेते नजर नहीं आई। अब अगर भाजपा विपक्ष के रूप में गंजे को कंघी बेचे या आम आदमी पार्टी हेयर कटिंग करे, उससे कोई फर्क नहीं पड़ऩे वाला है, क्योंकि जनता ने तो उस्तरा अपने हाथ में ले लिया है और जिस तरह विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का मुंडन किया, वही स्थिति आम चुनाव यानी लोकसभा में भी तय ही है। अब तो कांग्रेस को कोई दैवीय चमत्कार ही बचा सकता है। हालांकि ऐसी आसमानी सुल्तानी हर बार नहीं होती, जो पिछले दो चुनावों में हो गई।
राख के ढेर से ही खड़ी होगी फिर पार्टी
एक कहावत है कि फिनिक्स नामक पक्षी अपनी राख के ढेर से ही पुनर्जीवित हो जाता है। कांग्रेस पार्टी की भी कमोबेश यही स्थिति है। भले ही भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी ने यह नारा गूंजा रखा हो कि कांग्रेस का समूल नाश देश से करना है और हकीकत में ऐसा नजर भी आने लगा है। एक बार तो कांग्रेस फिनिक्स पक्षी की तरह राख होगी और उसके बाद ही उसके ढेर से पार्टी का पुनर्जन्म हो पाएगा।
मध्यप्रदेश में ही फेल हो गया राहुल फॉर्मूला
विधानसभा चुनाव के 6 माह पहले ही राहुल गांधी ने दौरा किया था, एक फॉर्मूला भी इजाद किया गया। हकीकत सामने है, न तो राहुल गांधी प्रदेश में ढंग का अध्यक्ष दे पाए और न ही किसी बेहतर चेहरे को मुख्यमंत्री घोषित करवा पाए। प्रदेश के ही घाघ नेताओं ने राहुल गांधी को न सिर्फ भ्रमित किया, बल्कि अंधेरे में भी रखा, जब एक प्रदेश में ही अपने फॉर्मूले को युवराज लागू नहीं करवा पाए तो पूरे देश में क्या खाक करवाएंगे और यही नेतृत्व की सबसे बड़ी खामी राहुल गांधी में है।
जमीनी हकीकत ही पता नहीं आलाकमान को
जिस तरह किसी भी क्षेत्र के थाना प्रभारी को यह पता रहता है कि सट्टा-जुआ या अवैध शराब कहां बिक रही है, उसी तरह यह घोर आश्चर्य का विषय है कि देश चलाने वाले आलाकमान को जमीनी हकीकत ही पता नहीं है। कांग्रेस क्यों हारती रही, इसका सीधा सपाट जवाब कोई भी आम आदमी आसानी से दे देगा। अगर किसी पान वाले या ठेले वाले से भी बात करो तो वह बता देगा कि कांग्रेस की क्या-क्या गलतियां हैं, मगर आलाकमान से लेकर युवराज को आज तक ये गलतियां पता ही नहीं चली और जमीनी हकीकत से दूर होने का ही यह परिणाम है कि कांग्रेस हाशिये पर सिमटती जा रही है।
किसने रोका था खुद की मार्केटिंग करने से
राहुल गांधी अगर ये कहते हैं कि हम अपनी योजनाओं की मार्केटिंग बेहतर तरीके से नहीं कर पाए, तो उन्हें किसने रोका था। अगर विपक्ष यानी भाजपाई अपनी मार्केटिंग बखूबी कर सकता है तो कांग्रेस को इसमें परेशानी क्या है? आज से दो साल पहले भी कांग्रेस के तमाम राष्ट्रीय नेताओं और मंत्रियों से बातचीत में ये बातें कई मर्तबा कही गई और उन्होंने मंजूर भी की। जैसे सोशल मीडिया के मामले में कांग्रेस ने स्वीकार किया कि वह पीछे रह गए, बावजूद इसके कभी भी ये प्रयास नहीं हुए कि कांग्रेस अपनी मार्केटिंग बेहतर कर सके।
अभी सर्दी-जुकाम हो तो भी कांग्रेस जिम्मेदार
भाजपा की तारीफ इस मामले में करना होगी कि उसने देश-प्रदेश की जनता के जेहन में ये बात अच्छे से बैठा दी कि आपकी सारी समस्याओं की जड़ कांग्रेस है। अगर किसी को सर्दी-जुकाम भी हो जाए तो भाजपाई उसे ये भरोसा दिलाने में कामयाब रहते हैं कि इसकी जिम्मेदार भी कांग्रेस है और यही फॉर्मूला नई दिल्ली में आप पार्टी ने भी आजमाया, जिसके चलते कांग्रेस पर झाड़ू फिर गई।
घाघ नेताओं को पहली फुरसत में घर बैठाएं
कांग्रेस को प्रदेश में जिंदा करने के लिए राहुल बाबा को पहली फुरसत में हरल्ले और घाघ नेताओं को घर बैठाने का फैसला भी करना होगा। वरना ऐसी चौपालों का कोई औचित्य ही नहीं है। कांग्रेस आलाकमान और युवराज की चुनावी ट्यूबलाइट देर से जली है, जो फैसले साल-डेढ़ साल पहले लिए जाना थे, उनको अमल में लाने के दावे अब किए जा रहे हैं। जब लोकसभा चुनाव की ट्रेन प्लेटफार्म छोड़ चुकी है। नईदिल्ली में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के विशाल जमावड़े में राहुल गांधी ने अपने मिजाज तो तीखे दिखाए, मगर दिक्कत यह है कि वे फैसला करते वक्त उन्हीं घाघ नेताओं के चंगुल में फंस जाते हैं, जिन्होंने प्रदेश के साथ-साथ पूरे देश में कांग्रेस की लुटिया डुबो दी है। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी ने जहां राजनैतिक हमले तो बोले, वहीं देश को अपना एक विजन भी दिया जिसमें बुलेट ट्रेन चलाने से लेकर नदियों को जोडऩे और चायना की तरह भारत को मैन्यूफेक्चरिंग का हब बनाने की बात तो कही साथ ही एक बड़ा वायदा यह भी किया कि देश के हर घर में 24 घंटे बिजली भी पहुंचाई जाएगी। हालांकि इस तरह के वायदे चुनावी ज्यादा साबित होते हैं और मैदानी धरातल पर कम ही कर पाते हैं। मगर जवाब में कांग्रेस के युवराज यानी राहुल गांधी को भी जहां देश के सामने अपना विजन रखना होगा, क्योंकि अब मुफ्त राशन या 12 सिलेंडर जैसी घोषणाएं अधिक कारगर साबित नहीं हो सकती। जो हाल देश के हैं वही लगभग कांग्रेस के लिए मध्यप्रदेश में भी रहे हैं। विधानसभा चुनाव के लगभग 8 माह पहले राहुल गांधी ने इसी तरह का दौरा किया था और भोपाल के अलावा वे धार के मोहनखेड़ा भी पहुंचे थे और उन्होंने सामान्य कार्यकर्ताओं से लेकर पार्टी के पदाधिकारियों से सीधी चर्चा की थी और इस दौरान प्रदेश के दिग्गज कांग्रेसियों को बाहर ही बैठाकर रखा। इस चर्चा में राहुल ने अपना खुद का एक फॉर्मूला इजाद किया और जीतने वाले उम्मीदवारों को ही टिकट देने का वायदा तो किया ही, वहीं 6 महीने पहले उम्मीदवारी की घोषणा कर देने का दावा भी ठोंका। मगर इतिहास सामने है, विधानसभा चुनाव के दौरान राहुल अपने फॉर्मूले के मुताबिक न तो टिकट बंटवा पाए और न ही मठाधीशों के चंगुल से प्रदेश कांग्रेस को आजाद करा पाए, जिसका परिणाम यह रहा कि तीसरी बार कांग्रेस को मध्यप्रदेश में बुरी तरह से हार का मुंह देखना पड़ा। जबकि सत्तापक्ष यानी भाजपा के लिए माहौल उतना अनुकूल नहीं था। विधायकों और मंत्रियों का भ्रष्टाचार चरम पर रहा। मगर शिवराजसिंह चौहान के चमकीले चेहरे और उस पर नरेंद्र मोदी के असर ने कांग्रेस का सूपड़ा अन्य राज्यों की तरह मध्यप्रदेश में भी साफ कर दिया। जब तक राहुल गांधी मध्यप्रदेश की कांग्रेस को हरल्ले और घाघ नेताओं से मुक्ति नहीं दिलवाएंगे, तब तक कांग्रेस का जीर्णोद्धार संभव ही नहीं है। प्रदेश के दिग्गज कई कांग्रेसियों के चेहरों से ही अब जनता को नफरत सी हो गई है। इन्हें कम से कम 5, 10 सालों के लिए प्रदेशबदर यानी बाहर करना होगा और ताजे-ईमानदार और युवाओं को बागडोर सौंपना होगी और नई दिल्ली में जिस तरह आप पार्टी ने जनता से जुड़े मुद्दे उठाकर अपनी पैठ बनाई, उसी तर्ज पर कांग्रेस को जमीनी स्तर पर मेहनत करने की दरकार है, वरना आपकी चौपाल इसी तरह सजती तो रहेगी, मगर परिणाम शून्य बटा सन्नाटे वाले ही निकलेंगे।
व्यापमं घोटाला
जिस मध्यप्रदेश में भारत का सबसे बड़ा व्यापमं घोटाला उजागर हुआ हो, वहां पर विपक्ष यानी कांग्रेस इस मुद्दे को न तो विधानसभा चुनाव में और न ही अभी लोकसभा के लिए दमदारी से उठा सकी है, अगर कांग्रेस की बजाए भाजपा होती तो इसी घोटाले को अखिल भारतीय स्तर पर उठाते हुए मुख्यमंत्री छोड़ प्रधानमंत्री से भी इस्तीफे मांग लेती।
खनन माफिया
कांग्रेसी ये तो आरोप लगाते रहे कि मध्यप्रदेश में खनन माफिया करोड़ों-अरबों कमा गया और इस माफिया की सरपरस्ती सीधे-सीधे प्रदेश के मुख्यमंत्री से जुड़ी रही। यहां तक कि आयकर विभाग और सीबीआई ने सूर्यवंशी-शर्मा पर शिकंजा कसते हुए खनन माफिया के संबंध में कार्रवाई भी की। मगर केंद्र में बैठी कांग्रेस सरकार इस मामले में भी कोई खुलासे नहीं कर सकी, जबकि आयकर और सीबीआई दोनों उसके ही अधीन है।
लोकायुक्त में फंसे मंत्री
पिछले 10 साल से कांग्रेसी चिल्ला रहे हैं कि शिवराज सरकार के एक दर्जन से अधिक मंत्री लोकायुक्त जांच में फंसे हैं, मगर एक भी मंत्री के खिलाफ कांग्रेस सबूत इकट्ठे कर जनता की अदालत में प्रस्तुत नहीं कर सकी।
जितनी बिजली-उतने दाम
उमा भारती ने जनता से वायदा किया था कि जितनी बिजली उतने दाम तो लेंगे ही, वहीं तेज भागते और लुटेरे इलेक्ट्रॉनिक मीटरों से भी छुटकारा दिलाएंगे। मगर आठ मर्तबा बिजली के दाम नियामक आयोग के साथ साठगांठ कर बढ़ा लिए।
टोल टैक्स माफिया
मध्यप्रदेश में सड़कें भले ही शिवराज सरकार ने अच्छी बनवा दी हों, मगर बदले में जनता को 20-25 साल का टोल टैक्स भुगतना पड़ रहा है।
सूचना का अधिकार
सोनिया गांधी और राहुल गांधी केंद्र सरकार के अपने सूचना के अधिकार को महत्वपूर्ण अधिनियम बताते हैं जो जनता के हाथ में भ्रष्टाचार से लड़ऩे के लिए दिया, आजादी के बाद का सबसे बड़ा हथियार है। मगर मध्यप्रदेश के निकम्मे और नकारा कांग्रेसी अपनी ही केंद्र सरकार के इस सूचना के अधिकार कानून को पूरी ताकत से मध्यप्रदेश में ही लागू नहीं करवा पाए।
महिला अत्याचार
कानून व्यवस्था के मामले में भी मध्यप्रदेश फिसड्डी साबित हुआ है और नेशनल क्राइम ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि इंदौर सहित पूरा प्रदेश अपराधों के मामले में पूरे देश में अव्वल है। खासकर महिला अत्याचार और बलात्कार के मामले में भी प्रदेश अव्वल आता रहा है। नईदिल्ली में एक बलात्कार होने पर भाजपा ने जबर्दस्त बवाल मचाया, लेकिन मध्यप्रदेश में रोजाना बलात्कार होते रहे और कांग्रेसी सोए पड़े रहे।
सोशल मीडिया
युवा पीढ़ी और शहरी मतदाता सोश्यल मीडिया की चपेट में भी है। भाजपा सोश्यल मीडिया पर जबर्दस्त तरीके से सक्रिय है, मगर कांग्रेस इस मोर्चे पर भी असफल साबित हुई। अभी विधानसभा चुनाव में भी सोशल मीडिया का भाजपा ने तगड़ा इस्तेमाल किया।
प्रचार-प्रसार में फिसड्डी
एक तरफ भाजपा के विज्ञापन आक्रामक रहे और मि. बंटाधार को 10 साल बाद भी भाजपा ने बखूबी भुनाया तो कांग्रेस के विज्ञापन इतने बेदम रहे कि न तो मुद्दे थे और न ही उसका प्रचार-प्रसार किया गया।
भ्रष्टाचार
10 साल से पूरा प्रदेश भ्रष्टाचार की गिरफ्त में है, मगर कांग्रेसियों ने विरोध करने के बजाए सत्ता पक्ष के साथ ही सांठगांठ कर रखी है और भू-माफियाओं से लेकर खनन माफियाओं से भी पैसा वसूला।

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