थल सेनाध्यक्ष के खिलाफ सरकार की साजिश

चौथी दुनिया ब्यूरो 

भारतीय सेना पर लिखने से हमेशा बचा जाता रहा है, क्योंकि सेना ही है जो देश की रक्षा दुश्मनों से करती है, पर पिछले कुछ सालों में सेना में भ्रष्टाचार बढ़ा है. अक्सर खाने के सामान की शिकायतें आती हैं कि वहां घटिया राशन सप्लाई हुआ है. लोग पकड़े भी जाते हैं, सज़ाएं भी होती हैं. सेना में खरीद फरोख्त में लंबा कमीशन चलता है, जिसके अब कई उदाहरण सामने आ चुके हैं. ज़्यादातर मामलों के पीछे राजनेताओं का छुपा हाथ दिखाई दिया है. अब जो बात हम सामने रखने जा रहे हैं, वह एक गठजोड़ की ताक़त बताती है कि कैसे सच्चाई को झूठ और ताक़त के बल पर दबाया या झुठलाया जा रहा है. इसका शिकार कौन होने वाला है? भारत का सेनाध्यक्ष. जब हमें छिटपुट खबरें मिलीं, जिन्हें भारत के रक्षा मंत्रालय या रक्षामंत्री ने लीक कराया था. तब हमारा माथा ठनका. खबरें थीं भारत के सेनाध्यक्ष की जन्मतिथि के बारे में कि आखिर असली जन्मतिथि है क्या. खबरों में यह बताने की कोशिश की गई कि भारत के थल सेनाध्यक्ष झूठ बोल रहे हैं और उनकी जन्मतिथि वह नहीं है, जो वह बता रहे हैं. भारत के थल सेनाध्यक्ष सच्चाई पर प्रकाश डालने के लिए जब उपलब्ध नहीं हुए तो हमने इस सारे मामले की जांच करने का निर्णय लिया. हमारी जांच में बहुत ही चौंकाने वाले तथ्य सामने आए, जो बताते हैं कि कैसे न्याय का गला सरकार घोंट रही है और सुप्रीम कोर्ट की दी हुई नज़ीरों को अनदेखा कर रही है.

भारत के इतिहास में पहली बार इतना गंभीर होने जा रहा है, जिसका असर भारत के लोकतंत्र पर पड़ने वाला है. आज़ाद भारत की पहली सरकार मनमोहन सिंह की सरकार होगी, जिसे शायद इतिहास की सबसे गंभीर शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी. भारतीय सेना का सर्वोच्च अधिकारी, भारतीय थलसेना का सेनाध्यक्ष न्याय के लिए रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री का चेहरा देख रहा है, पर उन्होंने न्याय देने के सवाल पर अपनी आंखें बंद कर ली हैं. आंखें तो सरकार ने बहुत सी समस्याओं से फेर ली हैं, पर भारतीय सेना से आंखें फेरना और सेना के ईमानदार और सच्चे अधिकारी को न केवल झूठा साबित करना, बल्कि अपमानित करना बताता है कि सरकार कितनी ज़्यादा असंवेदनशील और अकर्मण्य हो गई है.

क्या है मामला

श्री कमल टावरी रिटायर्ड आईएएस हैं और एक एनजीओ नेशनल थिंकर्स फोरम के उपाध्यक्ष हैं. उन्होंने जब अ़खबारों में भारतीय थल सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि पर विवाद उठते देखा तो 28 अक्टूबर, 2010 को एक आरटीआई डाली, जिसे उन्होंने सीपीआईओ, इंडियन आर्मी, इंटीग्रेटेड हेड क्वार्टर ऑफ मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस (आर्मी), रूम नं. जी- 6, डी-1 विंग, सेना भवन, न्यू देहली को भेजा. इस दरख्वास्त में, जिसे उन्होंने राइट टू इंफॉर्मेशन एक्ट 2005 के सेक्शन 6 के तहत भेजा, जानकारी मांगी कि मौजूदा थल सेनाध्यक्ष जनरल विजय कुमार सिंह और उन लेफ्टिनेंट जनरलों की आयु बताई जाए, जिन्हें जनरल वी के सिंह के रिटायर होने की स्थिति में थल सेनाध्यक्ष बनाया जा सकता है. इसके जवाब में 23 फरवरी, 2011 को सेना के आरटीआई सेल, एडीजीएई, जी-6, डी-1 विंग, सेना भवन, गेट नं. 4, आईएचक्यू ऑफ एमओडी (आर्मी), न्यू देहली ने कमल टावरी को एक खत और एक सूची भेजी, जिसमें सेना के छह सर्वोच्च अ़फसरों की जन्मतिथियां थीं. इसके अनुसार सेना के एजी ब्रांच और हाईस्कूल सर्टिफिकेट के हिसाब से इन सबकी जन्मतिथियों की जानकारी है. इस सूची के अनुसार थल सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह, पीवीएसएम, एवीएसएम, वाईएसएम, एडीसी की जन्मतिथि 10 मई, 1951 है. लेफ्टिनेंट जनरल प्रदीप खन्ना, पीवीएसएम, एवीएसएम, वीएसएम, एडीसी की जन्मतिथि 7 फरवरी, 1951 है. लेफ्टिनेंट जनरल ए के लांबा, पीवीएसएम, एवीएसएम की जन्मतिथि 16 अक्टूबर, 1951 है. लेफ्टिनेंट जनरल शंकर घोष एवीएसएम, एसएम की जन्मतिथि 22 मई, 1952 है. लेफ्टिनेंट जनरल वी के अहलूवालिया एवीएसएम, वाईएसएम, वीएसएम की जन्मतिथि 2 फरवरी, 1952 है और लेफ्टिनेंट जनरल बिक्रम सिंह, यूवाईएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम की जन्मतिथि 19 जुलाई, 1952 है. इस खत के बाद डीडीजी आरटीआई एंड सीपीआईसी ब्रिगेडियर ए के त्यागी ने फिर कमल टावरी को एक खत भेजा, जिसमें 23 फरवरी, 2011 के खत से जुड़ी अतिरिक्त जानकारी दी और लिखा कि राजस्थान बोर्ड द्वारा दिए गए हाईस्कूल सर्टिफिकेट के अनुसार जन्मतिथि 10 मई, 1951 है, जिसे एलए (डिफेंस) की सलाह अनुसार करेक्शन के लिए भेज दिया गया है. इस तरह के सबूतों को, सेना के काग़ज़ों को हम आपके सामने रखें, उससे पहले आपको पूरी कहानी बताते हैं, जिसे जनरल वी के सिंह के गांव वालों ने बताया है.

आ़खिर, भारत सरकार (रक्षा मंत्री और उनका मंत्रालय प्रत्यक्ष तौर पर, प्रधानमंत्री और उनका कार्यालय अप्रत्यक्ष तौर पर) सेना के सर्वोच्च अधिकारी को अपमानित करने पर क्यों तुली हुई है? क्या इसके पीछे देश का ज़मीन माफिया और दुनिया का हथियार माफिया है? जनरल वी के सिंह ईमानदार अफसर माने जाते हैं और आज तक उनके ऊपर कोई आरोप नहीं लगा है. देश के तीन भूतपूर्व सर्वोच्च न्यायाधीशों ने भी इस मामले पर विस्तार से अलग-अलग विचार किया. सभी ने कहा कि जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि 10 मई, 1951 मानी जाएगी.

हाईस्कूल बनाम एनडीए

जनरल वी के सिंह का जन्म 10 मई, 1951 को आज के हरियाणा के फफोड़ा गांव में हुआ. उन दिनों हरियाणा और पंजाब एक ही थे. यह गांव भिवानी ज़िले में आता है. बिड़ला स्कूल पिलानी में पढ़ते हुए जनरल वी के सिंह ने सेना में जाना तय किया. यह 1965 का साल था और उनकी उम्र 15 साल थी. एनडीए का फॉर्म भरा जा रहा था. कई लड़के एक साथ बैठकर फॉर्म भर रहे थे. एक शिक्षक उन्हें फॉर्म भरवाने में मदद कर रहा था. यह फॉर्म यूपीएससी का था. शिक्षक के कहने पर या किसी साथी विद्यार्थी के कहने पर ग़लती से उन्होंने उस फॉर्म में जन्मतिथि 10 मई, 1950 भर दी. फॉर्म चला गया और महत्वपूर्ण बात यह कि उस समय तक राजस्थान बोर्ड का हाईस्कूल का सर्टिफिकेट आया नहीं था. यह फॉर्म प्रोविजनल होता है. जब सर्टिफिकेट आया हाईस्कूल का तो उसे यूपीएससी भेजा गया. यूपीएससी ने 1966 में एक ग़लती पकड़ी और वी के सिंह से पूछा कि आपने फॉर्म में जन्मतिथि 10 मई, 1950 लिखी है, जबकि आपके हाईस्कूल सर्टिफिकेट में यह 10 मई, 1951 दर्ज है. वी के सिंह ने क्लेरीफिकेशन भेज दिया कि हाईस्कूल के सर्टिफिकेट में लिखी जन्मतिथि 10 मई, 1951 ही सही है, फॉर्म में भूलवश या मानवीय ग़लती से 10 मई, 1950 लिखा गया है. वी के सिंह के इस उत्तर को यूपीएससी ने स्वीकार किया तथा उन्हें इसकी रसीद भी भेज दी. यूपीएससी का नियम है कि यदि उसने इसे स्वीकार न किया होता तो वी के सिंह का फॉर्म ही रिजेक्ट हो जाता. वी के सिंह एनडीए में चुने गए और 1970 में उन्होंने पासआउट किया. आईएमए ने उन्हें आई कार्ड दिया, जिस पर जन्मतिथि 10 मई, 1951 लिखी. आर्मी में वी के सिंह की ज़िंदगी शुरू हो गई.

जनरल वी के सिंह खुद चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बन गए. वह चाहते तो अपनी जन्मतिथि स्वयं ठीक करा सकते थे, क्योंकि दोनों ब्रांच उन्हीं के अधीन थीं, लेकिन उन्होंने ईमानदारी और नैतिकता की राह पकड़ी. उन्होंने रक्षा मंत्री को सारा मामला बताया. रक्षा मंत्री ने कहा कि मैं इस मामले को अटॉर्नी जनरल को भेजना चाहता हूं. जनरल ने कहा, आपकी मर्ज़ी. रक्षा मंत्री ने एजी से दो बार राय मांगी. दूसरी राय में एजी ने लिखा है कि जनरल वी के सिंह ने अपने सारे प्रमोशन 10 मई, 1950 बताकर लिए हैं, जबकि बोर्ड के सारे प्रमोशनों की फाइलें, जिन पर प्रधानमंत्री के दस्त़खत हैं, रक्षा मंत्री के दस्त़खत हैं, उन सब में जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि 10 मई, 1951 लिखी है.

कब खुला मामला

अब आया 2006. मेजर जनरल वी के सिंह को एक खत मिला, तत्कालीन मिलिट्री सेक्रेट्री रिचर्ड खरे के हस्ताक्षरित, जिसमें रिचर्ड खरे ने लिखा था कि हम लोगों ने पाया है कि आपकी जन्मतिथि दो तरह की लिखी गई है. एडजुटेंट जनरल ब्रांच और मिलिट्री सेक्रेट्री ब्रांच के रिकॉर्ड में अंतर है. एडजुटेंट जनरल ब्रांच, जो कि कस्टोडियन ब्रांच है, में लिखा है 10 मई, 1951 और मिलिट्री सेक्रेट्री ब्रांच में 10 मई, 1950 मेंटेन हो रहा है. जनरल वी के सिंह ने क्लेरीफिकेशन दिया कि उनकी जन्मतिथि 10 मई, 1951 है, न कि 10 मई, 1950. क्लेरीफिकेशन के साथ वी के सिंह ने हाईस्कूल सर्टिफिकेट भी भेज दिया. मिलिट्री सेक्रेट्री ब्रांच ने लिखा कि वह एडजुटेंट जनरल ब्रांच से क्लेरीफिकेशन लेंगे. एडजुटेंट जनरल ब्रांच ने सारे काग़ज़ों को खंगाल कर मिलिट्री सेक्रेट्री ब्रांच को लिखा कि जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि 10 मई, 1951 है.

जनरल जे जे सिंह का खेल

जनरल जे जे सिंह उस समय चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ थे. फाइल करेक्शन के लिए उनके पास आई. उन्होंने ऑर्डर निकाला कि पॉलिसी में है कि अगर आप जन्मतिथि में परिवर्तन चाहते हैं तो दो साल के भीतर ही यह हो सकता है, अब यह चेंज नहीं हो सकता. यहां जनरल जे जे सिंह ने एक खेल किया. उन्होंने आंकड़ा लगाया कि जन्मतिथि 10 मई, 1950 हो या 10 मई, 1951, जनरल वी के सिंह चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बनेंगे ही. पर यदि जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि 10 मई, 1951 रह जाती है तो ले.जनरल बिक्रम सिंह चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ नहीं बन पाएंगे. संयोग की बात है कि जनरल जे जे सिंह सिख बिरादरी से आते हैं और ले. जनरल बिक्रम सिंह भी सिख बिरादरी से हैं. उन दिनों भी प्रधानमंत्री सिख समाज के सरदार मनमोहन सिंह थे, आज भी प्रधानमंत्री सरदार मनमोहन सिंह हैं. जनरल जे जे सिंह ने बिक्रम सिंह को देश का सेनाध्यक्ष बनाने की बिसात 2006 में बिछा दी. जनरल जे जे सिंह के खत के जवाब में जनरल वी के सिंह ने लिखा कि जन्मतिथि में चेंज का सवाल कहां से आया, यह तो आपका एकतऱफा नज़रिया है. मैं तो करेक्शन मांग रहा हूं, जो अब तक हो जाना चाहिए था. मैं चेंज मांग ही नहीं रहा, अत: यह पॉलिसी उन पर लागू नहीं होती.

जनरल जे जे सिंह उस समय चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ थे. तब उन्होंने एक खेल किया. उन्होंने आंकड़ा लगाया कि जन्मतिथि 10 मई, 1950 हो या 10 मई, 1951, जनरल वी के सिंह चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बनेंगे ही. पर यदि जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि 10 मई, 1951 रह जाती है तो ले. जनरल बिक्रम सिंह चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ नहीं बन पाएंगे. संयोग की बात है कि जनरल जे जे सिंह सिख बिरादरी से आते हैं और ले. जनरल बिक्रम सिंह भी सिख बिरादरी से हैं. उन दिनों भी प्रधानमंत्री सिख समाज के सरदार मनमोहन सिंह थे, आज भी प्रधानमंत्री सरदार मनमोहन सिंह हैं. जनरल जे जे सिंह ने ले. जनरल बिक्रम सिंह को देश का थल सेनाध्यक्ष बनाने की बिसात 2006 में बिछा दी.

जनरल दीपक कपूर का दबाव

जनरल जे जे सिंह के बाद जनरल दीपक कपूर सेनाध्यक्ष बने. जनरल दीपक कपूर ने जनरल वी के सिंह को बुलाया और कहा कि सारी फाइलें, प्रमोशन वाली रुक गई हैं आपकी चिठ्ठी से और मिनिस्ट्री बार-बार कह रही है कि जनरल वी के सिंह का मामला निबटाओ. मैंने सारे काग़ज़ात देखे हैं, मैं इन्हें लॉ मिनिस्ट्री को भेजना चाहता हूं. मैं तुम्हारा चीफ हूं, मैं तुमसे कह रहा हूं कि फाइलों के मूवमेंट को मत रोको. एमएस में बाधा मत बनो, वह जो कह रहा है उसे स्वीकार कर लो. जनरल वी के सिंह ने जनरल कपूर से कहा कि मैं कैसे स्वीकार कर लूं या फिर क्या मेरे स्वीकार करने से मेरी जन्मतिथि बदल जाएगी? मेरा जन्म निर्धारित है, क्या आप हाईस्कूल सर्टिफिकेट को भी बदल देंगे? जनरल दीपक कपूर ने फिर दबाव डाला और कहा कि बात मान लो और फाइलें मूव होने दो. जनरल वी के सिंह ने कहा कि मैं कैसे मान लूं, आप वेरीफाई करा लें, उसके बाद करेक्शन कर दें. यही कंडीशनल एक्सेप्टेंस वी के सिंह ने जनरल दीपक कपूर को दे दी. हमारी जांच बताती है कि जैसे ही जनरल वी के सिंह दिल्ली से अंबाला पहुंचे, उस समय शाम के चार बजे थे, उन्हें आर्मी हेडक्वार्टर से सिग्नल मिला कि जैसा चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बताते हैं, वैसा सुबह 10 बजे तक आप नहीं भेजेंगे तो आपके खिला़फ एक्शन बीईंग एप्रोप्रिएट लिया जाएगा. आर्मी का डिफेंस सर्विस रूल कहता है कि अगर आपके सीनियर ने कोई ऑर्डर, भले ही मौखिक हो, जारी कर दिया है तो आप उससे पूछ नहीं सकते. अगर आप उस आदेश का पालन नहीं करते हैं तो आपको कम से कम तीन महीने का कठोर कारावास का दंड मिलेगा. जनरल वी के सिंह ने इस सिग्नल के जवाब में लिखा, एज डायरेक्टेड बाइ चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ, आई एक्सेप्ट. जनरल वी के सिंह का अंबाला से कलकत्ता ट्रांसफर हो गया. उन्होंने फिर चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ को खत लिखा कि आपने मुझे बुलाया, आपने मुझसे कहा कि आप मेरे मामले को क़ानून मंत्रालय भेज रहे हैं. आप पर चीफ के नाते मेरा पूरा विश्वास है, लेकिन आपने वायदे के हिसाब से जो कहा था, वह नहीं किया, एथिकली और लॉजिकली यह सही नहीं है. चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ ने वह खत रख लिया, जवाब नहीं दिया. जब जनरल वी के सिंह मिलने गए तो जनरल दीपक कपूर ने कहा कि मैं कुछ नहीं करूंगा. तुम चीफ बनना तो खुद ठीक करवा लेना अपनी जन्मतिथि. जनरल वी के सिंह चुपचाप वापस चले आए.

रक्षामंत्री और एजी का रवैया

अब जनरल वी के सिंह खुद चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बन गए. वह चाहते तो अपनी जन्मतिथि स्वयं ठीक करा सकते थे, क्योंकि दोनों ब्रांच उन्हीं के अधीन थीं, लेकिन उन्होंने ईमानदारी और नैतिकता की राह पकड़ी. उन्होंने रक्षा मंत्री को सारा मामला बताया और कहा कि उनका यह मामला पेंडिंग है. रक्षा मंत्री ने कहा कि मुझे पता है, मैं दिखवाता हूं. रक्षा मंत्री ने इस मामले को टाला और रक्षा मंत्रालय ने इसे प्रेस को लीक करना शुरू किया. अ़खबारों में पढ़ तीन लोगों ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांग ली. इन तीन में एक रिटायर्ड आईएएस तथा सेना के भूतपूर्व ऑफिसर कमल टावरी भी थे, जिन्हें सेना की छीछालेदर मंत्रालय द्वारा करना पसंद नहीं आया. उन्होंने आरटीआई में पूछा कि जनरल वी के सिंह और उनके नीचे के पांच जनरलों की डेट ऑफ बर्थ क्या है तथा क्या जनरल वी के सिंह की डेट ऑफ बर्थ में एनोमलीज़ है? क्या उस पर क़ानून मंत्रालय से कोई राय लेकर सुधार किया गया है?

सरकार ने पहला जवाब दिया कि जनरल वी के सिंह की डेट ऑफ बर्थ 10 मई, 1951 है. दूसरा जवाब दिया कि कोई एनोमली नहीं है. एक छोटी भूल एक विभाग में हो गई है. क़ानून मंत्रालय से मशविरा कर लिया गया है और उसकी सलाहानुसार उस विभाग को निर्देशित कर दिया गया है कि वह भूल सुधारे और 10 मई, 1951 मेंटेन करे.

यह जवाब अ़खबारों में आ गया. इसे पढ़ रक्षा मंत्री ने चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ को बुलाया तथा पूछा कि क्या होना चाहिए. चीफ ने उनसे कहा कि जब क़ानून मंत्रालय की राय आ गई है तो उसे मानना चाहिए. इस पर रक्षा मंत्री ने कहा कि मैं इस मामले को अटॉर्नी जनरल को भेजना चाहता हूं. जनरल ने कहा, आपकी मर्ज़ी.

एजी को वे फाइलें भेजी गईं, जिन्हें मिलिट्री सेक्रेट्री ब्रांच मेंटेन कर रही थी. उसमें भी पूरे तथ्य नहीं भेजे गए. इसका एक सबूत हमारे हाथ लगा है. दरअसल रक्षा मंत्री ने एजी से दो बार राय मांगी. दूसरी राय में एजी ने लिखा है कि जनरल वी के सिंह ने अपने सारे प्रमोशन 10 मई, 1950 बताकर लिए हैं, जबकि बोर्ड के सारे प्रमोशनों की फाइलें, जिन पर प्रधानमंत्री के दस्त़खत हैं, रक्षा मंत्री के दस्त़खत हैं, उन सब में जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि 10 मई, 1951 लिखी है. एजी की पहली राय पर रक्षा मंत्री ने जनरल को बुलाया तथा कहा कि राय आ गई है, आप इसे मान लीजिए. जनरल ने कहा कि मैं नहीं मानूंगा. उन्होंने रक्षा मंत्री को एक रिप्रजेंटेशन दिया, जिसमें सारे तथ्य दिए गए तथा अनुरोध किया गया कि विचार करें. रक्षा मंत्री ने उसे एजी को भेज दिया, जिस पर एजी ने पहला जवाब दोहरा दिया. क्या रक्षा मंत्री के इस रु़ख के पीछे आईएएस मिलिट्री सेक्रेट्री की ग़लतियां छुपाने का कारण है या प्रधानमंत्री के कार्यालय का कोई इशारा है. अब हम अपनी तलाश में मिले कुछ और तथ्य बताते हैं. इंदर कुमार, लीगल एडवाइजर (डिफेंस) ने 14 फरवरी, 2011 को एडी. सेक्रेट्री आर एल कोहली की जानकारी में एक नोट लिखा, जिसका नंबर है-मिनिस्ट्री ऑफ लॉ एंड जस्टिस, लीगल एडवाइज़ (डिफेंस)

Dy. No. 0486/XI/LA(DEF)

12918/RTI/MP 6-(A).

इस नोट के कुछ मुख्य अंश हैं:-

क्या जब यूपीएससी में फॉर्म भरा था, तब की डेट ऑफ बर्थ 10 मई, 1950 सही है या राजस्थान बोर्ड द्वारा 1966 में जारी Xth बोर्ड सर्टिफिकेट में दी गई डेट ऑफ बर्थ 10 मई, 1951 सही है. (इस नोट को हम पूरा छाप रहे हैं)

इस नोट के प्वाइंट नंबर पांच में लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट ऑफ एम पी बनाम मोहनलाल शर्मा (2002) 7 SCC 719 के फैसले में कहा है, दैट डेट ऑफ बर्थ रिकॉर्डेड इन मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट, हेल्ड, कैरीज ए ग्रेटर, एविडेंशियल वैल्यू, देन, दैट कंटेंड इन ए सर्टिफिकेट गिवेन बाइ द रिटायर्ड हेडमास्टर ऑफ द स्कूल आर इन द हारोस्कोप. इस नोट के आ़खिरी यानी सातवें नंबर पर लिखा है, इन व्यू ऑफ द फैक्ट्‌स एंड सरकमस्टांसेज मेंशंड एबव वी आर ऑफ द व्यू दैट, द डीओबी रिकॉर्डेड इन हाईस्कूल सर्टिफिकेट इज हैविंग ए ग्रेटर एविडेंसरी वैल्यू. द पीआईओ मे एकार्डिंगली गिव ए रेप्लाई टू द एप्लीकेंट होल्डिंग द डीओबी एज 10.05.1951. इतना ही नहीं, एडजुटेंट जनरल ब्रांच के मेजर जनरल सतीश नायर, एडीजी एमपी ने फरवरी 2011 में एक नोट में लिखा, बिफोर रेप्लाई टू द आरटीआई क्वेरी टू द एप्लीकेंट, इज गिवेन, एडवाइज ऑफ द एल ए (डिफेंस) इज रिक्वेस्टेड आन द एबव फैक्ट्‌स एंड सरकमस्टांसेज आन द इश्यू व्हेदर द डेट ऑफ बर्थ ऑफ द COAS मे बी इनफार्मड्‌ टू द सैड एप्लीकेंट एज 10th मे 1951.

एन अर्ली एक्शन इज रिक्वेस्टेड प्लीज.

भूतपूर्व सर्वोच्च न्यायाधीश क्या कहते हैं

ये सारे नोट, सरकार द्वारा दिया गया जवाब बताता है कि सच्चाई क्या है और जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि 10 मई, 1951 है. तब क्यों भारत सरकार (रक्षा मंत्री और उनका मंत्रालय प्रत्यक्ष तौर पर, प्रधानमंत्री और उनका कार्यालय अप्रत्यक्ष तौर पर) सेना के सर्वोच्च अधिकारी को अपमानित करने पर तुली है? क्या इसके पीछे देश का ज़मीन मा़फिया और दुनिया का हथियार माफिया है? जनरल वी के सिंह ईमानदार अ़फसर माने जाते हैं और आज तक उनके ऊपर कोई आरोप नहीं लगा है, सिवाय इस आरोप के कि उनकी जन्मतिथि के रूप में सेना और रक्षा मंत्रालय के रिकॉर्ड में अलग-अलग तिथियां दर्ज हैं. देश के तीन भूतपूर्व सर्वोच्च न्यायाधीशों ने भी इस मामले पर विस्तार से अलग-अलग विचार किया. उन्होंने विस्तार से अपनी राय लिखी. जस्टिस जे एस वर्मा ने अपने नतीजे में लिखा, आई देयर फोर फेल टू एप्रीसिएट हाउ द एमएस ब्रांच ऑर एनी वन एल्स कैन रेज़ ए कंट्रोवर्सी इन दिस बिहाफ ऑर क्वीश्चन द करेक्टनेस ऑफ द डीओबी ऑफ जनरल वी के सिंह रिकॉर्डेड थ्रू आउट बाई द एजी ब्रांच एज 10th मे 1951. दूसरे भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश जी वी पटनायक ने भी विस्तार से अपनी राय लिखते हुए आखिर में कहा है, इट ट्रांसपायर्स दैट द मिनिस्ट्री ऑफ लॉ व्हिच द एप्रोप्रिएट अथॉरिटी फॉर गिविंग लीगल ओपीनियन टू अदर डिपार्टमेंट्‌स, हैज आलरेडी ओपेंड टू दिस इफेक्ट दैट डेट ऑफ बर्थ ऑफ द क्वेरिस्ट कैन ओनली बी 10th मे 1951. आई डू नॉट नो ऑन व्हाट बेसिस द लर्नड एटार्नी जनरल हैज गिवेन कंट्रैरी ओपीनियन. तीसरे जस्टिस वी एन खरे ने कहा है, इन व्यू ऑफ द एबव इट इज माई ओपीनियन दैट एट दिस स्टेज, द करेक्ट कोर्स ऑफ एक्शन वुड बी टू एक्सेप्ट द डीओबी ऑफ द क्वेरिस्ट एज फाउंड इन द रिकॉर्ड‌स ऑफ द एजी ब्रांच टू बी 10th मे 1951 एंड मेक नेसेसरी चेंजेज व्हेयर रिक्वायर्ड. चौथे रिटायर्ड मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अहमदी ने मुझसे कहा कि वे तीनों भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीशों की राय से सहमत हैं तथा अ़खबारों में आई एटार्नी जनरल की राय को ग़लत मानते हैं. उन्हें एजी की आधिकारिक राय की प्रति का इंतज़ार है.

समाधान क्या है

अटॉर्नी जनरल वाहनवती टूजी स्पेक्ट्रम मामले में पहले ही संदेह के घेरे में हैं. क़ानून मंत्रालय द्वारा दी गई राय से अलग राय देने के लिए उन पर अवश्य दबाव डाला गया होगा. यह एक षड्‌यंत्र है, जो राजनीतिज्ञ और कुछ आईएएस मिलकर कर रहे हैं. इसका सामना जनरल वी के सिंह करेंगे या नहीं, पता नहीं, पर उन्हें अपने को सच्चा साबित करने के लिए राष्ट्रपति के पास जाना चाहिए, जहां राष्ट्रपति इस मामले में सर्वोच्च न्यायाधीश की राय मांग सकती हैं. मुख्य न्यायाधीश स्वयं भी इस पर कार्रवाई कर सकते हैं, धारा 143 इसकी आज्ञा देती है या आ़खिर में जनरल वी के सिंह खुद सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं, ताकि अपने चरित्र पर लगे दाग़ को धो सकें.

सरकार की गड़बड़ी जैसे हमने खोली है, इससे ज़्यादा भयानक और गंभीर रूप में सुप्रीम कोर्ट में खुलेगी. सरकार को मुख्य न्यायाधीश जस्टिस कपाड़िया से डरना चाहिए, जिनकी निष्पक्षता का डंका सारे देश में बज रहा है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला अगर जनरल वी के सिंह के पक्ष में आ गया तो रक्षा मंत्री या प्रधानमंत्री के सामने त्यागपत्र देने के अलावा कोई रास्ता बचेगा क्या? मौजूदा सरकार जानबूझ कर प्याज़ भी खाएगी और जूते भी. (चौथी दुनिया से साभार) 

1 COMMENT

  1. जैसा की लेखक ने लिखा है,की एन.डी.ए का फार्म पहले भरा गया और सेकेंडरी की सर्टिफिकेट बाद में आयी तो ऐसा भी हो सकता है की स्कूल के रजिस्टर में १० मई १९५० ही रहा हो जिसको सेकेंडरी का फ़ार्म भरते समय १० मई १९५१ कर दिया गया हो.ऐसा उस जमाने में बहुधा होता था,क्योंकि स्कूल में दाखिला देते समय स्कूल की तरफ से ऐसा अनिवार्य नहीं था की बच्चे के जन्म के प्रमाण में अस्पताल या म्युनिसिपैलिटी में दर्ज जन्मतिथि प्रमाण पात्र पेश किया जाये,पर अगर ऐसा हुआ भी होगा तो स्कूल की पुराने रजिस्टरों से इसका व्योरा अवश्य मिला होगा,नहीं तो इसे सचमुच जेनरल सिंह के विरुद्ध एक षड्यंत्र माना जाएगा.

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