तीर ए नजर/ जा बेटा, कुर्सी तोड़!!

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इस स्कूल मास्टरी की वजह से कई बार घरवाली से जूते खा चुका हूं। बच्चे मुझे अपना बाप समझने में शरम समझते हैं। और वह अपनी बगल वाला माल मकहमे का चपड़ासी! उसके बच्चे भरे मुंह उसे बाप!बाप! कहते मुंह का थूक सुखाए रहते हैं। इधर-उधर के बच्चे भी जब उसे बाप-बाप कहते उसके पीछे दौड़ते हैं तो उसकी पत्नी का सीना फुट भर फुदकता है। और जिनके बच्चे उसे बाप-बाप कहते हैं, उनकी मांओं के सिर भी गर्व से इतने ऊंचे हो जाते हैं कि मुझे अपना सिर षरम के मारे नीचा करना पड़ता है। हा रे मास्टरी!इसी रोज-रोज की टच-टच से तंग आकर अबके मैंने भी सांसद के चुनाव लड़ने की ठानी! सोचा, मास्टरी में रहकर जो नहीं कर पाया सो लीडरी में जाकर कर ही लिया जाए।

इधर मैंने आजाद उम्मीदवार का नामांकन भरा और लो बंधुओं, उधर मैं हो गया स्कूल मास्टर से लीडर! आज उनके घर वोट मांगने जा रहा हूं, कल आपके घर भी आऊंगा। भगवान के पास भी गया था, पर उसने बताया कि मेरे आगे नाक रगड़ने से कुछ नहीं मिलेगा। जनता के आगे नाक रगड़ो तो कुछ बात बने। मेरे आगे मनौती कर कुछ नहीं बनेगा, जनता को खिला-पिला पटाया जाए तो बात बने। जनता के यही दिन तो खाने के दिन होते हैं। सरकार बनने के बाद तो उसे प्याज के छिलके भी नसीब नहीं होते।

ये देखिए भाई साहब! चार दिन में ही जनता के द्वार नाक रगड़-रगड़कर आधा हो गया है। पर मुझे भी कोई चिंता नहीं। ये चुनाव मुझे नाक का सवाल नहीं ,कमाई का सवाल है।

अपने प्रचार के सिलसिले में कल पार वाले गांव में गया था। किराए के दो-चार पोस्टर लगाने वाले साथ थे। मुफ्त में तो आज लोग अपने बाप की अर्थी में भी शरीक नहीं होते। माशुका की अर्थी में तो दस-दस बच्चों के बाप भी सादर शरीक होते हैं और अर्थी होती है कि हाथों हाथ श्‍मशान पहुंच जाती है कि असली आशिक को पता ही नहीं चलता कि कब जैसे श्‍मशान आ गया ।

वोटर सामने! पेट गले-गले तक भरा हुआ। फिर भी खाए जा रहा था। मैंने उसके श्रीचरणों में नाक रगड़ी। उसने मुंह में काजू डालते ,भरे पेट पर हाथ फेरते पूछा,’ किस जात के हो?’

‘मैं स्कूल में बीस साल से मास्टर रहा हूं।’
उसने फिर पूछा, ‘किस जात के हो?’
‘मेरा ही पढ़ाया आपके हलके का पटवारी है।’ बड़ी देर भैंस की तरह जुगलाने के बाद बोला,’जल्दी बता न यार! किस जात के हो?’
‘मैंने बच्चों को सदा ईमानदारी सिखाई।’ पर उसने वैसे ही मेरी ओर से फिर विमुख हो पूछा,’मैं पूछ रहा हूं तुम आखिर हो किस जात के?’
‘मैं भ्रष्टाचार के बिलकुल खिलाफ हूं।’
‘पूछ रहा हूं किस जात के हो मेरे बाप?’
‘मैंने बच्चों को पिछले बीस सालों से भाईचारे का पाठ पढ़ाया है।’ ये लीडर सच्ची को सच्चे हैं जो जनता पर जीतने के बाद मूतते भी नहीं।
‘वो तो सब ठीक है, पर तुम आखिर हो किस जात के?’
‘मैं देश की अखंडता में विश्‍वास रखता हूं।’
‘रामदेयी भीतर से पानी का गिलास देना। गले में हाथ वालों का दिया काजू फस गया लगता है।’ वह गला साफ कर फिर बोला, ‘अच्छा, तो तुम हो किस जात के?’
‘मैं मास्टर जात का हूं।’ मैंने अपना सिर पटक लिया।
‘सर्वे में ये कोई नई जात निकल आई क्या?’
‘नहीं, यह वो जात है जो ईष्वर से गधे तक का साक्षात्कार करवाती है।’

‘कौन, उस ईशरु का! जो पूरी पंचायत की बहू-बेटियों को छेड़ता फिरता है?’ मन किया लीडरी को लात मार फिर वही बीयूटी बुट,पीयूटी पट हो जाऊं। मैंने अपना सिर धुनते कहा,’ तुम्हारी जात का हूं मेरे बाप।’

‘तो ऐसा कहो न ! अपना तो सीधा सा हिसाब है,न कमल पर न हाथी पर, न हाथ पर, मुहर लगेगी तो बस जात पर। जा बेटा! जाकर संसद की कुर्सी तोड़!!’

डॉ.अशोक गौतम
गौतम निवास, अप्पर सेरी रोड
नजदीक मेन वाटर टैंक,सोलन-173212 हि.प्र.

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