अनुच्छेद 370 को लेकर उमर अब्दुल्ला झांक रहे हैं

-डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री-   umar

जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पिछले दिनों ग़ुस्से में थे। किसी बीबीसी से बातचीत कर रहे थे। सवाल जबाव में साक्षात्कार करने वाले पत्रकार ने चुटकी ली। उसने कहा कि भारतीय जनता पार्टी के नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना बहुत बढ़ गई है। इससे आपको डर नहीं लगता कि वे संविधान के अनुच्छेद 370 को समाप्त कर सकते हैं ? बस इसी पर छोटे अब्दुल्ला भड़क उठे। कहने लगे कि मोदी चाहे प्रधानमंत्री बन जायें या फिर राष्ट्रपति ही क्यों न बनें , लेकिन कोई भी जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त नहीं कर सकता । यदि ऐसा करता है तो उसे रियासत के विलय को लेकर पुनः विचार करना पड़ेगा। कहा जाता है कि ग़ुस्से में आदमी अपना विवेक खो देता है। ऐसे समय में वह उचित और अनुचित के अंतर को नहीं समझ पाता। प्रश्न के उत्तर में अब्दुल्ला के व्यवहार से भी यही झलकता है। मोटे तौर पर उन्होंने जो कहा, उससे तीन भ्रम पैदा होते हैं। पहला भ्रम यह कि संघीय संविधान का अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर को कोई विशेष दर्जा देता है। दूसरा भ्रम यह कि अनुच्छेद 370 का रियासत के विलय से कोई सम्बंध है। तीसरा भ्रम यह कि इस अनुच्छेद को समाप्त नहीं किया जा सकता। ऐसा नहीं हो सकता कि अब्दुल्ला ख़ानदान को जिसकी तीसरी पीढ़ी राज्य पर राज कर रही है, उसे संवैविधानिक व्यवस्था का न पता हो। दरअसल यह ख़ानदान शुरू से ही इन प्रश्नों को लेकर भ्रम पैदा करता रहा है, क्योंकि इन भ्रमों के कोहरे में ही यह ख़ानदान केन्द्र सरकार को डरा सकता है और अपना राजनैतिक उल्लू सीधा कर सकता है। अब क्योंकि राज्य में चुनाव नज़दीक़ आ रहे हैं, इसलिये अब्दुल्लाओं ने पुरानी रागनियां बजाना शुरू कर दी हैं ।
अब उमर अब्दुल्ला द्वारा फैलाये जा रहे भ्रमों पर सिलसिलेवार बात की जाये। उमर का मानना है कि अनुच्छेद 370 राज्य को विशेष दर्जा देता है। वह दर्जा क्या है, इसका वे ख़ुलासा नहीं करते, क्योंकि इस प्रश्न पर उनके पास कोई प्रमाण नहीं है। संघीय संविधान में अलग अलग विषयों पर राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार को क़ानून बनाने का अधिकार है। किसी राज्य के लिये इन विषयों की सूची ज़्यादा है किसी के लिये कम। यही स्थिति जम्मूकश्मीर पर भी लागू होती है। संघीय संविधान के प्रावधान जम्मू कश्मीर राज्य की सरकार की इच्छा से ही लागू हो सकते हैं। अब्दुल्ला इसे उठाकर नाच रहे हैं और शायद इसी को विशेष दर्जा भी कह रहे हैं । वे अच्छी तरह जानते हैं कि राज्यों के लिये संघीय संविधान में जो प्रावधान हैं वे राज्यों की इच्छा के अनुसार ही हैं। क्या उमर अब्दुल्ला यह कहना चाहते हैं कि बाक़ी सभी राज्यों पर ये प्रावधान उनकी इच्छा के विपरीत थोप दिये गये हैं ?  केवल मात्र जम्मू कश्मीर राज्य ही ऐसा राज्य है जिसकी इच्छा का ध्यान रखा जा रहा है। उन्हें पता ही है कि जिस तरह संघीय संविधान शेष राज्यों की इच्छाओं के अनुरूप ही लागू होता है। इसी तरह यह जम्मू कश्मीर की सरकार की इच्छा के अनुसार उस राज्य में क्रियान्वित होता है। इसकी भाषा अलग हो सकती है, अर्थ एक ही है। क्या उमर इस बात का ख़ुलासा करेंगे की, इसमें अन्य राज्यों के अलाना जम्मू कश्मीर के लिये विशेष दर्जा कहां है ? अनुच्छेद 370 में महज़ इतना ही तो लिखा गया है कि राज्य सरकार के सुझाव पर राष्ट्रपति संघीय संविधान के किसी भी प्रावधान को राज्य में भी प्रभावी होने के लिये अधिसूचना जारी कर देंगे । संघीय सरकार की अन्य अधिसूचनाएं भी राष्ट्रपति के नाम पर ही जारी होती हैं। संविधान में यह भी दर्ज है कि यह अनुच्छेद ही अस्थाई है और राज्य सरकार की संस्तुति पर राष्ट्रपति इसे समाप्त भी कर सकते हैं। अलबत्ता यदि उमर अब्दुल्ला को सचमुच ही राज्यों के लिये विशेष दर्जा का शौक़ है तो उन्हें संघीय संविधान का अनुच्छेद 371 बार बार पढ़ना चाहिये। यह अनुच्छेद सचमुच कुछ राज्यों को कुछ मामलों में विशेष दर्जा देता है । लेकिन उमर अब्दुल्ला के दुर्भाग्य से यह अनुच्छेद जम्मू कश्मीर पर लागू नहीं होता । अनुच्छेद 370 का विशेष दर्जा देने से कोई सम्बंध नहीं है , लेकिन अब्दुल्ला उसी को लेकर विशेषता का दावा कर रहे हैं ।
ताज्जुब है कि उम्र अब्दुल्ला अनुच्छेद 370 का सम्बंध रियासत के संघीय व्यवस्था में विलय से देख रहे हैं । वैसे यह भी पूछा जा सकता है कि विलय की इस पूरी प्रक्रिया से उमर अब्दुल्ला का ही क्या सम्बंध है? उमर के दादा का दावा है कि जब जम्मू कश्मीर का संघीय व्यवस्था में विलय हुआ तो वे भी नेहरु के घर के किसी कमरे में बैठे थे और वे विलय के पक्ष में थे । लेकिन केवल नेहरु के घर में उमर के दादा का बैठे होना ही उमर को भी क्या विलय की प्रक्रिया में एक पक्ष बना देता है ? यह अलग बात है कि कमाल अहमद सिद्दीक़ी अपनी किताब कश्मीर- एक मंजरनामा में उमर के दादा के इस दावे को ही झूठ बताते हैं । संविधान में सैकड़ों अनुच्छेद हैं। संविधान के किसी भी अनुच्छेद को संशोधित करने और उसे निरस्त करने की पद्धति भीसंविधान में ही दी गई है । इस पद्धति से अनेकों बार संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों को संशोधित भी किया गया है और निरस्त भी किया गया है । यही स्थिति अनुच्छेद 370 की है । अनुच्छेद 370 में कहीं नहीं लिखा गया कि यदि इस को निरस्त किया गया तो विलय समाप्त हो जायेगा। बल्कि इसी अनुच्छेद में इसे निरस्त करने का तरीक़ा भी दिया गया है और इसे अस्थाई बता कर भविष्य में हर हालत में इसे समाप्त किये जाने की ही पुष्टि की गई है। लेकिन इसके बावजूद उमर अब्दुल्ला बार बार यह भ्रम फैला रहे हैं कि अनुच्छेद 370 के समाप्त किये जाने से रियासत के विलय का प्रश्न पुनः उठ खड़ा होगा।
उमर  अब्दुल्ला को यह कहने का पूरा अधिकार है कि यह अनुच्छेद राज्य के लोगों के हित में है , इसलिये इसे समाप्त नहीं किया जाना चाहिये । नेशनल कान्फ्रेंस को आने वाले चुनावों में इसे चुनावी मुद्दा बनाने का भी अधिकार है। लेकिन इसके साथ ही राज्य की जनता को भी यह कहने का पूरा अधिकार है कि इस अनुच्छेद से राज्य के आम लोगों का लम्बे अरसे से राजनैतिक व आर्थिक शोषण हो रहा है , इसलिये इसे तुरन्त समाप्त किया जाना चाहिये । उमर अब्दुल्ला की मुख्य चिन्ता यही है कि प्रदेश के अधिकांश लोगों ने इस अनुच्छेद के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना भी शुरू कर दिया है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोग तो इसमें अत्यन्त सक्रिय हो रहे हैं । गुज्जर बकरबाल पहले ही कह रहे हैं कि इस अनुच्छेद के कारण उनके लिये लागू की जाने वाली कल्याणकारी योजनाएं रास्ते में ही दम तोड़ देती हैं। लद्दाखी और बल्ती भी इस अनुच्छेद का विरोध कर रहे हैं। अब तो कहीं-कहीं जम्मू कश्मीर का शिया समाज भी इस अनुच्छेद की उपयोगिता पर संदेह करने लगा है । शायद इसीलिये नरेन्द्र मोदी ने कहा कि इस अनुच्छेद की उपयोगिता को लेकर बहस करा लेनी चाहिये । आख़िर इसकी उपयोगिता या नुक़सान का निर्णय तो प्रदेश के लोग ही करेंगे। उमर अब्दुल्ला शायद इसी बहस से बचने के लिये धमकियों पर उतर आये हैं। लेकिन उनको पता होना चाहिये कि कोई समस्या न धमकियों से हल होती है और न ही बन्दूक़ से । उसका हल तो जन जन से सम्वाद में ही निहित है। दुर्भाग्य से उमर अबदुल्ला इसी से बचना चाह रहे हैं। लेकिन एक ऐसा तथ्य भी है , जिस पर शायद बहस करवाने की भी जरूरत नहीं है। वह यह कि इस अनुच्छेद ने राज्य की जनता को चाहे जितना मर्ज़ी नुक़सान पहुंचाया हो, अलबत्ता इसने अब्दुल्ला खानदान को जरुर मालामाल कर दिया है। यही कारण है कि यह ख़ानदान इसकी रक्षा के लिये किसी सीमा तक भी जाने को तैयार है ।

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