जेटली: राजनीतिक अनाड़ीपन

डा. वेद प्रताप वैदिक

मैं एक-दो दिन के लिए विदेश में हूं। यहां न तो दिल्ली के अखबार हैं और न ही अपने सभी टीवी चैनल! इंटरनेट के जरिए जो भी थोड़ी-बहुत खबरें मिल रही हैं, उन्हें जानकर मुझे दुख हो रहा है। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने इतने पैंतरे क्यों बदले हैं? क्या वे केजरीवाल के आरोपों से घबरा गए हैं? उनकी घबराहट का सबसे बड़ा नुकसान तो यह हुआ है कि अरविंद केजरीवाल के प्रधान सचिव राजेंद्रकुमार के भ्रष्टाचार का मामला दरी के नीचे सरक गया है। यदि
जेटली सिर्फ चुप रहते तो केजरीवाल की हालत पतली हो जाती। राजेंद्र का मामला ‘आप’ की छवि को पैंदे में बिठा देता लेकिन जेटली ने उत्तेजित होकर अपने आपको राजेंद्र का रक्षक बना लिया है।
अब जेटली का कंबल ओढ़ कर प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार आराम कर रहे हैं। अब जेटली इतने घबरा गए कि उन्होंने केजरीवाल पर अदालत में मुकदमा जड़ दिया। इसका मतलब यह हुआ कि राजनीतिक पैंतरे का जवाब वे कानूनी पैंतरे से देना चाहते हैं। उनके पास पत्थर के जवाब में पत्थर नहीं है। वे पत्थर का जवाब गोबर से दे रहे हैं। क्या उन्हें पता नहीं कि मानहानि का मुकदमा चलेगा तो जेटली के सारे दुश्मन केजरीवाल की पीठ ठोकेंगे? इतना मसाला निकल आएगा कि जेटली को भागने की जगह भी नहीं मिलेगी। यह मामला बरसों तक खिंच जाएगा। जब तक जेटली मंत्री रहेंगे, उन्हें अदालतों के चक्कर लगाने पड़ेंगे। उनके इतने झूठे-सच्चे और कच्चे चिट्ठे खुलेंगे कि नरेंद्र मोदी सरकार भौंचक रह जाएगी।
कोई नेता भारत में ऐसा नहीं है, जिसका दामन साफ हो। कोई भी नेता मानहानि का मुकदमा चलाने की हिम्मत नहीं करता। उनका मान है ही कहां, जो उसकी रक्षा के लिए वे मुकदमा चलाएं? दिल्ली जिला क्रिकेट संघ की लंबे काल तक अध्यक्षता करने वाले जेटली अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते।
उन्होंने व्यक्तिशः भ्रष्टाचार नहीं किया होगा लेकिन यदि किसी भी प्रकार का भ्रarun-jaitley-3ष्टाचार हुआ है तो उनकी जिम्मेदारी वैसे ही बनती है, जैसी कि कांग्रेसी भ्रष्टाचार के लिए मनमोहनसिंह की बनी है।
यह मामला और भी ज्यादा गंभीर इसलिए हो गया है क्योंकि भाजपा के प्रखर सांसद कीर्ति आजाद ने जेटली के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार के आरोपों को जमकर दोहराया है। कीर्ति अपने पिता भागवत झा आजाद की तरह निर्भीक और बेलाग हैं। कीर्ति का समर्थन कई अन्य नामी क्रिकेट-खिलाड़ी भी कर रहे हैं। यह सारा मामला यह सिद्ध कर रहा है कि भाजपा का वर्तमान नेतृत्व राजनीतिक लड़ाई लड़ना नहीं जानता। वह अपनों को ही नहीं पटा सकता। वह विरोधियों को काबू कैसे करेगा? हर मामले में उसकी दुर्दशा हो रही है। चाहे वह अरुणाचल हो, चाहे असहिष्णुता हो, चाहे मां-बेटे की नौटंकी हो, चाहे वीरभद्र और राजेंद्र पर छापे हो। राजनीतिक अनाड़ीपन की हद हो चुकी है।

1 COMMENT

  1. संस्थागत जीवन में जिम्मेवारियां सुस्पस्ट होती है। किसी अन्य द्वारा की गई अनियमितता के लिए आप किसी अन्य को जिम्मेवार नही ठहरा सकते। अरुण जेटली 24 कैरेट का खरा सोना जैसे है, सार्वजनिक जीवन में ऐसा बेदाग़ आदमी कम दीखते है। उनपर झूठा आरोप लगाया गया तो उन्हें आवेग और संवेग आया जो स्वभाविक है। उनका कदम राजनितिक रूप से सही था या गलत यह समय बतलाएगा। लेकिन एक व्यक्ति के रूप में उनके प्रति मेरा सम्मान बढ़ा है।केजरीवाल के निजी सचिव पर आरोपो के बाद गढ़े गए आरोप स्वयं यह सिद्ध करते है की उनमे कोई दम नही है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here