अरविंद केजरीवाल के धरने के मायने को समझिए

-डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री-  arvind

पिछले दिनों 20 जनवरी को दिल्ली के मुख्यमंत्री, आम आदमी पार्टी के प्रधान अरविंद केजरीवाल रेलभवन के सामने धरने पर बैठ गए थे। वे गृह मंत्रालय के आगे धरना देना चाहते थे लेकिन वहां तक पुलिस ने उनको पहुंचने नहीं दिया, इसलिए उन्होंने रेलभवन के आगे ही अपना धरना जमाया। वैसे पुलिस ने उन्हें बता दिया था कि इस क्षेत्र में धारा 144 लगी हुई है इसलिए यहां धरना देना कानून के खिलाफ है। लेकिन इस प्रकार की धाराएं और इस प्रकार के कानून आम आदमी के लिए होते हैं। निश्चय ही अरविंद केजरीवाल अपने को आम आदमी से और आम कानून से ऊपर समझते हैं, इसलिए उन्होंने इस छोटे-मोटे कानून की कोई चिंता नहीं की। अलबत्ता जब उन्हें यह याद दिलाया गया कि एक निर्वाचित मुख्यमंत्री के इस प्रकार के व्यवहार से अराजकता फैल सकती है तो उन्होंने अपनी पार्टी की नीति स्पष्ट करते हुए यह स्पष्ट किया कि देश में इस प्रकार की अराजकता फैलाना ही तो उनका उद्देश्य है।

इस स्वीकारोक्ति पर दिल्ली के मुख्यमंत्री का धन्यवाद किया जाना चाहिए लेकिन असली प्रश्न यह है कि यदि देश् में अराजकता फैलेगी तो उसका लाभ किसको मिलेगा? पिछले कुछ दशकों से, जैसे-जैसे भारत के भी एक क्षेत्रिए शक्ति बनने की चर्चा बढती जा रही है वैसे-वैसे कुछ देशी-विदेशी शक्तियां भारत में अराजकता फैलाकर इस प्रगति को अवरूद्ध करना चाहती हैं। इस्लामी-तालिबानी शक्तियां अराजकता पैदा करने की त्रिकोण का एक बिंदू है। देश में लाल गलियारा बनाकर अराजकता पैदा करने वाली माओवादी शक्तियां अराजकता के इस त्रिकोण का दूसरा बिंदू है। और अब आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल ने अराजकता फैलाने की सार्वजनिक घोषणा कर के अराजकता के इस त्रिकोण को पूरा कर दिया है। यदि वो दिल्ली के मुख्यमंत्री ना होते तो शायद अराजकता फैलाने की उनकी इस घोषणा को गंभीरता से न लिया जाता लेकिन अब क्योंकि सोनिया गांधी की पार्टी ने सबकुछ जानते बुझते हुए भी केजरीवाल को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया है तो यह संशय भी गहराता है कि कहीं सोनिया गांधी की पार्टी भी सत्ता से चित्त होने से पहले अराजकतावादी शक्तियों को प्रोत्साहन तो नहीं दे रही? अरविंद केजरीवाल की अराजकता फैलाने की घोषणा और सुरक्षा स्वीकार न करने की नीति को एक दूसरे के साथ जोड़कर देखना होगा। गुप्तचर एजेंसियों को ऐसी आशंका है कि इस्लामी आतंकवादी केजरीवाल का अपहरण कर सकते हैं ताकि उसके बदले में कुख्यात आतंकवादी यासिन भटकल को छुड़वाया जा सके। इस्लामी आतंकवादी शक्तियां ऐसा एक प्रयोग जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और उस समय देश के गृहमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सैयद की बेटी का अपहरण करके सफलतापूर्वक कर चुकी हैं। इसके बावजूद केजरीवाल सुरक्षा को धता बता रहे हैं। मान लीजिए इस माहौल में कल सचमुच इस्लामी आतंकवादी शक्तियां उनका अपहरण कर लेती हैं, तो एक राज्य के मुख्यमंत्री के अपहरण के बाद जो अराजकता फैलेगी और उसके जो परिणाम निकलेंगे उससे इस देश में किन ताकतों को लाभ होगा?

इस पूरे प्रकरण में अरविंद केजरीवाल के विधि मंत्री सोमनाथ भारती की एक चाल को भी उसके गहरे परिपेक्ष्य में समझना लाजिमी है। सोमनाथ भारती पर आरोप है कि उन्होंने अफ्रीकी देशों की कुछ महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार ही नहीं किया बल्कि उनके चरित्र को लेकर उनपर लांछन भी लगाएं। सोमनाथ भारती इससे भी एक कदम आगे गएं, उन्होंने कहा कि दिल्ली स्थित युगांडा के दूतावास के एक अधिकारी ने बकायदा उनको एक पत्र देकर यह कहा कि दिल्ली में युगांडा की लड़कीयों को वेश्यावृति में धकेला जा रहा है। युगांडा के दूतावास ने तो सोमनाथ भारती की इस गलत बयानी का तुरंत खंडन किया ही, वैसे भी जिसको विदेशी दूतावासों के कामकाज की थोड़ी बहुत भी समझ है वे यह जानते हैं कि दिल्ली स्थित विदेशी दूतावास किसी भी राज्य से सीधे बातचीत नहीं करते बल्कि वे भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के माध्यम से ही करते हैं।

लेकिन मुख्य प्रश्न यह है कि अफ्रीकी देशों की महिलाओं को लेकर अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने यह सारा गैरकानूनी प्रकरण क्यों किया? इसके लिए थोड़ा पीछे जाना होगा। कुछ अरसा पहले न्यूयार्क में अमेरिका की पुलिस ने भारत की डिप्टी काउंसलर जनरल देवयानी खोबड़गड़े को गिरफ्तार कर लिया था, गिरफ्तारी के बाद उसके साथ बहुत ही आपत्तिजनक व्यवहार किया गया। भारत में अमेरिका के इस व्यवहार को लेकर बहुत तेज और तीखी प्रतिक्रिया हुई। मीडिया ने भी अमेरिका के खिलाफ जनभावनाओं को अभिव्यक्त करने में प्रमुख भूमिका निभाई। अमेरिका की किरकिरी ही नहीं हो रही थी बल्कि देश में अमेरिका के विरोध में एक वातावरण भी बनता जा रहा था। इसलिए जरूरी हो गया था कि किसी ढ़ग से इस जनआक्रोश को अमेरिका से हटाकर किसी दूसरे देश की ओर मोड़ा जाए। इस मामले में अफ्रीकी देशों का सरलता से शिकार किया जा सकता था और अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने भी बहुत ही चालाकी से जनआक्रोश को अफ्रीका के काले देशों की ओर मोड़ने की कोशिश की। हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार स्वर्गीय डा. चन्द्रशेखर ने कभी लिखा था-

उन्होंने बड़ी होशियारी से तलवार का जुर्म, म्यान के सिर मढ़ दिया है।

अरविंद केजरीवाल ने तलवार का जुर्म म्यान के सिर मढ़ते वक्त यह नहीं सोचा कि इससे अफ्रीकी देशों में भारतीयों के खिलाफ प्रतिक्रिया हो सकती है। किसी विदेशी नागरिक को किसी अपराध में लिप्त होने पर उस पर बकायदा मुकदमा चलाना एक बात है लेकिन सारी अफ्रीकी महिलाओं को बदनाम करना और भीड़ को लेकर उनके खिलाफ हंका लगाना बिल्कुल दूसरी बात है। दुर्भाग्य से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के 20 जनवरी 2014  को दिल्ली में दिए गए धरने को इसी पृष्ठभूमि में समझना होगा।

इस धरने से अरविंद केजरीवाल की कार्यशैली का एक दूसरा पहलू भी उजागर हुआ है। केजरीवाल ने धरने के दौरान धमकी दी थी कि यदि उनकी मांगें ना मानी गई तो वे इंडिया गेट पर 26 जनवरी को गण्तंत्र दिवस का उत्सव नहीं होने देंगे और राजपथ को लाखों लोगों से भर देंगे। यह कार्यशैली एक उदहारण से समझी जा सकती है। मान लीजिए कोई किरायदार मकान मालिक के बार-बार आग्रह करने पर भी मकान खाली नहीं करता तो मकान मालिक धमकी देता है कि यदि तुम मकान खाली नहीं करोगे तो मैं तुम्हारे बेटे का अपहरण कर लूंगा। अरविंद केजरीवाल भी कुछ कुछ उसी भाषा में 26 जनवरी के उत्सव का अपहरण करने की ही धमकी दे रहे थे।

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