स्वयंभू ‘सिविल सोसाइटी’ के ‘असभ्य’ अरविंद केजरीवाल

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भवेश नंदन झा

स्वयंभू ‘सिविल सोसाइटी’ के ‘सभ्य’ सदस्य अरविंद केजरीवाल उवाच : ‘संसद ही सभी समस्याओं की जड़ है.’

यह सोच असभ्य, अलोकतांत्रिक और अहंकारी है.

अरविंद केजरीवाल आप दो-चार लोगों द्वारा स्थापित “ सिविल सोसाइटी” समस्या हो सकती है, यह संसद नहीं.

संसद आज भी करोड़ों ग्रामीणों, किसानों, गरीबों की आस और विश्वास है, जो उनके लिए कुछ करते हैं, कर सकते हैं और कुछ भी नहीं तो कम से कम उनकी बात तो करते ही हैं..

आप जैसे तो बिल्कुल ही नहीं हो सकते जो ठंड लगने पर आन्दोलन का स्थान बदल दे, बिना उचित वजह के दुबारा आन्दोलन शुरू कर और मजमा न लगने पर आन्दोलन बिना कोई कारण बताए खत्म कर दे, सुर्ख़ियों में बने रहने के लिए चिकित्सक पर ही घटिया आरोप मढ़ दे, भारत माता की तस्वीर को साम्प्रदायिक समझ उतार दे, आप तो सांसदों पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते रहते हैं. हमने तो अभी तक यही देखा है कि आप लोग अपनी एक भी कही हुई बातों पर नहीं टिकते हैं..

इस देश में पिछले 10 सालों में 1 लाख किसानों ने आत्महत्या कर ली पर आप जैसों ने और न ही मीडिया ने कोई सुध ली, न ही कोई और “सभ्य समाज” आंसू पोंछने आया. आप चिंतित भी होते हैं तो घटते बाघों के लिए “ग्लोबल वार्मिंग” इत्यादि के लिए..

इस देश में आज भी साल में लगभग एक लाख गरीब मलेरिया-टी.बी. जैसी बीमारियों से मर जाते हैं और आप जैसे लोग अपना समय और संसाधन अदृश्य बीमारी “एड्स” में लगाते हैं.

निश्चित रूप से इस देश को एक अच्छे लोकपाल की सख्त जरूरत है पर इस लोकपालरुपी प्रसाद के लिए लोकतंत्र का मंदिर तो नहीं तोड़ा जा सकता न ही उसकी प्रतिष्ठा धूमिल की जा सकती.

हां अगर आपको लगता है की कुछ सांसद गलत चुन कर आ रहे हैं तो यहाँ भी दोषी संसद नहीं है. आप लोगों के बीच जाइये क्योंकि अब राजतन्त्र नहीं है कि राजा रानी के पेट से जन्म लेगा. अब तो यह काम जनता के द्वारा तय होता है जो आज भी जाति, धर्म भाषा, क्षेत्रीयता चेहरा देख कर वोट करती है, जो अच्छे लोग उम्मीदवार बनते भी हैं तो जमानत गँवा कर वापस आते हैं. कई उदाहरण ऐसे हैं कि कर्मठ और ईमानदार लोग फिल्म अभिनेता-अभिनेत्री से हार गए हैं.

अगर जागरूक करना है, समझाना है तो मतदाताओं को समझाएं.

10 COMMENTS

  1. लेख से पूर्णतया सहमत | आज केजरीवाल जी की कलई खुल चुकी है |

  2. आज इस आलेख के प्रकाश में आने के करीब चार वर्ष दो महीने के बाद फिर से मेरी नजर इस आलेख पर पडी है.आज जब इस आलेख पर विचार विमर्श होगा ,तो क्या परिस्थितियों के बदलने के साथ अधिकतर लोगों का विचार नहीं बदल जायेगा?जहाँ तक मेरा प्रश्न है,अरविन्द केजरीवाल और अन्ना हजारे के बारे में मेरी विचारधारा में कोई परिवर्तन नहीं आया है.क्या अन्य सज्जन भी ऐसा ही कह सकते हैं?

  3. झा साहब अपने केज्रिवाली जी का सही अवलोकन नहीं किया है या आप अभी तक इन सब बातों से अनजान है या हो सकता है कांग्रेस के घोर समर्थक है, लेख में कही गयी बातें अत्यंत ही निचले दर्जे की हैं तथा किसी मंद बुद्धि बालक सी लगती हैं.

    वैसे आपकी कोई फिल्म नहीं देखी फ़िल्मकार साहब… कृपया सोच समझ कर लिखिए इस समय एक लहर चली हुई है… समय आने पर उलटे जाने वालों को बहा ले जाएगी

  4. केजरीवाल अलोकतांत्रिक और अहंकारी हो सकते है असभ्य नहीं ।

  5. ‘संसद ही सभी समस्याओं की जड़ है.’

    इस कथन का भाव बेशक कुछ और भी हो सकता हो, लेकिन इसका सीधा आशय देश के संविधान और देश की संवैधानिक व्यवस्था को चुनौती देना है! जिसका समर्थन करना भी निंदनीय और आपराधिक कुकृत्य है!

    केजरीवाल जैसे लोगों का समूह इस देश का नहीं, बल्कि इस देश के लोकतंत्र तोड़क भ्रष्ट, तानाशाह, फासीवादी, शोषक तथा अत्याचारी लोगों और कार्पोरेट घरानों का शुभ चिन्तक है!

    अन्ना-केजरीवाल समूह के लोग भारत के नहीं इंडिया के पैरोकार हैं!

    अन्ना-केजरीवाल समूह के लोग कुव्यवस्था को बदलने के नहीं, बल्कि सरकार को बदलने के पैरोकार हैं!

    सच तो ये है कि इस देश में एक सुनियोजित षड़यंत्र चल रहा है, जो इस देश के मूल निवासियों, दमितों, दलितों, आदिवासियों, विपन्न सवर्णों, स्त्रियों, पिछड़ों और अल्प संख्यकों को सत्ता में आंशिक भागीदारी से भी दूर करने के लिए कुछ भी करने को तैयार है!

    इसका साफ़ संकेत श्री राजेश कपूर जी की टिप्पणी के इस अंश में समझा जा सकता है-

    “इन देश विनाशक ताकतों के कुकर्मों पर उंगली उठाने वाले केजरीवाल जैसे हम जनता को तो बहुत भाते हैं. जिन्हें नहीं भाते वे १०-१५ % भी मुश्किल से होंगे. चाहें तो सर्वेक्षण करवालें, देश के किसी भी भाग में. (काश्मीर, नागालैंड,मिजोरम आदि को छोड़ कर.)”

    क्योंकि इन प्रान्तों में इनके दूषित विचारों को समर्थन देने वाले लोग नहीं हैं! जबकि इनको शायद ये गलत फहमी है कि सारा देश इनकी हकीकत को जान चुका है!

    जबकि दूसरा सच ये है कि केजरीवाल जैसे लोग 3-4 फीसदी हिटलर के मित्र और यहूदियों के वंशजों के षड़यंत्र के शिकार भोले-भाले 5-10 फीसदी से अधिक लोगों के लिए प्रिय नहीं हो सकते!

  6. भाई भावेश जी ज़रा इमानदारी से बतलाएं तो की किसानो की आत्महत्या को रोकने के लिए आपकी श्रद्धा पात्र संसद ने क्या किया ? केजरीवाल तो आपके अनुसार गैरजिम्मेवार हैं, अतः उनसे कैसी आशा. पर जिम्मेवार (?)संसद की भूमिका के बारे में बतलाएं की क्या जिम्मेवारी उसने निभाई ? हम लोगों की नज़र में तो सारी समस्याओं की जड़ में यह भ्रष्ट सांसदों की संसद और इनसके पैरोकार पत्रकार व मीडिया ही हैं. इन देश विनाशक ताकतों के कुकर्मों पर उंगली उठाने वाले केजरीवाल जैसे हम जनता को तो बहुत भाते हैं. जिन्हें नहीं भाते वे १०-१५ % भी मुश्किल से होंगे. चाहें तो सर्वेक्षण करवालें, देश के किसी भी भाग में. (काश्मीर, नागालैंड,मिजोरम आदि को छोड़ कर.)

  7. भवेश जी,
    आपके लेख में मुझे माननीय दिग्विजय सिंह जी की भाषा की झलक देखने को मिल रही है शायद ये मेरा भ्रम हो ! पर आज भी हमारे देश में अधिकतर वोटर प्रत्याशी से ज्यादा महत्व उसके राजनैतिक दल को देता हैं और राजनैतिक दल जनता के विश्वाश को अपने अपने दल- बल के अनुसार बेच देते है किसी के पास जितना ज्यादा धन वह उतना ही प्रबल दावेदार हो जाता है चाहे उसकी प्रष्ट-भूमि अपराधिक ही क्यू न हो, ( उधारण की आवश्कता नही ) और आपके ही पंक्तियों में की
    “कई उदाहरण ऐसे हैं कि कर्मठ और ईमानदार लोग फिल्म अभिनेता-अभिनेत्री से हार गए हैं.”
    मुझे अरविन्द जी सोच में वो आक्रोश दिखाई देता है जो की हर भारतीय की सोच में होना चाहिए !

  8. श्री भवेश नंदन झा,मैंने केजरीवाल का मूल बयान और उसकाअंगरेजी रूपांतर दोनों पढ़ा.अंगरेजी रूपांतर को इसलिए पढना पड़ा ,क्योंकि सोचा इसमे कुछ गलती न हो गयी हो,क्योंकि उनका मूल बयान तो शायद हिंदी में ही था .कोई गलती नहीं नजर आई.केजरीवाल ने अपने इस बयान द्वारा एक शल्य चिकत्सक की भूमिका निभाई है.किसी सड़े गले अंग को भी काटने में कष्ट होता है.वही कष्ट आप लोगों को हो रहा है. अधिक कष्ट उन लोगों को हो रहा है,जो इस सड़े गले अंग पर मक्खियों की तरह लिपटे हुए हैं और गन्दगी का रस स्वादन कर रहे हैं.
    आपने पूछा है, “किसानो के मौत के समय ये लोग कहाँ थे?”प्रश्न अच्छा है,पर यह दलील बार बार इन भ्रष्टों के पक्षधरों द्वारा दुहराई गयी है और बार बार इसका उत्तर दिया जाता रहा है.सबसे बड़ा प्रश्न तो यह है कि क्या इसका कारण भी भ्रष्टाचार नहीं है..इस तरह के अन्य बहुत सी समस्याएं हैं जिसके मूल में भ्रष्टाचार है.यहाँ तक की नक्शल समस्या,कश्मीर में वर्तमान संकट,पूर्वोतर के राज्यों में असंतोष सबकी जड़ यह भ्रष्टाचार है.तो क्यों न इस पर प्रहार किया जाए.,अन्य बहुत सी समस्याएं इसके साथ ही सुलझ जायेगी.
    आपने अनशन के लिए स्थान परिवर्तन का भी मजाक उड़ाया है.इस बात को लिखते समय आपकी लेखनी एक बार भी नहीं काँपी,इससे पता चलता है कि आप भी उन्हीं हृदय हीन पत्रकारों में से हैं,जिसके बल पर पर ये प्रछन्न गुंडे मौज कर रहें हैं.मीडिया के इस अंग को मैं उसी सिक्के का दूसरा पहलू मानता है,जिसके एक ओर ये सफेदपोश डाकू,,बलात्कारी और कपटी हैं. अनशन केवल एक प्रतीक है.यह जनता को जागरूक करने के लिए एक साधन मात्र है.इसको कैसे किया जाए और कहाँ किया जाए,यह इतना महत्त्व पूर्ण नहीं है,पर वे लोग जिनको इससे कष्ट हो रहा है ,हमेशा यह उतेजना पूर्ण वातावरण तैयार करना चाहेंगे,जिससे जनता प्रभावित दिखे .अनशन कौन कर रहा है?अन्ना हजारे. .झा जी ज़रा अपने दिल पर हाथ रख कर सोचिये ,इस अनशन से उनको कौन सा व्यक्तिगत लाभ होने जा रहा है?वे किस पद की प्राप्ति के लिए यह सब कर रहे हैं?
    आपने अपने लेख के अंतिम परिच्छेद में एक महत्त्व पूर्ण मुद्दा उठाया है.आप ठीक दीखते हैं,जब आप यह कहते हैं,”हां अगर आपको लगता है की कुछ सांसद गलत चुन कर आ रहे हैं तो यहाँ भी दोषी संसद नहीं है. आप लोगों के बीच जाइये क्योंकि अब राजतन्त्र नहीं है कि राजा रानी के पेट से जन्म लेगा. अब तो यह काम जनता के द्वारा तय होता है जो आज भी जाति, धर्म भाषा, क्षेत्रीयता चेहरा देख कर वोट करती है, जो अच्छे लोग उम्मीदवार बनते भी हैं तो जमानत गँवा कर वापस आते हैं. कई उदाहरण ऐसे हैं कि कर्मठ और ईमानदार लोग फिल्म अभिनेता-अभिनेत्री से हार गए हैं.”पर आप भूल जाते है कि मतदाताओं को समझाने का काम भी इस आन्दोलन से जुड़े लोग कर रहे हैं.वे गाँव गाँव जाकर अलख जगाने का काम कर रहे हैं.आप यह लिखते समय यह भी भूल गए कि केजरीवाल का यह वक्तव्य भी इसी सिलसिले में दिया गया है.,पर आप जैसे पत्रकार और मीडिया वाले क्या कर रहें हैं? लगता है,उनके प्रयत्नों के लिए उनकी सराहना न करके उनका मजाक उड़ाने में ही आपलोगों ने अपने कर्त्तव्य की ईति श्री समझ ली है.

  9. सत्य कडवा होता है सांसद शायद सच पचा नहीं पा रहे हैं …आज ही सुषमा स्वराज चिल्ला रही हैं की सचे लोगों को चुन कर सांसद में आकर अपनी बात कहनी चाहिए …मतलब उन्होंने मान लिया है की उनको केवल जीतने वाला व् सांसद पहुँचने वाला व्यक्ति ही प्रिये है भले ही वो अपराधी या बलात्कारी ही क्यों न हो एक अच्छे,सचे व् ईमानदार गरीब सांसद पहुँच सके ऐसा वातावरण ही आज के नेताओं ने छोड़ा ही कहाँ है सभी को शासन करना है भले ही वो अपराधी के द्वारा ही क्यों न हो …..आपकी असलियत सामने आ ही रही है सुषमा जी ….वीभत्स सत्य कहने वाले अब असभ्य कहलाते हैं….

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