आर्य बनाम द्रविण

Dravidische_Sprachen

बहुत दिनों तक निष्पक्ष यूरोपीय विद्वान संस्कृति को लैटिन, ग्रीक आदि सभी भाषाओं की जननी मानते थे। मैक्समूलर ने एक विशेष योजना के तहत कहा कि संस्कृत, लेैटिन ग्रीक आदि भाषाए बहनें हैं और इन भाषाओं की जननी प्राचीन भाषा थी, जिस उसने आर्य भाषा कहा। आगे रायल एशियाटिक सोसाइटी की अप्रैल 1866 को हुई बैठक में पहली बार भारत पर आर्य आक्रमण का प्रस्ताव पारित हुआ, उसमें कहा गया कि मध्य एशिया से होते हुए आर्य हिन्दूकुश और ईरान होते हुए भारत पहुंचें और यहां के मूल निवासियों को, जो कि द्रविण थे, उन्हें खदेड़ते हुए उत्तर में बस गए। इसके साथ एक बात और भी कहीं गई कि आर्यो की एक धारा जैसे उत्तर की तरफ गई,वैसे ही एक धारा यूरोप की तरफ गई। 1930 से आगे जब हडप्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई में प्राचीन विकसित सभ्यता के दर्शन हुए तो उन्होंने इसे आर्य आक्रमण से समाप्त हुई द्रविण-सभ्यता का नाम दे दिया।

तथ्य यह है कि 1857 की क्रांति असफल होने के बाद अंग्रेजों द्वारा भारत को बौद्धिक और मानसिक गुलामी से जकड़ने के दुष्चक्र आरंभ हो गए थे। क्यूंकि मैकाले ने 1833 में ही ब्रिटिश पालियामेंट में कह दिया था कि जब तक हम इस देश की महान ओैर समृद्ध विरासत से यहां के लोगों का आधार नहीं तोडते तब तक निरापद रूप से इस देश में शासन नहीं कर सकते। 1888 को तात्कालिन भारत मत्री सर जार्ज हैमिल्टन ने लिखा –मेरी राय में हमारे शासन को अभी कोई खतरा नहीं है, बल्कि पचास वर्षो के बाद हो सकता है। अतः हमें चाहिए कि हम समुदायों में विभाजन-रेखा गहरी करते रहे जबकि भारत में वर्षो तक ईस्ट इण्डिया कंपनी में कार्यरत मुम्बई प्रांत के गर्वनर एल्फिन्स्टन ने 1841में प्रकाशित पुस्तक हिस्ट्री आफ इण्डिया में लिखा था -न तो मनुस्मृति में, न वेदों में और न किसी ऐसी पुस्तक में जो मनुस्मृति से पुरानी है, कोई ऐसा प्रसंग आया है कि आर्य भारत के बाहर किसी अन्य देश के निवासी थे।

            लेकिन अंगे्रजों के इस सुनियोजित और झूठे प्रचार का तुरंत ही प्रतिवाद शुरू हो गया। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती ने 1875 में प्रकाशित अपने ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में इसका जोरदार खण्डन किया। उन्होने लिखा कि किसी संस्कृत ग्रंथ में नहीं लिखा है कि आर्य लोग ईरान से आए और यहां के जंगलियो से लड़कर विजय पाकर उन्हे निकालकर इस देश के राजा बनें। ऐसे में विदेशियों की बात कैसे मान्य हो सकती है। दयानंद सरस्वती का कहना था कि सच्चाई तो यह है कि मनुष्यो की आदि सृष्टि तिब्बत में हुई और आर्य लोग तिब्बत से आकर सीधे इस देश में बसे। इसके दो दशक बाद स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका में गर्जना की आपके ये यूरोपीय पण्डित कहते है कि आर्य किसी विदेशी भूमि से आए और यहां के मूल निवासियो की भूमि छीनकर और उनका नरसंहार कर यहा बस गए। यह सब मूर्खतापूर्ण बातें हैं।

दो दशक बाद स्वामी अरविंद के बाद से सच फिर अभिव्यक्त हुआ।’’ भारत का पूर्नजन्म नामक पुस्तक में वे लिखते हैं- ‘‘एक समय अवश्य ऐसा आएगा जब भारतीय मानस उस पर थोपे गए अंधकार को झटक कर दूर करेगा और दूसरे या तीसरे दर्जे के विचारों को त्यागकर अपने बौद्धिक अधिकारों का संप्रयोग करेगा। तब उनके दार्शनिक मिथक टूटेगे और किवंदती बन चुके झूठ धाराशायी होंगे। जैसे कि भारत पर उत्तर से आर्यो का आक्रमण, आर्य-द्रविण का भेद, जिन सारे दोषपूर्ण विचारों ने अफगान से लेकर समुद्र-पर्यन्त फैले विशाल भारत की एकता में शूल बो रखे हैं।’’

      आगे डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने 1948 में प्रकाशित पुस्तक शूद्र कौन में आर्य आक्रमण की विस्तार से समीक्षा की। सम्पूर्ण समीक्षा के पश्चात् निम्न सार सामने रखा।

  1. वेदो मे ंआर्य नाम की किसी नस्ल का उल्लेख नहींहै।
  2. वेदों में कोई सबूत नहीं है कि आर्यो ने बाहर से भारत पर आक्रमण किया और दासों या दस्युओं को पराजित किया।
  3. वेदो में इसका कोई प्रमाण नहीं है कि आर्य, दास और दस्यु भिन्न नस्ल के थे।

      वस्तुतः आर्य शब्द का अर्थ एक सम्मानित या श्रेष्ठ व्यक्ति है न कि कोई समुदाय। इसी प्रकार द्रविण भी कोई समुदाय नहीं होता। वाराणसी में मण्डन मिश्रा के साथ हुए शास्त्रार्थ में आदि शंकराचार्य ने स्वयं को द्रविण-शिशु कहा था। जिसका अर्थ था-उस स्थान का वासी जहां तीन सागर मिलते हैं। कन्याकुमारी व कलादी ऐसे ही स्थान हैं, लेकिन ब्रिटिश साम्राज्यवादियों द्वारा जान-बूझकर यह झूठा इतिहास गढा गया जिसे गुलाम मानसिकता वाले भारतीय लेखकों ने आगे बढ़ाया। उल्लेखनीय है आर्य-द्रविण सिद्धांत वर्तमान शोध में भी गलत साबित हो चुका है। प्रोफेसर सी0 पान्से तथा डॉ. सुश्री पटेल ने भारतीय व यूरोपीय लोगों के डी.एन.ए. विश्लेषण में यह सत्य उजागर किया है। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के डॉ. ज्ञानेश्वर चैबे ने 12000 भारतीयों पर चार वर्ष के अध्ययन से निष्कर्ष निकाला है कि सभी भारतीय के आनुवांशिक गुण एक ही हैं, चाहे वह भारत के किसी क्षेत्र के रहने वाले हो। इन सभी नए शोधो को आधार मानकर बीबीसी ने अपने 6 अक्टूबर 2005 के कार्यक्रम में आर्य-द्रविण सिद्धांत की धज्जियां उड़ाते हुए कहा-यह सिद्धांत न केवल गलत था, बल्कि इसने समुदायों के बारे में गलत प्रचार भी किया।

      आर्य-आक्रमण सिद्धांत के अनुसार भारत का कोई सांस्कृतिक इतिहास ही नहीं था और सारी संस्कृति आक्रमणकारी ही अपने साथ लाए। इनके अनुसार भारत प्रजातियों का एक बेमेल समूह रहा है। इसके अनुसार भारत हिन्दू संस्कृति का देश न होकर विभिन्न संस्कृतियों का समूह था। कुल मिलाकर इस तर्क के माध्यम से अंग्रेज यह साबित करना चाहते थे कि यह शासन भारत को बदलने का वैसा ही प्रयास था, जैसा कि सदियों पूर्व आर्यो ने किया था। इस तरह से अंग्रेज एक ओर भारत में अपने राज को न्यायसंगत ठहराने का प्रयास कर रहे थे। तो दूसरी ओर जैसे हिन्दू-मुसलमान में फूट डालने का प्रयास कर रहे थे, वैसे ही उत्तर और दक्षिण भारत में फूट डालकर निर्बाध राज करना चाहते थे। जनवरी 2009 में ह्यूमन जैनेटिक्स, शोध पत्रिका में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिसके अनुसार भारतीय ब्राह्मण, दलित, जनजाति सभी का एक ही अनुवांशिक इतिहास है। वर्तमान दौर में सिर्फ इस देश के नहीं बहुत से विदेशी जिसमें भारत के सर्व श्री बी0बी0 लाल, दिलीप चक्रवर्ती, एस0आर0 राव, के0डी0 सेठना, वी0एन0 मिश्र, माधव आचार्य, आर0एस0 राजाराम तथा विदेशी इतिहासकार जिम शाफर, जी0एफ0डेल्स, के00आर0 कैनेडी, मिशेल डानीनो, डेविड फ्रांली, श्री कांत तालागोरी व ए0के0 विश्वास के नाम उल्लेखनीय है। सभी इस पर एकमत है, कि उपलब्ध पुरातत्व साक्ष्य से यह कतई सिद्ध नहीं होता कि आर्यो ने भारत पर आक्रमण किया, बल्कि साक्ष्य इसके विपरीत ही है।

      दुर्भाग्यजनक स्थिति यह है कि देश की आजादी के बाद भी कांग्रेस पार्टी के लम्बे शासन में देश के इतिहास को सही करने का कोई प्रयास नहीं किया गया। यदि किसी ने ऐसी मांग भी की तो उसे हिन्दूवादी व साम्प्रदायिक दृष्टिकोण वाला कह दिया गया। एन0डी00 शासन के दौर में जब डॉ. मुरली मनोहर जोशी शिक्षा मंत्री थे, उस वक्त इतिहास को सुधारने के लिए उसके पुर्नलेखन का प्रयास जरूर किया गया। किन्तु इस प्रयास को भी शिक्षा का भगवाकरण कहकर पर्याप्त हो -हल्ला मचाया गया और यह प्रयास परवान नहीं चढ़ सका। कुछ दिनो पूर्व समाचार-पत्रों में यह प्रकाशित हुआ कि भारत के इतिहास से आर्य आक्रमण हटाया जाएगा। पर इसको कुछ इस तरह प्रस्तुत किया गया मानो यह मात्र संघ परिवार के चलते होने जा रहा है। वस्तुतः संघ ही नहीं इतिहास में कितनी ही बड़ी हस्तियों ने आर्य-द्रविण संघर्ष के सिद्धांत को नकारा है।जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है।

      अब जब हड्प्पा और मोहनजोदड़ों में पाए गए अवशेष वैदिक संस्कृति से संबंधित सिद्ध हो चुके है, भारत के सभी निवासी एक ही नस्ल के हैं, आधुनिक जिनोम विज्ञान यह सिद्ध कर चुका है। तो यह लोगों के मानस को कुलुषित करने वाली और भारत के आत्म सम्मान को खण्डित करने वाली बातें अब निर्मूल होनी चाहिए। जैसा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक भारत श्रेष्ठ भारत की बातें करते हैं, वह तभी संभव है,जब ऐसी सभी विभाजक और राष्ट्र के आत्म गौरव में बाधक बातों को हटकार सही इतिहास पढ़ाया जाए।

निःसन्देह छद्म धर्म निरपेक्षतावादी इसे इतिहास का भगवाकरण कहकर चिल्ल-पो मचाएंगें। पर इन तत्वों ने कब सच को स्वीकार किया। चाहे वह राम जन्मभूमि का प्रकरण हो, रामसेतु का, सरस्वती नदी का, समुद्र में डूबी द्वारिका का। जबकि राम जन्मभूमि को जहां अदालत ही सिद्ध कर चुकी है, वहीं और सभी को सभी को नासा ही सिद्ध कर चुका है। इसी तरह से इन तत्वो को भारतीय मनीषियों से भी परहेज है। चाहे वह आदि विधिशास्त्री मनु हो या महान अर्थशास्त्री कोैटिल्य हों। महान वैज्ञानिक कणाद हो, या याज्ञवल्क, पाणिनि, आर्यभट्ट या वराहमिहिर हो।मैक्समूलर ने स्वतः जिस संस्कृत भाषा को विश्व की महानतम्, सर्वश्रेष्ठ और चमत्कारिक भाषा कहा, उसे काले अंग्रेजों ने प्रतिगामी और मृदभाषा घोषित कर दिया। जबकि आधुनिक शोधो ंतक से यह पता चला है कि कम्प्यूटर प्रणाली में संस्कृत के उपयोग से मानव मात्र में एक नई क्षमता का विकास संभव है। क्योंकि इन यह तत्व चाहते है कि देश अपनी विरासत एवं परंपरा से विरत रहे, ताकि वह अपना मनचाहा खेल खेलते रहें। पर अब यह सही वक्त है कि सच्चे अर्थो में एक सामूहिक, संगठित और अनुशासित राष्ट्र बनने के लिए हम पूरी ताकत से कार्यरत हो। क्योकि जैसा कि डॉ. ए0पी0जे0 कलाम ने कहा-‘‘अपने नायकों की शौर्य गाथाओं, साहसिक पराक्रमों और अतीत की विजयों की स्मृति की जीवंत बनाकर ही राष्ट्र खड़ा होता है।

–वीरेन्द्र सिंह परिहार

5 COMMENTS

  1. कुछ महत्त्वके मौलिक बिंदू ध्यान में आ रहे हैं। जो हमारे और अंग्रेज़ (शायद सारे पश्चिम) के बीच, सदैव भ्रांत संप्रेषण (Communication) करवाते हैं। जिस पर आलेख ही बनना चाहिए।
    (१) अंग्रेजो और सारे पश्चिम के लोगों ने, जहाँ वे गए, वहाँ घुसपैठें ही की थीं। कहीं उनका इतिहास हमारी भाँति समन्वयकारी, और सर्व हितकारी संस्कृति को प्रसारित करने का रहा नहीं था। इसी (मॉडेल) प्रतिमान के प्रभाव से उन्होंने हमारे इतिहास को भी गलत दृष्टि से समझा और वैसे ही प्रस्तुत किया। इससे उलटे हम जहाँ जहाँ भी गए, जैसे आग्नेय दिशा के सारे देशों में –तो हमने उनको आर्यत्व का संदेश दिया। हिलमिलके रहने की बात की।
    (२) अनेक शब्द भी अपना अलग सांस्कृतिक प्रभा मण्डल ले कर चलते हैं। और उनका अर्थ भारत की और पश्चिम की संस्कृतियों में अलग होता है। जैसे संस्कृति का, पर्यायवाची शब्द अंग्रेज़ी में नहीं है। हमारे शब्दों को व्युत्पत्ति होती है। अंग्रेज़ी शब्दों का इतिहास होता है।
    (३) और हमारी मानसिकता पराया जो कहता है; उसे बिना संदेह किए स्वीकार करने की है। और उनकी मानसिकता आक्रामक रीति से स्वयं की संकल्पना को ही सच बताने की है।
    (४) ऐसे अनेक शब्द हैं, जो, ऐसी भ्रान्ति के मूल कारण है। (५) उसमें जोड दीजिए हमारी हीन ग्रंथि और “साहेब वाक्यं प्रमाणं” का और डिग्रियों के प्रति अंध विश्वास।
    इस विषय पर कोई राष्ट्रीय दृष्टि का आलेख बनना आवश्यक मानता हूँ।
    अंग्रेज़ी भाषा की यह भीमकाय मर्यादा है।
    (५) और पराए तो छोडिए हमारे विद्वानों को भी यह बात समझाने में असंभव हो जाती है। हम विद्वान भी बुद्धि भ्रमित है।
    और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है।

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  2. एड्वर्ड थॉमस ने “आर्यन इन्वेज़न की थियरी” (कपोल कल्पित) प्रस्तुत की थी। और कोई लॉर्ड स्ट्रॅन्गफ़ोर्ड अध्यक्षता कर रहा था। रेखा के नीचे उद्धरण देखें।
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    (डॉ. डी, एस. त्रिवेदी, प्राकृत रिसर्च इन्स्टिट्यूट, वैशाली, बिहार)
    ” A clever clergyman Edward Thomas spelled the theory with Lord Strangford in the chair. Slowly and Slowly it was suggested that the so-called aborigines, Dravidians, Aryans, Hunas, Sakas, Rajputs and Muslims came at different epochs and ruled the country. Thus it was suggested that the country had been ruled by the foreign invaders and so there is nothing wrong if the Britishers are ruling the country. And, therefore, Indians had no right to demand independence.”
    {Dr. D. S. Triveda, Professor, Prakrit Research Institute,
    Vaisali,Bihar}
    ——————————————————————————–
    १८६६ की लन्दन की बैठक का उपरोक्त वृत्तान्त डॉ. त्रिवेदी ने दिया है।

    यह प्रमाण आलेख को पुष्ट ही करता है।

  3. अनुरोध: निम्न कडी पर इसी विषय पर प्रकाश फेंकता आलेख पढें।

    https://www.pravakta.com/infiltration-into-india-of-aryon-lies-at-the-hea

    आर्यों की भारत में घुसपैठ की जड १८६६ की रॉयल एशियाटिक सोसायटी की लन्दन शाखा की बैठक में रचा गया था।
    इसका वृत्तान्त निम्न आलेख की कडी पर पढने का अनुरोध.
    यह प्रवक्ता में ही प्रकाशित हुआ था।

    https://www.pravakta.com/infiltration-into-india-of-aryon-lies-at-the-hea

    • DR,
      SAHAB…
      BHARAT ME AAYE AKRANTAO KE BARE ME KAI BATE ANGREJO NE LIKHI HAI OR KAI BATE AISI HAI USE AGAR HAM NYAYIK BUDHDHI SE PADHE OR CHINTAN KARE TO NISANDEH IASA PRATIT HOTA HAI KI YE SARI BATE HAMARI SANSKRITI KO NAST KARNE OR NAI PIDHI KO GUMRAH KARNE KI SAJIS KE TAHAT LIKHI OR PRASARIT KI GAI HAI —–JAISE HARNE VALE RAJA KE BARE ME JITNE VALE RAJA KE PRASASTI KARNE VALE OR JI HAJURI KARNE VALE BHRAMAK PRACHAR KARTE THE AISE HI IN AKRANTAONE KIYA HAI —

      AAP JAISE VIDVAN IS ANGREJO KI LIKHAY KO BHASHANTAR KARKE TATHY SAMNE LAYE TO SAMAJ KI BADI SEVA HOGI….

      AAJ SIKSHAN GARTA KI OR HAI ISKA KARAN MECOLE NAMKA EK ANGREJ HAI JISNE GAHAN ABHYAS KE BAD YE TAY KIYA THA KI JAB TAK VED-UPNISHAD OR GITA LOGO KE PAS HONGE HINDUSTRHAN ME KOI BHI VICHAR LOG PASAND NAHI KARENGE—IS LIYE UNHONE AISI NITI BANAI JIS NITI KE TAHAT HAMARE DESH KE KALE ANGREJO NE DES KE YUVADHAN KO NASTIK BANA DIYA—

      AAP KO MA BHARTI DIRGHAYU PRADAN KARE OR HAM AAPKE GYAN KA LABH LEKE US DISHA ME AGRESAR HO SAKE AISI PRATHNA SAH…NAMSKAR

  4. प्रमाणों से पुष्ट एक अति प्रशंसनीय एवं सराहनीय लेख । हार्दिक आभार। ईश्वर आपको अच्छा स्वास्थ्य एवं लम्बी आयु प्रदान करें।

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