“आर्यसमाज ने देशवासियों में स्वाभिमान जगाया है : आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ”

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मनमोहन कुमार आर्य

वैदिक साधन आश्रम तपोवन-देहरादून के शरदुत्सव के तीसरे दिन की रात्रि सभा में विद्वानों ने राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में वेद और आर्यसमाज का योगदान विषय पर विद्वानों के प्रवचन एवं भजन हुए। मुख्य व्याख्यान आर्यजगत् के उच्च कोटि के विद्वान आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का हुआ। उन्होंने कहा कि वर्तमान में देश में जन्मना जातिवाद, आतंकवाद, सम्प्रदायवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद आदि अनेक समस्यायें हैं। उन्होंने कहा कि मेरी दृष्टि में देश की प्रमुख समस्या देश के नागरिकों में स्वाभिमान का अभाव है। आचार्य जी ने 17 जून सन् 2000 को नेपाल से उड़ान भरने के बाद आतंकवादियों द्वारा भारत के विमान के अपहरण की चर्चा की। उन्होंने कहा कि 3 आतंकियों ने 162 यात्रियों वाले विमान का अपहरण किया था। आतंकियों ने वायुयान के पाइलटों को विमान को कन्धार ले जाने का आदेश दिया। हमारे पायलटों ने विमान के अपहरण के बारे में भारत सरकार को बताया। आचार्य जी ने कहा कि उन दिनों श्री अटल बिहारी वाजपेई जी की सरकार थी। श्री लाल कृष्ण अडवानी जी व श्री जसवन्त सिंह आदि वरिष्ठ मंत्री थे। सरकार की ओर से विमान के पायलट को कोई दिशा निर्देश न मिला। पायलटों ने आतंकवादियों को झांसा देने के लिये कहा कि विमान का ईधन खत्म हो गया है। आतंकवादियों ने विमान को अमृतसर में उतारने व ईधन लेने की इजाजत दी। अमृतसर में हमारा विमान 45 से 58 मिनट तक खड़ा रहा। वहां भारत सरकार की ओर से कोई कार्यवाही नहीं की गई। अतः विमान अमृतसर से उड़ कर कन्धार पहुंच गया। सकुशल कन्धार पहुंचकर आतंकवादियों ने भारत सरकार को सन्देश दिया कि उनके 37 आतंकवादी साथियों को कन्धार भेज दो। उन्होंने करोड़ो रुपयों की भी मांग की। हमारे विदेश मंत्री 37 आतंकी और करोड़ों रुपया लेकर कन्धार पहुंचे और अपने यात्रियों व विमान को मुक्त करा लियौ विमान यात्रियों सहित भारत आ गया। विदेश मंत्री के साथ कन्धार गये भारत के दो पत्रकारों ने वहां के पत्रकारों से बातचीत की। उन्होंने अफगानी पत्रकारों को खाली समय में कन्धार का कोई प्रसिद्ध स्थान दिखाने को कहा। वह उन्हें एक स्थान पर ले गये। वहां एक मजार बनी हुई थी। मजार के पास एक बड़ा जूता रखा था। वहां एक कार आई। उसके यात्री उतरे और मजार पर गये। उन्होंने उस मजार पर पांच-पांच जूते मारे। फिर दूसरी कार आई उसमें से भी सभी यात्री उतरे और उन्होंने भी पहले वाली प्रक्रिया अपनाई। पूछने पर बताया गया कि यह भारत के सम्राट पृथिवी राज चौहान की मजार है। यह जूते पृथिवी राज चौहान को लगाये जाते हैं।

 

आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी ने कहा कि आप इस घटना पर विचार करें। हमारे यशस्वी सम्राट पृथिवीराज चौहान ने 17 बार मुहम्मद गौरी को हराया था और उसके माफी मांगने पर छोड़ दिया था। मुहम्मद गौरी ने एक अवसर मिलने पर ही पृथिवीराज चौहान जी की दोनों आंखे फुड़वा दी। कवि चन्द्र वरदाई पृथिवीराज चौहान का कवि था। सम्राट पृथिवीराज चौहान को शब्द भेदी बाण चलाना आता था। चन्द्र वरदाई ने पृथिवी राज चौहान से बात की और उसके बाद मुहम्मद गौरी को पृथिवी राज चौहान की शब्द भेदी बाण चलाने की कला को देखने का प्रस्ताव किया। मुहम्मद गौरी एक ऊंचे स्थान पर बैठा। जिस लक्ष्य पर तीर चलाना था वह नीचे था। जब पूरी तैयारी हो गई तो चन्द्र वरदाई ने राजस्थानी हिन्दी में कुछ शब्द कहे जिसमें मुहम्मद गौरी के बैठने का स्थान आदि का की दिशा, ऊंचाई आदि का उल्लेख था। पृथिवीराज चौहान ने शब्द भेदी बाण छोड़ा जो मुहम्मद गौरी के सीने में लगा और वह मर गया। आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी ने कहा कि कन्धार की कब्र का उपर्युक्त समाचार उन्होंने श्री शिवानन्द क्रान्तिकारी से सुना था। यह समाचार दैनिक जागरण के 20 जून 2000 के अंक में भी छपा था। आचार्य जी ने दुःख भरे शब्दों में कहा कि हमारी सरकार अफगानिस्तान की सरकार को यह नहीं कह पा रही है कि इस दुष्प्रथा को बन्द करो। यह हिन्दुओं में स्वाभिमान के होने का उदाहरण है।

 

आचार्य जी ने पूछा कि हम कहां हैं। हम चैक अंग्रेजी में भरेंगे। दूकान के बोर्ड अंग्रेजी में लगायेंगे। क्या हमारा ऐसा करना देशहित में है? आर्यसमाज ने देशवासियों का स्वाभिमान जागृत किया। यदि आर्यसमाज न होता तो आज जो स्थिति है वह भी न होती। इतना होने पर भी हम सतर्क नहीं है यह बड़े दुःख की बात है।

 

आचार्य जी ने दक्षिण के राज्यों मुख्यतः कर्नाटक में देवदासी प्रथा का उल्लेख किया। वहां यह अन्ध मान्यता प्रचलित है कि यदि गृहस्थी अपनी पुत्री को देवदासी बना देंगे तो उनकी मुक्ति हो जायेगी। लोग अपनी लगभग 13 वर्ष व उससे कुछ अधिक उम्र की लड़कियों को देवदासी बनाते हैं। उन पुत्रियों का पत्थर की देवी की मूर्ति से विवाह कराते हैं और मंगल सूत्र भी देते हैं। इस आयोजन में पण्डे पुजारियों सहित गणमान्य लोग भी आते हैं। लड़की का विवाह पत्थर की मूर्ति से करते हैं। वेद में इस प्रकार के विवाह का विधान व कोई मन्त्र नहीं है। उन्होंने कहा कि अधर्म को धर्म मानकर यह व्यवहार हो रहे हैं। आचार्य जी ने कहा कि जब यह देवदासियां प्रौढ़ हो जाती हैं तो उनको निकाल दिया जाता है। उनके परिवारजन व अन्य हिन्दू उन लड़कियों को नहीं अपनाते। वह अन्धविश्वासी है इसलिये डरते हैं। मुसलमान व ईसाई इन लड़कियों को ले जाते हैं। इनसे बच्चे पैदा करते हैं जो हमारी धर्म व संस्कृति के विरोधी व शत्रु होते हैं। आश्चर्य है कि हमारे धर्माचार्य इस पर चुप्पी साधे रहते हैं। इन्हें धर्माचार्य कहना भी इस शब्द का अपमान प्रतीत होता है। उन्होंने कहा कि हिन्दुओं को धर्म अधर्म की पहचान नहीं है।

 

विगत 143 वर्षों में आर्यसमाज ने बहुत से पापों को दूर किया है। उन्होंने कहा कि आपकी लड़की मुसलमान बन गई व ईसाई बनाई जाती है। उनके बच्चे होते हैं और हमारे प्रति शत्रुता का भाव रखते हैं। आचार्य जी ने कहा कि हिन्दुओं की मूर्खता उच्च कोटि की मूर्खता है। हिन्दू इन बहिनों को अपने घर में सफलाई आदि का काम देने को भी तैयार नहीं है। आचार्य जी ने कहा कि बड़े-बड़े नेता व अधिकारी गंगा की पूजा करने जाते हैं। गंगा एक नदी है। इसमें जल बहता है। इस जल की नदी गंगा की भी मूर्ति बना दी गई है। हमारे नेता गंगा की आरती उतारते हैं। इसके परिणाम से नेता अनभिज्ञ रहते हैं। गंगा की पूजा का अर्थ आरती उतारना नहीं अपितु गंगा को स्वच्छ रखना है जिससे लोग इस जल को पी सकें और इससे सिंचित जल से गुणवत्ता वाला अन्न उत्पन्न हो सके। आचार्य जी ने कहा कि धर्म का यह तमाशा भारत में है।

 

तुलसीदास जी रामायण में परहित को धर्म तथा परपीड़ा को अधर्म कहते हैं। उनके अनुसार दूसरों को पीड़ा देना अधर्म है। मांसाहार के लिये हमारे देश के लोग पशुओं को काटते हैं। उस पशु को दुःख होता है इसकी परवाह पशु काटने व मांस खाने वाले नहीं करते। आचार्य जी ने कहा कि तुलसी दास जी के अनुसार पशुओं को दुःख देकर उनका मांस प्राप्त करना अधर्म व पाप है। आचार्य जी ने आगे कहा कि हमारे सनातनधर्मी पौराणिक बन्धु धर्म को नहीं जानते। खाद्य व अन्नादि पदार्थों में मिलावट से होने वाली हानियों पर भी आचार्य कुलश्रेष्ठ जी ने विस्तार से प्रकाश डाला। भ्रष्टाचार पर भी विद्वान वक्ता ने कटाक्ष किये। मिलावटी खाद्य पदार्थों को खाकर हमारे मजदूर व गरीब लोग बीमार होकर मर जाते हैं। आचार्य जी ने पिछले दिनों दिल्ली के आसपास निर्माणाधीन एक वृहद भवन के गिर जाने की चर्चा कर बताया कि वहां 20 बोरी रेत व बजरी में 1 बोरी सीमेंट मिलाया गया था। पौराणिक सोचते हैं कि वह मन्दिर में भण्डारा या दान कर देंगे जिससे उनके पाप दूर हो जायेंगे। उनका यह विचार सर्वथा मिथ्या हैं। ऐसे मिथ्या कर्म करने वाले सभी लोगों को अपने पापों के फल अवश्यमेव भोगने होंगे। कोई पाषाण देवता या पण्डा पुजारी किसी को पाप का दण्ड भोगने से बचा नहीं सकता। इसी के साथ आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का प्रवचन समाप्त हुआ।

 

आचार्य कुलश्रेष्ठ जी से पूर्व आश्रम के धर्माधिकारी पं. सूरत राम शर्मा जी का सम्बोधन हुआ। उन्होंने देश के सामने प्रमुख समस्याओं की चर्चा की। अलगाववाद, आतंकवाद, जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद को उन्होंने देश की प्रमुख समस्यायें बताया। विद्वान् वक्ता ने कहा कि आज देश की विविधता ही देश के लिये अनेक समस्यायें खड़ी कर रही है। सम्प्रदायवाद की चर्चा कर उन्होंने मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना की चर्चा की और कहा मजहब बैर रखना नहीं सिखाता तो क्या सिखाता है? उन्होंने पूछा कि क्या मजहब धर्म सिखाता है? पं. सूरतराम शर्मा जी ने कहा कि हमारे देश के कर्णधारों ने मत को ही धर्म समझ लिया है। यह लोग धर्म के स्वरूप को जानते ही नहीं है। विद्वान आचार्य ने कहा कि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है। धर्मनिरपेक्षता में धर्म की आवश्यकता ही नहीं समझी जाती। उन्होंने कहा कि पुराने समय में राजा भी अपने राज्य में धर्माचार्य रखते थे। र्देश आजाद हुआ तो नेताओं ने धर्म को नकार दिया। उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्ष राज्य एक बड़ी विडम्बना है। धर्म तो श्रेष्ठ गुणों को धारण करने का नाम है। क्या हमारे देशवासियों को सद्गुणों को धारण करने की आवश्यकता नहीं है?

 

आर्यसमाज के शीर्ष भजनोपदेशक पं. नरेशदत्त आर्य ने भजन प्रस्तुत करते हुए पहला भजन गाया जिसके बोल थे ऋषि ने जलाई है जो दिव्य ज्योति, जहां में सदा यूं ही जलती रहेगी। उनके दूसरे भजन के बोल थे एक तरफ बेईमानी,नहीं किसी को चिन्ता है आर्यसमाज को परेशानी। आर्यसमाज के सर्वाधिक लोकप्रिय भजनोपदेशक पं. सत्यपाल पथिक जी ने भी एक भजन गाया।  भजन के बोल थे युग युग जीये मेरा प्यारा आर्यसमाज, हाथ में लेकर ओ३म् पताका करे दिलों पर राज, युग-2 जीवे मेरा प्यारा आर्यसमाज। पं. नरेश दत्त आर्य जी के सुपुत्र श्री नरेन्द्र दत्त आर्य ने एक भजन आने से इसमें बदले विचार सद्विचारों से रहता है सुखी इंसान, बड़ी ही सुहानी है यह आर्यसमाज इस भजन पर ढोलक वादन श्री नरेन्द्र दत्त आर्य जी के पिता यशस्वी पं. नरेशदत्त आर्य जी ने किया। यह अद्भुद दृष्य था जब एक युवा पुत्र भजन गा रहा था और उसका पिता आर्यसमाज का शीर्ष भजनोपदेशक ढोलक बचा रहा था। ऐसे कई अवसर तपोवन आश्रम में देखने को मिले। इनसे पूर्व श्री आजाद सिंह आर्य जी ने भी एक भजन जब यह संसार तुमको तन्ह छोड़ दे उस प्रभु की शरण में चले आईये गाया। रात्रि 10.00 बजे कार्यक्रम शान्ति पाठ के साथ सम्पन्न हुआ। हम तपोवन से 6 किमी. दूर अपने निवास पर पहुंचे और दिन के आयोजन पर एक लेख लिखा। हमें सन्तोष है कि उसे लोगों ने पसन्द किया।

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