असम दंगे: गोगोई, ममता का नमो पर गुस्सा जायज है?

-प्रवीण गुगनानी-
assam4

असम दंगों के लिए नमो को घेरने वाली ममता बनर्जी तब कहां थीं, जब 2012 के भयावह दंगों को गोगोई ने अस्थाई दंगे बताया था! देश आज भी समझ नहीं पा रहा कि “ये अस्थाई दंगे क्या होते हैं? वर्तमान घटना क्या उसका ही परिणाम नहीं है?

असम में एक बार फिर संघर्ष की स्थिति बन गई है, इस संघर्ष को वर्ग संघर्ष नहीं कह सकते, जातीय या धर्म आधारित संघर्ष भी नहीं कह सकते और इस संघर्ष को दंगे तो बिल्कुल ही नहीं कह सकते हैं! हां, इसे नागरिकों का अपराधियों से संघर्ष अवश्य ही कहा जा सकता है और यही इस संघर्ष की सही परिभाषा है। तरुण गोगोई के नेतृत्व वाली कांग्रेसी राज्य सरकार न जानें क्यों इस संघर्ष को इस सरल परिभाषा के अलावा कई प्रकार के नाम-बदनाम देती रहती है! और यहीं से समस्या का मूल है! असम के चिर आदिवासी जाति बोडो के लोगों का बहुधा ही यहां आकर बलात बस गए बांग्लादेशी मुसलमानों से संघर्ष हो जाता है। बोडो लोगों का कहना है कि ये घुसपैठिये बांग्लादेश से आकर उनकी भूमि और संपत्तियों पर पर कब्जा कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव २०१४ में असम में इस यह मुद्दा ज्वलंत रहा और सर्वाधिक चर्चा में है।

स्वाभाविक ही एक राष्ट्रवादी व्यक्ति होने के नाते और राष्ट्रीय मुद्दों पर बेबाकी और बिना पूर्वाग्रह के अपने मत को व्यक्त करनें वाले नरेन्द्र मोदी ने पिछले चुनाव अभियान के दौरान असम में कहा था कि अगर भाजपा सत्ता में आते हैं, तो बांग्लादेश के घुसपैठियों को “अपने बैग तैयार रखने” चाहिए! नरेन्द्र मोदी ने बड़ी ही बेबाकी से यह कहते घुसपैठियों के वोटों का जरा सा भी मोह न रखकर अपनी स्पष्टवादिता को प्रकट किया था। नरेन्द्र मोदी भी अन्य राजनीतिज्ञों की तरह इतना सामान्य ज्ञान तो रखते ही हैं कि असम के जनजातीय क्षेत्रों में आकर बलात बस गए इन घुसपैठियों ने बड़ी मात्रा में राशन कार्डों के माध्यम वोटिंग पावर हासिल कर लिया है और ऐसा कहने से इन घुसपैठियों के ही नहीं, बल्कि वहां इन्हें शरण दे रहे तथाकथित भारतीय मुसलमानों के वोटों से भी उन्हें हाथ धोना पड़ेगा। अवैध घुसपैठियों को बाहर जाने की चेतावनी देने वाले नरेन्द्र मोदी को शेष राष्ट्र ने जहां शुभेक्षा और प्रशंसा प्रकट की, वहीं चिर तुष्टीकरण की लत पर जी रहे बहुत से राजनीतिज्ञों और दलों ने ने नमो को बेतरहदोषी करार देनें और दंगे भड़काने के आरोपों से घेरने का असफल प्रयास किया।

असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई हो या प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी या इनकी जमात के अन्य छदम धर्मनिरपेक्षता वादी नेता, इन्होंने असम के हालिया दंगों के लिए नरेन्द्र मोदी के बयान को आश्चर्यजनक रूप दोषी ठहराया है! बांग्लादेशी घुसपैठियों के प्रति आरएसएस और उसके भाजपा सहित सभी सम्वैचारिक संगठनों का विचार और लाइन स्पष्ट रही है और वह लाइन भारतीय संविधान की मूल आत्मा से सौ प्रतिशत सरोकार रखती है। देश प्रसन्न है यह देखकर की भाजपा और नमो ने वोटों का लालच न रखते हुए अपने वैचारिक आग्रह को मंचों से स्पष्ट प्रकट किया, किन्तु ये तथाकथित तुष्टिकरण की राजनीति के अफीमची नमो की आलोचना करने के मोह में देश हित को भी अनदेखा करने से नहीं चूक रहे हैं.
आइये जानते हैं क्या है असम समस्या के मूल में-

यह तो सदा से स्पष्ट और सर्वविदित तथ्य रहा है कि असम गण परिषद के राजनैतिक वर्चस्व को समाप्त करने के लिए कांग्रेस ने असम में बांग्लादेशी घुसपेठियों की बस्तियां बसाने का खतरनाक, आत्मघाती, देशद्रोही और घिनौना खेल प्रारम्भ किया। इन स्थानीय कांग्रेसी नेताओं के दम पर ही ये परजीवी असम के स्थानीय परिवारों में कुछ समय के लिए रहकर राशनकार्ड में अपना नाम जुड़वा लेते है और फिर अलग होकर नया राशनकार्ड हासिल कर लेते है. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में तीन करोड़ बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे है. कुछ जमीनी संगठन इस संख्या का वास्तविक आंकड़ा पांच करोड़ तक बतातें है और इसके समर्थन में समुचित तर्कसंगत तथ्य भी देते हैं। वहीं आईबी की ख़ुफ़िया रिपोर्ट के मुताबिक़ अभी भारत में करीब डेढ़ करोड़ से अधिक बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं जिसमें से 80 लाख पश्चिम बंगाल में और 50 लाख के लगभग असम में मौजूद हैं। वहीं बिहार के किशनगंज, कटिहार और पूर्णिया जिलों में और झारखण्ड के साहेबगंज जिले में भी लगभग 4.5 लाख बांग्लादेशी रह रहे हैं। 3.75 लाख बांग्लादेशी त्रिपुरा हैं। नागालैंड और मिजोरम भी बांग्लादेशी घुसपैठियों के लिए शरणस्थली बने हुए हैं। 1991 में नागालैंड में अवैध घुसपैठियों की संख्या जहां 20 हज़ार थी, वहीं अब यह बढ़कर ८० हज़ार से अधिक हो गई है। असम के २७ जिलों में से 8 में बांग्लादेशी मुसलमान बहुसंख्यक बन चुके हैं। 1901 से 2001 के बीच असम में मुसलामानों का अनुपात 15,03 प्रतिशत से बढ़कर 30.92 प्रतिशत हो गया है। और तो और, एन केंद्र सरकार की नाक के नीचे दिल्ली में लगभग इन अवैध बांग्लादेशियों का आंकड़ा चार लाख तक पहुंच गया है। ये घुसपैठियों जहां भी रहते हैं, वहां का प्रशासनिक और सामाजिक ताना-बाना साशय ध्वस्त करने का इन्हें प्रशिक्षण जैसा मिला होता है और ये उस काम को बड़ी होशियारी से करते हैं।

असम में 42 से अधिक विधानसभा क्षेत्र ऐसे हो गए हैं जहां बांग्लादेशी घुसपैठिये राजनैतिक रूप से निर्णायक हो गए है। लूट, हत्या, बोडो लड़कियां भगाकर जबरन धर्मांतरण और बोडो जनजातियों की जमीन पर अतिक्रमण करना इनका रोजमर्रा का काम हो गया है, जिसके कारण सम्पूर्ण असम का सामाजिक ताना बाना ध्वस्त होने के कगार पर आ रहा है। ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी किनारे पर बोडो क्षेत्र है, जहां 1975 के आंदोलन के बाद बोडो स्वायत्तशासी परिषद् की स्थापना हुई, जिससे कोकराझार, बक्सा, चिरांग और उदालगुड़ी प्रभावित रहे है। बोडो बंधू लगातार बांग्लादेशी घुसपैठियों के हमलों का शिकार होते आए हैं। घुसपैठियों द्वारा सतत की जा रही धर्म आधारित हिंसा को क्षेत्र के विद्रोही आतंकवादी संगठन मुस्लिम यूनाईटेड लिबरेशन टाईगर्स ऑफ असम (मुलटा) से समर्थन मिलता है और मुस्लिमों की भावनाएं भड़काने में ऑल माईनोरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (आमसू) का भी हाथ रहता है। उल्लेखनीय है कि आमसू प्रदेश सरकार से समय-समय पर प्रत्यक्ष रूप से पोषित और कृतार्थ होती रही है। शासन के इस तुष्टीकरण वाले आचरण के कारण भी इस क्षेत्र में बांग्लादेशी मुस्लिमों और हिंदु समय समय आमने सामने की मुद्रा में आते रहे हैं। प्रश्न यह है कि प्रदेश सरकार ने तब के अनेकों मौको पर इस आसन्न संकट को जो कि प्रत्यक्षतः दिख रहा था; क्यों नहीं पहचाना!

असम की गोगोई सरकार घुसपैठियों को प्राथमिकता और तुष्ट करने के प्रयास में बोडोलैण्ड स्वायत्तशासी परिषद् को मात्र 300 करोड़ रुपये की बजट सहायता दे रही है, जबकि समझौते के अनुसार आबादी के अनुपात से उन्हें 1500 करोड़ रुपये की सहायता मिलनी चाहिए थी. केंद्रीय सहायता के लिए भी बोडो स्वायत्तशासी परिषद को प्रदेश सरकार के माध्यम से केंद्र को आवेदन भेजना पड़ता है जिसे प्रदेश सरकार विलंब से भेजती है और केंद्र में सुनवाई नहीं होती. इसके अलावा बोडो जनजातियों को असम के ही दो इलाकों में मान्यता नहीं दी गयी है. कारबीआंगलोंग तथा नार्थ कछार हिल में बोडो को जनजातीय नहीं माना जाता और न ही असम के मैदानी क्षेत्रों में. जबकि बोडो जनजातियों के लिए असम में स्वायत्त परिषद् बनी और बाकी देश में बोडो अनुसूचित जनजाति की सूची में है. 10 फरवरी, 2003 को एक बड़े आंदोलन के बाद असम और केंद्र सरकार ने माना था कि यह विसंगति दूर की जाएगी लेकिन इस बीच अन्य जनजातियों जैसे- हाजोंग, गारो, दिमासा, लालुंग आदि को असम के सभी क्षेत्रों में समान रूप से अनुसूचित जनजाति की सूची में डाल दिया गया सिवाय बोडो लोगों के. जनजातीय समीकरणों का यह पूरा का पूरा आकलन शुद्ध राजनीति आधारित है और कांग्रेस ने वोटों के सेट अप को अपनें अनुसार जमानें और सत्ता में बने रहने के लिए इस हेतु सत्ता का भरपूर दुरुपयोग किया।

जुलाई 2012 के भयावह दंगों को गोगोई ने अस्थाई दंगे बताया था! देश आज भी हैरान है कि ये अस्थायी दंगे क्या होतें हैं! स्पष्ट है कि जुलाई 2012 के भयानक और विनाशकारी दंगों को लेकर गोगोई सरकार का रूख बेहद लचर और तदर्थता वादी रहा. तब घुसपैठिये बांग्लादेशियों ने बड़े पैमाने पर जनजातीय लोगों की नृशंस हत्याओं और पाशविक अत्याचार कर ओन्ताईबाड़ी, गोसाईंगांव नामक इलाके में बोडो जनजातीय समाज के अत्यंत प्राचीन और प्रतिष्ठित ब्रह्मा मंदिर को जलाकर सामाजिक समरसता और शांति भंग करने का साशय प्रयास किया गया था; इसकी बोडो समाज में स्वाभाविक तौर पर गगुस्साई प्रतिक्रिया होनी ही थी. यद्दपि बोडो स्वायतशासी क्षेत्र के चार जिलों धुबरी, बोंगाईगांव, उदालगुड़ी और कोकराझार में बोडो बड़ी संख्या में हैं, तथापि उनसे सटे धुबरी जिले की अधिकांश जनसंख्या बांग्लादेशी मुस्लिमों की है। वहां कोकराझार की प्रतिक्रिया में हिंदू छात्रों के एक होस्टल को जला दिया गया और 24 जुलाई को इनकी एक भीड़ ने राजधानी एक्सप्रेस पर हमला कर दिया था. जुलाई 2012 में इस बांग्लादेशी मुस्लिमों की हिंसा 400 गांवों तक फैल चुकी थी और भारत के देशभक्त और मूल जनजातीय नागरिक अपने ही देश में विदेशी घुसपैठियों के हमलों से डर कर शरणार्थी बनने पर मजबूर हो गए थे. घोर आश्चर्य ही था कि असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई इन भयानकतम दंगों को अस्थायी दंगे या हिंसा बता रहे थे. देश के बुद्धिजीवी दंगों के सम्बन्ध में इस नए शब्द या टर्म का अर्थ तब भी खोज रहे थे और आज भी खोज रहे हैं अब स्वयं गोगोई ही बताएं कि वर्ष 2012 के अस्थाई दंगे क्या थे? देश के तथाकथित बुद्धिजीवी और प्रगतिशील लोग इस अनोखे किन्तु घृणित, भावनाशून्य, पैशाचिक शब्द का अर्थ न खोज सके तो इसका उच्चारण करने वाले व्यक्ति से पूछे! गोगोई के सामने समूचे राष्ट्र का यह यक्ष प्रश्न खड़ा है कि असम में हाल ही में हुए दंगे उन अस्थाई दंगों का स्थाई संस्करण है, या उनकी अकर्मण्यता, या फिर केवल सत्ता में बने रहने के घृणित खेल-खिलवाड़ की अगली क़िश्त।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here