भारतीय राजनीति के आकाश का ध्रुवतारा थे अटल जी

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अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती (25 दिसम्बर) पर विशेष

योगेश कुमार गोयल

               तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी आज हमारे बीच नहीं हैं। उन्होंने 93 वर्ष की आयु में 16 अगस्त 2018 को दिल्ली के एम्स अस्पताल में अंतिम सांस ली थी। देहांत से पूर्व वे कई वर्षों से अस्वस्थ चल रहे थे। 27 मार्च 2015 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने स्वयं उनके आवास पर जाकर प्रोटोकॉल तोड़ते हुए उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया था। अटल जी तीन बार प्रधानमंत्री, दो बार राज्यसभा सदस्य तथा दस बार लोकसभा सदस्य रहे। अटल जी भले ही भाजपा के शीर्ष नेता रहे लेकिन वो देश के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्रियों में से एक थे। सही मायने में अटल जी भारतीय राजनीति के आकाश का ध्रुवतारा थे। उनकी शख्सियत ऐसी थी कि हर राजनीतिक दल में उनकी स्वीकार्यता रही।

               2005 में जब वाजपेयी जी ने राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा की थी, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने ही उन्हें ‘मौजूदा राजनीति का भीष्म पितामह’ की संज्ञा दी थी। अटल जी एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने अपने जीवन का हर पल राष्ट्र को समर्पित कर दिया था। भारतीय राजनीति की महान विभूति रहे अटल जी का विराट व स्नेहिल व्यक्तित्व, विलक्षण नेतृत्व, दूरदर्शिता तथा अद्भुत भाषण देने का सामर्थ्य उन्हें एक विशाल व्यक्तित्व प्रदान करते थे। सही मायने में अटल जी का अवसान ‘अटल युग’ का अवसान है। बतौर प्रधानमंत्री उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से था 1 मई 1998 को राजस्थान के पोरखण में किया गया परमाणु बम परीक्षण, जिससे देश समूची दुनिया में एक प्रमुख परमाणु शक्ति सम्पन्न देश के रूप में उभरा। उन्होंने अपनी कुशल भाषण कला शैली से राजनीति के शुरूआती दिनों में ही ऐसा रंग जमा दिया था कि हर कोई उनके भाषणों का कायल हो जाता था। कहा जाता है कि उनके भाषण इतने प्रभावशाली होते थे, जिन्हें सुनने विरोधी भी चुपके से उनकी सभाओं में जाते थे। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष अनंतशयनम अयंगार ने एक बार कहा था कि हिन्दी में अटल बिहारी वाजपेयी से अच्छा वक्ता कोई नहीं है। यह भी कहा जाता रहा है कि स्वयं नेहरू वाजपेयी द्वारा उठाए गए मुद्दों को बहुत ध्यान से सुना करते थे।

               बात वर्ष 1957 की है, जब वाजपेयी जी पहली बार सांसद चुने गए थे। अटल जी उस समय 34 वर्ष के युवा थे और उन्हें संसद में बोलने का ज्यादा समय नहीं मिलता था लेकिन वाजपेयी जी की हिन्दी पर इतनी अच्छी पकड़ थी कि उन्होंने संसद में अपनी एक अलग पहचान बना ली थी। पं. नेहरू उस समय देश के प्रधानमंत्री थे, वे भी वाजपेयी जी की हिन्दी से बहुत प्रभावित थे और यही कारण था कि नेहरू संसद में उनके सवालों का जवाब हिन्दी में ही दिया करते थे। ऐसे ही संसद में बहस के दौरान एक बार नेहरू जी ने जनसंघ की कटु आलोचना की तो अपनी हाजिरजवाबी का परिचय देते हुए अटल जी ने तपाक से कहा कि मैं जानता हूं कि पंडित जी रोज शीर्षासन करते हैं, वे शीर्षासन करें, उस पर मुझे कोई आपत्ति नहीं है लेकिन वे शीर्षासन करते हुए मेरी पार्टी की तस्वीर उल्टी न देखें। वाजपेयी जी के इस जवाब को सुनकर नेहरू भी ठहाका लगाकर हंस पड़े थे।

               25 दिसम्बर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक स्कूल अध्यापक के घर जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी मूल रूप से कवि और शिक्षक थे। कॉलेज में शिक्षण के दौरान ही उन्होंने कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं। 1943 में वे कॉलेज यूनियन के सचिव रहे और 1944 में उपाध्यक्ष बने। वे बचपन में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे और उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शाखा प्रभारी के रूप में भी कार्य किया। देश के लिए कुछ करने के जज्बे के साथ उन्होंने पत्रकारिता का रास्ता चुना और एक पत्रकार बन गए। राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर के बाद उन्होंने पत्रकारिता में अपना कैरियर शुरू किया था। अटल जी ने राष्ट्रधर्म, पांचजन्य, वीर अर्जुन और स्वदेश का संपादन किया। 1951 में जब जनसंघ की स्थापना हुई थी, तब अटल जी ने चुनावी राजनीति में प्रवेश किया था। हालांकि लखनऊ में लोकसभा उपचुनाव में अटल जी हार गए थे किन्तु वो इस हार से निराश नहीं हुए।

               अटल जी भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे और जनसंघ ने 1957 में अटल जी को एक साथ तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से मैदान में उतारा किन्तु मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई, लखनऊ में उन्हें हार का सामना करना पड़ा लेकिन बलरामपुर से वे चुनाव जीत गए और जीतकर वो पहली बार द्वितीय लोकसभा में पहुंचे। 1968 से 1973 तक अटल जी भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे और 1975-77 के आपातकाल के दौरान उन्हें भी जेल भेजा गया। 1977 में जनता पार्टी की मोरारजी देसाई सरकार में वे विदेश मंत्री बने और उस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में अटल जी ने हिन्दी में ऐसा ओजस्वी भाषण दिया, जिसकी दुनियाभर में व्यापक सराहना हुई, जिसे स्वयं अटल जी अपने जीवन का सबसे सुखद क्षण बताया करते थे। 1979 में जनता पार्टी की सरकार गिर गई, जिसके बाद 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया गया, जिसके संस्थापक सदस्य अटल जी ही थे और वे भाजपा के पहले अध्यक्ष भी बने तथा 1986 तक इस पद पर आसीन रहे और संसद में भाजपा संसदीय दल के नेता भी बने रहे। 1962 से 1967 और 1986 में अटल जी राज्यसभा के सदस्य भी रहे। आपातकाल के बाद जब चुनाव की घोषणा हुई थी तो कवि हृदय वाजपेयी जी ने कहा था:-

बाद मुद्दत के मिले हैं दीवाने,

कहने सुनने को बहुत हैं अफसाने।

खुली हवा में जरा सांस तो ले लें,

कब तक रहेगी आजादी कौन जाने!

               पहली बार अटल जी 16 मई 1996 को देश के प्रधानमंत्री बने किन्तु उनकी सरकार मात्र 13 दिन ही चली क्योंकि सदन में बहुमत साबित न कर पाने के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और वे 1998 तक लोकसभा में विपक्ष के नेता बने रहे। दूसरी बार वे 1998 में प्रधानमंत्री बने लेकिन सहयोगी दलों द्वारा समर्थन वापस लेने के कारण 13 माह के अंतराल बाद उनकी सरकार गिर गई, जिसके बाद 1999 में हुए राजग के साझा घोषणापत्र पर चुनाव लड़ा गया, जिसमें वाजपेयी के नेतृत्व को प्रमुख मुद्दा बनाया गया। चुनाव में राजग को बहुमत हासिल हुआ और 13 अक्तूबर 1999 को अटल जी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद संभाला तथा कार्यकाल पूरा करते हुए 2004 तक इस पद को सुशोभित किया। 2005 में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर दी थी। 2007 में उनकी अंतिम सभा 25 अप्रैल को कपूरथला चौराहे पर भाजपा उम्मीदवारों के समर्थन में हुई थी लेकिन उसके बाद उनका स्वास्थ्य खराब होता गया। 2009 में उनकी तबीयत ज्यादा खराब होने पर उन्हें कई दिनों तक वेंटिलेटर पर रखा गया था लेकिन ठीक होने पर उन्हें अस्पताल से छुट्टी तो दे दी गई थी किन्तु उसके बाद के वर्षों में उन्हें स्वास्थ्य संबंधी गंभीर परेशानियां लगातार बनी रही और वे 16 अगस्त 2018 को समस्त देशवासियों को एक अटल शून्य में छोड़ चिरनिद्रा में लीन हो गए।

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