ओबामा की सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं और शंकाएं

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प्रमोद भार्गव

सब जानते हैं कि अमेरिका इस समय दुनिया का सबसे प्रमुख शक्तिशाली देश है,इसलिए उसके राष्ट्रपति का भी शक्तिशाली और दुनिया के लिए महत्वपूर्ण माना जाना लाजिमी है। स्वाभाविक है,किसी विकसित देश का ऐसा प्रभुत्वशाली व्यक्ति किसी विकासशील देश के राष्ट्रिय पर्व में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंते है तो उस देश की गरिमा बढ़ती है। इस बार भारत के गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा मुख्य अतिथि रहेंगे। खासतौर से एक-एक कर यूरोपीय देशों में हो रहे आतंकवादी हमलों के चलते ओबामा की सुरक्षा को लेकर अमेरिका की चिंताएं वाजिब हो सकती हैं,लेकिन भारत की सुरक्षा एजेंसियों और प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर अमेरिकी एजेंसियों द्वारा भरोसा न करने की शंकाओं को जायज नहीं ठहराया जा सकता है। इसी क्रम में अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को दिए कड़े संदेश को सही नहीं ठहराया जा सकता है। अमेरिकी एजेंसियों को ऐसा स्वांग रचने का अवसर इसलिए मिल गया है,क्योंकि भारत मेजबान देश है और हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें देश और स्वंय को विश्वव्यापी फलक पर महिमामंडित करने की दृष्टि से आमंत्रित किया है। वरना यही ओबामा नबंवर 2010 में भी भारत आए थे,तब न अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों का दखल सामने आया था और न ही अमेरिका ने पाकिस्तान को कोई चेतावनी दी थी।

भारत ओबामा की सुरक्षा के अभूतपमर्व इंतजामों में लगा है। क्योंकि सुरक्षा में जरा सी भी चूक ओबामा की यात्रा के दौरान आंतकी हरकत को अंजाम तक पहुंचाने में सफल होती है तो भारत की बद्नामी विश्वव्यापी होगी और उसके सुरक्षा संबंधी उपायों से दुनिया का भरोसा उठ जाएगा। इसलिए जमीन से लेकर आसमान तक कोशिश तो यही होनी चाहिए कि परिंदा भी पर न मारने पाए। लेकिन पूरी दुनिया में जिस तरह से इस्लामिक आंतकवादी आत्मघाती कदम उठाने पर आमादा हो रहे है, उसके चलते संपूर्ण सुरक्षा की गारंटी अब कोई देश न तो ले सकता है और न ही दे सकता है। खुद अमेरिका जिसे अपनी पुलिस,सेना और गुप्तचर संस्थाओं के दुनिया में सर्वश्रेश्ठ होने का गुमान था,उस पर भी 9/11 का आंतकी हमला हो चुका है। इस हमले का दुभार्गग्यपूर्ण पहलू यह रहा था कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को इस हमले की भनक तक नहीं लग पाई थी। गोया,ताकतवर देश होने का यह कतई मतलब नहीं है कि आप मेजबान देश की सुरक्षा संस्थाओं और व्यवस्थाओं पर बेवजह शक करें और अपनी दखलदांजी थोपें।

अमेरिका ने पाकिस्तान को जिस तरह से चेताया है उसके चलते उसकी दोहरी मानसिकता उजागार होती है। अमेरिका ने पाक को हिदायत देते हुए कहा है कि जब तक ओबामा भारत में है,तब तक भारतीय सीमा में कोई आंतकवादी हमला नहीं होना चाहिए। इस पैगाम से संकेत मिलता है कि अमेरिका इस बात के लिए आश्वस्त है कि भारत में जो आतंकवाद पसरा है उसका निर्यात पाकिस्तान से होता है। बावजूद अमेरिका इस समस्या का स्थाई हल तलाशने की बजाय बस इतना चाहता है कि ओबामा जब भारत में रहे तब कोई आंतकवादी घटना न घटे। इससे जाहिर होता है कि अमेरिका की नीति पाकिस्तान में आंतक को पोषित कर रही है। हालांकि भारत की गुप्तचर संस्था आईबी ने जानकारी दी है कि ओबामा के भारत में रहते हुए लश्कर-ए-तैयबा बड़ा हमला कर सकता है।

भारत ने ओबामा के आवासीय स्थल से लेकर इंडिया गेट तक पुख्ता सुरक्षा इंतजाम किए हैं। ओबामा को सात स्तरीय सुरक्षा सुविधा दी जा रही है,जो भारत ने अब तक दुनिया के अन्य किसी राष्ट्रपति अथवा प्रधानमंत्री को नहीं दी। अमेरिका से आहूत 1600 सुरक्षाकर्मी भी नई दिल्ली में तैनात रहेंगे। एनएसए,सीआइए,एफबीआइ और अमेरिकी सीक्रेट सार्विस के 500 एजेंट भी सुरक्षा इंतजामों पर पैनी निगाहें रखेंगे। ओबामा को बुलैट प्रूफ कांच के कैबिन में बिठाने की व्यवस्था की जा रही है। समारोह स्थल की विशेष तंत्र वाले राडार श्रृंखला से हवाई निगरानी की जाएगी। भारत के 6 लड़ाकू विमान,3 हेलीकाॅप्टर और 15 हजार सीसीटीवी कैमरे भी इस समोरह पर नजर रखेंगे। यह सुरक्षा इसलिए दी जानी जरूरी भी थी,क्योंकि इस्लामी आतंकवाद से जुड़े ज्यादातर गुटों के निशाने पर अमेरिका और उसके राष्ट्रनायक नंबर एक पर हैं। भारत में पिछले तीन दषक से आतंकी हरकतें बरकरार है। यहां तक की आतंकी देश के सबसे सुरक्षित स्थल संसद भवन पर भी नाकाम हमला बोल चुके हैं। इस लिहाज से अमेरिका के राष्ट्रपति की सुरक्षा का दायित्व गंभीर मसला जरूर है,लेकिन भारत हरेक गंभीर समस्या से जूझने व निपटने की पर्याप्त साम्र्थय रखता है।

अमेरिकी आधिकारियों ने दखल देते हुए कहा है कि ओबामा जिस कार में बैठकर आयोजन स्थल पर जाएंगे,उसमें भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी नहीं बैठेंगे। अधिकारियों ने दूसरा सबसे बड़ा ऐतराज राजपथ के ऊपर सुरक्षा के लिए तैनात किए जाने वाले हवाई जहाजों के उड़ान भरने पर जताया है। इन्होंने इस पूरे क्षेत्र को ‘नो फ्लाई जोन‘ घोषित करने का सुझाव दिया है। क्योंकि ओबामा दो घंटे खुले मंच पर समारोह का आनंद लेंगे। इन दो सुझावों से साफ होता है कि अमेरिका को भारतीय सुरक्षा इंतजामों पर भरोसा नहीं है। ओबामा की भारतीय राष्ट्रपति के साथ एक ही कार में न बैठने पर आपत्ति समझ से परे है ? यहां सवाल उठता है कि अमेरिका जाने वाले नेता यदि इसी तरह की आपत्तियां जताने लगें तो अमेरिका को कैसा लगेगा ? हालांकि भारत ने फिलहाल दोनों ही ऐतराजों को खारिज करके यह जता दिया है कि वह बेजा हस्तक्षेप बरदास्त नहीं करेगा।

अमेरिका की ये आशंकाएं शायद इसलिए पुख्ता हुई हैं,क्योंकि ओबामा की भारत यात्रा के ठीक पहले मुंबई विस्फोटों के मास्टर माइंड दाऊद इब्राहम पाकिस्तान के कराची शहर में लौट आया है। खबरों के मुताबिक दाऊद को कराची पहुंचाने में मदद पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई ने की है। दरअसल पाकिस्तानी सेना और तहरीक-ए-तालिबान के बीच चल रही लड़ाई से दाऊद की जान को खतरा था। इसी खतरे के मद्देनजर आईएसआई ने यह एहतियाती कदम उठाया है। इसी क्रम में करीब एक सप्ताह पहले भारतीय खुफिया एजेंसियों ने छोटा शकील और अनीस इब्राइम के फोन टेप किए हैं। इन टेपों से दाऊद के कराची में होने का पता चला है। इस रहस्य का खुलासा भारत के समाचार चैलन भी कर चुके हैं। ओबामा की भारत यात्रा की पृष्ठभूमि के परिप्रेक्ष्य में सतर्कता बरतते हुए ही अमेरिका ने दाऊद इब्राइम के भाई अनीस कासकर और अजीज मूसा बिलखिया पर प्रतिंबध लगाया है। ये दोनों भारतीय नागरिक हैं। अनीस डी कंपनी के लिए मादक पदार्थों की तस्करी,फिरौती,वसूली,हवाला और सुपारी लेकर हत्या का काम करता है। अनीस मुंबई में 1993 में हुए धमाकों का भी आरोपी है। अजीज मूसा भी डी कंपनी के काले कारोबरों से जुड़ा होने के साथ मुबंई धमाकों में मोस्ट वांडेड है। जाहिर है,ओबामा की भारत यात्रा को लेकर अमेरिका की चौकसी चौतरफा है।

यही ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति रहते हुए ही नबंवर 2010 में तीन दीन की भारत यात्रा पर आए थे। तब देश में संप्रग की सरकार थी और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। ओबामा के आने पर अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों ने कोई बेजा हस्तक्षेप नहीं किया था और न ही अमेरिका से सुरक्षा बलों की फौज ओबामा की सुरक्षा के लिए भारत आई थी। हां,इस यात्रा के दौरान उनके साथ अमेरिकी कंपनी का एक बड़ा व्यापारिक दल जरूर आया था। दरअसल उस समय ओबामा भारत अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए आए थे। क्योंकि तब अमेरिका समेत तमाम यूरोपीय देश आर्थिक मंदी का जबरदस्त सामना कर रहे थे,लिहाजा अमेरिका को उपभोक्ताओं और बाजार की तलाश थी। गोया,भारत आने की गरज ओबामा की थी,इसलिए उनकी भूमिका कमोवेश एक याचक की थी,लेकिन इस बार उन्हें भारत को महिमांडित करने के नजरिए से बुलाया गया है,गोया ओबामा को बुलाने गरज भारत ने जताई है। इसलिए ओबामा एक शक्तिशाली देश के राष्ट्रनायक के रूप में भारत आ रहे हैं। अलबत्ता जब गरज अपनी है तो बेजा दखलदांजियां और मनमानियां तो मेजबान देश को झेलनी ही पड़ेगी ?

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  1. ऐसा नहीं है. पूर्व मैं जब ओबामा भारत आये थे तोआई एस ऐ एस का जन्म नहीं हुआ था. इसके अलावा २ घंटे खुले मैं विशाल जनसमूह मैं बैठना नहीं था. इन ३४ वर्षों मैं आतंकवाद मैं जबरदस्त वृद्धि हुई है. पाकिसन के वजीरिस्तान इलाके मैं ड्रोन हमले वे भी लगातार। कई नागरिकों की इन हमलों मैं मृत्यु। पाकिस्तान के पेशावर मैं निर्मम हत्या,पाकिस्तान के सेना और वायु सेना प्रतिष्ठानों पर हमले आदि. ऐसी घटनाओं के कारण इतनी अधिक सुरक्षा की चिंता है. अमेरिका कभी भी याचक नहीं रहा. वह तो अंतर राष्ट्रीय स्टार पर ऐसा चौधरी है जो दूसरों को याचक बनाता है. आतंक वादी संगठनो को अत्याधुनिक हथियार कहाँ से मिलते हैं? सीरिया के बशर अल असद केखिलाफ विद्रोहियों को हथियार किसने दिए?आज वही विद्रोही आतंकवादी हैं. अमेरिका ने युद्ध के कारखाने खोल रखे हैं. जो उसकी नीतियों के रूप रात दिन काम करते रहते हैं. राजनीती मैं कोई याचक और कोई दानदाता नहीं ,सब सौदे बाजी है.

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