इजरायली अधिकारी पर हमले के मायने / डॉ. आशीष वशिष्ठ

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राजधानी दिल्ली स्थित प्रधानमंत्री आवास के पास इजरायली दूतावास की कार में हुए बम विस्फोट ने एक बार फिर सुरक्षा एजेंसियों की चुस्ती और सतर्कता की पोल खोल दी है। हार्इ सिक्योरिटी जोन में अति आधुनिक तरीके से घटना को अंजाम देकर आंतकियों का सुरक्षित निकल जाना यह दर्शाता है कि लंबे-चौड़े दावे करने वाली सुरक्षा एजेंसिया सफेद हाथी से ज्यादा कुछ नहीं हैं।

हमले के बाद लकीर पीटने और इधर-उधर बिखरे सबूत बटोरने के अलावा सुरक्षा एजेंसियां और जिम्मेदार विभाग कुछ नहीं करते हैं। देश के भीतर विदेशी दूतावास की गाड़ी पर आंतकी हमला गंभीर मामला है। यह आंतरिक सुरक्षा और सुरक्षा एजेंसियों के लिए खुली चुनौती भी है। हमले के तीन-चार दिन बीत जाने के बाद भी देश की उच्च सुरक्षा एजेंसियों के हाथ खाली हैं। हमलावारों के बारे में पुख्ता जानकारी और सुराग न जुटा पाना सुरक्षा एजेंसियों के नकारेपन का ही सुबूत है।

नवंबर 2008 में मुंबर्इ पर हुए आतंकवादी हमले के बाद आंतकवाद पर प्रभावी कार्रवार्इ और लगाम लगाने के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी का गठन किया गया था। मगर उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्र में आतंकियों ने अत्याधुनिक तरीके से घटना को अंजाम देकर सुरक्षा एजेंसियों को सोचने को मजबूर किया है कि वे सुरक्षा बलों और एजेंसियों से दो कदम आगे की सोचते हैं और जहां जिस वä चाहें घटना को अंजाम दे जाते हैं।

इजरायली दूतावास की गाड़ी पर हमला विदेश नीति और विश्व बिरादरी में भारत के रिश्ते बिगाड़ने की एक बड़ी वारदात है। हमले के कुछ देर बाद जिस तरह र्इरान और इजरायल के बीच जुबानी जंग छिड़ी, उससे ऐसा लगता है कि आंतकी संगठनों ने अपने दुश्मन को टारगेट करने के लिए सुरक्षा के हिसाब से कमजोर भारत को चुना है, जो चिंता का बड़ा कारण है।

गौरतलब है कि पिछले डेढ दशक में भारत में हुए आतंकी हमलों में मारे गए लोगों का सरकारी आंकड़ा 1658 और घायलों का आंकड़ा 700 के लगभग है। पिछले एक दशक में देशभर में हुये आंतकी हमलों में मृतकों और घायलों का आंकड़ा हजारों में है। आतंकी हमले और घटना के बाद कुछ समय तक सुरक्षा एजेंसिया, जिम्मेदार विभाग और सरकार मुद्दे के प्रति पूरी गंभीरता और तेजी दिखाते हैं, लेकिन एकाध महीने के भीतर ही गाड़ी पुरानी पटरी पर लौट आती है।

पिछले वर्ष दिल्ली हार्इकोर्ट के गेट पर हुए बम ब्लास्ट के बाद भी सुरक्षा एजेंसियों ने खूब चुस्ती-फुर्ती दिखार्इ थी, लेकिन इस बार आंतकियों के हार्इ सिक्योरिटी जोन में नयी तकनीक से हमला करके सुरक्षा एजेंसियों को सकते में डाल दिया है और जता दिया है कि उनको रोक पाना आसान नहीं है। वर्ष 2001 में संसद पर जब आतंकी हमला हुआ था, तब देशभर में खूब हो-हल्ला मचा था। लेकिन संसद पर हमले के बाद देश में दो दर्जन से अधिक आंतकी घटनाएं घट चुकी हैं।

सुरक्षा एजेंसियों के तमाम दावों और सख्ती के परखच्चे उड़ाते आतंकी संगठनों ने ट्रेन, मंदिर, सेना कैंप, रामजन्म भूमि और हैदराबाद की मक्का मसिजद अर्थात जहां चाहा वहां हमला किया। पिछले दो दशकों में आतंकी संगठनों ने देश के अंडर एक बड़ा नेटवर्क तैयार किया है। अब तो उनकी हिम्मत इतनी बढ़ गयी है कि वो हार्इ सिक्योरिटी जोन और प्रधानमंत्री निवास के निकट हमला करने का हौंसला जुटा चुके हैं।

इजरायल दूतावास की कार पर हुए हमले ने सुरक्षा तंत्र की पोल-पट्टी तो खोली ही है, वहीं सरकारी दावों और बयानों की सच्चार्इ भी पूरे देश के सामने आ गयी है। संसद पर हमले से लेकर ताजा बम ब्लास्ट तक हर बार घटना के बाद सरकार ने आतंकवाद से सख्ती से निपटने के बयान तो जरूर जारी किये, लेकिन जमीनी हकीकत किसी से छिपी नहीं है। सरकार चाहे जितने लंबे-चौड़े दावे और कार्यवाही का आश्वासन दे, लेकिन आतंकी घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं।

वर्तमान में आंतकवाद की समस्या से विश्व के कर्इ राष्ट्र ग्रस्त हैं। यह एक वैशिवक समस्या है जो दिनोंदिन बदतर रूप लेती जा रही है। दुनियाभर में हथियारों की सुलभ उपलब्धता, धन की पर्याप्त आपूर्ति, सैन्य प्रशिक्षण की वजह से आतंकियों का गहरा संजाल विकसित हो गया है। कर्इ देशों द्वारा आंतकवाद की चुनौती को स्वीकार करने पर उसे रोकने की मंशा के बावजूद यह समस्या दिन प्रतिदिन जटिल एवं घातक होती जा रही है।

भारत में भी ये समस्या गंभीर रूप धारण कर चुकी है। लचर और लंगड़ी विदेश नीति, अपाहिज कानून और न्याय व्यवस्था, राजनीतिक इच्छााशक्ति की कमी के कारण सीमापार और देश के भीतर पनपने वाले आतंकवाद पर प्रभावी रोक नहीं लग पा रही है। वोट बैंक की गंदी और घटिया राजनीति, अव्यावहारिक, असंवेदनशील और अगंभीर राजनीतिक बयानबाजी देश की जनता को भ्रमित और चिढ़ाती है, वहीं आंतकियों का हौंसला भी बुलंद करने का काम करती है। असल में आंतक और आंतकियों से सख्ती से न निपटने की लचीली नीति और राजनीति के कारण ही आंतकी हर बार सरेआम वारदात करने में कामयाब हो जाते हैं और सरकार मुआवजा और बनावटी सख्ती दिखाने के अलावा कुछ नहीं करती है।

हमला र्इरान ने कराया हो इजरायल या फिर किसी अन्य ने, लेकिन धमाके के लिए भारत की धरती का चुना है, किसी बड़े खतरे का संकेत है। अमेरिकी-इजराइली गठजोड़ काफी समय से र्इरान के ऊपर आर्थिक प्रतिबन्ध लगा रहा है और अप्रत्यक्ष रूप से भारत पर भी दबाव डाल रहा है कि वह र्इरान से अपने हितों को त्याग कर सम्बन्ध विच्छेद कर ले। उसी कड़ी की साजिश इजरायली दूतावास की कार पर हुआ बम विस्फोट हो सकता है।

भारत को इन देशों की हरकतों के ऊपर गंभीर रूप से नजर रखने की जरूरत है। काफी दिनों से आर्थिक रूप से विश्व मानचित्र पर उभर रहे भारत को पिछाड़ने के लिये चीन युद्ध की बात पशिचमी मीडिया द्वारा व्यापक स्तर पर प्रचारित की जाती रही है।

भारत को ऐसी घृणित कोशिशों और चालों से होशियार रहने की आवश्यकता है। वहीं सुरक्षा एजेंसियों को और पुख्ता तैयारी एवं अतिरिक्तह सर्तकता बरतने की जरूरत है, क्योंकि जिस तरह हार्इ सिक्योरिटी जोन और सुरक्षा तंत्र को धत्ता बताकर आतंकियों ने ब्लास्ट को अंजाम दिया, वो यह साबित करता है कि आंतकी सुरक्षा बलों की तैयारियों और दिमाग से आगे सोचते हैं और वो कहीं भी हमले को अंजाम देने में सक्षम हैं।

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