केरल का कन्नूर – एक इंटरव्यू जो छपा नहीं !

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rssकेरल का कन्नूर एक ऐसा जिला है, जो संघस्वयंसेवकों पर हुए अत्याचारों की अनेकों अनकही कहानियाँ अपने अन्दर छुपाये हुए हैं ! यह दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि पुराने मीडिया की नजरे इनायत इधर नहीं है ! क्योंकि उसकी व्यस्तता और रूचि संघ परिवार के सकारात्मक सेवा कार्यों को विध्वंसक बताकर उसे अकारण बदनाम करने में ज्यादा है ! उसका कारण भी साफ़ है कि केंद्र में भले ही सत्ता परिवर्तन हो गया हो, किन्तु स्थापित मीडिया का वही पुराना एजेंडा है, संघ विरोध का एजेंडा ।

लेकिन जैसा कि कहा जाता है कि खून सिर चढ़कर बोलता है, सो कन्नूर हिंसा के तथ्य भी सामने आने लगे हैं और इसमें महती भूमिका निबाही है, आज की नई मीडिया अर्थात सोशल मीडिया ने । अब यह ताजा प्रकरण ही लीजिये ! अंग्रेजी के एक प्रमुख समाचार पत्र के प्रतिनिधि ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे. नंदकुमार जी से भेंट कर कन्नूर में हुई हिंसक वारदातों के परिप्रेक्ष में साक्षात्कार देने का अनुरोध किया ! नंदकुमार जी ने उनका आग्रह स्वीकार कर साक्षात्कार दिया भी ! उन्हें कोई भी प्रश्न पूछने की पूर्ण स्वतंत्रता थी ! पत्रकार ने भी साक्षात्कार उपरांत वह प्रकाशनार्थ सम्पादक महोदय को दिया, किन्तु वह प्रकाशित नहीं हुआ ! क्यों नहीं हुआ, उसकी सहज कल्पना की जा सकती है ! लेकिन सोशल मीडिया में आज वह साक्षात्कार बहुचर्चित है ! शायद अखबार में छपता तो इतना नहीं पढ़ा जाता ! प्रस्तुत है उक्त साक्षात्कार का हिन्दी अनुवाद –

कन्नूर एक ऐसा वाम गढ़ है, जहां अखबार भी कौनसा पढ़ा जाए, इसका निर्धारण भी पार्टी करती है और यहां पुलिस बल और न्यायपालिका राजनीतिक दलों के हांथ का खिलौना है । कन्नूर जिले में संघ कार्यकर्ताओं पर हो रहे अत्याचार की इस श्रंखला के बारे में जानकारी प्राप्त होने पर मैंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे. नंदकुमार जी का साक्षात्कार लेने का फैसला किया।

प्रश्न 1: क्या आप बता सकते हैं कि विगत पांच वर्षों में इस प्रकार के कितने हमले हुए ? क्या उसके आंकड़े मिल सकते है?

उत्तर: केरल में पिछले 50 वर्षों में आरएसएस से सम्बंधित 267 लोगों की हत्याएं हुईं हैं ! इनमें से 232 लोग सीपीएम द्वारा मारे गए थे । 2010 के बाद, सोलह आरएसएस कार्यकर्ताओं की सीपीएम द्वारा हत्या कर दी गई। किसी के पैर काट दिए गए, किसी की आँख फोड़ दी गईं, अनेकों को पीट पीट कर जीवन भर के लिए अपाहिज बना दिया गया ! इन घायलों की संख्या मारे गए लोगों से लगभग छह गुना है।

इन झड़पों के बाद शान्ति व्यवस्था के नाम पर पुलिस द्वारा क्रूरता का नंगा नाच किया गया ! हमारे निर्दोष कार्यकर्ताओं पर झूठे मुकदमे लादे गए, लोकअप में उन्हें बेरहमी से पीटा गया, यह अनुभव तो और भी बदतर था ।

प्रश्न 2: क्या इन हमलों का कोई निश्चित पैटर्न है, क्या ये हमले चुनाव के पूर्व ज्यादा होते हैं?

उत्तर: जी हां, इन सभी हमलों का एक पैटर्न है। लेकिन सामान्यतः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ होने वाले सीपीएम के हमलों की संख्या का चुनाव की घोषणा से कोई संबंध नहीं हैं। हालांकि कांग्रेस और आईयूएमएल जैसे अन्य दलों के खिलाफ होने वाले सीपीएम के हमलों के मामले में यह सच है।

आरएसएस के खिलाफ हमलों के लगभग सभी मामले आरएसएस और भाजपा के विरुद्ध सीपीएम कार्यकर्ताओं और उनके परिवारों के प्रवाह से संबंधित हैं।

लेकिन इस बार अवश्य विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आरएसएस और भाजपा के खिलाफ हमलों में एक बड़ी वृद्धि हुई है । इसका कारण यह है कि पहली बार सीपीएम को लग रहा है कि भाजपा को व्यापक जन समर्थन मिल रहा है, और वे किसी भी तरह से उसे रोकना चाहते हैं।

प्रश्न 3: क्या अधिकारियों द्वारा कोई कदम उठाये गए, क्या कोई गिरफ्तारी हुई ? यह आरोप लगाया गया है कि कुछ घटनाओं में, जैसे कि फरवरी में सुजीत पर हुए हमले का प्रकरण निजी दुश्मनी के कारण घटित हुआ, इन आरोपों के बारे में आपका क्या कहना है?

उत्तर: हाँ यह सच है कि सीपीएम द्वारा किये जाने वाले प्रत्येक हमले के बाद पुलिस कुछ लोगों को गिरफ्तार करती हैं। लेकिन लगभग सभी मामलों में, विशेष रूप से कन्नूर में, वास्तविक अपराधियों को हाथ भी नहीं लगाया जाता । पुलिस केवल उन लोगों को गिरफ्तार करती है, जिन्हें गिरफ्तार करने के लिए पार्टी हरी झंडी दे देती है !

इसे समझना चाहिए कि यह कैसे और क्यों होता है ! दरअसल सीपीएम नेतृत्व का अपने कार्यकर्ताओं और केरल पुलिस पर पूरा प्रभाव है ।

अब सवाल उठता है कि पार्टी यह क्यों करती है ? इसका एक कारण तो यह है कि गिरफ्तारी/ सरेंडर की इस नौटंकी में हत्यारी ब्रिगेड साफ़ बची रहती है- भविष्य में इस प्रकार के ऑपरेशन और करने के लिए पूर्ण स्वतंत्र – दूसरी बात यह कि जो कार्यकर्ता सरेंडर करते हैं, वे सबूतों के अभाव में अदालत से साफ़ बरी हो जाते हैं ! तीसरा यह कि इसके बाद भी अगर खुदाने खास्ता किसी को सजा हो भी जाए तो पार्टी, जो कि सामान्यतः हर पांच वर्ष बाद सत्ता में आ ही जाती है, उनके परिवारों को मुक्त हस्त से पुरष्कृत करती है ! इतना ही नहीं तो वे पैरोल पर बार बार जेल से छूटते भी रहते हैं!

फिर भी, कुछ वास्तविक हत्यारों को सजाएं हुई हैं, पर उसके पीछे सीपीएम की स्क्रिप्ट को धता बताने वाले कुछ अत्यंत बहादुर वरिष्ठ आईपीएस पुलिस अधिकारी होते है।

इस सबके प्रति कांग्रेस पार्टी और उसके प्रशासन का कहीं सक्रिय रूप से तो कहीं निष्क्रिय होकर सीपीएम के साथ मिलीभगत रहती है । इन राजनीतिक हत्याओं के पीछे छुपे मास्टरमाइंड को गिरफ्त में न लिए जाने के पीछे मुख्य कारण यह है कि सीपीएम और कांग्रेस दोनों ही भाजपा को अपना प्राथमिक शत्रु मानती हैं । यह अपवित्र गठबंधन बार बार प्रकाश में आता है, यहाँ तक कि स्वयं उच्च न्यायालय ने भी खुले तौर पर (और पहली बार नहीं) कहा है कि केवल सीबीआई जांच से ही इन राजनीतिक हत्याओं का सच सामने आ सकता है, क्योंकि इनमें कन्नूर के वास्तविक शासक (सीपीएम) शामिल हैं। एक मुस्लिम लीग कार्यकर्ता शुकूर की माकपा द्वारा की गई ह्त्या की सीबीआई जांच हेतु दायर की गई याचिका में अदालत ने अपना यह अभिमत दिया ।

आपने सुजीत की हत्या के पीछे निजी दुश्मनी संबंधी आरोप के बारे में पूछा है। यह सच नहीं है और मैं आग्रह करता हूं कि आप स्वयं इस आरोप के बारे में अपने स्तर पर जानकारी लें, वास्तविकता आपके सामने आ जायेगी ।

राज्य पुलिस की प्राथमिकी में भी इस बात की पुष्टि हुई थी कि सुजीत की ह्त्या एक राजनीतिक हत्या थी। सीपीएम के लोग अपने द्वारा की गई सभी हत्याओं को लेकर पूर्व से ही, “व्यक्तिगत कारणों से की गईं” का आरोप लगाते रहे हैं, फिर चाहे वह असंतुष्ट मार्क्सवादी टी.पी. चंद्रशेखरन की ह्त्या हो, अथवा भाजयुमो उपाध्यक्ष जयकृष्णन मास्टर या सुजीत का प्रकरण हो ।

उनके काम काम करने का यही ढंग है ! पहले टारगेट को अपनी इच्छा बताकर डराने के लिए उसके खिलाफ प्रचार अभियान चलाना, और अगर यह उपाय कारगर न हो तो फिर उसकी हत्या कर देना । हत्या के बाद सीपीएम का प्रयत्न रहता है, अपने प्रचार उपकरणों, जैसे टीवी चैनल (कैरली, पीपुल्स) और समाचार पत्र (देशाभिमानी) के माध्यम से, मृत व्यक्ति की चरित्र ह्त्या करना और यह प्रदर्शित करना कि उसकी ह्त्या उसकी अपनी व्यक्तिगत कमजोरी के कारण हुई, किसी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण नहीं । उनकी इस कार्यपद्धति को केरल का बच्चा बच्चा जानता है ।

प्रश्न 4: जो लोग मर जाते हैं और जो लोग गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं, उन लोगों के परिवारों का क्या होता है ? क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में इन परिवारों की देखरेख हेतु कोई व्यवस्था है?

उत्तर: आरएसएस ने स्थानीय लोगों की मदद से अपने ऐसे पीड़ित कार्यकर्ता जिनकी हत्याएं हुई हैं, के परिजनों की देखरेख हेतु समुचित व्यवस्था बनाई है । इसी प्रकार अंगभंग के कारण स्थाई रूप से अपाहिज हुए कार्यकर्ताओं के उपचार में कोई कसर नहीं छोडी जाती । इस राज्य की भीषण परिस्थिति को देखते हुए संगठन ने इस सबके लिए एक तंत्र विकसित किया है ।

प्रश्न 5: देश में शाखाओं की सर्वाधिक संख्या केरल में है, राज्य में युवा आरएसएस में शामिल होने के लिए उत्सुक हैं, इसके पीछे आपको क्या कारण प्रतीत होता है, खासकर तब, जबकि इस क्षेत्र को कम्युनिस्टों का गढ़ माना जाता है?

उत्तर: साम्यवाद की क्यारी रहा केरल तेजी से इस्लामी आतंकवाद की प्रजनन भूमि में बदल रहा है। केरल के हिंदुओं में असुरक्षा की भावना है और वे इन ताकतों के खिलाफ एक सेतु के रूप में संघ को देखते हैं । कम्युनिस्ट पार्टियों ने अपने हिन्दू विरोधी रुख के कारण केरल की मूल परम्पराओं और जीवन मूल्यों को नष्ट करने की कोशिश की थी। युवा पीढ़ी अब एक बार फिर अपनी जड़ों से जुड़ना चाहती है, और वह संघ और उसके अनुसंगों में अपने सांस्कृतिक पुनरुत्थान को देख रही है।

इसके अतिरिक्त मुख्यधारा के राजनीतिक संगठनों के दुष्कर्म और भ्रष्टाचार को देखकर विशेष रूप से युवाओं में हताशा बढ़ रही है । संगठनात्मक योजना और प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं द्वारा योजनाओं के अनुशासित कार्यान्वयन के कारण केरल में आरएसएस का विकास मार्ग प्रशस्त हुआ है।

प्रश्न 6: आरएसएस कार्यकर्ताओं के खिलाफ बढ़ रहे हिंसक हमलों व उनके पीछे के कारणों के बारे में क्या आप कोई अन्य विशेष बात साझा करना चाहेंगे?

उत्तर: केरल में भी आरएसएस की कार्य प्रणाली पूरे भारत के ही समान है । हम लोग एक लोकतांत्रिक प्रणाली में काम करते हैं, और अपने साथ सम्पूर्ण समाज को जोड़ने का प्रयत्न करते हैं । हम सीपीएम या किसी अन्य संगठन को अपने ‘दुश्मन’ के रूप में नहीं देखते । हमारे पास समय है, हम फिर से शांति के लिए अपील करते हैं, ताकि यह स्थिति बदले और हम राज्य में अन्य संगठनों के समान अपने संगठनात्मक काम कर सकें ।

प्रमुख गांधीवादी विचारक उदयभानु सहित कई स्वतंत्र शोधकर्ताओं ने, जिन्होंने केरल में हत्या की राजनीति का अध्ययन किया, इस तथ्य को स्पष्ट रूप से कहा है। सम्पूर्ण विश्व में साम्यवाद का पतन होने के बाद सीपीएम ने केरल में दंभ को अपना दर्शन और हिंसा को उसके उपकरण के रूप चुना है।

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