बांगला देश में तीन ब्लागरों पर हमला, प्रकाशक की हत्या

बांग्लादेश के दिवंगत लेखक और ब्लागर अविजित राय के साथ काम करनेवाले एक प्रकाशक की अज्ञात हमलावरों ने शनिवार को गला काटकर हत्या कर दी। वहीं इसके कुछ घंटे पहले ही दो सेक्यूलर ब्लागरों और राय के एक अन्य प्रकाशक पर हमला हुआ। ढाका के मध्य शाहबाग इलाके में फ़ैजल आर्फ़ीन दीपान(४३) पर तीसरी मंजिल स्थित उनके आफिस में ही हमला किया गया। यह स्थान उस इमारत के बिल्कुल पास है जहाँ कई महीने तक ज़मीयत-ए-इस्लामी नेताओं और १९७१ के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों से सांठगांठ करनेवाले कट्टरपंथियों की फांसी की सज़ा की मांग को लेकर प्रदर्शन हुए थे।
— अमर उजाला, ०१-११-२०१५
इस समाचार को बिकाऊ टीवी मीडिया ने प्रसारित नहीं किया और न ही इसपर किसी तथाकथित सेक्यूलर बुद्धिजीवी ने अपनी छाती पीटी। कलकत्ता, बंगलोर, चेन्नई, दिल्ली और श्रीनगर में सड़कों पर ठेला लगाकर सार्वजनिक रूप से “बीफ” खानेवालों ने एक बूंद घड़ियाली आँसू भी नहीं बहाया। यही चरित्र और आचरण है इन तथाकथित सेक्यूलरिस्टों और पुरस्कार वापस करने वाले कांग्रेस पोषित बुद्धिजीवियों का।

1 COMMENT

  1. आपने यहां बंगला देश का एक समाचार उद्धृत किया है.उसमे कोई बुराई नहीं है.यह तो मानवता का तकाजा है कि ऐसे समाचारो को अधिक से अधिक सामने लाया जाये,पर उसके साथ जुडी हुई टिप्पणी मुझे हास्यास्पद लगी.आपने भारतीय नागरिकों को दूसरे देश में हुई किसी अप्रिय घटना के लिए जिम्मेदार ठहराने या उनकी चुप्पी के बारे में कुछ ज्यादा ही कहने का प्रयत्न किया है .मेरा केवल एक प्रश्न ,किस अधिकार से वे वैसा कर सकते हैं?भारत की मीडिया का सीमित रोल अवश्य है,पर इसमे सबसे बड़ा रोल किसी का है,तो हमारी सरकार का है.वह मानवीय अधिकारों की हनन का मामला उठा सकती है.यहाँ की विभिन्न संस्थाएं भी अपने सरकार को इसके लिए ज्ञापन दे सकती है.इससे ज्यादा कुछ भी नहीं.इसके बाद जो भी आपने लिखा है,उससे आपके दिल की भड़ास भले ही निकल जाये,पर वह है एक व्यर्थ का प्रलाप ही.

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