लेखक अंशुमन भगत की पुस्तकें युवाओं में है लोकप्रिय

मशहूर लेखक अंशुमन भगत ने अपने कर्म इच्छा से युवकों के लिए लाई गई एक श्रेष्ठ पुस्तक की रचना की है, जिसमे महत्वपूर्ण शब्दकोश रचनाएं रचि गई है, और ये काफी प्रसिद्ध है सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर, नौजवान अंशुमन भगत ने अपना रास्ता खुद चुना, जबकि आजकल के युवक पीढ़ियां अनेक कर्मो मे व्यस्त है, कई युवक साधारण जीवन की कल्पना कर रहे है, जबकि लेखक अंशुमन ने श्रेष्ठ बनने का निर्णय लिया ताकि समाज में कुछ बेहतर कर सके। अधिकांश इस उम्र के लोगो की जीवन जीने की कल्पना ये नहीं होती, अपनी शक्ति, बुद्धि और कर्म इच्छा से निर्भय अंशुमन भगत ने इस काम को करने का निर्णय लिया है।

अंशुमन भगत ने अपनी राय को परिणाम दिया, अपनी श्रेष्ठता और कठिन परिश्रम से इस काबिल बनाया है, अपने शब्दो को जोड़ कर रोज़मर्रा ज़िन्दगी के परिणाम मे कहीं न कहीं इंसान कठिन परिस्थिति के समय अपनी आलोचनाओं कि कल्पना कर सके ताकि उन शब्दों के ज़रिए उनको राहत हासिल हो और फिर से वे जी उठे।

लेखक अंशुमन भगत ने असान शब्दो का उपयोग करते हुए बस यही कोशिश की है कि दर्शक और पाठक को प्रकृति कि महत्वपूर्णता, सम्पूर्ण मार्ग से बताई है। अंशुमन ने तीन पुस्तकों की रचना की है, जिनमे अमेजॉन पर दो बेस्टसेलिंग पुस्तकें रही हैं अंशुमन ने अपना लिखने का सरल अंदाज़ रखा है ताकि हर व्यक्ति अपने व्यक्तिगत की पहचान को बड़ी आसानी से जान ले, जो कि किसी न किसी तरह से समाज के लिए उपयोगी और लाभदायक हो।

अंशुमन भगत ने प्रेरणादयक पुस्तको की अधिक रचनाएं की है, जो आज कि युवा पीढ़ी अपनी कठिन परिस्थितियों से ओझल हो, मन्न से परेशान लोगो की सहायता करने के विकल्प से इन की पुस्तके अधिक सहयोग साबित हुई है और लेखक का हमेशा से यही योगदान रहा है। जब मन मे अच्छे विचार पनपते हो तो इंसान शीघ्रता से सफलता की भूमि में अपने कदम बढ़ाता है और उसका परिणाम भी जीत से बढ़कर और कुछ नहीं होता, सफलता ही एक मार्ग है अपनी पहचान की प्रसिद्धता पाने के लिए।

लेखक अंशुमन भगत ने अपने जीवन को इसी प्रकार रखने का परिणाम दिया है और कहा कि अच्छे कर्मो का परिणाम अच्छा ही होता है , अपने व्यक्तिगत जीवन की आलोचनाओं को योग्यता से सम्पूर्ण मार्ग दिखाया। मुझे कंही याद पड़ता है अंशुमन भगत ने अपनी पहली पुस्तक “योर ऑन थॉट” मे लिखा कि “इज्जत सबकी करो पर शुरुआत अपने आप से करो।”, जो एक उद्धरण ही नही बल्कि संदेश भी देती है कि लोग दूसरो की महानता में इतने डूब जाते है कि खुद को भी भूल जाते है, ऐसा न हो, इसी कारण से ये बात बताई गई हैं कि हम अपने आप को पहचाने और उस पहचान को एक नाम दे।

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